विवाह में बार-बार आ रही है अड़चन तो नवरात्रि की षष्ठी तिथि पर अवश्य करें ये उपाय!

आज के अपने इस खास ब्लॉग में हम बात करेंगे नवरात्रि के छठे दिन से जुड़ी कुछ विशेष बातों की। यहां हम जानेंगे नवरात्रि के छठे दिन मां दुर्गा के किस स्वरूप की पूजा की जाती है। साथ ही जानेंगे मां की पूजा का महत्व और ज्योतिषी महत्व क्या है।

सिर्फ इतना ही नहीं इसके अलावा मां का पूजा मंत्र, इस दिन किए जाने वाले उपाय, मां से संबंधित पौराणिक कथा, आदि की जानकारी भी हम आपको इस ब्लॉग के माध्यम से देने वाले हैं। तो चलिए बिना देरी किए शुरू करते हैं हमारा यह खास ब्लॉग और सबसे पहले जान लेते हैं देवी के छठे स्वरूप से जुड़ी कुछ बेहद ही दिलचस्प बातें।

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मां कात्यायनी का स्वरूप

चैत्र नवरात्रि के छठे दिन मां कात्यायनी की पूजा की जाती है। अर्थात मां कात्यायनी मां दुर्गा का छठ स्वरूप है। देवी ने अपना यह रूप महिषासुर नामक राक्षस का वाढ करने के लिए धारण किया था। माना जाता है की माता का यह रूप काफी हिंसक है इसीलिए मां कात्यायनी को युद्ध की देवी भी कहते हैं।  

बात करें मां के स्वरूप की तो कात्यायनी देवी शेर पर सवारी करती हैं, इनकी चार भुजाएं हैं जिसमें से बाएं दोनों हाथों में इन्होंने कमल लिया हुआ है और तलवार लिया हुआ है। दाहिने दोनों हाथ वरद और अभय मुद्रा में है। देवी लाल रंग के वस्त्र में बेहद ही सुंदर नजर आती है।

मां कात्यायनी की पूजा का ज्योतिषीय संदर्भ

बात करें ज्योतिषीय संदर्भ की तो ज्योतिषीय मान्यताओं के अनुसार कहा जाता है की देवी कात्यायनी का सीधा संबंध बृहस्पति ग्रह से है। वह बृहस्पति ग्रह को नियंत्रित करती हैं। ऐसे में मां की पूजा करने से बृहस्पति से संबंधित बुरे प्रभावों को कम किया जा सकता है।

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मां कात्यायनी की पूजा महत्व 

चैत्र नवरात्रि का छठा दिन मां दुर्गा के कात्यायनी स्वरूप को समर्पित होता है। मां का स्वरूप बेहद ही भव्य और दिव्य माना जाता है। मान्यता है कि नवरात्रि के दौरान मां के कात्यानी स्वरूप की पूजा करने से व्यक्ति को धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष चारों फलों की प्राप्ति होती है। इसके अलावा मां की कृपा से ऐसे व्यक्ति दुनिया के सभी सुखों को भोगते हुए मोक्ष की प्राप्ति करते हैं। साथ ही मां अपने भक्तों के जीवन से सभी कष्टों को दूर करती हैं।

इसके अलावा जैसा कि अक्सर देखा क्या है कि बहुत से लोगों को जीवन में सौभाग्य बहुत देरी से प्राप्त होता है। ऐसे लोगों को भी मां कात्यायनी की विशेष रूप से पूजा करने की सलाह दी जाती है। अगर कोई व्यक्ति विधि विधान से मां कात्यायनी के स्वरूप की पूजा करें फिर हो चाहे स्त्री हो या फिर पुरुष उन्हें शीघ्र विवाह की मनोकामना भी पूरी होती है।

मां कात्यायनी को अवश्य लगाएँ ये भोग 

देवी के छठे अर्थात कात्यानी स्वरूप को सफलता और यश का प्रतीक माना गया है। इसके अलावा नवरात्रि के छठे दिन का संबंध पीले रंग से भी जोड़कर देखा जाता है। बात करें भोग की तो इस दिन मां को यदि शहद का भोग लगाया जाए तो इसे बेहद ही शुभ मानते हैं। ऐसे में आप इस दिन मां कात्यायनी को शहद का भोग लगाना ना भूलें।

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देवी कात्यायनी का पूजा मंत्र

ॐ देवी कात्यायन्यै नमः॥

प्रार्थना मंत्र

चन्द्रहासोज्ज्वलकरा शार्दूलवरवाहना।
कात्यायनी शुभं दद्याद् देवी दानवघातिनी॥

स्तुति

या देवी सर्वभू‍तेषु माँ कात्यायनी रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥

नवरात्रि के छठे दिन अवश्य करें यह अचूक उपाय

  • नवरात्रि के छठे दिन अगर आप छोटी कन्याओं को घर पर बुलाकर खिलौना या उनके मनपसंद की चीज देते हैं तो ऐसा करने से मां दुर्गा प्रसन्न होती हैं और अपनी कृपा हमेशा अपने भक्तों पर बनाए रखती हैं। 
  • जिन लोगों का विवाह नहीं हो पा रहा है, विवाह में रुकावटें आ रही है या बात बनते-बनते बिगड़ जा रही है उन्हें नवरात्रि के छठे दिन शाम के समय में मां कात्यायनी की पूजा अर्चना करने की सलाह दी जाती है। इस दौरान पूजा में हल्दी की तीन गांठ चढ़ाएँ और माँ से सुयोग्य वर/वधू की कामना करें। आपकी मनोकामना निश्चित और जल्दी पूरी होगी। 
  • अगर आपके जीवन में आर्थिक तंगी बनी हुई है और आप इससे निजात पाना चाहते हैं तो नवरात्रि के छठे दिन पान के पांच पत्ते ले लें और इन्हें साफ कर लें। इसके बाद सभी पत्तों पर मां दुर्गा के बीज मंत्र लिखकर मां के चरणों में से अर्पित कर दें। अगले दिन इन पत्तों को लाल रंग के साफ कपड़े में बांधकर अपनी तिजोरी में रख लें। अगली नवरात्रि में इन पत्तों को जल में प्रवाहित कर दें। 
  • इसके अलावा आप नवरात्रि के षष्ठी तिथि पर पान के पत्तों पर गुलाब के पंखुड़ियां रखकर मां दुर्गा को अर्पित करें। इस उपाय को करने से व्यक्ति के घर में धन का प्रवाह बना रहता है और बढ़ता रहता है। 
  • शीघ्र विवाह की कामना है तो नवरात्रि के छठे दिन 11 पान के पत्ते ले लें, इन पर हल्दी लगा दें और मां कात्यायनी को एक-एक करके अर्पित करते जाएं। ऐसा करने से जल्द ही विवाह के योग बनने लगते हैं। 
  • अगर आपके घर में अक्सर लड़ाई झगड़े होते रहते हैं या पति पत्नी के बीच क्लेश होता रहता है तो नवरात्रि की षष्ठी तिथि पर पान के पत्ते पर केसर रखकर मां दुर्गा को अर्पित कर दें। इसके बाद इसे प्रसाद के रूप में परिवार के सभी लोगों को बाँट दें। 
  • नवरात्रि के आखिरी शनिवार के दिन पान के पांच पत्तों पर सिंदूर से जय श्री राम लिख दें और इन पत्तों को हनुमान मंदिर में जाकर चढ़ा दें। इस बेहद ही सरल उपाय को करने से आपको नौकरी और कारोबार में आ रही हर तरह की समस्या से छुटकारा मिलता है और आपको तरक्की मिलेगी। 

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क्या यह जानते हैं आप? 

अगर किसी व्यक्ति का विवाह नहीं हो रहा है या विवाह में बार-बार अड़चनें आ रही है या बात बनते बनते बिगड़ जाती है तो ऐसे में परेशान होने की आवश्यकता नहीं है क्योंकि नवरात्रि के छठे दिन मां के कात्यायनी स्वरूप की पूजा करने से व्यक्ति को इन सभी समस्याओं से छुटकारा मिल सकता है।

इन लोगों को विशेष रूप से करनी चाहिए मां कात्यायनी की पूजा 

बात करें कि किन लोगों को विशेष रूप से मां कात्यायनी की पूजा करनी चाहिए तो जिन जातकों का विवाह नहीं हो पा रहा है या विवाह के संदर्भ में परेशानियां आ रही है उन्हें विशेष रूप से मां कात्यायनी की पूजा करने की सलाह दी जाती है। इसके अलावा जिन जातकों की कुंडली में गुरु ग्रह अर्थात बृहस्पति ग्रह कमजोर अवस्था में हो उन्हें भी मां कात्यायनी की पूजा करने से विशेष लाभ की प्राप्ति होती है।

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मां कात्यायनी से संबंधित पौराणिक कथा 

पौराणिक कथा के अनुसार बताया जाता है कि, एक बार महर्षि कात्यायन ने कठोर तपस्या की। इस तपस्या के पीछे वजह थी संतान प्राप्ति। तब महर्षि कात्यायन की तपस्या से प्रसन्न होकर मां भगवती ने उन्हें दर्शन दिए। इसके बाद ऋषि कात्यायन ने मां के सामने संतान प्राप्ति की अपनी इच्छा प्रकट की। तब मां ने उनसे कहा और उन्हें वचन दिया कि वह उनके घर में पुत्री के रूप में जन्म लेंगी।

इसके कुछ समय बाद महिषासुर नामक एक राक्षस हुआ जो तीनों लोगों में अत्याचार करने लगा। दिन-ब-दिन उसका अत्याचार बढ़ता जा रहा था जिससे सभी देवी देवता परेशान होने लगे। तब ब्रह्मा, विष्णु, महेश ने अपने तेज से एक देवी को उत्पन्न किया जिन्होंने महर्षि कात्यायन के घर में जन्म लिया। क्योंकि मां देवी का जन्म महर्षि कात्यायन के घर में हुआ था इसलिए उनका नाम कात्यायनी पड़ा। पुत्री के रूप में जन्म लेने के बाद ऋषि कात्यायन ने सप्तमी, अष्टमी और नवमी तिथि पर मां कात्यायनी की विधिपूर्वक पूजा की। इसके बाद दशमी तिथि के दिन मां कात्यायनी ने महिषासुर का वध किया और तीनों लोगों को उसके अत्याचार से मुक्ति दिलाई।

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