बेहद शुभ योग में रखा जाएगा परिवर्तिनी एकादशी 2025 का व्रत, जरूर करें ये उपाय

बेहद शुभ योग में रखा जाएगा परिवर्तिनी एकादशी 2025 का व्रत, जरूर करें ये उपाय

हर एकादशी का अपना एक विशेष महत्व होता है, लेकिन परिवर्तिनी एकादशी 2025 का स्थान सभी व्रतों में अद्वितीय है। यह एकादशी न केवल भगवान विष्णु के शयन परिवर्तन यानी करवट बदलने का प्रतीक है, बल्कि यह दिन जीवन में धार्मिक जागरूकता, शुभ परिवर्तन और आत्मिक उत्थान का संदेश भी देता है।

सनातन धर्म की मान्यता है कि इस दिन यदि श्रद्धा से व्रत और पूजा की जाए, तो भगवान विष्णु विशेष कृपा बरसाते हैं और जीवन में रुके हुए कार्यों में गति आने लगती है। लेकिन, इस दिन की व्रत कथा पढ़े बिना पूजा अधूरी मानी जाती है। कहा जाता है कि इस कथा में छिपा है उस पुण्य का रहस्य, जो मन, कर्म और आत्मा, तीनों को शुद्ध करता है।

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एस्ट्रोसेज एआई के इस ब्लॉग में हम परिवर्तिनी एकादशी 2025 व्रत के बारे में सब कुछ जानेंगे, साथ ही इसके महत्व, व्रत कथा, पूजा विधि और कुछ उपायों के बारे में भी जानेंगे। तो चलिए बिना किसी देरी के अपने ब्लॉग की शुरुआत करते हैं।

परिवर्तिनी एकादशी 2025: तिथि और समय

परिवर्तिनी एकादशी तिथि: बुधवार, 03 सितंबर 2025

एकादशी तिथि प्रारम्भ – सितंंबर 03, 2025 को प्रात: 03 बजकर 54 मिनट पर शुरू होगी। 

एकादशी तिथि समाप्त – सितंंबर 04, 2025 को प्रात: 04 बजकर 23 मिनट पर खत्‍म होगी।

परिवर्तिनी एकादशी पारण मुहूर्त : 13:36:00 से 16:07:54 तक 4, सितंबर को

अवधि : 2 घंटे 31 मिनट

हरि वासर समाप्त होने का समय : 04 सितंबर की सुबह 10 बजकर 20 मिनट पर।

परिवर्तिनी एकादशी 2025 पर शुभ योग  

परिवर्तिनी एकादशी के दिन आयुष्मान योग बन रहा है। आयुष्मान योग हिंदू पंचांग के 27 योगों में से एक शुभ योग है। इसका नाम ही बताता है कि यह योग दीर्घायु, स्वास्थ्य और समृद्धि से जुड़ा है। जब चंद्रमा और सूर्य की गति के अनुसार आयुष्मान योग बनता है, तो यह समय शुभ कार्यों, नई शुरुआतों और सेहत से संबंधित कार्यों के लिए अत्यंत उत्तम माना जाता है।

आयुष्मान शब्द का अर्थ होता है, दीर्घायु, स्वस्थ जीवन और बलवान शरीर। इस योग के प्रभाव से व्यक्ति को लंबी उम्र, उत्तम स्वास्थ्य और समृद्धि का आशीर्वाद प्राप्त होता है।

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परिवर्तिनी एकादशी 2025 का महत्व

परिवर्तिनी एकादशी, जिसे पार्श्व एकादशी, वामन एकादशी या जयंती एकादशी भी कहा जाता है। यह भाद्रपद शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को मनाई जाती है। यह एकादशी विशेष महत्व रखती है क्योंकि इसी दिन भगवान विष्णु अपने योग निद्रा में दक्षिण से वाम पार्श्व की ओर करवट बदलते हैं। इसलिए इसे परिवर्तिनी एकादशी कहा जाता है।

चातुर्मास के दौरान, यह एकादशी वह दिन होता है, जब भगवान विष्णु शेषनाग की शैय्या पर करवट बदलते हैं।  इसे पार्श्व परिवर्तन दिवस भी कहते हैं। इस दिन व्रत रखने से व्यक्ति को सहस्त्रगुणा पुण्य प्राप्त होता है। यह व्रत पापों का नाश और मोक्ष की प्राप्ति की मार्ग प्रशस्त करता है। 

कई क्षेत्रों में इसे भगवान वामन (भगवान विष्णु का पांचवां अवतार) की जयंती के रूप में भी मनाया जाता है। इस दिन किया गया दान, यज्ञ, तप और कथा  श्रवण अक्षय फलदायी होता है। बता दें कि परिवर्तिनी एकादशी केवल भगवान की करवट बदलने की तिथि नहीं, बल्कि आध्यात्मिक जागृति और कर्म सुधारने अवसर है। यह व्रत जीवन में धार्मिकता, अनुशासन और पुण्य बढ़ाने वाला माना जाता है।

परिवर्तिनी एकादशी की पूजा विधि

  • परिवर्तिनी एकादशी 2025 के एक दिन पहले सात्विक भोजन करें और ब्रह्मचर्य का पालन करें।
  • रात्रि में भगवान विष्णु का स्मरण करते हुए सोए।
  • सुबह ब्रह्म मुहूर्त में उठे और शुद्ध जल से स्नान करें।
  • इसके बाद साफ कपड़े पहनकर व्रत का संकल्प लें।
  • पूजा स्थल पर भगवान विष्णु की मूर्ति या चित्र स्थापित करें।
  • गंगाजल से शुद्धिकरण करें और दीपक जलाएं।
  • भगवान को पंचामृत (दूध, दही, घी, शहद, शक्कर) तुलसी दल (बहुत प्रिय) फूल, धूप, दीप, चंदन, अक्षत मौसमी फल और नैवेद्य अर्पित करें।
  • यदि संभव हो तो सहस्रनाम, वामन स्तोत्र, या भगवद गीता का पाठ करें।
  • इस दिन अन्न ग्रहण नहीं किया जाता है। फलाहार करें यदि निर्जला व्रत संभव न हो तो।
  • दिनभर भगवान विष्णु के नामों का जाप करें “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय”।
  • रात्रि में भगवान का भजन-कीर्तन करें और जागरण करें।
  • द्वादशी तिथि में ब्राह्मणों को भोजन करवाकर दान-दक्षिणा दें।
  • भगवान विष्णु को धन्यवाद देते हुए व्रत का पारण करें।
  • पारण का समय देखकर फलाहार या सात्विक भोजन करें।

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परिवर्तिनी एकादशी 2025 की कथा

भाद्रपद शुक्ल पक्ष की एकादशी को परिवर्तिनी एकादशी कहा जाता है। यह व्रत भगवान विष्णु के वामन अवतार से जुड़ा हुआ है। स्कंद पुराण, पद्म पुराण तथा अन्य ग्रंथों में इसकी महिमा का वर्णन मिलता है। प्राचीन काल में सतयुग में एक धर्मात्मा राजा थे, जिनका नाम महाबली था। वे बड़े ही पराक्रमी, दानी और भक्त राजा थे। उन्होंने अपनी तपस्या, दान और पराक्रम से तीनों लोकों पर अधिकार कर लिया।

देवराज इंद्र सहित अन्य देवता भी उनके प्रभाव से भयभीत हो गए। उन्होंने भगवान विष्णु से रक्षा की प्रार्थना की। देवताओं की प्रार्थना स्वीकार कर भगवान विष्णु ने वामन अवतार लिया।

उन्होंने एक छोटे ब्राह्मण बालक का रूप धारण किया और राजा बलि के यज्ञ में पहुंचे। राजा बलि अत्यंत दानी थे। उन्होंने स्वयं ब्राह्मण बालक से पूछा कि वह क्या चाहता है। वामन भगवान ने कहा, हे राजन! मुझे केवल तीन पग भूमि चाहिए। बलि ने हंसते हुए कहा, हे ब्राह्मण बालक! माँग लो तीन नहीं, तीन सौ पग भूमि।

मुझे प्रसन्नता होगी।  परंतु गुरु शुक्राचार्य ने बलि को चेताया कि यह कोई साधारण ब्राह्मण नहीं, स्वयं भगवान विष्णु हैं, जो तुम्हारी शक्ति का अंत करने के लिए वामन रूप में आए हैं। किंतु बलि अपने वचन से पीछे नहीं हटे। उन्होंने वामन को तीन पग भूमि देने का संकल्प कर लिया।

तब भगवान वामन ने अपना विराट रूप धारण किया। पहले पग में पृथ्वी, दूसरे पग में आकाश को नाप लिया। अब तीसरा पग रखने के लिए कोई स्थान नहीं बचा। तब बलि ने कहा, हे प्रभु! मेरा शरीर शेष है, आप अपना तीसरा पग मेरे सिर पर रख दीजिए। भगवान वामन ने अपने चरण से बलि का सिर स्पर्श किया और उसे पाताल लोक का राजा बना दिया।

साथ ही उसकी भक्ति, दानशीलता और सत्यव्रत से प्रसन्न होकर कहा हे बलि! कलियुग में जब-जब मेरे भक्त तुम्हारा नाम लेंगे, मैं उनकी रक्षा करूंगा। तुम मेरे परम भक्त हो। बलि ने एक वर मांगा कि भगवान स्वयं पाताल में आकर उसके द्वारपाल बनें। भगवान विष्णु ने स्वीकार किया और पाताल चले गए। जब भगवान विष्णु पाताल चले गए, तब देवी लक्ष्मी को चिंता हुई। 

उन्होंने भगवान को वापस लाने के लिए एक उपाय सोचा। वे एक ब्राह्मण स्त्री का रूप लेकर राजा बलि के पास गईं और कहा, हे राजन्! मैं एक अकेली स्त्री हूं, मेरे घर में कोई पुरुष नहीं है। क्या आप मेरे घर रक्षा हेतु कोई व्यक्ति भेज सकते हैं? बलि ने कहा, हे माता! आप मेरे द्वार से जिसको चाहें ले जाएं।

तब लक्ष्मी जी ने भगवान विष्णु को चुन लिया और उन्हें पाताल से बाहर ले आईं। इसी दिन भगवान विष्णु चार महीने की योगनिद्रा में करवट बदलते हैं, इसलिए इसे परिवर्तिनी एकादशी कहा जाता है। यह चातुर्मास का एक विशेष पर्व है। जो भी भक्त इस दिन व्रत रखता है, विष्णु पूजन करता है, उसे बलि जैसे दानी और भक्त राजा के समान पुण्य फल प्राप्त होता है।

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परिवर्तिनी एकादशी 2025 के दिन जरूर करें ये उपाय

परिवर्तिनी एकादशी के दिन कुछ विशेष अचूक उपाय करने से जीवन की अनेक समस्याओं से मुक्ति मिल सकती है, जैसे आर्थिक तंगी, वैवाहिक संकट, संतान बाधा, कोर्ट-कचहरी के झंझट, स्वास्थ्य, शत्रु नाश आदि। यहां परिवर्तिनी एकादशी के दिन किए जाने वाले अचूक उपायों दिए जा रहे हैं।

परिवर्तिनी एकादशी 2025 पर धन प्राप्‍ति के लिए

इस दिन प्रातः स्नान करके विष्णु जी के सामने दीपक जलाएं। 11 तुलसी पत्तों पर चंदन लगाकर उन्हें ॐ श्रीं ह्रीं श्री लक्ष्मी नारायणाय नमः मंत्र के साथ अर्पित करें। इसके बाद  पीले वस्त्र में 5 कौड़ियाँ, थोड़ी सी हल्दी और चावल बाँधकर तिजोरी में रखें। ऐसा करने से, धन आगमन के मार्ग खुलते हैं, आर्थिक स्थिति सुधरती है।

दांपत्य जीवन में प्रेम बढ़ाने के लिए

इस दिन पति -पत्नी दोनों मिलकर व्रत करें। भगवान विष्णु और देवी लक्ष्मी की एक साथ पूजा करें। साथ ही ॐ लक्ष्मी नारायणाय नमः मंत्र का 108 बार जाप करें। पूजा के बाद एक मीठा फल दोनों मिलकर खाएं। ऐसा करने से, संबंधों में मधुरता आती है, आपसी मतभेद दूर होते हैं।

परिवर्तिनी एकादशी 2025 पर संतान प्राप्ति के लिए

व्रत रखकर भगवान वामन की पूजा करें। 11 तुलसी पत्रों पर हल्दी से “राम” लिखकर भगवान को अर्पित करें। ॐ नारायणाय नमः का जाप करें। व्रत कथा पढ़ें और संतान सुख की कामना करें। इसके परिणामस्वरूप, संतान संबंधी बाधाएं दूर होती हैं, संतान सुख की प्राप्ति होती है।

शत्रुओं से मुक्ति पाने के लिए

इस दिन सूर्योदय से पहले स्नान करें। 07 तुलसी पत्ते लें और उन पर थोड़ा सा काले तिल रखें। इन्हें पीले वस्त्र में बांधकर भगवान विष्णु के चरणों में अर्पित करें। साथ ही, ॐ विष्णवे नमः का 21 बार जाप करें। इसके फलस्वरूप, शत्रुओं पर विजय प्राप्त होती है, कानूनी मामलों में राहत मिलती है।

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परिवर्तिनी एकादशी 2025 पर कर्ज से मुक्ति पाने के लिए

भगवान वामन को पीले फूल अर्पित करें। ॐ वामनाय नमः मंत्र का 108 बार जाप करें। एक पीला सिक्का या गोमती चक्र लक्ष्मी जी के चित्र पर रखकर प्रार्थना करें कि  कर्ज से मुक्ति मिले। अगले दिन उसे तिजोरी में रखें। इसके फलस्वरूप धीरे-धीरे कर्ज उतरने लगता है और आय के नए स्रोत बनते हैं।

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अक्‍सर पूछे जाने वाले प्रश्‍न

परिवर्तिनी एकादशी क्या होती है?

परिवर्तिनी एकादशी भाद्रपद शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को मनाई जाती है। इस दिन भगवान विष्णु क्षीर सागर में करवट (परिवर्तन) लेते हैं, इसलिए इसे ‘परिवर्तिनी’ एकादशी कहते हैं।

इस एकादशी का दूसरा नाम क्या है?

इसे पार्श्व एकादशी, जलझूलनी एकादशी, और डोल ग्यारस भी कहा जाता है।

परिवर्तिनी एकादशी 2025 में कब है?

परिवर्तिनी एकादशी 2025 में 03 सितंबर, बुधवार को पड़ रही है।