बुरी शक्तियों को दूर करने के लिए त्रिपुरा के पारंपरिक “केर पूजा” की शुरुआत आज से !

त्रिपुरा, अगरतल्ला में प्रसिद्ध “केर पूजा” को क्षेत्रीय सार्वजनिक अवकाश का दिन माना जाता है। त्रिपुरा में मनाया जाने वाला केर पूजा या त्रिपुरा पूजा वास्तव में एक हिन्दू त्यौहार है जिसे वहां खारची पूजा के दो हफ़्तों के बाद मनाया जाता है। “केर” देवता को असल में त्रिपुरा वासी अपने संरक्षण देवता के रूप में पूजते हैं। वहां के लोगों का ऐसा विश्वास है कि केर बुरी शक्तियों को दूर कर लोगों की भलाई का काम करते हैं। आज हम आपको त्रिपुरा के प्रसिद्घ केर पूजा या त्रिपुरा पूजा के प्रमुख तथ्यों और इसके इतिहास के बारे में बताने जा रहे हैं। आइये जानते हैं केर पूजा से जुड़े मुख्य तथ्यों को।

केर पूजा का इतिहास

त्रिपुरा के प्रमुख खारची पूजा के शुरुआत के दो हफ़्तों के अंदर ही वहां 14 अलग-अलग देवी देवताओं की पूजा की जाती है। सबसे अंत में वहां के वास्तु देवता और त्रिपुरा के संरक्षण देवता “केर” की पूजा की जाती है। इसलिए इस दिन को केर पूजा के नाम से जाना जाता है। बता दें कि केर पूजा के दौरान, त्रिपुरा की राजधानी अगरतल्ला के सभी प्रवेश द्वार मुख्य तौर पर एक संरक्षित क्षेत्र बनाये जाने के लिए बंद कर दिए जाते हैं। यहाँ के नियमों के अनुसार जो इस पूजा के दौरान इस नियम को तोड़ता है उसे जुर्माना भरना पड़ता है और पूजा फिर से शुरू की जाती है।

“केर पूजा” के दौरान ये सुनिश्चित करने के लिए कि संरक्षित क्षेत्र के अंदर कहीं कुछ बुरा तो नहीं हो रहा, प्रेग्नेंट औरतों, बुजुर्ग और बीमार लोगों को पास के गावं में भेज दिया जाता है। केर पूजा की शुरुआत एक जोरदार धमाके से होती है जो इस बात का संकेत होता है कि पूजा की शुरुआत हो चुकी है, इस दौरान लोग रोना और चिल्लाने से हतोत्साहित होते हैं।

केर पूजा से जुड़े इन महत्वपूर्ण तथ्यों को भी जान लें

आपको जानकर भले ही हैरानी हो लेकिन त्रिपुरा में केर पूजा के दौरान विशेष रूप से जिस इलाके में पूजा का आयोजन किया जाता है वहां नाच गान, पशुओं की आवाजाही और किसी भी अन्य प्रकार के मनोरंजन के कार्यों को प्रतिबंधित माना जाता है। इतना ही नहीं बल्कि इस दौरान यदि किसी परिवार में किसी की मौत हो जाती है तो उस परिवार को इसका जुर्माना भी देना पड़ता है। चुकी इस पूजा की शुरुआत त्रिपुरा के शाही परिवार ने की थी इसलिए अब सरकार और शाही परिवार के सहयोग के साथ इस पूजा का आयोजन किया जाता है। इस दौरान होने वाले तमाम खर्चों को दोनों आपसी सहयोग के साथ उठाते हैं।

“केर पूजा” के दौरान विशेष रूप से पशु और पक्षियों की बलि देने और केर देवता को अन्य चढ़ावा चढ़ाने का भी प्रचलन है। इस पूजा के दौरान एक बांस से बने ढांचे को केर पूजा की देवी के रूप में भी पूजा जाता है।

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