कुंभ मेले को विश्व के सबसे महत्वपूर्ण सांस्कृतिक और धार्मिक उत्सव के रूप में जाना जाता है। भारत ही नहीं बल्कि दुनिया के अलग-अलग कोने से लोग कुंभ मेले में हिस्सा लेने के लिए आते हैं। मान्यता है कि जाे भी व्यक्ति कुंभ के मेले में पवित्र नदी में स्नान करता है, उसके सारे पाप धुल जाते हैं और उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है। आप भी इस बार महाकुंभ 2025 में शाही स्नान कर के अपने पापों से मुक्ति पा सकते हैं। कुंभ का अर्थ घड़ा होता है और भारत में इस मेले का बहुत ज्यादा महत्व है। ऋषि-मुनियों के युग से ही कुंभ के मेले का आयोजन किया जाता रहा है।
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ऐस्ट्रोसेज के इस ब्लॉग में आगे बताया गया है कि अगले कुंभ मेले का आयोजन कब और किस स्थान पर किया जाएगा, महाकुंभ 2025 का क्या महत्व है और आप किन तिथियों पर शाही स्नान कर सकते हैं।
महाकुंभ मेला 2025
वर्ष 2025 में कुंभ मेले का आयोजन प्रयागराज में होने जा रहा है। इस मेले की शुरुआत 29 जनवरी से होगी। हर तीन साल में भारत के चार स्थानों पर कुंभ का मेला लगता है इसलिए अब 12 वर्षों के बाद प्रयागराज में महाकुंभ का आयोजन हो रहा है। इस पवित्र उत्सव में हिस्सा लेने के लिए दूर-दूर से श्रद्धालु आते हैं। कुंभ के मेले की इतनी मान्यता है कि हर उम्र के लोग, बूढ़े से लेकर बच्चे तक कुंभ स्नान में डुबकी लगाने के लिए आते हैं।
महाकुंभ मेले का महत्व
जब मेष राशि के चक्र में सूर्य, देवताओं के गुरु बृहस्पति और चंद्रमा मकर राशि के अंदर प्रवेश करते हैं, तब महाकुंभ मेले का आयोजन किया जाता है। आखिरी बार यह संयोग 2013 में बना था और तब प्रयागराज में कुंभ मेला लगा था। अब 12 सालों के बाद यह संयोग 29 जनवरी को 2025 में बनने जा रहा है। इसी तिथि से कुंभ के मेले का आयोजन किया जाएगा। 29 जनवरी से लेकर 08 मार्च तक आप कुंभ के मेले में जाकर पवित्र नदी में डुबकी लगा सकते हैं।
महाकुंभ 2025 के शाही स्नान की तिथियां
इस बार प्रयागराज में होने जा रहे महाकुंभ के शाही स्नान की तिथियां इस प्रकार हैं:
- महाकुंभ के मेले के शाही स्नान की शुरुआत 13 जनवरी से होगी। इस दिन पौष पूर्णिमा पड़ रही है और पूर्णिमा के दिन पवित्र नदी में स्नान करने का बहुत महत्व है।
- इसके बाद 14 जनवरी को मकर संक्रांति पर शाही स्नान का आयोजन किया जाएगा।
- 29 जनवरी को मौनी अमावस्या पर भी शाही स्नान किया जाएगा।
- 03 फरवरी को वसंत पंचमी पर भी श्रद्धालु शाही स्नान करने का लाभ उठा सकते हैं।
- 04 फरवरी को अचला सप्तमी पर भी शाही स्नान किया जाएगा।
- 12 फरवरी को माघ पूर्णिमा के दिन भी श्रद्धालु कुंभ के मेले में आकर शाही स्नान करेंगे।
- 08 मार्च को महाशिवरात्रि है और इस दिन भी शाही स्नान का प्रंबंध किया जाएगा।
- महाकुंभ के दौरान 21 शाही स्नान होते हैं।
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महाकुंभ 2025 के आरंभ पर बन रहा है सिद्धि योग
29 जनवरी को सिद्धि योग भी बन रहा है जो कि 28 जनवरी को 11 बजकर 51 मिनट से शुरू होकर 29 जनवरी को रात 09 बजकर 21 मिनट पर समाप्त। वैदिक ज्योतिष में सिद्धि योग को बहुत ही शुभ माना गया है। कहा जाता है कि इस योग में किए गए सभी कार्य सफल होते हैं। सिद्धि योग में कुंभ स्नान करने से श्रद्धालुओं को असीम पुण्य की प्राप्ति होगी।
इस दिन अमावस्या तिथि की शुरुआत 28 जनवरी को शाम 07 बजकर 38 मिनट से होगी जो कि 29 जनवरी को शाम 06 बजकर 08 मिनट तक रहेगी।
कैसे तय होती है महाकुंभ की तिथि
वैदिक ज्योतिष में ग्रहों और राशियों की स्थिति का विश्लेषण करने के बाद महाकुंभ की तिथि निर्धारित की जाती है। कुंभ मेले की तिथि निर्धारित करने के लिए सूर्य और बृहस्पति को महत्वपूर्ण माना जाता है। ग्रहों की स्थिति के आधार पर कुंभ का स्थान चुना जाता है, जो कि निम्न प्रकार से है:
प्रयागराज: जब बृहस्पति वृषभ राशि में होते हैं और सूर्य मकर राशि में विराजमान होते हैं, तो मेले का आयोजन प्रयागराज में किया जाता है।
हरिद्वार: जब सूर्य मेष राशि और बृहस्पति कुंभ राशि में होते हैं, तब कुंभ का मेला हरिद्वार में लगता है।
नासिक: जिस समय सूर्य और बृहस्पति सिंह राशि में विराजमान होते हैं, तो उस दौरान कुंभ का मेला महाराष्ट्र के नासिक में लगता है।
उज्जैन: बृहस्पति के सिंह राशि में और सूर्य के मेष राशि में होने पर उज्जैन में महाकुंभ होता है।
महाकुंभ 2025 का इतिहास
मान्यता है कि कुंभ मेले का संबंध समुद्र मंथन से है। इस मेले की कथा के बारे में कहा जाता है कि एक बार ऋषि दुर्वासा के श्राप से इंद्र और अन्य देवता कमज़ोर पड़ गए थे। इसका लाभ उठाते हुए राक्षसों ने देवताओं पर आक्रमण कर दिया था और इस युद्ध में देवताओं की हार हुई थी। तब सभी देवता मिलकर सहायता के लिए भगवान विष्णु के पास गए और उन्हें सारी बात बताई। भगवान विष्णु ने राक्षसों के साथ मिलकर समुद्र मंथन कर के वहां से अमृत निकालने की सलाह दी।
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जब समुद्र मंथन से अमृत का कलश निकला, तो भगवान इंद्र का पुत्र जयंत उसे लेकर आकाश में उड़ गया। यह सब देखकर राक्षस भी जयंत के पीछे अमृत कलश लेने के लिए भागे और बहुत प्रयास करने के बाद दैत्यों के हाथ में अमृत कलश आ गया। इसके बाद अमृत कलश पर अपना अधिकार जमाने के लिए देवताओं और राक्षसों के बीच 12 दिनों तक युद्ध चला था।
समुद्र मंथन के दौरान अमृत कलश से कुछ बूंदें हरिद्वार, उज्जैन, प्रयागराज और नासिक में गिरी थीं इसलिए इन्हीं चार स्थानों पर महाकुंभ मेले का आयोजन किया जाता है। हर 3 साल में महाकुंभ होता है और इस तरह 2013 के बाद 12 सालों के बाद वर्ष 2025 में कुंभ का मेला प्रयागराज में आयोजित किया जा रहा है।
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