मनुष्य के जीवन की लगभग सभी घटनाओं पर ग्रह-नक्षत्रों का प्रभाव रहता है। ग्रहों की दशा और दिशा के कारण जातक के जीवन में बहुत कुछ घटित होता है। यह घटनाएं शुभ भी हो सकती हैं और अशुभ भी हो सकती हैं। ग्रह जब गोचर करते हैं, तो इनके प्रभाव के कारण मनुष्य के जीवन में महत्वपूर्ण बदलाव आते हैं। किसी को अपने जीवन में सुख प्राप्त होता है, तो वहीं कुछ लोगों को कष्टों और संघर्षों का सामना करना पड़ता है।
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गोचर करने के दौरान ग्रहों की अन्य ग्रहों के साथ युति भी होती है जिससे शुभ व अशुभ संयोग एवं राजयोग का निर्माण होता है। ग्रहों की युति होने पर सभी राशियों पर इसका अलग-अलग प्रभाव पड़ता है।
आज इस ब्लॉग के ज़रिए हम आपको राहु और बृहस्पति की युति के बारे में बताने जा रहे हैं। यहां आप जान सकते हैं कि जब किसी एक भाव या राशि में गुरु और राहु की युति होती है, तो किस तरह के परिणाम प्राप्त होते हैं लेकिन उससे पहले आप ज्योतिष में राहु और बृहस्पति के महत्व के बारे में जान लें।
ज्योतिष में बृहस्पति ग्रह का महत्व
वैदिक ज्योतिष के अनुसार मनुष्य के जीवन पर ग्रहों का विशेष प्रभाव पड़ता है। बृहस्पति एक महत्वपूर्ण और सभी ग्रहों में सबसे विशाल ग्रह है। इसे देवताओं के गुरु की उपाधि दी गई है। ये ग्रह जातक को भाग्य प्रदान करता है और उसे दयालु बनाता है।
यह सूर्य की परिक्रमा करने में 12 साल से कुछ कम का समय लगाते हैं। यह प्रतिष्ठा और मान-सम्मान का ग्रह है। इस ग्रह को धर्म और अध्यात्म का कारक भी कहा जाता है। शास्त्रों में बृहस्पति को उग्र, महान और परोपकारी बताया गया है। इस ग्रह के प्रभाव से व्यक्ति आशावादी और सकारात्मक बनता है। इसका स्वभाव उदार और दयालु है। इसे भाग्य, धन, प्रतिष्ठा, प्रसिद्धि, आध्यात्मिकता, भक्ति और विश्वास का कारक माना गया है।
यह ग्रह कफ प्रकृति का है और धनु एवं मीन राशि पर इसका आधिपत्य है। यह ग्रह व्यक्ति को उच्च तर्क क्षमता और निर्णय लेने की क्षमता प्रदान करता है।
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वैदिक ज्योतिष में राहु का महत्व
राहु एक छाया ग्रह है जो हमेशा वक्री चाल चलता है। राहु भ्रम की स्थिति पैदा करता है और इसके प्रभाव के कारण व्यक्ति कk सांसारिक सुखों से लगाव हट जाता है। राहु व्यक्ति को प्रसिद्धि भी प्रदान करता है और यह ग्रह आईटी सेक्टर को दर्शाता है। राहु की वजह से व्यक्ति कभी भी अपने जीवन से संतुष्ट नहीं हो पाता है। उसे हमेशा और पाने की लालसा रहती है।
राहु एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश करने में 18 महीने का समय लेते हैं। राहु की महादशा भी 18 साल की होती है। राहु का किसी भी राशि या कुंडली के किसी भी भाव पर आधिपत्य नहीं है। आर्द्रा, स्वाति और शतभिषा नक्षत्रों पर राहु का शासन होता है। माना जाता है कि राहु वृषभ या मिथुन राशि में उच्च के होते हैं और धनु या वृश्चिक राशि में नीच के होते हैं। जन्मकुंडली में लाभ भाव में होने पर राहु अच्छे फल प्रदान करता है।
तो चलिए अब जानते हैं कि राहु और बृहस्पति की युति होने पर किस तरह के प्रभाव मिलते हैं।
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राहु और बृहस्पति की युति
ज्योतिषशास्त्र में बृहस्पति ग्रह को बुद्धि का कारक माना गया है। यह ग्रह सफलता, शिक्षा, बुद्धि और नौकरी एवं व्यापार के क्षेत्र से संबंधित है। राहु को पापी ग्रह भी बताया गया है। यदि राहु कुंडली में शुभ स्थान में बैठा है तो यह जातक को रंक से राजा बना सकता है लेकिन अगर अशुभ फल प्रदान कर रहा हो, तो व्यक्ति के जीवन को दरिद्रता और दुखों से भर सकता है।
कुंडली में राहु और बृहस्स्पति की युति से शुभ और अशुभ दोनों तरह के परिणाम मिल सकते हैं। अगर गुरु और राहु जन्मकुुंडली में एक ही स्थान में बैठे हैं लेकिन यहां पर बृहस्पति उच्च स्थान में है और राहु नीच स्थान में है, तो इस युति से व्यक्ति को अपने जीवन में सकारात्मक परिणाम प्राप्त होते हैं। इन लोगों को अपने जीवन में अपार सफलता मिलती है। इसका शुभ प्रभाव करियर, पारिवारिक जीवन, घर और व्यापार आदि पर पड़ता है।
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वहीं अगर गुरु नीच स्थान में है और राहु उच्च स्थान में बैठा है, तो इस स्थिति में जातक को अशुभ परिणाम झेलने पड़ते हैं। इन लोगों को आर्थिक तंगी का सामना करना पड़ता है। ये पैसों के लिए तो मोहताज हो ही जाते हैं साथ ही इनकी बुद्धि भी काम करना बंद कर देती है। गुरु और राहु की इस युति के कारण जातक गलत रास्ते पर चलने लगता है और बुरी संगत में रहना शुरू कर देता है। ये जातक अपने ही हाथों से अपना विनाश कर लेते हैं।
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FAQ
उत्तर. इन दो ग्रहों के एकसाथ होने पर गुरु चांडाल योग बनता है।
उत्तर. राहु दैत्यों में से एक है इसलिए उनके गुरु शुक्राचार्य हैं।
उत्तर. राहु को शांत करने के लिए भगवान शिव की पूजा करनी चाहिए।
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