जानिए जगन्नाथ यात्रा के दसवें दिन निकाली जाने वाली बहुरा यात्रा के महत्व को !

उड़ीसा के पूरी से आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष के दिन से भगवान् जगन्नाथ की रथ यात्रा निकाली जाती है। भारत में पुरी हिन्दुओं के प्रसिद्ध धार्मिक स्थलों में से एक है। पुरी में खासतौर से इस रथ यात्रा के दौरान लोगों में बेहद उत्साह और श्रद्धा का भाव देखने को मिलता है। जगन्नाथ रथ यात्रा केवल भारत में ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में प्रचलित है। इस रथ यात्रा में शामिल होने के लिए देश ही नहीं बल्कि दुनिया के अन्य हिस्से से भी लोग आते हैं।

क्या है बहुरा यात्रा?

जगन्नाथ रथ यात्रा के समापन के लिए जिन रस्मों को किया जाता है उसे ही बहुरा यात्रा कहते हैं। जगन्नाथ यात्रा के लिए जगन्नाथ मंदिर से आरंभ होकर ये भव्य रथ यात्रा पुरी के गुंडिचा मंदिर में पहुचंती है और ठीक दसवें दिन फिर से वापिस जगन्नाथ मंदिर के लिए रथ यात्रा वापस लौटती है, जिसे मुख्य रूप से बहुरा यात्रा के नाम से जाना जाता है।

जगन्नाथ यात्रा का महत्व

जगन्नाथ रथ यात्रा विशेष तौर पर पुरी के जगन्नाथ मंदिर से निकल कर संपूर्ण शहर में घूमते हुए गुंडिचा मंदिर पहुँचती है। गुंडिचा मंदिर में भगवान् जगन्नाथ नाथ, देवी सुभद्रा और बलभद्र के संग साथ दिनों तक आराम की अवस्था में रहते हैं। इसके बाद आगे की यात्रा शुरू की जाती है, इसके साथ ही एक अन्य पौराणिक कथा के अनुसार इस दौरान भगवान जगन्नाथ को खोजते हुए स्वयं माता लक्ष्मी वहां आती हैं लेकिन एक दैत्यराज उन्हें भगवान् से मिलने नहीं देते हैं और वो क्रोधित होकर वहीं से चली जाती हैं। इसके बाद भगवान् जगन्नाथ स्वयं उन्हें मनाने आते हैं, इस रथ यात्रा में विशेष रूप से इस परंपरा का नजारा भी देखने को मिलता है। बीते 4 जुलाई से आरंभ हुई जगन्नाथ यात्रा आने वाले 12 जुलाई को बहुरा यात्रा के साथ समाप्त होगी।

दसवें दिन होती है बहुरा यात्रा

आस्था और विश्वास के इस भव्य यात्रा का समापन दसवें दिन बहुरा यात्रा के साथ की जाती है। बता दें कि गुंडिचा मंदिर से जब रथ यात्रा की वापसी मुख्य जगन्नाथ मंदिर की तरफ होती है तो उसे ही बहुरा यात्रा के नाम से जाना जाता है। इस यात्रा की विशेषता ये है की यहाँ बिना किसी जातिवाद के सभी धर्म के लोगों का स्वागत किया जाता है। जगन्नाथ यात्रा के दसवें दिन सभी रथ फिर से मुख्य मंदिर पहुँचते हैं और उस दिन सभी देवताओं की मूर्तियों को रथों में ही रखा जाता है और अगले दिन विधि पूर्वक पुनः मंदिर में उन्हें स्थापित किया जाता है। इस साल 12 जुलाई को बहुरा यात्रा के साथ इस विशाल रथ उत्सव की समाप्ति होगी।

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