हिंदू धर्म में दुर्गा पूजा के दौरान सप्तमी तिथि को नवपत्रिका पूजा की जाती है। बंगाल और ओडिशा राज्य में इस पर्व को बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। बंगाल में तो दुर्गा पूजा का अलग ही नज़ारा देखने को मिलता है।
दुर्गा पूजा के छठे दिन कल्पारंभ की परंपरा है, वहीं सप्तमी तिथि को नवपत्रिका की परंपरा है। इसे कुछ जगहों पर नबपत्रिका के नाम से भी जाना जाता है। आगे जानिए कि नवपत्रिका पूजा 2024 का क्या महत्व है और वर्ष 2024 में यह पूजा किस दिन एवं तिथि पर पड़ रही है।
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कब है नवपत्रिका पूजा 2024
10 अक्टूबर, 2024 को सप्तमी तिथि पर नवपत्रिका पूजा की जाएगी। 09 अक्टूबर को 12 बजकर 16 मिनट से सप्तमी तिथि का प्रारंभ होगा और इसका समापन 10 अक्टूबर को 12 बजकर 33 मिनट पर होगा।
नवपत्रिको को महासप्तमी के नाम से भी जाना जाता है और यह दुर्गा पूजा का पहला दिन है। नवपत्रिका दो शब्दों से मिलकर बना है। नव का अर्थ होता है नौ और पत्रिका का मतलब होता है पत्तियां।
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नवपत्रिका पूजा में क्या होता है
नवपत्रिका नौ पत्तियों को दर्शाता है। इन पत्तियों का उपयोग मां दुर्गा के पूजन में किया जाता है। दुर्गा पूजा के प्रथम दिन पर नवपत्रिका पूजा की जाती है और इसके बाद महासप्तमी पर दुर्गा पंडाल में नवपत्रिका को स्थापित कर दिया जाता है।
नौ पत्तियों का महत्व
नवपत्रिका पूजन में प्रयोग होने वाली हर एक पत्ती मां दुर्गा के विभिन्न अवतार को दर्शाती है। इसके केला, कछवी, हल्दी, अनार, अशोक, मनका, धान, बिल्व और जौ की पत्ती होती है। प्रत्येक पत्ती मां दुर्गा के नौ अवतारों को दर्शाती है, जैसे कि:
- केला : केले का पेड़ और इसकी पत्तियां ब्राह्मणी देवी का प्रतीक हैं।
- कछवी: यह मां काली को दर्शाती है और इसे कछी भी कहा जाता है।
- हल्दी: हल्दी की पत्तियां मां दुर्गा के रूप को दर्शाती हैं।
- जौ: यह मां कार्तिका से संबंधित हैं।
- बेल पत्र: बेल पत्र भगवान शिव से संबंधित हैं।
- अनार: इसे दादी मां भी कहते हैं और रक्तदंतिका को दर्शाती हैं।
- अशोक: इसकी पत्तियां मां सोकराहिता की प्रतीक हैं।
- मनका: ये चामुंडा देवी को दर्शाती हैं।
- धान के पत्ते: इसे मां लक्ष्मी का प्रतीक माना जाता है।
इस तरह ये नौ पत्तियां मां दुर्गा के नौ अवतारों को दर्शाती हैं। पूजन में विशेष रूप से इन पत्तियों का उपयोग किया जाता है।
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नवपत्रिका पूजन विधि
नवपत्रिका पूजन की विधि निम्न प्रकार से है:
सबसे पहले आप पूजन के लिए सभी नौ पत्तियों को एक साथ बांध लें और फिर उन्हें पवित्र नदी में डुबोकर साफ कर लें।
इन पत्तियों को पकड़कर रखते हुए आप भी पवित्र नदी में स्नान कर लें। यदि आप नदी में स्नान नहीं कर सकते हैं, तो इस क्रिया को घर पर भी कर सकते हैं।
इसके बाद इन नौ पत्तियों को कई पवित्र जलों से शुद्ध किया जाता है। इसमें सबसे पहले गंगाजल, फिर बारिश का पानी, इसके बाद सरस्वती नदी का जल लिया जाता है। इसके पश्चात् समुद्र का पानी प्रयोग किया जाता है और फिर कमल के साथ तालाब का पानी लेते हैं। आखिर में झरने का पानी इस्तेमाल किया जाता है।
स्नान के बाद महिलाएं सफेद रंग की साड़ी पहनती हैं जिसकी लाल रंग की बॉर्डर होती है। नवपत्रिका को भी ऐसी ही एक साड़ी पहनाई जाती है और इस पर फूलों की माला अर्पित की जाती है। ऐसा माना जाता है कि नवपत्रिका को बंगाली दुल्हन की तरह सजाना चाहिए।
महा स्नान के बाद प्राण प्रतिष्ठा की जाती है। पूजन स्थल को साफ करने के बाद मां दुर्गा की मूर्ति स्थापित की जाती है और उसे रंग-बिरंगे फूलों एवं रोशनी से सजाया जाता है।
प्राण प्रतिष्ठा के बाद शोडोषापचार पूजा की जाती है। इस दौरान मां दुर्गा की सोलह अलग-अलग चीज़ों से पूजा की जाती है। इसके बाद नवपत्रिका की स्थापना की जाती है और फिर इस पर चंदन लगाकर पुष्प अर्पित किए जाते हैं। अब इसके दाईं ओर भगवान गणेश की मूर्ति स्थापित की जाती है। अंत में मां दुर्गा की महा आरती कर के प्रसाद वितरित किया जाता है।
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नवपत्रिका पूजा की कथा
कोलाबाऊ को भगवान गणेश की पत्नी माना जाता है। हालांकि, इसे लेकर अलग-अलग धारणाएं और मान्यताएं मौजूद हैं। इसके अलावा नवपत्रिका पूजन से एक और पौराणिक कथा जुड़ी है जिसके अनुसार कोलाबाऊ को नवपत्रिका के नाम से जाना जाता है। वह मां दुर्गा की परम भक्त थी और वृक्षों की अलग-अलग पत्तियों से मां दुर्गा के नौ अवतारों की पूजा किया करती थी।
महा स्नान के बाद महा सप्तमी की पूजा की जाती है जिसे कोलाबाऊ स्नान भी कहा जाता है। इस दिन महा स्नान का बहुत ज्यादा महत्व है। ऐसा माना जाता है कि जो भी श्रद्धालु इस दिन पवित्र नदी में स्नान करता है, उसे मां दुर्गा की कृपा प्राप्त होती है।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न
उत्तर. इसमें अलग-अलग नौ पत्तों से पूजा की जाती है।
उत्तर. इसमें मां दुर्गा की पूजा का विधान है।
उत्तर. बंगाल और ओडिशा में नवपत्रिका पूजन धूमधाम से किया जाता है।
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