नरक चतुर्दशी विशेष: जानें पूजा विधि और इससे जुड़ी पौराणिक कथाएं

साल 2020 में 14 नवंबर को नरक चतुर्दशी का त्यौहार मनाया जाएगा। इस दिन हिंदू धर्म में मान्यता रखने वाले लोग यमराज की पूजा करते हैं और उनसे अकाल मृत्यु से मुक्ति और बेहतर स्वास्थ्य की कामना करते हैं। भारत के कई इलाकों में  नरक चतुर्दशी के त्योहार को नरक चौदस और रुप चौदस के नाम से भी जाना जाता है। नरक चतुर्दशी की रात को लोगों द्वारा रात के अंधियारे को दूर करने के लिये दिये जलाये जाते हैं। चूंकि नरक चतुर्दशी का त्योहार दीपावली से एक दिन पहले आता है इसलिये कई लोग इस छोटी दिवाली के नाम से भी पुकारते हैं। 

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दिलचस्प बात यह है कि इस साल नरक चतुर्दशी और दिवाली एक ही दिन मनायी जायेगी। आमतौर पर दिवाली से पहले छोटी दिवाली होती है, हालांकि चतुर्दशी तिथि 14  नवंबर को 14:20:25 तक रहेगी और उसके बाद अमावस्या तिथि शुरु होगी जोकि अगली सुबह 10:39:32 पर समाप्त होगी। यही वजह है कि भक्त 14 नवंबर को एक ही दिन दोनों त्योहार मनाएंगे।

नरक चतुर्दशी मुहूर्त 

अभ्यंग स्नान समय  05:22:59 से 06:43:18 तक
अवधि 

                            1 घंटे 20 मिनट

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नरक चतुर्दशी के दिन इस तरह करें पूजा

  • इस दिन सुबह जब आप उठें तो अपने मन में अपने इष्ट देव का विचार करें। 
  • हिंदू धर्म के अन्य व्रत त्योहारों की तरह ही इस दिन भी सूर्योदय से पहले उठकर स्नान करना चाहिये। 
  • इस दिन शरीर पर तिल के तेल से मालिश करनी चाहिये। 
  • इस दिन यमराज को पूजा जाता है इसलिये स्नान करने के बाद दक्षिण दिशा की ओर मुख करके औऱ हाथ जोड़कर यमराज की पूजा करनी चाहिये। माना जाता है कि जो जातक ऐसा करता है वह नरक के भय से दूर हो जाता है। यमराज को प्रसन्न करने के लिये इस दिन घर के मुख्य दरवाजे से बाहर दीया जलाना चाहिये। 
  • इस दिन भगवान कृष्ण की पूजा करने से इंसान में अच्छे गुणों और रुप की वृद्धि होती है। 
  • इस दिन देवी देवताओं की पूजा करने के बाद घर के अंदर और बाहर दीये जलाने चाहिये, माना जाता है कि ऐसा करने से माता लक्ष्मी सदैव घर में निवास करती हैं। 

हिंदू पंचांग के अनुसार कब मनाई जाती है 

आजकल लोगों द्वारा सामान्य जिंदगी में भले ही अंग्रेजी महीनों को ज्यादा तवज्जो दी जाती हो लेकिन भारत में मनाये जाने वाले सारे त्योहार हिंदू पंचांग के अनुसार ही मनाये जाते हैं। नरक चतुर्दशी का त्योहार भी हिंदू पंचांग के अनुसार कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को अरुणोदय (सूर्य के उदय होने से लगभग डेढ़ घंटे पहले) के समय मनाया जाता है। इस दिन अरुणोदय के समय यम तर्पण करने की परंपरा चली आ रही है। 

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नरक चतुर्दशी से जुड़ी पौराणिक कथाएं

एक कथा के अनुसार भगवान कृष्ण ने कार्तिक मास की चतुर्दशी तिथि को नरकासुर का वध किया था। नरकासुर के वध के बाद इस दिन लोगों ने घरों में दिये जलाये थे ऐसा माना जाता है तभी से नरक चतुर्दशी का त्यौहार मनाया जाने लगा। अपनी पत्नी सत्यभामा के साथ मिलकर नरकासुर का वध करके भगवान कृष्ण ने देवताओं औऱ संतों की 16 हजार स्त्रियों को मुक्त कराया था यह 16 हजार स्त्रियां तब से भगवाव कृष्ण की पटरानियां कही जाने लगीं। 

एक अन्य कथा के अनुसार भगवान विष्णु ने त्रयोदशी से अमावस्या तिथि के बीच असुरों के राजा बलि के राज्य को 2 कदम में नाप दिया था, हालांकि भगवान विष्णु के वामन अवतार ने राजा बलि से तीन पग भूमि मांगी थी लेकिन विराट रुप धारण कर विष्णु भगवान के वामन अवतार ने 2 पग में ही भूलोक और देवलोक को नाप लिया। इसके बाद जब तीसरे पग के लिये कोई जगह नहीं बची तो बलि ने अपने सिर पर पग रखने को वामन को कहा। चूंकि राजा बलि अपने दानी स्वभाव के कारण जाने जाते थे, उन्होंने बहुत खुशी से अपना सारा राज्य भगवान विष्णु के वामन अवतार को दे दिया। इसके बाद भगवान वामन ने बलि से वर मांगने को कहा तो बलि ने कहा कि त्रयोदशी से अमावस्या के दिन तक हर वर्ष मेरा राज्य हो। इस समय मेरे राज्य में जो भी दीपावली मनाए और चतुर्दशी के दिन नरक के लिये दीयों का दान करे तो उसे और उसके पितरों को नर्क से मुक्ति मिले। भगवान ने बलि की बात मानी और उन्हें वर दिया। इसके बाद से ही नरक चतुर्दशी का त्योहार जन सामान्य के बीच प्रचलित हो गया।

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