गरीब के घर पैदा होकर भी अमीर बना देता है ये राजयोग, कहीं आपकी कुंडली में तो नहीं?
सनातन धर्म में जब किसी बच्चे का जन्म होता है तो समय, नक्षत्र, ग्रह और तिथि के अनुसार उस बच्चे की कुंडली तैयार की जाती है। ऐसे में, कुछ लोगों की कुंडली में ऐसे राजयोग होते हैं, जो जातक को गरीब होते हुए भी अमीर बना देते हैं। ज्योतिष में ऐसे कई राजयोग के बारे में चर्चा की गई है, जो व्यक्ति को धन, दौलत और शौहरत दिलाते हैं। राजयोग का प्रभाव इतना अधिक होता है कि व्यक्ति चाहे गरीब घर में भी पैदा हो लेकिन वह अमीर बनता है। ऐसे व्यक्ति की आर्थिक स्थिति हमेशा मजबूत रहती है और वह समाज में अपनी अलग पहचान बनाता है। एस्ट्रोसेज के इस विशेष ब्लॉग में हम एक ऐसे ही राजयोग के बारे में चर्चा करने जा रहे हैं, जिसके शुभ प्रभाव से रंक भी राजा बन जाता है।
यह योग है शश राजयोग, जिसका निर्माण शनि के द्वारा होता है। शनि नवग्रह में सबसे धीमी गति से चलने वाले ग्रह माने जाते हैं। एक राशि में वह कम से कम ढाई सालों तक रहते हैं, लेकिन अपनी स्थिति में बदलाव करते रहते हैं। इन बदलाव से व्यक्ति की कुंडली में शश राजयोग का निर्माण होता है। तो आइए आगे बढ़ते हैं और जानते हैं शश राजयोग के बारे में। साथ ही, यह भी जानेंगे कि यह राजयोग कैसे बनता है और इसके बनने से जातक को क्या-क्या फायदे हो सकते हैं।
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जानिए कैसे बनता है शश राजयोग
ज्योतिष के अनुसार, शश महापुरुष राजयोग की चर्चा पंच महापुरुष राजयोग में होती है। शनि के लग्न भाव में होने या चंद्र से केंद्र भाव पर होने पर इस योग का निर्माण होत है। बता दें कि शनि देव अगर किसी जातक की कुंडली के लग्न या चंद्रमा से पहले, चौथे, सातवें या दसवें स्थान पर तुला, मकर या कुंभ राशि में विराजमान हों, तो ऐसे में कुंडली में शश योग का निर्माण होता है। बता दें कि जिस भी जातक की कुंडली में यह योग बनता है वह बहुत अधिक भाग्यशाली होता है।
वैदिक ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, यदि दु:ख, बीमारी, शोक, दारिद्रय, मृत्यु आदि के कारक ग्रह शनि तुला राशि में विराजमान हो, तो शश राजयोग बेहद शुभ फल प्रदान करता है। बता दें कि शनि देव की उच्च राशि तुला है इसलिए जिस व्यक्ति की कुंडली में ये राजयोग बनता है वह गरीब से गरीब परिवार में जन्म लेकर भी अमीर बनता है और खूब नाम कमाता है। इतना ही नहीं, इन लोगों की आर्थिक स्थिति भी काफी मजबूत होती है। ये लोग खूब पैसे वाले होते हैं और इन्हें कभी भी आर्थिक समस्याओं का सामना नहीं करना पड़ता। ये लोग बहुत धनवान भी होते हैं। इतना ही नहीं, ये लोग जरूरतमंदों की भी मदद करने के लिए आगे आते हैं।
जिस भी जातक की कुंडली में शनि कुंभ राशि में या केंद्र में या मूल त्रिकोण में मौजूद है और शुभ अवस्था में है तो शश राजयोग का उसे बहुत अधिक शुभ फल प्राप्त हो सकता है। इसी के साथ गोचर के अनुसार भी जातक को शश राजयोग का बहुत अधिक लाभ मिलता है। बता दें कि वर्तमान में शनि कुंभ राशि में विराजमान होकर शश राजयोग का निर्माण कर रहा है। आइए जानते है कि जब यह राज योग किसी जातक की कुंडली में बनता है तो उसे किस प्रकार के फायदे हो सकते हैं।
ज्योतिष के अनुसार, शश राजयोग के शुभ प्रभाव से जातक में बड़े से बड़े रोग से उबरने की मजबूत क्षमता होती है।
इस योग के परिणामस्वरूप जातक की आयु लंबी होती है और वह लंबे आयु तक स्वस्थ जीवन जीता है।
जिन जातकों का अपना व्यापार होता है, उन्हें इस योग से बहुत अधिक लाभ होता है। व्यापार में दिन प्रतिदिन मुनाफा होता है और तेजी से बिज़नेस आगे बढ़ता है। साथ ही, जातक अपने बिज़नेस करने में बहुत अधिक प्रैक्टिकल होते हैं।
ऐसे जातक, जरूरत पूर्ति या आवश्यकता अनुसार की बातचीत करता है और हर किसी को अपनी राय नहीं देता है।
ये लोग बहुत अधिक ज्ञानी होते हैं और लोग इनसे राय लेना पसंद करते हैं।
इनका मन रहस्यों को जानने और उसे अपनी तरह से लोगों तक पहुंचाने में होता है।
राजनीति के क्षेत्र में तो ये अपार सफलता प्राप्त करते हैं और कूटनीति करने में सबसे आगे होते हैं।
कार्यक्षेत्र में ये शीर्ष पद पर आसीन होते हैं और हर किसी से खूब मान-सम्मान प्राप्त करते हैं।
यदि जातक की कुंडली में शश राजयोग का निर्माण हो रहा है तो उस पर कभी भी शनि के कुप्रभाव, साढ़ेसाती और ढैय्या के बुरे प्रभाव नहीं पड़ते हैं।
यदि ये जातक सरकारी नौकरी, आईएएस, पीसीएस की तैयारी करते हैं तो इन्हें सफलता मिलने की अधिक संभावना होती है।
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शश योग में जन्म लेने वाले जातक का व्यक्तित्व
शश योग को शशका योग भी कहते हैं। इस योग में जन्म लेने वाले बच्चे बहुत अधिक भाग्यशाली होते हैं। इनके व्यक्तित्व की बात करें तो इनका चेहरा छोटा होता है, आंखें फुर्तीली होती हैं और मध्यम ऊंचाई वाले छोटे दांत हो सकते हैं। इन लोगों को घूमने-फिरने का बहुत अधिक शौक होता है। ऐसे जातक कई ज्यादातर यात्रा करने की योजना बनाते हैं। उन्हें वादियां और पहाड़ों पर जाना बहुत अधिक पसंद होता है। शश योग के जातकों को बहुत जल्दी गुस्सा आ सकता है और ये अपने क्रोध पर जल्दी लगाम नहीं लगा पाते हैं। ये जिद्दी और साहसी स्वभाव के भी होते हैं। इसके अलावा, ये पार्टियों की मेजबानी करना और लोगों को घर पर आमंत्रित करना बहुत अधिक पसंद करते हैं। ये लोग बहुत अधिक मेहनती होते हैं और अपने प्रयासों से सफलता अवश्य प्राप्त करते हैं।
यह दूसरों की सेवा करने के लिए हमेशा तैयार रहते हैं। वे धातु की वस्तुओं को बनाने में कुशल होते हैं। ऐसे जातक विपरीत लिंग की तरफ सबसे ज्यादा आकर्षित होते हैं। कई बार ये लोग अपना पैसा दूसरों पर बहुत अधिक बर्बाद कर सकते हैं। ये लोग अपने माता-पिता से बहुत अधिक प्यार करते हैं और उनकी सेवा करते हैं। ये लोग हेल्थ में भी काफी फिट होते हैं और कोई बड़ी बीमारी इन्हें परेशान नहीं कर सकती है। फिट रहने के साथ-साथ ये आकर्षक भी होते हैं और हर कोई जल्द इनकी तरफ आकर्षित हो सकता है। हालांकि वे काफी बुद्धिमान होते हैं इसलिए दूसरों में अक्सर दोष ढूंढते रहते हैं, जिसकी वजह से लोग इन से जल्द नाराज भी हो सकते हैं।
शनि के अशुभ प्रभाव से भी बचाता है शश योग
शश योग शनि के अशुभ प्रभाव को सुधारने में सहायक होता है और जातक को शुभ परिणाम देता है। यह योग जातक को शनि के नकारात्मक प्रभाव से बचाने में अत्यधिक फलदायी है। ‘शनि साढे़साती’ और ‘शनि ढैय्या’ के बुरे प्रभाव को भी समाप्त करने की क्षमता रखता है।
इसी आशा के साथ कि, आपको यह लेख भी पसंद आया होगा एस्ट्रोसेज के साथ बने रहने के लिए हम आपका बहुत-बहुत धन्यवाद करते हैं।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न
प्रश्न 1. शश राजयोग कैसे बनता है?
उत्तर 1. शश राजयोग तब बनता है, जब शनि लग्न भाव से या चंद्र भाव से केंद्र भाव में स्थित हो, यानी शनि कुंडली में लग्न या चंद्रमा से पहला, चौथा, सातवें या दसवें भाव में तुला, मकर या कुंभ राशि में स्थित हो, तो यह शश योग बनाता है।
प्रश्न 2. शश योग का फल कब मिलता है?
उत्तर 2. शश योग तब बनता है जब कुंडली के लग्न या चंद्रमा से पहले, चौथे, सातवें और दसवें घर में शनि अपने स्वयं की राशि (मकर, कुंभ) में या उच्च राशि तुला में मौजूद होता है।
प्रश्न 3. शश राजयोग का दूसरा नाम क्या है?
उत्तर 3. शश राजयोग का दूसरा नाम शशका योग है।
प्रश्न 4. शनि देव के गुरु कौन है?
उत्तर 4. शनि देव के गुरु भगवान शिव हैं।
शनिदेव की आराधना के लिए शुभ माना जाता है ज्येष्ठ अमावस्या का दिन, ये उपाय करने से मिलेगा लाभ!
एस्ट्रोसेज के इस विशेष ब्लॉग में हम आपकोज्येष्ठ अमावस्या 2024 के बारे में बताएंगे और साथ ही इस बारे में भी चर्चा करेंगे कि इस दिन राशि के अनुसार किस प्रकार के उपाय करने चाहिए ताकि आप इन उपायों को अपनाकर भगवान विष्णु की विशेष कृपा प्राप्त कर सके। तो आइए बिना देरी किए आगे बढ़ते हैं और जानते हैं कि विस्तार से ज्येष्ठ अमावस्या के पर्व के बारे में।
ज्येष्ठ माह के कृष्ण पक्ष में आने वाली अमावस्या को ज्येष्ठ अमावस्या कहते हैं। धार्मिक शास्त्रों में ज्येष्ठ अमावस्या तिथि का बड़ा महत्व बताया गया है। इस दिन पवित्र नदियों में स्नान करने के बाद दान देने की परंपरा है। माना जाता है कि ऐसा करने से व्यक्ति को सभी पापों से मुक्ति मिलती है और पुण्य फल की प्राप्ति होती है। इस दिन स्नान और दान से पितर प्रसन्न होते हैं और उनका विशेष आशीर्वाद प्राप्त होता है। इसके अलावा, इस अमावस्या पर पितरों की शांति के लिए पिंडदान, तर्पण और भोजन करवाना भी बेहद शुभ माना गया है। इस अमावस्या पर भगवान विष्णु की पूजा करने का विधान है। बता दें कि ज्येष्ठ अमावस्या पर न्याय के देवता शनि देव का जन्म हुआ था इसलिए इस दिन शनि जयंती मनाई जाती है। शनि के कारण ज्येष्ठ अमावस्या को शनि अमावस्या भी कहते हैं। इस दिन शनि देव की पूजा करने का विशेष महत्व है। आइए सबसे पहले जानते हैं ज्येष्ठ अमावस्या की तिथि व मुहूर्त के बारे में।
ज्येष्ठ अमावस्या 2024: तिथि व समय
ज्येष्ठ मास के कृष्ण पक्ष में में पड़ने वाली अमावस्या को ज्येष्ठ अमावस्या कहा जाता है। साल 2024 में यह तिथि को 06 जून 2024 गुरुवार के दिन पड़ रही है। अमावस्या आरम्भ: जून 5 2024 की शाम 07 बजकर 57 मिनट से शुरू होगी
अमावस्या समाप्त: जून 6 2024 को की शाम 06 बजकर 09 मिनट पर समाप्त होगी।
शास्त्रों के अनुसार, ज्येष्ठ मास में स्नान-दान का विशेष महत्व है। इस विशेष दिन पर पितरों को तर्पण प्रदान करने से उनकी आत्मा तृप्त हो जाती है। साथ ही इस दिन जल का दान करने से व्यक्ति को पुण्य फल की प्राप्ति होती है। इस अमावस्या का धार्मिक दृष्टि से खास महत्व है क्योंकि इस दिन पवित्र नदियों में स्नान करने से सात जन्मों के पाप और पितृ दोष से मुक्ति मिल जाती है। ज्योतिष के मुताबिक अमावस्या तिथि के स्वामी पितर है इसलिए इस तिथि पर व्रत पूजन करके पितरों को तर्पण व पिंडदान करना शुभ माना जाता है। वहीं इस दिन शनि देव का जन्म हुआ था और ऐसे में, इस दिन शनिदेव की उपासना करने से शनि की साढ़ेसाती, ढैय्या व महादशा से मुक्ति मिल सकती है। उत्तर भारत में ज्येष्ठ अमावस्या को बहुत पवित्र, पुण्य फल देने वाली तिथि माना गया है।
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ज्येष्ठ अमावस्या की पूजा विधि
ज्येष्ठ अमावस्या के पवित्र दिन सूर्योदय से पहले उठकर घर के सभी कामों से मुक्त हो जाए। इसके बाद पवित्र नदी में स्नान करें। यदि ऐसा संभव न हो तो घर पर ही पानी में गंगाजल मिलाकर स्नान करें और फिर सूर्य देव को अर्घ्य दें।
इस दिन पितरों की शांति के लिए पिंडदान व तर्पण कर ब्राह्मण भोजन करवा सकते हैं।
यदि संभव हो तो ज्येष्ठ अमावस्या पर तीर्थ स्नान व दान जरूर करें। ऐसा करने से अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है और पितृ दोष भी दूर होता है।
इसके बाद पीपल के पेड़ पर जल, अक्षत, सिंदूर आदि चीजें अर्पित करें और कम से कम 11 या 07 बार परिक्रमा अवश्य करें।
ज्येष्ठ अमावस्या पर शनि जयंती भी मनाई जाती है इसलिए इस दिन शनि मंदिर जाकर शनिदेव की पूजा भी करें। इसके अलावा, शनिदेव को सरसों का तेल, काले तिल, काला कपड़ा और नीले फूल अर्पित करें। इसके बाद शनि मंत्र का जाप करें व शनि चालीसा का पाठ करें।
ज्येष्ठ अमावस्या के दिन पितरों का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए और कुंडली में ग्रहों की स्थिति में सुधार करने के लिए व्यक्ति को इन सात प्रकार की चीजों का दान अवश्य करना चाहिए, जो इस प्रकार है-
चावल
गेहूं
जौ
कंगनी
चना
मूंग दाल
तिल
ये सभी चीजें अन्न की श्रेणी में आती हैं और अमावस्या पर इस सात प्रकार के अनाज का दान करने से सात ग्रहों के दुष्प्रभाव से बचा जा सकता है। वहीं शनि और सूर्य ग्रह को मजबूत करने के लिए गेहूं, काले चने व काले तिल का दान करना शुभ होता है। वहीं सफेद तिल के दान से शुक्र ग्रह मजबूत होते हैं। मूंग दाल के दान से बुध ग्रह की स्थिति प्रबल होती है। वहीं चंद्र ग्रह की कृपा प्राप्त करने के लिए चावल का दान करना शुभ होता है। इसके अलावा, जौ और मसूर की दाल का दान करने से देव गुरु बृहस्पति व मंगल देव की स्थिति को मजबूत किया जा सकता है।
ज्येष्ठ अमावस्या के दिन क्या करें और क्या ना करें
ज्येष्ठ अमावस्या की तिथि पर सूर्योदय से पहले उठकर पवित्र नदी में स्नान करें।
घर में झाड़ू पोछा लगाने के बाद गंगाजल या गोमूत्र से पूरे घर पर छिड़काव करें।
पितरों के नाम लेकर और घर की दक्षिण दिशा में देसी घी का दीपक जलाएं।
ज्येष्ठ अमावस्या का व्रत करें और पीपल के पेड़ के आगे दीपक जलाते हुए, 11 या 07 बार परिक्रमा करें।
लहसुन-प्याज व शराब मदिरा जैसे तामसिक चीज़ों से दूर रहें और इस पूरे दिन ब्रह्मचर्य का पालन करें।
गरीब व जरूरतमंद व्यक्ति का गलती से भी अपमान न करें और हो सके तो उनकी मदद करें।
अलग-अलग धार्मिक ग्रंथों में शनिदेव की जन्म कथा का वर्णन अलग-अलग तरीके से किया गया है। कुछ ग्रंथों में शनिदेव का जन्म ज्येष्ठ माह की अमावस्या के दिन तो कुछ ग्रंथों में शनिदेव का जन्म भाद्रपद शनि अमावस्या के दिन बताया गया है।
एक पौराणिक कथा के अनुसार, शनि देव का जन्म ऋषि कश्यप के यज्ञ से हुआ था, लेकिन स्कंद पुराण में शनि देव के पिता का नाम सूर्य और माता का नाम छाया बताया गया है। आइए जानते हैं इस कथा के बारे में। कथा के मुताबिक, राजा दक्ष की कन्या संज्ञा का विवाह सूर्य देव के साथ संपन्न हुआ था। विवाह के बाद संज्ञा सूर्य देव के तेज से काफी परेशान रहती थीं और वह उस तेद से निकलने का रास्ता ढूंढ रही थीं। धीरे-धीरे समय बीत रहा था। इस बीच संज्ञा ने वैवस्वत मनु, यमराज और यमुना नाम की तीन संतानों को जन्म दिया। इसके बाद संज्ञा ने निर्णय लिया है वे कठोर तपस्या करेंगी और सूर्यदेव के तेज को सहने में सक्षम बनेंगी, लेकिन उन्हें बच्चों के पालन पोषण की चिंता हो रही थी। ऐसे में, बच्चों के पालन में कोई दिक्कत न आए और सूर्यदेव को उनके फैसले के बारे में पता न चले इसके लिए संज्ञा ने अपने तप से अपनी ही तरह की एक महिला को पैदा किया और उसका नाम संवर्णा रखा। यह उनकी ही छाया थी। संज्ञा संवर्णा को बच्चों और सूर्यदेव की जिम्मेदारी देकर तप के लिए चली गईं और इस बारे में किसी को पता नहीं चला।
संवर्णा सूर्यदेव के तेज से परेशानी नहीं होती थी। इस बीच संवर्णा ने भी सूर्यदेव की तीन संतानों मनु, शनि देव और भद्रा को जन्म दिया। कहा जाता है जब शनिदेव संवर्णा के गर्भ में थे तो संवर्णा भगवान शिव का कठोर तप कर रहीं थीं। भूख-प्यास, धूप-गर्मी सहने के कारण इसका सारा प्रभाव उनकी संतान यानी शनिदेव पर पड़ा। इसके कारण शनिदेव का जन्म हुआ तो उनका रंग काला था। यह रंग देखकर सूर्यदेव को शक हुआ कि यह पुत्र उनका नहीं हैं। उन्होंने छाया पर संदेह करते हुए उन्हें अपमानित किया।
माता के तप की शक्ति शनिदेव में भी आ गई थी। मां का अपमान देखकर उन्होंने क्रोधित होकर पिता सूर्यदेव को देखा तो सूर्यदेव काले पड़ गए और उनको कुष्ठ रोग हो गया। अपनी यह दशा देखकर घबराए हुए सूर्यदेव भगवान शिव की शरण में पहुंचे, तब भगवान शिव ने सूर्यदेव को उनकी गलती का अहसास कराया। सूर्यदेव को अपने किए का पश्चाताप हुआ, उन्होंने क्षमा मांगी और फिर उन्हें अपना असली रूप मिला लेकिन इसके बाद पिता पुत्र के संबंध खराब हो गए।
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ज्येष्ठ अमावस्या पर करें ये आसान उपाय
यदि आप भी न्याय के देवता शनि देव की कृपा पाना चाहते हैं, तो ज्येष्ठ अमावस्या के दिन के ख़ास उपाय जरूर करें। आइए जानते हैं इन उपायों के बारे में
शनि के दुष्प्रभाव से बचने के लिए
शनि देव की कृपा पाने के लिए ज्येष्ठ अमावस्या के दिन स्नान-ध्यान करने के बाद काले रंग के कपड़े धारण करें। इसके बाद शनि मंदिर जाकर शनिदेव को नीले रंग का पुष्प, सरसों का तेल, काले तिल आदि चीजें अर्पित करें। ऐसा करने से शनि के दुष्प्रभाव से बचा जा सकता है।
शनि देव की कृपा प्राप्ति के लिए
ज्येष्ठ अमावस्या के दिन इन चीज़ों का दान अवश्य करें- काले कपड़े, सरसों का तेल, लोहे, उड़द दाल आदि। साथ ही, गरीबों व जरूरतमंदों को अपनी सामर्थ्य से खाना खिलाएं। ऐसा करने से न्याय के देवता शनिदेव प्रसन्न और अपनी विशेष कृपा प्रदान करते हैं।
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साढ़े साती से बचने के लिए
ज्येष्ठ अमावस्या के दिन किसी भी असहाय व निर्धन व्यक्ति को न सताए और अगर हो सके तो उसकी मदद करें। ऐसा करने से शनि के साढ़े साती के प्रभाव से बचा जा सकता है और आपको जीवन में खूब सफलता भी प्राप्त होगी।
आर्थिक समस्याओं से छुटकारा पाने के लिए
ज्येष्ठ अमावस्या पर शनि जयंती भी पड़ रही है। ऐसे में, इस दिन पीपल वृक्ष पर जल चढ़ाएं। इसके बाद, तिल के तेल का दीपक जलाएं और शनि स्तुति करें। ऐसा करने से शनि के अशुभ प्रभाव से बचा जा सकता है और यदि आप आर्थिक समस्याओं से जूझ रहे हैं तो आपको इससे राहत मिलेगी।
पितृ दोष से छुटकारा पाने के लिए
ज्येष्ठ अमावस्या तिथि पर केसर डालकर खीर बनाए और माता लक्ष्मी व भगवान विष्णु को इसका भोग लगाएं और इसके बाद प्रसाद के रूप में सबको बांटे। साथ ही, इस दिन पितरों के नाम का ब्राह्मणों को भोजन कराएं। ऐसा करने से माता लक्ष्मी की विशेष कृपा बनी रहेगी और यदि आप पितृ दोष से पीड़ित हैं तो उससे भी छुटकारा मिल जाता है। साथ ही, धन-धान्य की कभी भी कमी नहीं होती है।
कालसर्प दोष दूर करने के लिए
ज्योतिष के अनुसार ज्येष्ठ मास की अमावस्या के दिन बहते हुए पानी में नारियल बहाना चाहिए। माना जाता है कि ऐसा करने से कालसर्प दोष दूर होता है और व्यक्ति के हर काम आसानी से बनने लगते हैं।
हम उम्मीद करते हैं कि आपको हमारा यह लेख ज़रूर पसंद आया होगा। अगर ऐसा है तो आप इसे अपने अन्य शुभचिंतकों के साथ ज़रूर साझा करें। धन्यवाद!
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न
प्रश्न 1. ज्येष्ठ मास की अमावस्या कब है?
उत्तर 1. साल 2024 में ज्येष्ठ माह की अमावस्या 06 जून 2024 गुरुवार के दिन पड़ रही है।
प्रश्न 2. अमावस्या के दिन घर में क्या करना चाहिए?
उत्तर 2. माता लक्ष्मी की कृपा पाने के लिए सुबह पीपल के पेड़ में जल अर्पित करें।
प्रश्न 3. अमावस्या के दिन पितरों को कैसे खुश करें?
उत्तर 3. अमावस्या के दिन प्रात: काल स्नान के बाद पितरों का स्मरण करें और उनका तर्पण करने से पितृ प्रसन्न होते हैं।
प्रश्न 4. पितरों के लिए कौन सा दीपक लगाना चाहिए?
उत्तर 4. अमावस्या पर पितरों के लिए घी का दीपक जलाना चाहिए।
साल में दो बार मनाई जाती है शनि जयंती- नोट कर लें वैशाख माह की शनि जयंती की सही तिथि और मुहूर्त!
हिंदू धर्म में शनि जयंती के पर्व का विशेष महत्व माना जाता है। इस दिन शनि देव की विधिवत पूजा करते हैं। आपकी जानकारी के लिए बता दें कि शनि जयंती वर्ष में दो बार मनाई जाती है एक वैशाख के महीने में और एक ज्येष्ठ के महीने में। अपने इस खास ब्लॉग में हम जानेंगे इस वर्ष शनि जयंती किस दिन मनाई जा रही है, इस दिन क्या कुछ काम भूल से भी नहीं करने चाहिए, राशि अनुसार क्या उपाय करके आप शनिदेव की प्रसन्नता हासिल कर सकते हैं, साथ ही जानें शनि जयंती से जुड़ी कुछ बेहद ही दिलचस्प और रोचक बातों की भी जानकारी।
शनि जयंती 2024 कब है?
जैसा कि हमने पहले भी बताया कि शनि जयंती वर्ष में दो बार मनाई जाती है। कुछ जगहों पर शनि जयंती वैशाख अमावस्या के दिन मनाई जाती है और कुछ जगहों पर शनि जयंती ज्येष्ठ महीने की अमावस्या को मनाई जाती है। इस साल वैशाख अमावस्या 8 मई को है और ज्येष्ठ अमावस्या 6 जून को है। ऐसे में इन दोनों ही दिनों पर अलग-अलग जगहों पर शनि जयंती मनाई जाएगी।
शास्त्रों के अनुसार शनि जयंती के पर्व का विशेष महत्व माना गया है। इस दिन सूर्य पुत्र शनिदेव की जयंती मनाई जाती है। ज्योतिष शास्त्र में शनि देव को न्याय का देवता कहते हैं अर्थात यह व्यक्ति के उसके कर्मों के अनुसार ही फल देते हैं। जिन लोगों के कर्म अच्छे होते हैं उन्हें शनिदेव से डरने की बिल्कुल आवश्यकता नहीं होती है बल्कि शनि उनकी मेहनत में चार-चाँद लगाकर उन्हें रंक से राजा बना देते हैं वहीं इसके विपरीत जिन लोगों के कर्म अच्छे नहीं होते हैं उन्हें शनि से हर मायने में डरना चाहिए और ऐसे लोगों पर शनि का प्रकोप निश्चित तौर पर देखने को मिलता है।
आपकी कुंडली में कैसी है शनि की स्थिति? शनि रिपोर्ट से जानें जवाब
अब आगे बढ़ते हैं और जान लेते हैं शनि के दुष्प्रभाव को कम करने के लिए किस विधि से शनि जयंती पर शनि देव की पूजा करनी चाहिए। इसके अलावा बहुत से लोग शनि जयंती के दिन शनि देव के लिए व्रत भी रखते हैं। अगर किसी व्यक्ति की कुंडली में शनि दोष होता है या फिर शनि की स्थिति कमजोर होती है तो विशेष तौर पर ऐसे लोगों को शनि जयंती के दिन व्रत रखना, फिर भगवान शनि के मंदिर जाकर उन्हें सरसों का तेल काला तिल, नीले फूल, शमी के पत्ते चढ़ाने की सलाह दी जाती है। इससे उन्हें निश्चित रूप से शनि के प्रकोप से बचने में राहत मिलती है।
सनातन धर्म में शनि जयंती के पर्व को विशेष महत्वपूर्ण माना जाता है। इस दिन शनि देव की पूजा करने से शनि की साढ़ेसाती, शनि की ढैया के दुष्प्रभाव से व्यक्ति को छुटकारा मिलता है। इसके साथ ही शनिदेव की पूजा करने से व्यक्ति को कारोबार और नौकरी में तरक्की और सफलता भी प्राप्त होती है।
शनि देव जयंती 2024: शुभ मुहूर्त
सबसे पहले बात कर लें शुभ शुभ मुहूर्त की तो इस साल वैशाख अमावस्या 7 मई 2024 को सुबह 11:40 से प्रारंभ हो जाएगी और इसका समापन 8 मई को सुबह 8:40 पर होगा। यही वजह है कि शनि जयंती 8 मई को मनाई जा रही है। शनि पूजा करने के लिए समय की बात करें तो यह शाम के 5 से 7 बजे तक रहने वाला है।
वहीं ज्येष्ठ माह की शनि जयंती अर्थात 6 जून की शनि जयंती की बात करें तो इसका मुहूर्त अलग होगा। जून महीने की अमावस्या 5 जून 2024 को 7:54 से प्रारंभ हो जाएगी और इसका समापन 6 जून को 6:07 पर होगा।
शनि जयंती कथा
सूर्य देव का विवाह राजा दक्ष की पुत्री संज्ञा के साथ हुआ था। सूर्य देव की तीन संताने हैं मनु, यमराज और यमुना। पौराणिक कथाओं के अनुसार कहा जाता है कि एक बार संज्ञा ने अपने पिता दक्ष से सूर्य के तेज से होने वाली दिक्कत के बारे में जिक्र किया। तब राजा दक्ष ने अपनी पुत्री की बात पर ध्यान नहीं दिया। उन्होंने कहा कि तुम अब सूर्य देव की अर्धांगिनी हो। पिता के ऐसा कहने पर संज्ञा ने अपने तपोबल से अपनी छाया को प्रकट किया और इनका नाम सवर्णा रखा।
आगे चलकर सूर्य देव की पत्नी संज्ञा की छाया के गर्भ से शनि देव का जन्म हुआ। शनि देव का वर्ण बेहद ही श्याम था। जब सूर्य देव को इस बात का पता चला कि सवर्णा उनकी अर्धांगिनी नहीं हैं तो सूर्य देव ने शनि देव को अपना पुत्र मानने से इनकार कर दिया। इससे शनि देव कुपित हो गए और उनकी दृष्टि सूर्य देव पर पड़ी जिसकी वजह से सूर्य देव काले पड़ गए और पूरे ही संसार में अंधकार छाने लगा। परेशान होकर सूर्य देवता भगवान शिव के पास गए। तब भगवान शिव ने उन्हें छाया से क्षमा मांगने को कहा तब सूर्य देव ने छाया से क्षमा मांगी और तब जाकर वे शनि के क्रोध से मुक्त हुए।
शनि जयंती सही पूजन विधि
पूजन विधि की बात करें तो,
शनि जयंती के दिन सुबह स्नान करने के बाद शनि मंदिर जाएं और शनि देव को सरसों के तेल अर्पित करें।
इस दिन शनि देव को काले रंग के वस्त्र अर्पित करें।
इसके बाद उन्हें काला तिल, उड़द दाल और लोहा चढ़ाएँ।
हो सके तो गरीब लोगों को जूता, छाता या फिर कपड़े का भी दान कर सकते हैं।
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शनि जयंती के दिन भूल से भी ना करें ये गलतियाँ
शनिदेव की पूजा में कभी भी तांबे का बर्तन उपयोग न करें। तांबे का संबंध दरअसल सूर्य से जोड़कर देखा जाता है और सूर्य और शनि के बीच शत्रुता का संबंध है। यूं तो दोनों पिता पुत्र हैं लेकिन आपस में शत्रु हैं इसीलिए उनकी पूजा में कभी भी तांबे का बर्तन उपयोग न करें।
शनि देव की कुदृष्टि से बचाना है तो कभी भी उनकी मूर्ति के ठीक सामने खड़े होकर और उनकी आंखों में आंखें डाल कर ना देखें। शनिदेव की पूजा करते समय अपना मुख हमेशा पश्चिम दिशा में रखें।
शनि जयंती के दिन नमक, लोहा, तेल ना खरीदें। अगर आपको दान करना भी है तो एक दिन पहले इसे खरीद कर घर पर रख लें।
शनि जयंती के दिन शनि से संबंधित कोई भी चीज खरीद कर घर ना लाएं अन्यथा इससे मुसीबतें जीवन में आने लगती हैं।
शनि जयंती के दिन गलती से भी किसी पशु पक्षी को परेशान ना करें।
शनि जयंती के दिन मांसाहारी भोजन न करें, नशा ना करें, अन्यथा इससे शनि देव नाराज हो जाते हैं।
शनि जयंती के दिन भूल से भी गरीब, असहाय लोगों को परेशान ना करें। शनि देव को गरीबों का रक्षक कहा जाता है इसलिए विशेष तौर पर इन्हें परेशान करने से बचें।
शनि जयंती का धार्मिक महत्व
शनि जयंती का पर्व बेहद ही खास महत्व रखता है। शनिदेव भगवान शिव के परम भक्त कहे जाते हैं। उन्हें सेवा और व्यापार जैसे काम का स्वामी भी माना जाता है। कहते हैं कि जहां भी शनिदेव सीधी दृष्टि डालते हैं वहां उथल-पुथल मच जाती है। बताया जाता है कि एक बार जब रावण ने भगवान शनि को कैद कर लिया था तब हनुमान जी ने उन्हें छुड़ाया था। तब शनिदेव ने प्रसन्न होकर कहा था कि जो भी बजरंगबली की पूजा भक्ति भाव से करेगा उन पर कभी भी शनि दोष नहीं आएगा। साथ ही ऐसे जातकों पर शनि देव का आशीर्वाद हमेशा बना रहेगा।
मेष राशि: मेष राशि के जातक शनि जयंती के दिन सरसों के तेल या फिर काले तिल का दान करें।
वृषभ राशि: शनि जयंती के दिन वृषभ राशि के जातक गरीब और जरूरतमंद लोगों को काले कंबल का दान करें।
मिथुन राशि: शनि जयंती के दिन बड़े बुजुर्गों को प्रणाम करें, उन्हें कुछ उपहार अवश्य दें। इसके अलावा शनि मंदिर जाकर शनि देव से संबंधित चीजों का दान करें।
कर्क राशि: कर्क राशि के जातक शनि जयंती के दिन गरीबों को काला तिल, उड़द, सरसों के तेल, वस्त्र का दान करें।
सिंह राशि: सिंह राशि के जातक शनि जयंती के दिन हनुमान जी की पूजा करें उसके बाद शनि देव की पूजा करें और छाया दान करें।
कन्या राशि: कन्या राशि के जातक शनि जयंती के दिन शनि मंदिर जाकर पूजा पाठ करें और शनि मंत्र का जाप करें।
तुला राशि: तुला राशि के जातक शनि जयंती के दिन शनि देव की पूजा करें। इसके बाद काले या फिर नीले वस्त्र, तिल, कंबल आदि का जरूरतमंद लोगों को दान करें।
वृश्चिक राशि: शनि जयंती के दिन भगवान हनुमान की पूजा करें। पूजा के बाद काले कुत्ते की सेवा करें।
धनु राशि: धनु राशि के जातक शनि जयंती के दिन पीपल के पेड़ की पूजा करें और सरसों के तेल का दीपक जलाएं।
मकर और कुंभ राशि: मकर और कुंभ राशि के जातकों के स्वामी ग्रह स्वयं शनि है। ऐसे में शनि जयंती के दिन विधिवत पूर्वक पूजा करने के बाद शनि की प्रिय वस्तुओं का जरूरतमंद लोगों को दान करें।
मीन राशि: मीन राशि के जातक शनि जयंती के दिन पीले वस्त्र, हल्दी, केसर का दान करें और हो सके तो विष्णु चालीसा का जाप करें।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न
प्रश्न: शनि जयंती 2024 में कब है?
उत्तर: 2024 में शनि जयंती वैशाख माह में 8 मई को है और ज्येष्ठ माह की शनि जयंती 6 जून को है।
प्रश्न: 2024 में शनि देव को कैसे प्रसन्न करें?
उत्तर: प्रदोष व्रत के दिन नियम से शाम के समय शनि देव की पूजा करें और उनका आशीर्वाद पाने के लिए सरसों के तेल का दीपक जलाकर पीपल के पेड़ के नीचे रख दें।
प्रश्न: शनि जयंती के दिन क्या करें?
उत्तर: शनि जयंती के दिन शनि दोष से मुक्ति पाने के लिए सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और फिर विधिपूर्वक शनिदेव की पूजा करें, उनके मंदिर जाकर सरसों के तेल अर्पित करें।
प्रश्न: शनि जयंती पर कौन से रंग के कपड़े पहनें?
उत्तर: शनि देव का प्रिय रंग काला माना जाता है। ऐसे में आप चाहे तो शनि जयंती के दिन काले रंग के वस्त्र धारण कर सकते हैं इससे शनि देव अवश्य प्रसन्न होंगे।
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इन ग्रहों की वजह से शादी में आती है रुकावट, जल्द कर लें उपाय, कहीं हो न जाए देर!
हर माता-पिता की इच्छा होती है कि उनके बच्चों की शादी सही जगह और सही समय पर हो जाए। इस बात की चिंता उन्हें हर बार सताती रहती है। यह चिंता तब बढ़ जाती है जब लड़का लड़की शादी के योग्य हो जाते हैं और शादी में कई प्रकार की बाधाएं आने लगती है। शादी में देरी होने की कई वजहें हो सकती हैं। कई बार आपकी शादी विवाह की बात बनते-बनते बिगड़ जाती है, तो कई बार बात आगे ही नहीं बढ़ पाती है। इन वजहों के उसके सही कारणों का पता लगाना हर किसी के लिए मुश्किल हो जाता है। ज्योतिष के अनुसार, शादी में देरी होने के अन्य समस्या के अलावा, कुछ ग्रह दोष भी कारण हो सकते हैं।
कुंडली में कई ऐसे ग्रह मौजूद होते हैं जो शादी विवाह के मामलों में बाधा पैदा करने लगते हैं। जो ग्रह शादी में देरी का कारण बनते हैं उनकी पहचान कुंडली देखकर की जा सकती है। लेकिन यदि आप इन ग्रहों के बारे में ठीक से जानकारी ले लेते हैं और कुछ आसान ज्योतिष उपायों को अपनाते हैं तो आप विवाह में आने वाली समस्या से निपट सकते हैं। तो चलिए इसी क्रम में आगे बढ़ते हैं और जानते हैं उन ग्रहों के बारे में जो विवाह में समस्याएं पैदा करते हैं और साथ ही, इन समस्याओं से लड़ने के उपायों स के बारे में भी जानेंगे।
शादी में रुकावट के पीछे ये है बड़ा कारण
कुंडली के ये भाव पैदा कर सकते हैं रुकावट
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, जब कुंडली में सातवें भाव की दशा या फिर अन्तर्दशा, सातवें भाव में स्थित ग्रहों की दशा या अंतर्दशा या सातवें भाव को देखने वाले ग्रहों की दशा या अंतर्दशा हो या छठे भाव से संबंधित कोई दशा या अंतर्दशा चल रही हो तभी शादी विवाह में देरी होती है। ज्योतिष के अनुसार, कुंडली में छठा तथा दसवां भाव विवाह में रुकावटें पैदा कर सकता है। शनि सातवें भाव में हो तब भी शादी विवाह में देरी हो सकती है।
बृहत् कुंडलीमें छिपा है, आपके जीवन का सारा राज, जानें ग्रहों की चाल का पूरालेखा-जोखा
इन ग्रहों की युति से भी विवाह में होता है विलंब
वहीं, यदि मंगल, राहु और केतु यदि सातवें भाव में हो तो भी शादी विवाह में देरी हो सकती है। शनि, मंगल, शनि राहु, मंगल राहु, या शनि सूर्य, सूर्य मंगल, सूर्य राहु की युति सातवें भाव या आठवें भाव में हो तो भी विवाह में अड़चन आ सकती है।
मांगलिक होना भी है कारण
विवाह में देरी होने का एक बड़ा महत्वपूर्ण कारण कुंडली में मांगलिक होना भी है। जो लोग मांगलिक होते हैं उन लोगों के विवाह के योग काफी उम्र में बनते हैं। सातवें और बारहवें भाव में गुरु या शुभ ग्रह योग कारक न हो और चंद्रमा कमज़ोर हो तो विवाह में बाधाएं आ सकती है।
सातवें भाव विवाह का कारक होता है इस पर शुभ ग्रहों तथा देवगुरु बृहस्पति व शुक्र की दृष्टि हो तो शादी के योग जल्दी बनते हैं। गुरु सातवें भाव में हो तो शादी 25 की उम्र तक हो जाती है। लेकिन यदि गुरु पर सूर्य या मंगल का प्रभाव हो तो शादी में एक साल या डेढ़ साल देरी हो सकती है और यदि कुंडली में राहु या शनि का प्रभाव हो तो 2 से 3 साल तक देरी का सामना करना पड़ सकता है।
यदि आप विवाह में देरी या किसी प्रकार की रुकावटों का सामना कर रहे हैं तो आपको नीचे दिए गए उपायों को जरूर करना चाहिए।
पारद शिवलिंग की करें पूजा
यदि आपके विवाह में लंबे समय से देरी हो रही है और बात होते-होती बिगड़ जाती है तो आपको पारद शिवलिंग की पूजा करनी चाहिए। इसके अलावा, आपको भगवान गणेश की पूजा नियमित रूप से करनी चाहिए। इसके साथ ही जल्द विवाह के लिए भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की गुरुवार के दिन विधि-विधान से पूजा करके खीर का भोग लगाना चाहिए।
माता पार्वती को चढ़ाएं सुहाग का सामान
विवाह में बाधाएं उत्पन्न करने वाले ग्रह गुरु, शनि और मंगल के लिए अवश्य उपाय करना चाहिए। ऐसे जातकों को सावन के हर सोमवार का व्रत रखना चाहिए और भगवान शिवजी के साथ ही माता पार्वती की भी पूजा करनी चाहिए। साथ ही, माता पार्वती को सुहाग का सामान चढ़ाना चाहिए इससे विवाह से जुड़ी बाधाएं दूर हो सकती हैं।
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मांगलिक दोष के लिए उपाय
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, कुंडली में मांगलिक दोष लगने पर विवाह में बाधा आती है। ज्योतिष के अनुसार, मांगलिक जातक को मांगलिक जातक से ही शादी करनी चाहिए। अन्यथा जीवन में कई प्रकार की समस्या का सामना करना पड़ सकता है। इसके लिए उपायों को अपनाना बहुत जरूरी है। मंगल के प्रभाव को खत्म करने के लिए मंगलवार के दिन व्रत करें। वहीं, हनुमान मंदिर जाकर बजरंगबली को लड्डू का भोग लगाएं। साथ ही, भगवान हनुमान को नारंगी सिंदूर अर्पित करें। ऐसा करने से मंगल दोष का प्रभाव कम हो सकता है।
गुरुवार का व्रत रखें
ज्योतिष में, देवगुरु बृहस्पति को विवाह का कारक माना जाता है और यदि कुंडली में गुरु कमज़ोर स्थिति में मौजूद हों तो जातक को विवाह से संबंधित समस्याओं के सामना करना पड़ सकता है। ऐसे में, गुरु की स्थिति में सुधार लाने के लिए गुरुवार के दिन पीले कपड़े पहनकर भगवान विष्णु की विधि-विधान से पूजा करनी चाहिए। साथ ही, आपको पीले चीज़ों का जैसे- चने की दाल, केला, हल्दी और केसर का सेवन करना आपके लिए भी लाभप्रद होता है। अगर संभव हो तो आप 11 या 21 गुरुवार का व्रत भी कर सकते हैं। ऐसा करना आपके लिए फलदायी साबित होगी।
गुप्त दान करें
यदि आपकी शादी में बाधा आ रही है, तो अपनी आर्थिक स्थिति के अनुसार विवाह में गुप्त दान करें। इस उपाय को करने से विवाह में आ रही बाधाएं दूर होंगी। ज्योतिष के अनुसार, विवाह में गुप्त दान करने से राहु की स्थिति मजबूत होती है।
शिवलिंग पर काले तिल चढ़ाएं
माना जाता है कि शनि की अशुभ स्थिति से भी विवाह में रुकावट आती है। शनि के कारण आने वाली बाधा को दूर करने के लिए हर शनिवार के दिन आप शिवलिंग पर काले तिल अर्पित करें। ऐसा करना बेहद लाभकारी माना जाता है। इसके अलावा, शनिवार को काले कपड़े में साबुत उड़द, लोहा, काला तिल और साबुन बांधकर दान करने से भी लाभ मिलता है।
बेडरूम में राधा कृष्ण की फोटो लगाएं
ज्योतिषियों की मानें तो यदि आपकी शादी की बात बनते-बनते बिगड़ जा रही है तो अपने बेडरूम में राधा कृष्ण जी की तस्वीर लगाएं। इस बात का ध्यान दें कि राधा कृष्ण जी की तस्वीर पूर्व या उत्तर दिशा में ही लगाएं तभी इसका फल प्राप्त होगा।
इसी आशा के साथ कि, आपको यह लेख भी पसंद आया होगा एस्ट्रोसेज के साथ बने रहने के लिए हम आपका बहुत-बहुत धन्यवाद करते हैं।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न
प्रश्न 1. कौन सा ग्रह अचानक विवाह देता है?
उत्तर 1. बुध शीघ्र ही शादी करवाता है। सातवें घर में बुध हो तो शादी जल्दी होने के योग होते हैं।
प्रश्न 2. देर से विवाह के लिए कौन सा ग्रह जिम्मेदार है?
उत्तर 2. विवाह में विलंब के लिए मंगल, बृहस्पति, शनि ग्रह जिम्मेदार होते हैं।
प्रश्न 3. विवाह के योग कब बनते हैं?
उत्तर 3. शादी के योग 20 वें वर्ष से बनने लगते हैं। हालांकि, बुध पर किसी अशुभ ग्रह की दृष्टि न हो।
प्रश्न 4. कौन सा घर विवाह का संकेत देता है?
उत्तर 4. कुंडली में सातवां भाव विवाह और साझेदारी का प्रतिनिधित्व करता है।0
कुंडली में कब और कैसे बनता है पातक कालसर्प दोष? इन उपायों से दूर होता है ये अशुभ योग
ज्योतिष शास्त्र में अनेक ऐसे योगों और दोषों का वर्णन मिलता है जिन्हें मनुष्य जीवन के लिए अशुभ माना जाता है और इन्हीं में से एक है पातक काल सर्प दोष। इस दोष की गिनती सबसे अशुभ दोषों में होती है क्योंकि इसे बहुत ही कष्टकारी कहा जाता है। आपको बता दें कि कालसर्प दोष कई प्रकार के होते हैं और उनमें से एक होता है पातक काल सर्प दोष। एस्ट्रोसेज का यह ब्लॉग आपको कुंडली में निर्मित होने वाले पातक काल सर्प दोष के बारे में समस्त जानकारी प्रदान करेगा। साथ ही जानेंगे, कुंडली में कब बनता है यह योग और इस दोष से उत्पन्न होने वाले अशुभ प्रभावों से मुक्ति पाने के लिए किन उपायों को करना चाहिए? तो आइए शुरुआत करते हैं इस ब्लॉग की।
ऐसी मान्यता है कि अगर किसी व्यक्ति की कुंडली में काल सर्प दोष मौजूद होता है, तो उस इंसान को अपने जीवन काल में अनेक समस्याओं से दो-चार होना पड़ता है। यह दोष मनुष्य को शारीरिक और मानसिक रूप से प्रभावित करता है। ज्योतिष के अनुसार, जब किसी व्यक्ति की कुंडली में सभी ग्रह राहु और केतु के बीच में आ जाते हैं, उस समय काल सर्प दोष निर्मित होता है।
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कैसे बनता है कुंडली में पातक कालसर्प दोष?
कुंडली में बनने वाला पातक कालसर्प योग भी काल सर्प दोष का एक प्रकार माना जाता है। यह उस समय बनता है जब दसवें भाव में राहु तथा चौथे भाव में केतु विराजमान होते हैं और इन दोनों ग्रहों के बीच में सभी ग्रह आ जाते हैं। बता दें कि कालसर्प योग कुल 12 तरह के होते हैं और इसमें यह दसवें स्थान पर आता है। कुंडली में बनने वाले इस अशुभ दोष के नाम से ही व्यक्ति घबरा जाता है और ऐसे में, मनुष्य को जीवन भर तमाम दुख और कष्ट भोगने पड़ते हैं।
जिन जातकों की कुंडली में पातक कालसर्प दोष होता है, उन्हें अपने पिता की संपत्ति पाने के लिए अपने भाइयों के साथ संघर्ष से जूझना पड़ता है।
चाहे नौकरी हो या व्यवसाय, इन लोगों को हर क्षेत्र में समस्याओं का सामना करना पड़ता है। पातक कालसर्प दोष से मनुष्य की आर्थिक स्थिति कमज़ोर रहती है इसलिए उन्हें दूसरों से धन उधार लेने और छोटे से छोटे काम को संपन्न करने के लिए दूसरों की सहायता या अहसान लेने की आवश्यकता होती है। ऐसे में, यह हमेशा जीवन भर कर्ज तले दबे रहते हैं।
कुंडली में पातक काल सर्प दोष होने पर व्यक्ति को नींद में बार-बार अपने शरीर पर सांप रेंगते हुए नज़र आते हैं या फिर स्वयं को सांप का डसना दिखाई देता है।
जिन लोगों पर पातक काल सर्प दोष का प्रभाव होता है, उन्हें अपने सपनों में अधिकतर मृत लोग दिखाई देते हैं।
इस दोष से पीड़ित जातक अपने जीवन में आर्थिक और शारीरिक समस्याओं से परेशान रहते हैं।
कुंडली में कालसर्प दोष होने पर नियमित रूप से शिव पूजा करना फलदायी रहता है। ऐसा करने से जीवन में आने वाली समस्याएं दूर होती हैं।
सोमवार, प्रदोष, शिवरात्रि, सावन माह या फिर किसी भी शिव वास के दिन रुद्राभिषेक करने से नकारात्मक प्रभाव कम होते हैं।
शनिवार या मंगलवार या फिर संभव हो, तो दोनों ही दिन सुंदरकांड का पाठ करें।
प्रतिदिन स्नानादि के पश्चात महामृत्युंजय मंत्र का जाप करें। ऐसा करने से पातक काल सर्प दोष का प्रभाव कम होता है।
ऐसे जातक को नियमित रूप से अपने कुलदेवता की उपासना करनी चाहिए।
प्रतिदिन महामृत्युंजय मंत्र का कम से कम 108 बार जाप करना फलदायी रहता है।
पातक कालसर्प दोष से पीड़ित व्यक्ति को घर में मोरपंख रखना फलदायी साबित होता है।
जिन लोगों की कुंडली में पातक कालसर्प दोष होता है, उस व्यक्ति के लिए त्र्यंबकेश्वर और महाकालेश्वर मंदिर में पूजा करना श्रेष्ठ रहता है। इन दोनों स्थानों को पातक कालसर्प दोष निवारण के लिए सर्वोत्तम होता है।
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अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न
प्रश्न 1. कालसर्प दोष के लक्षण क्या है?
उत्तर 1. कालसर्प दोष होने पर व्यक्ति शारीरिक और मानसिक रूप से परेशान रहता है।
प्रश्न 2. कालसर्प दोष कितने समय तक रहता है?
उत्तर 2. यह दोष लगभग 47 वर्षों तक व्यक्ति को प्रभावित करता है।
प्रश्न 3. कालसर्प दोष की पूजा कब करनी चाहिए?
उत्तर 3. नागपंचमी का दिन कालसर्प दोष निवारण पूजा के लिए श्रेष्ठ रहता है।
बृहस्पति के उदय होते ही, इन राशियों को मिलेगा प्यार, पति-पत्नी बनेंगे मिसाल
03 जून को बृहस्पति 03 बजकर 21 मिनट पर वृषभ राशि में उदित होने जा रहे हैं। बृहस्पति के उदित होने पर सभी राशियों के जीवन के सभी पहलू प्रभावित होंगे और इसका गहरा असर लोगों के प्रेम जीवन पर भी देखने को मिलेगा।
इस ब्लॉग में हम आपको बता रहे हैं कि गुरु के उदित होने से किन राशियों के जातकों को अपने प्रेम जीवन में सकारात्मक परिणाम मिलने की संभावना है। तो चलिए आगे बढ़ते हैं और जानते हैं कि गुरु के उदित होने से किन राशियों के जीवन में प्यार का आगमन होगा।
मेष राशि के नवम और बारहवें घर के स्वामी बृहस्पति हैं और अब वह आपके दूसरे घर में उदित होने जा रहे हैं। प्रेम जीवन की बात करें, तो आपको अपने पार्टनर के साथ आनंदमय समय बिताने का मौका मिलेगा। आप अपने रिश्ते में अपने जीवनसाथी के साथ खुश रहेंगे।
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कर्क राशि
कर्क राशि के छठे और नवम भाव के स्वामी बृहस्पति हैं और अब वह आपके ग्यारहवें घर में उदित होने जा रहे हैं। आपका अपने पार्टनर के साथ अच्छा तालमेल रहने वाला है। आप अपने रिश्ते को पूरी ईमानदारी के साथ निभाएंगे।
कन्या राशि के चौथे और सातवें भाव के स्वामी बृहस्पति हैं और अब वह आपके नवम भाव में उदित होने जा रहे हैं। इस दौरान कन्या राशि के लोगों के प्रयास सफल होंगे। आपको मुश्किल वक्त में या ज़रूरत के समय अपने पार्टनर का सहयोग प्राप्त होगा। इससे आप काफी खुश रहने वाले हैं।
वृश्चिक राशि के दूसरे और पांचवें घर के स्वामी बृहस्पति हैं और आपके सप्तम भाव में अब गुरु उदित होने जा रहे हैं। इस दौरान आपके नए दोस्त बनेंगे। प्यार के मामले में आप अपने जीवनसाथी के साथ अच्छे मूल्य स्थापित करेंगे और आप दोनों के बीच सद्भाव रहेगा।
प्रेम संबंधों पर गुरु का प्रभाव खुशहाल और अच्छे संबंध को दर्शाता है। अगर आपकी कुंडली में गुरु शुभ स्थान में बैठा हो, तो जातक का वैवाहिक जीवन खुशहाल रहता है।
शुभ ग्रहों के साथ होने पर और शुभ भाव में होने पर बुध वैवाहिक जीवन में अनुकूल परिस्थितियां उत्पन्न करता है।
स्त्री की कुंडली में गुरु शुभ स्थान में होने पर शादीशुदा जिंदगी में सकारात्मकता और संतुलन लेकर आता है।
अशुभ ग्रहों के साथ युति होने पर और कमज़ोर, वक्री या अशुभ भाव में होने पर गुरु वैवाहिक संबंध में अलगाव और तलाक की स्थिति उत्पन्न कर सकता है।
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बृहस्पति का प्रेम जीवन पर क्या असर पड़ेगा: कैसे जानें
बृहस्पति आपके रिश्ते के लिए अनुकूल है या नहीं, यह जानने के लिए नीचे दिए गए कुछ प्रमुख कारकों पर विचार किया जाता है:
सप्तम भाव में बृहस्पति: ज्योतिष में सातवें भाव का संबंध साझेदारी और विवाह से है। अगर इस भाव में गुरु हो, तो यह रिश्ते में सकारात्मक ऊर्जा का संकेत देता है। गुरु की यह स्थिति शांति, उन्नति और सफल रिश्ते की ओर संकेत करती है।
बृहस्पति पर अन्य ग्रहों की दृष्टि: बृहस्पति पर शुभ ग्रहों की दृष्टि से प्रेम जीवन पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
गोचर: कुंडली में बृहस्पति के गोचर पर ध्यान देना भी आवश्यक है। किसी राशि में गुरु के गोचर करने से विस्तार और अवसर मिलने की संभावना बढ़ जाती है जो कि प्रेम और रिश्ते के लिए अच्छा साबित होता है।
सातवें भाव में बृहस्पति का प्रभाव
कुंडली का सातवां भाव विवाह का कारक होता है। इस भाव में गुरु के शुभ स्थिति में होने पर जातक का अपने जीवनसाथी के साथ मज़बूत रिश्ता बनता है और वह अपने पार्टनर के प्रति ईमानदार रहते हैं। इनकी अध्यात्म की ओर रुचि रहती है और ये अपने कार्यों के प्रति बहुत ज्यादा ईमानदार होते हैं।
वहीं, अगर गुरु सातवें भाव में अशुभ फल दे रहा है, तो इससे वैवाहिक जीवन में चुनौतियों का सामना करना पड़ता है और व्यक्ति की अपने पार्टनर के साथ अनबन रहती है। इनका प्रेम संबंध ज्यादा लंबे समय तक नहीं चल पाता है।
प्रियंका चोपड़ा की कुंडली में गुरु सातवें भाव में है
प्रियंका चोपड़ा की कुंडली में गुरु सप्तम भाव में विराजमान हैं। सप्तम भाव विवाह का है। इससे उन्हें खूब लोकप्रियता हासिल हुई है। उन्हें खूब पैसा, नाम और शोहरत मिली है। इसके अलावा वह अपने रिश्ते को लेकर काफी उदार हैं और अपने पार्टनर के प्रति समर्पित और ईमानदार हैं।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न
प्रश्न. बृहस्पति ग्रह कब उदय हो रहा है?
उत्तर. 03 जून, 2024 को बृहस्पति वृषभ राशि में उदित होंगे।
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मंगल के मेष में आते ही इन राशियों की लव लाइफ में आएगा तूफान, पति-पत्नी में होगी जमकर लड़ाई
01 जून, 2024 को मंगल अपनी स्वराशि मेष में दोपहर 03 बजकर 27 मिनट पर गोचर करेंगे। इसके बाद मंगल 12 जुलाई को वृषभ राशि में आएंगे। मंगल के इस गोचर से रूचक योग भी बन रहा है। मंगल मेष राशि के ही स्वामी ग्रह हैं और इसके अलावा इन्हें वृश्चिक राशि का भी स्वामित्व प्राप्त है।
मंगल अपनी ही राशि में आने पर अधिक शक्तिशाली हो जाते हैं। इससे रूचक योग का निर्माण भी होने वाला है क्योंकि यह अपनी प्राकृतिक राशि से केंद्र स्थान में हैं और यह मंगल का सबसे शक्तिशाली योग है।
मंगल के इस गोचर से सभी राशियों के जीवन पर अनुकूल-प्रतिकूल प्रभाव पड़ेंगे और इसकी वजह से कुछ राशियों के प्रेम जीवन में उतार-चढ़ाव आने की आशंका है। इस ब्लॉग में हम आपको विस्तार से बता रहे हैं कि मंगल के मेष राशि में प्रवेश करने पर किन राशियों की लव लाइफ में परेशानियां आने की आशंका है।
वृषभ राशि के लिए मंगल सातवें और बारहवें घर के स्वामी हैं और मंगल का मेष राशि में गोचर आपके बारहवें घर में होने जा रहा है। इस दौरान आपके और आपके पार्टनर के बीच बेवजह बहस हो सकती है। आप दोनों के बीच आपसी समझ और तालमेल की कमी भी देखने को मिल सकती है। इस वजह से पति-पत्नी के रिश्ते में कलह का माहौल रह सकता है।
कन्या राशि के लिए मंगल तीसरे और अष्टम भाव के स्वामी हैं और मंगल का मेष राशि में गोचर आपके अष्टम भाव में होने जा रहा है। आपको इस समय धैर्य बनाए रखने की सलाह दी जाती है। रिश्ते के मामले में आपके और आपके पार्टनर के बीच बेवजह परेशानियां उत्पन्न हो सकती हैं। इससे आपके रिश्ते में खटास आने की आशंका है। आप अपने पार्टनर के साथ तालमेल बिठाने की कोशिश करें।
तुला राशि के लिए मंगल दूसरे और सप्तम भाव के स्वामी हैं और इस गोचर के दौरान मंगल आपके सप्तम भाव में आएंगे। आपको पारिवारिक जीवन में असफलताओं का सामना करना पड़ सकता है।। पति-पत्नी के रिश्ते के लिए भी अच्छा समय नहीं है। विवाह संबंधी फैसले लेने में आपको ज्यादा सावधानी बरतनी की आवश्यकता पड़ेगी। पति-पत्नी के बीच प्यार कम हो सकता है। इस गोचर का आपके प्रेम संबंध एवं शादीशुदा जिंदगी पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।
बृहत् कुंडली में छिपा है, आपके जीवन का सारा राज, जानें ग्रहों की चाल का पूरा लेखा-जोखा
मकर राशि
मकर राशि के लिए मंगल चौथे और एकादश भाव के स्वामी हैं और इस गोचर के दौरान वे आपके चौथे भाव में आएंगे। इस गोचर काल में आपके परिवार में समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं। इसका नकारात्मक असर आपके रिश्ते पर भी देखने को मिलेगा। आपके और आपके पार्टनर के बीच बहस हो सकती है।
यदि कुंडली में मंगल मज़बूत स्थान में हो, तो व्यक्ति के जीवन में सुख-समृद्धि आती है। जातक के अंदर नेतृत्व करने के गुण बढ़ते हैं और उसे मंगल से संबंधित क्षेत्रों में सफलता प्राप्त होती है। मंगल व्यक्ति को साहसी, मेहनती और जुनून से भरा बनाता है।
वहीं, अगर मंगल अशुभ स्थान में बैठा हो या कमज़ोर हो, तो व्यक्ति को पाचन तंत्र से संबंधित समस्याएं होने का खतरा रहता है। इन्हें गर्म और मसालेदार खाने से परेशानी हो सकती है। व्यक्ति भावनात्मक रूप से कमज़ोर महसूस करता है। कमज़ोर मंगल से विवाह में देरी आती है। इन लोगों का मेटाबॉलिज्म भी कमज़ोर रहता है। ये लोग ईर्ष्यालु बनते हैं और इनके अंदर अहंकार बढ़ता है। ये बहुत जल्दी थक जाते हैं।
अब घर बैठे विशेषज्ञ पुरोहित से कराएं इच्छानुसार ऑनलाइन पूजा और पाएं उत्तम परिणाम!
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न
प्रश्न. मंगल खराब होने के क्या लक्षण हैं?
उत्तर. संपत्ति को लेकर विवाद रहता है।
प्रश्न. मंगल अशुभ कब होता है?
उत्तर. कुंडली के पहले, चौथे, सातवें और आठवें भाव में मंगल दोष बनता है।
प्रश्न. मंगल किसका कारक होता है?
उत्तर. मंगल साहस और पराक्रम का कारक होता है।
प्रश्न. मंगल को खुश कैसे करें?
उत्तर. मंगल यंत्र की पूजा करें।
प्रश्न. मंगल को कौन से भगवान नियंत्रित करते हैं?
उत्तर. मंगल के स्वामी हनुमान जी हैं।
प्रश्न. मंगल ग्रह शांत करने के लिए क्या करना चाहिए?
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बृहस्पति की उदित अवस्था इन राशियों के लिए रहेगी बेहद लकी, सालभर करेंगे मौज ही मौज!
बृहस्पति को शुभ एवं लाभकारी ग्रह का दर्जा प्राप्त है जो कि देवताओं के गुरु भी माने गए हैं। बीते एक महीने में इनकी स्थिति, चाल एवं दशा में कई परिवर्तन देखने को मिले हैं। इसी क्रम में, यह 01 मई 2024 को वृषभ राशि में गोचर कर गए थे और इसी के दो दिन बाद वृषभ में ही अस्त हो गए थे। इन सभी घटनाओं ने प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से 12 राशियों के जातकों के जीवन को प्रभावित किया है। ऐसे में, अब लगभग एक महीने बाद गुरु ग्रह पुनः वृषभ राशि में उदित होने जा रहे हैं। एस्ट्रोसेज का यह ब्लॉग आपको गुरु के उदित होने के बारे में विस्तारपूर्वज जानकारी प्रदान करेगा। साथ ही, किन राशियों के लिए शुभ रहेगा गुरु का उदय होना, यह भी हम आपको इस लेख में बताएंगे।
ज्ञान के कारक ग्रह बृहस्पति महाराज 3 जून 2024 की सुबह 03 बजकर 21 मिनट पर वृषभ राशि में उदित हो जाएंगे। बता दें कि यह पिछले महीने यानी कि 03 मई को अस्त हो गए थे। ज्योतिषियों के अनुसार, गुरु ग्रह के वृषभ राशि में उदित होने से कुछ राशियों के लिए यह फलदायी साबित होंगे और उन राशियों पर अपनी कृपा बनाए रखेंगे। ऐसे में, इन राशियों के अच्छे दिनों की शुरुआत हो जाएगी।
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बृहस्पति ग्रह का ज्योतिष में महत्व
वैदिक ज्योतिष में देवताओं के गुरु कहे जाने बृहस्पति देव को अहम स्थान प्राप्त है। मान्यता है कि जिस व्यक्ति पर गुरु मेहरबान हो जाते हैं, उसका भाग्योदय होना निश्चित होता है। इन्हें ज्ञान, संतान, शिक्षा, शिक्षक, धार्मिक कार्य, बड़े भाई, धन, दान, पुण्य, तीर्थ स्थल और प्रगति आदि के कारक ग्रह माना जाता है। 27 नक्षत्रों में से गुरु ग्रह को पुनर्वसु, विशाखा और पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र पर आधिपत्य प्राप्त है। साथ ही, यह धनु और मीन राशि के भी स्वामी हैं। आइए अब आगे बढ़ते हैं और जानते हैं कि उन भाग्यशाली राशियों के बारे में जिन पर गुरु देव मेहरबान रहेंगे।
राशि चक्र की पहली राशि मेष है और इस राशि के लिए गुरु ग्रह की उदित अवस्था शुभ रहेगी। यह अवधि नौकरी और व्यापार की दृष्टि से फलदायी साबित होगी। इन जातकों के मान-सम्मान में भी वृद्धि होगी। यह जातक जिस काम को हाथ में लेंगे उसमें उन्हें सफलता की प्राप्ति होगी। वैवाहिक जीवन की बात करें, तो गुरु के उदित होने से आपका दांपत्य जीवन सुख-शांति से पूर्ण रहेगा। इस दौरान जीवनसाथी हर कदम पर आपका साथ देंगे और साथ ही, पार्टनर की आर्थिक स्थिति में भी सुधार देखने को मिलेगा। जिन जातकों का बिज़नेस पार्टनरशिप में है, उन्हें व्यापार में अच्छा ख़ासा लाभ मिलेगा।
वृषभ राशि का नाम उन राशियों में शामिल हैं जिनके लिए बृहस्पति का उदित होना फलदायी रहेगा। इस अवधि में आप परिवार के सदस्यों के साथ यादगार समय बिताते हुए नज़र आएंगे। इन जातकों को कार्यों में शुभ परिणामों की प्राप्ति होगी। जो जातक काफ़ी समय से नौकरी की तलाश कर रहे हैं, उन्हें इस अवधि में कोई शुभ समाचार सुनने को मिल सकता है। वहीं, इस राशि के जो जातक नौकरीपेशा है, उनको प्रमोशन या इंसेंटिव के रूप में आर्थिक लाभ की प्राप्ति होगी। साथ ही, आप घर-परिवार में होने वाले मांगलिक कार्यों में भाग ले सकते हैं। प्रेम जीवन में कुछ महत्वपूर्ण बदलाव देखने को मिल सकते हैं। अगर आप आर्थिक समस्याओं से जूझ रहे हैं, तो अब आपको उनसे छुटकारा मिलेगा।
मिथुन राशि
मिथुन राशि के जातकों के लिए गुरु की उदित अवस्था शुभ परिणाम लेकर आएगी। इस राशि के छात्रों की शिक्षा के लिए यह अवधि वरदान साबित होगी। ऐसे में, आप पढ़ाई में अपार सफलता हासिल करेंगे। अगर आप धन से संबंधित किसी तरह का लेन-देन करना चाहते हैं, तो आप गुरु उदित होने के बाद ऐसा कर सकते हैं। इस दौरान आपको वाहन सुख मिलने के योग बनेंगे। माता-पिता जीवन के हर पथ पर आपका समर्थन और सहयोग करेंगे। नौकरी करने वाले जातक कार्यक्षेत्र में जो भी काम करेंगे, उसमें आपको सकारात्मक परिणाम प्राप्त होंगे। मिथुन राशि के लोगों को धन लाभ होगा जिससे आपकी आर्थिक स्थिति मजबूत होगी।
सूर्य देव की राशि सिंह को भी गुरु की उदित अवस्था से लाभ प्राप्त होगा। इन जातकों के लिए आर्थिक दृष्टि से यह अवधि शुभ रहेगी और ऐसे में, आपको धन की प्राप्ति होगी। जिन जातकों का अपना व्यापार है, उन्हें अच्छा खासा मुनाफा होने की संभावना है। आपको अपने भाई-बहनों से सहायता मिलने के संकेत हैं और साथ ही, इन लोगों के साहस और पराक्रम में वृद्धि देखने को मिलेगी। इस दौरान आपके मान-सम्मान और पद-प्रतिष्ठा दोनों में बढ़ोतरी होगी। सिंह राशि वालों की वाणी स्पष्ट और प्रभावी बनेगी। वहीं, नौकरी करने वाले जातकों को सफलता की प्राप्ति हो सकती है।
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अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न
प्रश्न 1. बृहस्पति का उदय कब हो रहा है?
उत्तर 1. गुरु ग्रह 03 जून 2024 को वृषभ राशि में उदित हो रहे हैं।
प्रश्न 2. बृहस्पति का उदय क्या है?
उत्तर 2. सूर्य से बृहस्पति के दूरी बनाने पर वह उदित हो जाते हैं और अपनी शक्तियां पुनः प्राप्त कर लेते हैं। इसे गुरु ग्रह का उदित होना कहते हैं।
प्रश्न 3. गुरु किस राशि के स्वामी हैं?
उत्तर 3. बृहस्पति देव धनु और मीन राशि के स्वामी हैं।
बड़मावस पर क्यों होती है बरगद के पेड़ की पूजा, सावित्री से जुड़ी है इस दिन की कथा
ज्येष्ठ माह में पड़ने वाली अमावस्या को हिंदू धर्म में विशेष महत्व दिया गया है। इस दिन सुहागिन स्त्रियां बरगद के पेड़ की पूजा करती हैं और वट सावित्री का व्रत रखती हैं। देश के कई प्रमुख हिस्सों में बड़मावस का नाम कम लोकप्रिय है और लोग इसे वट सावित्री के रूप में ही मनाते हैं। इसी दिन शनि जयंती भी मनाई जाती है। इस दिन पवित्र नदियों में स्नान करने और दान करने का भी बहुत महत्व है। आगे जानिए कि इस साल बड़मावस कब पड़ रही है।
अमावस्या तिथि की शुरुआत 05 जून को शाम 07 बजकर 57 मिनट पर होगी और इसका समापन 06 जून को शाम 06 बजकर 09 मिनट पर होगा। इस प्रकार 06 जून, 2024 को बड़मावस मनाई जाएगी।
सुहागिन स्त्रियां अपने पति की लंबी आयु के लिए इस दिन वट सावित्री का व्रत भी रखती हैं। पुराणों के अनुसार इसी दिन देवी सावित्री ने अपने पत्नीधर्म के दम पर यमराज से अपने पति सत्यवान के प्राण वापस लिए थे। इसके अलावा इस दिन को लेकर एक मान्यता यह भी है कि ज्येष्ठ मास की अमावस्या पर शनि देव का जन्म भी हुआ था। अत: बड़मावस के दिन वट और पीपल के पेड़ की पूजा करने से शनि देव भी प्रसन्न होते हैं।
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सनातन धर्म में बड़मावस को बहुत महत्वपूर्ण माना गया है। कहा जाता है कि अगर कोई व्यक्ति इस दिन पितरों की शांति के लिए पूजा करता है, तो उसकी पूजा जरूर सफल होती है। अमावस्या तिथि पर पवित्र नदियों और तालाबों में स्नान करने से मनुष्य को अपने सभी पाप कर्मों से मुक्ति मिल जाती है और इस दिन दान करने से पुण्य बढ़ जाते हैं।
पौराणिक कथाओं के अनुसार बड़मावस के दिन सावित्री के पति सत्यवान को बरगद के पेड़ के नीचे ही दोबारा जीवनदान मिला था इसलिए इस दिन बरगद के पेड़ की पूजा की जाती है। इस दिन विवाहित स्त्रियां वट सावित्री का व्रत रखती हैं और सावित्री एवं उनके पति सत्यवान की पूजा के साथ-साथ बरगद के वृक्ष की भी पूजा करती हैं। ऐसा माना जाता है कि इस व्रत को करने से सुहागिन स्त्रियों के पति की आयु लंबी होती है।
जानिए कि बड़मावस के दिन पूजन करने की क्या विधि है:
अगर आपके आसपास कोई बरगद का पेड़ नहीं है, तो आप एक छोटे गमले में बरगद के पेड़ की जड़ लगाकर उसकी पूजा करें।
बायना के लिए आप एक कटोरी में चने भिगो दें और इसमें कुछ पैसे भी डाल दें।
अब एक छोटे से कलश में पानी भर कर रखें।
इसके बाद रोली, मौली, अक्षत, गुड़, फल, भीगे हुए चने और कुछ पैसे रख लें।
एक कच्चा सफेद सूती धागा रखें, धूप, दीपक और माचिस रख लें।
अब आप बरगद के पेड़ पर जल, मौली, रोली, गुड़, भीगे हुए चने और फल चढ़ाएं।
इसके बाद धूप दें और दीपक जलाएं और पैसे अर्पित करें।
फिर अपने माथे पर तिलक लगाएं। अब बरगद के पेड़ की एक पत्ती लें और उसे मोड़कर उस पर मौली का धागा बांध दें। आपने गले में कोई चेन पहनी है, तो इसे उस पर बांध लें।
वृक्ष की सात या ग्यारह बार परिक्रमा करते हुए उस पर मौली या सूती धागा बांधें।
अब आप बड़मावस की कथा सुनें या पढ़ें और इस दौरान भीगे चने अपने हाथ में रखें। कथा समाप्त होने पर चने को कलश के जल में डाल दें।
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बड़मावस के लिए उपाय
अमावस्या तिथि पर कुछ ज्योतिषीय उपायों की सहायता से आप अपने जीवन के कष्टों को दूर कर सकते हैं, ये उपाय निम्न हैं:
इस दिन आप अपने बड़े-बुजुर्गो का अपमान न करें।
अमावस्या पर दान करने का भी बहुत महत्व है। गरीबों और जरूरमंद लोगों को चावल, गुड़ और दूध का दान करें।
अमावस्या के दिन शाकाहारी भोजन ही करना चाहिए।
इस दिन पशु-पक्षियों को दाना खिलाएं। इस उपाय को करने से जीवन में सुख-समृद्धि आती है।
FAQ
प्रश्न. बड़मावस किस महीने में आती है?
उत्तर. ज्येष्ठ माह में आने वाले कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि पर बड़मावस पड़ती है।
प्रश्न. 2024 में बड़मावस कब है?
उत्तर. साल 2024 में बड़मावस 06 जून को पड़ रही है
प्रश्न. बड़मावस में बरगद के पेड़ की पूजा क्यों की जाती है?
उत्तर. इस वृक्ष के नीचे ही सावित्री के पति को जीवनदान मिला था।
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बुध का मिथुन राशि में गोचर: ज्योतिष में बुध ग्रह को बुद्धि, तर्क और वाणी के कारक ग्रह माना जाता है। साथ ही, इन्हें ग्रहों के राजकुमार का दर्जा भी प्राप्त है इसलिए बुध को नवग्रहों में महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। ऐसे में, इनकी स्थिति में होने वाला छोटे से छोटा परिवर्तन भी संसार को प्रभावित करता है और अब यह 14 जून 2024 को मिथुन राशि में गोचर करने जा रहे हैं। एस्ट्रोसेज का यह विशेष ब्लॉग आपको बुध का मिथुन राशि में गोचर के बारे में विस्तृत जानकारी प्रदान करेगा। इसके अलावा, बुध का यह राशि परिवर्तन कुछ राशियों के लिए अच्छा तो कुछ के लिए नकारात्मक परिणाम लेकर आएगा। तो आइए बिना देर किये शुरुआत करते हैं इस लेख की और जानते हैं बुध का मिथुन राशि में गोचर के बारे में।
वैदिक ज्योतिष में बुध ग्रह को महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है और इन्हें वाणी, बुद्धि और संचार कौशल के कारक ग्रह माना जाता है। यह खुद को दूसरे के सामने व्यक्त करने, मनुष्य की सोचने-समझने की क्षमता और दूसरों के साथ बातचीत करने के तरीके को नियंत्रित करते हैं। इसके विपरीत, बुध ट्रेवल, तकनीक, कॉमर्स और सीखने की क्षमता आदि से भी संबंधित है। हालांकि, जन्म कुंडली में बुध की स्थिति से आपके बात करने, सोचने-समझने के तरीके, ताकत और जीवन में आने वाली चुनौतियों से कैसे निपटते हैं आदि के बारे में भी पता किया जा सकता है।
बुध ग्रह अपनी अस्त अवस्था में रहते हुए मिथुन राशि में गोचर करेंगे और इसी राशि में वह 27 जून 2024 को उदित होंगे। आपको बता दें कि अस्त वह अवस्था होती है जब कोई ग्रह सूर्य के बहुत नज़दीक चला जाता है और सूर्य की गर्मी को ग्रह प्रभावित करने लगती है। सरल शब्दों में कहें तो, कोई ग्रह अस्त होने पर अपनी शक्तियां खो देता है, लेकिन बुध अपनी ही राशि में अस्त अवस्था में होंगे इसलिए इनकी स्थिति मज़बूत रहेगी।
बुध का मिथुन राशि में गोचर: समय
वैदिक ज्योतिष में मिथुन राशि पर बुध ग्रह का शासन हैं जो कि अब अपनी ही राशि में गोचर करने जा रहे हैं। बुध महाराज 14 जून 2024 की रात 10 बजकर 55 मिनट पर मिथुन राशि में प्रवेश कर जाएंगे और इसके बाद, यह 29 जून 2024 को कर्क राशि में गोचर करेंगे।
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बुध मिथुन राशि में: विशेषताएं
बुध महाराज की मिथुन राशि में मौजूदगी को सबसे शक्तिशाली माना जाता है क्योंकि मिथुन राशि के स्वामी बुध ग्रह हैं। इनकी यह स्थिति जातक की बौद्धिक क्षमता और संचार कौशल को मज़बूत और बहुमुखी प्रतिभा के धनी बनाती है। यहाँ हम आपको मिथुन राशि में बुध के होने की कुछ विशेषताओं से अवगत करवाने जा रहे हैं।
तेज़ तर्रार: जिन जातकों की कुंडली में बुध मिथुन राशि में होते हैं, वह बहुत ही तेज़ तर्रार और मानसिक रूप से मज़बूत होते हैं। इन लोगों की बुद्धि काफ़ी तेज़ होती है और यह हर बात को जल्दी से समझ जाते हैं। ऐसे जातकों के विचारों में तेजी से बदलाव देखने को मिलता हैं और इनकी रुचियों की सूची काफ़ी लंबी होती है।
बेहतरीन संचार कौशल: मिथुन राशि में बुध के तहत जन्मे जातकों में पाया जाने वाला सबसे ख़ास गुण संचार कौशल होता है। यह अपनी बातों को लेकर स्पष्ट और संवाद में माहिर होते हैं। साथ ही, आकर्षक व्यक्तित्व के मालिक होते हैं। ऐसे जातक लिखने के साथ-साथ बातचीत करने में काफ़ी मज़बूत होते हैं और दर्शकों के आधार पर अपनी शैली में आसानी से बदलाव कर लेते हैं।
उत्सुकता: जो जातक मिथुन राशि में बुध के अंतर्गत जन्म लेते हैं, वह बेहद उत्सुक स्वभाव के होते हैं और यह नई-नई चीज़ों को सीखने के लिए उत्साहित रहते हैं। इन्हें कई तरह के विषयों के बारे में जानना और ज्ञान प्राप्त करना अच्छा लगता है।
बहुमुखी प्रतिभा: कुंडली में मिथुन राशि में बुध के साथ जन्म लेने वाले जातकों के व्यक्तित्व को जो बात सबसे अलग बनाती है कि वह मल्टी टैलेंटेड होते हैं। इनमें कई कामों को या अपने मनपसंद कामों को एक साथ करने की अपार क्षमता होती है। हालांकि, इनकी यह ऊर्जा कभी-कभी इनके भटकाव का भी कारण बनती है।
स्वीकार करने की क्षमता: इन लोगों की सोच-विचार करने की क्षमता काफ़ी अच्छी होती है इसलिए यह चीज़ों या बातों को जल्द ही स्वीकार लेते हैं। इन्हें अपना नज़रिया बदलने में समय नहीं लगता है और साथ ही, यह बदलती परिस्थितियों के अनुसार बिना किसी परेशानी के ढल जाते हैं। ऐसे में, यह हर समस्या का समाधान आसानी से ढूंढ़ लेते हैं।
बेचैन रहना: मिथुन राशि में बुध के मौजूद होने पर जातकों का मन बैचेन रह सकता है। ऐसे लोग नए अनुभवों की तलाश में रहते हैं और इन्हें अपनी दिनचर्या से बोर होने में ज्यादा समय नहीं लगता है क्योंकि यह जातक अपने जीवन में रोमांच की खोज में रहते हैं।
मिलनसार: जिन लोगों का जन्म बुध के मिथुन राशि में मौजूदगी के समय होता है, उनका व्यक्तित्व आकर्षक होता है और बुद्धि तीव्र होती है। इन गुणों की वजह से यह मिलनसार स्वभाव के होते हैं और दूसरों के साथ मिलना-जुलना एवं बातचीत करना इन्हें पसंद होता है। यह जल्दी से नए दोस्त बना लेते हैं।
बुद्धि से जुड़े कार्य: इन लोगों की रुचि ऐसे कामों में होती हैं जिनमें बुद्धि का इस्तेमाल किया जा सके। ऐसे जातकों को डिबेट और डिस्कशन में भाग लेना बहुत पसंद होता है। साथ ही, यह नई-नई चीज़ें सीखकर अपने ज्ञान का विस्तार करने के शौक़ीन होते हैं और यह जीवनभर कुछ न कुछ सीखना जारी रखते हैं।
कुल मिलाकर, हम यह कह सकते हैं कि मिथुन राशि में बुध की उपस्थिति संचार कौशल, मानसिक स्थिति और सीखने की क्षमता आदि में वृद्धि करती है। बुध की इस स्थिति की वजह से यह जातक करियर के उन क्षेत्रों के लिए उपयुक्त होते हैं जहां तुरंत सोचना, शानदार संचार कौशल और एक साथ कई काम करने की आवश्यकता होती है।
चलिए जानते हैं कि बुध का मिथुन राशि में गोचर राशि चक्र की किन राशियों को अच्छे-बुरे परिणाम देगा।
बुध का मिथुन राशि में गोचर: इन राशियों को मिलेंगे शुभ परिणाम
मेष राशि
बुध का मिथुन राशि में गोचर मेष राशि के जातकों के तीसरे भाव में होगा। बता दें कि मेष राशि वालों के तीसरे और छठे भाव के स्वामी ग्रह बुध देव हैं। ऐसे में, इन लोगों की बात करने की क्षमता में सुधार आएगा और इसके परिणामस्वरूप, आप जीवन के जरूरी कामों को सफलतापूर्वक कर सकेंगे।
आपके पेशेवर जीवन की बात करें, तो आपका रिश्ता सहकर्मियों के साथ सौहार्द से पूर्ण रहेगा और वह आपके साथ एक दोस्त के तरह बर्ताव करेंगे। अगर आप मीडिया या मार्केटिंग के व्यापार से संबंध रखते हैं, तो आपको लाभ की प्राप्ति होगी। इन जातकों का स्वभाव दोस्ताना रहेगा जिसके बल पर आप आसानी से नए-नए दोस्त बनाने में सफल रहेंगे। ऐसा इसलिए होगा क्योंकि बुध का यह गोचर आपको बेहतरीन संचार कौशल का आशीर्वाद देगा। वहीं, इस राशि के छात्रों के लिए बुध गोचर आपकी एकाग्र क्षमता को मजबूत करने का काम करेगा और ऐसे में, शिक्षा के क्षेत्र में आप उत्तम परिणाम प्राप्त कर सकेंगे। यह गोचर मेष राशि वालों के पिता के लिए शुभ रहेगा और साथ ही, आपके रिश्ते जीवनसाथी तथा भाई-बहनों के साथ मज़बूत होंगे।
वृषभ राशि
वृषभ राशि के जातकों के लिए बुध ग्रह आपके दूसरे और पांचवें भाव के स्वामी हैं और अब इनका गोचर आपकी कुंडली के दूसरे भाव में होने जा रहा है। इस भाव में बुध ग्रह का गोचर आपके जीवन में सकारात्मकता लेकर आएगा और आपको कार्यों में अनुकूल परिणाम देने का काम करेगा। इस अवधि में आपके और परिवार के सदस्यों के बीच शानदार तालमेल दिखाई देगा।
बुध महाराज की इस स्थिति की वजह से आप जीवन में उत्पन्न सभी समस्याओं का हल ढूंढ़ने में सफल रहेंगे। आपकी वाणी मधुर बनी रहेगी जिसके चलते आप सभी को अपना बना लेंगे और आपकी बातों को नज़रअंदाज़ करना सबसे लिए असंभव होगा। हालांकि, परिवार में चल रहे विवाद या समस्याएं अब दूर होंगी। साथ ही, इन जातकों को मनपसंद भोजन करने के मौके मिलेंगे। दूसरी तरफ, वैवाहिक जीवन में भी परिस्थितियों में सुधार देखने को मिलेगा। व्यापार करने वाले जातकों को लाभ कमाने के अवसर मिलेंगे जबकि नौकरीपेशा लोगों के कार्यक्षेत्र का माहौल सामान्य रहेगा।
मिथुन राशि
मिथुन राशि वालों के लिए बुध ग्रह का गोचर आपके पहले/लग्न भाव में होगा। ऐसे में, बुध आपके पहले और चौथे भाव में स्वामी के रूप में आपका आत्मविश्वास बढ़ाने का काम करेंगे और समाज में आपके मान-सम्मान में वृद्धि होगी। साथ ही, आपके सामाजिक जीवन के दायरे का भी विस्तार होगा और आप अपनी एक अलग जगह बनाने में सक्षम होंगे।
बुध के मिथुन राशि में गोचर के दौरान आपका स्वभाव थोड़ा लापरवाह और मजाकिया हो सकता है। इसके परिणामस्वरूप, यह जातक अपने आसपास के लोगों को भी ख़ुशी देने का काम करेंगे जिसके चलते वह आपसे प्रसन्न दिखाई देंगे। इस राशि के लोग चाहे मीडिया, लिटरेचर या कला से जुड़े किसी भी क्षेत्र में काम करें, इस अवधि में आप प्रत्येक क्षेत्र में अपनी चमक बिखेरेंगे। व्यापार करने वाले जातकों के लिए इस समय को शानदार कहा जाएगा और आप बिज़नेस में वृद्धि प्राप्त करेंगे। इसके विपरीत, नौकरीपेशा लोगों को काम में कड़ी मेहनत करनी होगी। लेकिन, आपको अपने बच्चों की संगती पर नज़र बनाए रखनी होगी।
वाणी के कारक ग्रह और सिंह राशि वालों की कुंडली में दूसरे और ग्यारहवें भाव के स्वामी ग्रह बुध का गोचर आपके ग्यारहवें भाव में होने जा रहा है। बुध के इस गोचर के होने से आप अपने भाई-बहनों के साथ अच्छा समय बिताएंगे, विशेष रूप से अगर आपके भाई-बहन आप से बड़े हैं, तो वह हर कदम पर आपका साथ देंगे। वह जीवन के लक्ष्यों को पाने में आपकी सहायता करेंगे और यदि धन की जरूरत होगी, तो वह आपको आर्थिक मदद भी प्रदान करेंगे। वह बड़े भाई-बहन के रूप में आपके प्रति अपनी जिम्मेदारियों को बखूबी निभाते हुए नज़र आ सकते हैं और ऐसे में, आपके रिश्ते उनके साथ मज़बूत होंगे।
बुध का यह गोचर कार्यक्षेत्र में वरिष्ठों के साथ आपके रिश्ते को मधुर बनाएगा और ऐसे में, आपको इसका लाभ प्राप्त होगा। साथ ही, नौकरी में आपको कोई अच्छा पद मिलने के योग बनेंगे। इन जातकों के सामाजिक जीवन का दायरा भी बढ़ेगा। साथ ही, इस अवधि में आप सोशल मीडिया पर काफ़ी एक्टिव रहेंगे। पढ़ाई करने वाले छात्रों की एकाग्र क्षमता मज़बूत होगी और शिक्षा के क्षेत्र में आपके प्रदर्शन में भी सुधार आएगा। ऐसे में, आप जीवन में नए अनुभव हासिल करना चाहेंगे।
कन्या राशि
कन्या राशि वालों की कुंडली में बुध देव आपके पहले/लग्न भाव और दसवें भाव के स्वामी हैं और अब यह आपके दसवें भाव में गोचर करने जा रहे हैं। इसके परिणामस्वरूप, इस राशि के जातकों की कार्यक्षेत्र में एक अलग छवि बनेगी। यह लोग दूसरों के साथ हंसी-मजाक करके माहौल को खुशनुमा बनाए रखने की कोशिश करेंगे जिसके चलते आपके आसपास के लोग आपसे प्रसन्न रहेंगे। साथ ही, वह आपसे जुड़े रहना पसंद करेंगे। इस अवधि में आपके सहकर्मी आपका साथ देंगे और आपकी मदद करेंगे। लेकिन, आपको किसी का भी मज़ाक उड़ाने से बचना होगा, अन्यथा वह आपसे नाराज़ हो सकते हैं जो कि आपके लिए चिंता का सबब बन सकता है।
बुध महाराज की मिथुन राशि में मौजूदगी आपके पारिवारिक जीवन में सौहार्द बनाए रखेगी और ऐसे में, घर का वातावरण खुशहाल और सुख-शांति से पूर्ण रहेगा। इन लोगों को पार्टनर का हर कदम पर साथ मिलेगा और आप दोनों मिलकर घर-परिवार से जुड़ा कोई बड़ा फैसला ले सकते हैं। माता-पिता के साथ आपका रिश्ता मज़बूत होगा और वह जीवन की हर समस्या से बाहर निकलने के लिए आपको राह दिखाएंगे। हालांकि, आपको कभी-कभी परिवार में मतभेदों का सामना करना पड़ सकता है। व्यापार करने वाले जातकों के लिए भी बुध गोचर की अवधि शुभ रहेगी। इस राशि के जो जातक अपना व्यापार कर रहे हैं, उन्हें अच्छा लाभ प्राप्त होने के मार्ग प्रशस्त होंगे।
तुला राशि वालों के लिए बुध देव आपके नौवें और बारहवें भाव के स्वामी हैं और अब यह गोचर करके आपके नौवें भाव में जा रहे हैं। इसके परिणामस्वरूप, बुध का मिथुन राशि में गोचर आपको मिले-जुले परिणाम प्रदान कर सकता है। इसके विपरीत, इस अवधि में आप तर्कसंगत बात करेंगे और हर बात में तर्क ढूंढ़ते हुए नज़र आएंगे। दूसरी तरफ, आपको दूर स्थान की यात्रा करने के अवसर प्राप्त होंगे। यह समय आपके सामाजिक जीवन में बढ़ोतरी के लिए उत्कृष्ट रहेगा और ऐसे में, आप किसी बड़ी कंपनी से जुड़कर कोई अच्छी उपलब्धि हासिल करने में सक्षम होंगे। इसके परिणामस्वरूप, भविष्य में आपकी प्रसिद्धि बढ़ने के आसार है और साथ ही, आपका सेंस ऑफ़ ह्यूमर एवं बात करने की क्षमता आपकी लोकप्रियता में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करेगी।
धनु राशि
बुद्धि, वाणी और संचार के कारक ग्रह बुध महाराज धनु राशि वालों की कुंडली में सातवें और दसवें भाव के स्वामी हैं। अब यह आपके सातवें भाव में प्रवेश करने जा रहे हैं। बता दें कि व्यापार के कारक ग्रह के रूप में बुध का आपके सातवें भाव में गोचर होने से आपका व्यापार दिन दोगुनी रात चौगुनी तरक्की करेगा। इन जातकों की मुलाकात नए लोगों से होगी और यह आपके बिज़नेस को बढ़ाने का काम करेंगे।
अगर आपका खुद का व्यापार है, तो इस अवधि में आप खूब प्रगति हासिल करेंगे। वहीं, जिन जातकों का बिज़नेस पार्टनरशिप में है, तो आपके व्यापार से कोई नया पार्टनर जुड़ सकता है और आपके रिश्ते उनके साथ अच्छे होने की संभावना है या फिर अगर आप पार्टनरशिप में नहीं हैं, तो अब आप पार्टनरशिप में आ सकते हैं। लेकिन, आपको सावधानी के साथ आगे बढ़ना होगा क्योंकि कुछ ऐसी परिस्थितियां भी आपके सामने आ सकती हैं जो आपके रिश्ते को ख़राब करने का काम कर सकती है। इसका नकारात्मक प्रभाव व्यापार पर भी पड़ सकता है। नौकरीपेशा जातकों के लिए बुध का यह गोचर लाभ लेकर आएगा।
मीन राशि
मीन राशि वालों की कुंडली में बुध का मिथुन राशि में गोचर आपके चौथे भाव में होगा। बता दें कि मीन राशि के जातकों के लिए बुध आपके चौथे और सातवें भाव के स्वामी हैं। ऐसे में, यह गोचर आपके पारिवारिक जीवन के लिए फलदायी रहेगा जिसके चलते आपके घर-परिवार में सुख-शांति बनी रहेगी। साथ ही, परिवार के सदस्यों के जीवन स्तर में सुधार लाने के लिए आप कोई नया काम शुरू कर सकते हैं। हालांकि, आपको घरेलू जीवन में होने वाले खर्चों पर नज़र बनाए रखने की सलाह दी जाती है। इस अवधि में आपके घर का रिनोवेशन होने की संभावना है और इस गोचर का लाभ आपको व्यक्तिगत जीवन में भी मिलेगा।
अब घर बैठे विशेषज्ञ पुरोहित से कराएं इच्छानुसार ऑनलाइन पूजा और पाएं उत्तम परिणाम
बुध का मिथुन राशि में गोचर: इन राशियों को रहना होगा सावधान
वृश्चिक राशि
वृश्चिक राशि के जातकों के लिए बुध देव आपके आठवें और ग्यारहवें भाव के स्वामी हैं जो कि अब आपके आठवें भाव में गोचर करने जा रहे हैं। बुध गोचर की अवधि में आपको स्वास्थ्य के साथ-साथ आर्थिक जीवन में भी सावधान रहना होगा। धन से जुड़े मामलों में आपको निवेश करने से बचना होगा, विशेष रूप से जिसमें अनिश्चितता ज्यादा हो। आपको स्टॉक मार्केट में पैसा निवेश करने से बचने की सलाह दी जाती है, अन्यथा आपको नुकसान उठाना पड़ सकता है। हालांकि, इस अवधि में आपको ससुराल पक्ष के लोगों के साथ मधुर संबंध होने से फायदा होगा जो कि आपका हर कदम पर साथ देंगे और जरूरत पड़ने पर आपका मार्गदर्शन भी करेंगे। ऐसे में, आपका रिश्ता पार्टनर के साथ बेहतर और मज़बूत होगा। बुध गोचर के दौरान जीवनसाथी आप पर प्रेम की बरसात करते हुए दिखाई देंगे जिससे आपका मूड रोमांटिक बना रहेगा।
इन जातकों के मन में आध्यात्मिकता के प्रति रुचि बढ़ेगी और इसके फलस्वरूप, ज्योतिष के संबंध में आप नई-नई चीज़ें और तथ्यों के बारे में जानना पसंद करेंगे। अगर आपका खुद का व्यापार है, तो इस अवधि में यह जातक कुछ महत्वपूर्ण सौदे गुपचुप तरीके से कर सकते हैं जिसकी जानकारी आपके करीबी लोगों को ही होगी।