फाल्गुन अमावस्या 2024: आने वाली है फाल्गुन अमावस्या, जान लें तिथि, महत्व व पूजा विधि!

फाल्गुन अमावस्या 2024: सनातन धर्म में अमावस्या को बहुत ही महत्वपूर्ण माना जाता है। यह दिन पवित्र नदियों में स्नान, दान और जप करने के लिए विशेष होता है। लेकिन, जब कोई पर्व, त्यौहार या कोई घटना अमावस्या के साथ जुड़ जाती है, तो इसके महत्व में कई गुना वृद्धि हो जाती है। पूर्णिमा की तरह ही हर माह अमावस्या भी आती है और इस प्रकार, एक वर्ष में कुल 12 अमावस्या आती है। इनमें से एक होती है फाल्गुन माह में आने वाली अमावस्या। एस्ट्रोसेज का यह ब्लॉग आपको फाल्गुन अमावस्या 2024 की विस्तृत जानकारी प्रदान करेगा जैसे कि तिथि, समय एवं महत्व आदि। इसके अलावा, हम आपको फाल्गुन अमावस्या पर किये जाने वाले सरल एवं अचूक उपायों से भी अवगत कराएंगे। तो चलिए आगे बढ़ते हैं और शुरुआत करते हैं इस लेख की 

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लेकिन, सबसे पहले हम बात करेंगे अमावस्या के बारे में, हम सभी जानते हैं कि हिंदू धर्म में चंद्रमा की गति और सभी राशियों में चंद्र देव के गोचर को बेहद अहम माना जाता है क्योंकि चंद्रमा की स्थिति के अनुसार ही चंद्र मास में तिथि और त्योहारों का निर्धारण किया जाता है। एक चंद्र मास में दो पक्ष होते हैं, एक शुक्ल पक्ष और दूसरा कृष्ण पक्ष। शुक्ल पक्ष के दौरान हर दिन चंद्रमा  का आकार धीरे-धीरे बढ़ता है और शुक्ल पक्ष के अंतिम दिन पूर्णिमा पर चन्द्रमा अपने पूरे स्वरूप में होता है। वहीं, कृष्ण पक्ष के दौरान चंद्रमा का आकार कम होने लगता है और अमावस्या पर बिल्कुल लुप्त हो जाता है। कृष्ण पक्ष के अंतिम दिन को अमावस्या के रूप में मनाया जाता है। हालांकि, आपको बता दें कि अमावस्या तिथि को अशुभ माना जाता है। आपको अमावस्या के बारे में बताने के बाद अब हम जानते हैं फाल्गुन अमावस्या 2024 की तिथि  के बारे में। 

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फाल्गुन अमावस्या 2024 पर बन रहा है शुभ संयोग

हिंदू पंचांग के अनुसार, हर साल फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या को फाल्गुन अमावस्या के नाम से जाना जाता है। इस वर्ष फाल्गुन अमावस्या 10 मार्च 2024, रविवार को पड़ेगी। बता दें कि साल 2024 में फाल्गुन अमावस्या के दिन साध्य योग और पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र के संयोग का निर्माण हो रहा है। यह संयोग बहुत ही शुभ माना जाता है और इस विशेष योग में किसी धार्मिक स्थल के पवित्र जल में स्नान और दान-पुण्य करना कल्याणकारी होता है। इसके अलावा, पितरों का श्राद्ध करना भी फलदायी रहता है। 

फाल्गुन अमावस्या 2024: तिथि एवं समय 

फाल्गुन अमावस्या की तिथि: 10 मार्च 2024, रविवार

अमावस्या तिथि का आरंभ: 09 मार्च 2024 की शाम 06 बजकर 19 मिनट पर

अमावस्या तिथि की समाप्ति: 10 मार्च 2024 की दोपहर 02 बजकर 32 मिनट तक 

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फाल्गुन अमावस्या का महत्व

फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष में पड़ने वाली अमावस्या को फाल्गुनी या फाल्गुन अमावस्या भी कहते हैं। यह अमावस्या सुख, संपत्ति और सौभाग्य में वृद्धि के लिए अत्यंत फलदायी होती है। धार्मिक और आध्यात्मिक रूप से फाल्गुन अमावस्या को विशेष स्थान प्राप्त है। ऐसी मान्यता है कि फाल्गुन अमावस्या की तिथि पर व्रत और धर्म-कर्म के करने से उनका फल जातक को तुरंत प्राप्त होता है। फाल्गुन माह हिंदू वर्ष का अंतिम महीना होता है इसलिए इस महीने में आने वाली अमावस्या यानी कि फाल्गुन अमावस्या हिंदू वर्ष की अंतिम अमावस्या होती है। 

फाल्गुन अमावस्या से एक दिन पूर्व अर्थात चतुर्दशी तिथि को महाशिवरात्रि के पर्व के रूप में मनाया जाता है जो कि भगवान शिव एवं माता पार्वती को समर्पित है। इसके अलावा, यह तिथि पितरों के तर्पण के लिए श्रेष्ठ होती है क्योंकि फाल्गुन अमावस्या पर किया गया तर्पण आपको पितृ दोष से मुक्ति दिलाता है। धार्मिक मत के अनुसार, इस अमावस्या पर नदियों में देवी-देवताओं का वास होता है इसलिए फाल्गुन अमावस्या पर यदि आप पवित्र नदी के जल में विशेष रूप से गंगा नदी में स्नान करते है, तो आपके लिए मोक्ष प्राप्ति का मार्ग प्रशस्त होता है।

इसी प्रकार, यह अमावस्या जब सोमवार के दिन पड़ती है, तो इसे सोमवती अमावस्या कहा जाता है और यह दिन धार्मिक रूप से काफ़ी मायने रखता है क्योंकि इस दिन गंगा, जमुना ,सरस्वती इन तीनों नदियों मे स्नान करना अत्यंत शुभ माना गया है। इस अमावस्या पर ही महाकुंभ स्नान के योग का भी निर्माण होता है जो कि भक्तों को अनंत गुना फल देता है। फाल्गुन अमावस्या का व्रत रखना भी पुण्यकारी होता है और इस तिथि पर विधिपूर्वक उपवास करने से सुख-समृद्धि और धन-धान्य का आशीर्वाद मिलता है। अगर अमावस्या सोमवार, मंगलवार, गुरुवार या शनिवार के दिन पड़ती है, तो यह सूर्यग्रहण से भी कई गुना ज्यादा फल देने वाली होती है।

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फाल्गुन अमावस्या व्रत की पूजा विधि

फाल्गुन अमावस्या व्रत की सही पूजा विधि इस प्रकार है:

  • सर्वप्रथम फाल्गुन अमावस्या पर प्रातःकाल उठें और किसी पवित्र नदी या कुंड आदि में स्नान करें। यदि ऐसा करना संभव न हो, तो आप नहाने के जल में गंगाजल मिलाकर स्नान कर सकते हैं।  
  • अब सूर्य देव को प्रणाम करके अर्घ्य दें। 
  • इसके पश्चात भगवान गणेश का ध्यान करें। साथ ही, विष्णु जी और महादेव की भी पूजा-अर्चना करें तथा व्रत का संकल्प लें।
  • इस दिन पूरे घर में गोमूत्र का छिड़काव करें और परिवार सहित किसी नदी के तट पर पूर्वजों के लिए तर्पण करें।
  • तर्पण के बाद ब्राह्मणों को भोजन अवश्य करवाएं।
  • संध्या के समय पीपल के पेड़ के नीचे सरसों के तेल का दीपक जलाएं। इसके बाद, आप अपने पूर्वजों का स्मरण करते हुए पीपल के पेड़ की सात बार परिक्रमा करें। 
  • फाल्गुन अमावस्या पर ब्राह्मणों को गाय दान करना भी शुभ माना जाता है। लेकिन, अगर आप ऐसा न कर सके, तो आप गाय को चारा खिलाएं।
  • ज्योतिष शास्त्र में कहा गया है कि अगर किसी की कुंडली में पितृ दोष होता है, तो फाल्गुन अमावस्या के दिन सभी धार्मिक अनुष्ठानों का विधि-विधान से पालन करने पर इस दोष से मुक्ति मिल जाती है।

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फाल्गुन अमावस्या पर किये जाने वाले रीति-रिवाज़

फाल्गुन अमावस्या के दिन कुछ धार्मिक कार्यों को विशेष रूप से किया जाता है जो तुरंत फल प्रदान करते हैं वह इस प्रकार हैं:

  • इस अमावस्या के दिन जातक को पवित्र नदी के जल या कुंड आदि में स्नान करना चाहिए। इसके बाद, सूर्य देव को अर्घ्य देकर पितरों का तर्पण करना चाहिए।
  • पूर्वजों एवं पितरों की शांति के लिए अमावस्या का व्रत करें और अपने सामर्थ्य के अनुसार गरीबों एवं जरूरतमंदों को दान-दक्षिणा दें।
  • फाल्गुन अमावस्या की तिथि पर रुद्र, अग्नि और ब्राह्मणों का पूजन करें और उन्हें उड़द, दही और पूरी आदि का नैवेद्य अर्पित करें। इसके पश्चात, आप स्वयं भी इन्हीं खाद्य पदार्थों का सेवन अवश्य करें। 
  • फाल्गुन माह की अमावस्या पर भगवान शिव का गाय के कच्चे दूध, दही, और शहद से अभिषेक करें। साथ ही, उन्हें काले तिल अर्पित करें।
  • अमावस्या तिथि को शनिदेव का दिन भी माना गया है इसलिए इस दिन शनि ग्रह की पूजा जरूर करें। इस दिन शनि मंदिर में नीले रंग के फूल, काले तिल, काले साबुत उड़द, कड़वा तेल, काजल और काला कपड़ा आदि चढ़ाएं।

फाल्गुन अमावस्या की पौराणिक कथा

फाल्गुन अमावस्या की प्रचलित कथा के अनुसार, एक बार ऋषि दुर्वासा इंद्र देव समेत सभी देवताओं से क्रोधित हो गए थे और क्रोध में आकर उन्होंने इंद्र देव और सभी देवताओं को श्राप भी दे दिया था। ऋषि दुर्वासा के श्राप के प्रभाव से सभी देवता काफ़ी कमजोर हो गए और देवताओं की कमज़ोरी का फायदा सबसे ज्यादा असुरों ने उठाया। असुरों ने देवताओं की स्थिति को देखकर उन पर आक्रमण कर दिया और वह उन्हें पराजित करने मे भी सफल रहे। असुरों से हारने के बाद सभी देवतागण मदद के लिए जगत के पालनहार भगवान श्रीहरि विष्णु के पास गए। भगवान विष्णु को महर्षि दुर्वासा द्वारा देवताओं को दिए गए श्राप से लेकर असुरों द्वारा देवताओं को युद्ध में परास्त करने के बारे में बताया, उस समय श्रीहरि विष्णु ने सभी देवताओं की बात सुनकर उन्हें सलाह देते हुए कहा कि आप दैत्यों के साथ मिलकर समुद्र मंथन करें। सभी देवताओ ने समुद्र मंथन करने के लिए असुरों से बात की और उनको इसके लिए राज़ी किया,आखिरकार असुर मान गए देवताओं के साथ संधि कर ली।

इसके पश्चात, सभी देवता अमृत प्राप्ति के लालच में आकर समुद्र मंथन करने लगे। जब समुद्र से अमृत निकला तब इंद्र का पुत्र जयंत अमृत का कलश अपने हाथों में लेकर आकाश में उड़ जाता है। इसके बाद सभी दैत्य जयंत का पीछा करने लग गए और दैत्य उसे अमृत का कलश ले लेते हैं। अब बारह दिनों तक अमृत का कलश पाने के लिए देवता और असुर घमासान युद्ध करते रहते हैं। इस भीषण युद्ध के दौरान कलश से अमृत की कुछ बूँदें धरती पर प्रयाग, हरिद्वार, नासिक और उज्जैन में गिर गई और उस समय चंद्रमा, सूर्य, गुरु, शनि ने अमृत कलश की असुरों से रक्षा की थी। जब यह कलह बढ़ने लगा, तब भगवान विष्णु ने मोहिनी का रूप रखकर असुरों का ध्यान भटकाते हुए देवताओं को छल से अमृतपान करवा दिया, तब से ही अमावस्या की तिथि पर इन जगहों पर स्नान करना बहुत शुभ माना जाता है।

फाल्गुन अमावस्या के दिन जरूर करें ये उपाय

  • फाल्गुन अमावस्या पर शमी का वृक्ष लगाएं और नियमित रूप से उसका पूजन करें। ऐसा माना जाता है कि इस वृक्ष को घर में लगाने से घर का वास्तु दोष दूर होता है। साथ ही, शनिदेव की कृपा प्राप्त होती है।
  • इस अमावस्या तिथि पर हनुमान जी की पूजा करें और सुंदरकांड का पाठ करें। इसके अलावा, हनुमान जी के मंदिर में प्रसाद चढ़ाएं।
  • इस तिथि पर सूर्यास्त के बाद पीपल के वृक्ष के नीचे बैठे और शनिदेव का ध्यान करें। इसके पश्चात सरसों के तेल का एक दीपक जलाएं।

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