कल्कि जयंती 2023: हर साल श्रावण महीने के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को कल्कि जयंती मनाई जाती है। हिंदू पुराणों के अनुसार, इस दिन भगवान विष्णु दसवां अवतार लेंगे। भले ही भगवान विष्णु ने अब तक कल्कि अवतार नहीं लिया है लेकिन फिर भी श्रद्धालु पूरी श्रद्धा और उत्साह के साथ कल्कि जयंती मनाते हैं। पुराणों के अनुसार, कलयुग के अंत में राक्षसों और बुरे लोगों के नाश के लिए भगवान कल्कि सफेद घोड़े पर सवार होकर नज़र आएंगे।
पौराणिक कथाओं में यह उल्लेख किया गया है कि कलयुग 4,32,000 हजार वर्षों तक रहेगा और अभी उसका केवल पहला चरण ही चल रहा है। यह 3102 ईसा पूर्व शुरू हुआ था जब मंगल, बुध, शुक्र, बृहस्पति और शनि मेष राशि में 0 डिग्री पर थे। ज्योतिषीय गणना के अनुसार कलयुग के 5121 साल बीत गए हैं और अभी 426870 साल बचे हैं।
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2023 में कब है कल्कि जयंती
साल 2023 में 22 अगस्त को बुधवार के दिन कल्कि जयंती मनाई जाएगी। इसकी शुरुआत 22 अगस्त 2023 की मध्यरात्रि 02 बजकर 02 मिनट से 23 अगस्त 2023 की मध्यरात्रि 03 बजकर 07 मिनट तक होगी।
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कल्कि जयंती पर बन रहा है शुभ योग
कल्कि जयंती के दिन शुक्ल योग बन रहा है। 27 योगों में शुक्ल योग 24वें स्थान पर आता है। ज्योतिष के अनुसार इस योग में किए गए कार्यों में सफलता मिलती है। इस समय दान करने को भी काफी फलदायी बताया गया है। यदि आप अपने पुण्य कर्मों में वृद्धि करना चाहते हैं, तो कल्कि जयंती पर बन रहे शुक्ल योग में गरीबों और जरूरतमंदों को दान दें। इसके अलावा आप कोई नया या शुभ कार्य करने की सोच रहे हैं, तो उसके यह अवधि बेहद अनुकूल साबित होगी।
कल्कि जयंती की पूजन विधि
कल्कि जयंती पर सूर्योदय से पहले ही स्नान कर लेना चाहिए और इसके बाद व्रत का संकल्प करना चाहिए। भगवान कल्कि की मूर्ति का पंचामृत और जल से अभिषेक करें और फिर फूलों, अगरबत्ती और घी का दीपक जलाकर उनकी पूजा करें। मंदिर या घर के पूजन स्थल में विष्णु स्तोत्र का जाप करें। आप नारायण मंत्र का 108 बार जाप कर सकते हैं। कल्कि जयंती पर बीज मंत्र से पूजा करें। इस जयंती पर भागवद् गीता का पाठ भी आयोजित किया जाता है। इस दिन रामायण का पाठ करने से भी शुभ फल प्राप्त होता है। इस शुभ दिन पर श्रद्धालु गरीब और जरूरतमंद लोगों को कपड़े और भोजन का दान करते हैं।
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कहां हैं कल्कि भगवान के मंदिर
भले ही अब तक भगवान विष्णु ने कल्कि अवतार ना लिया हो, लेकिन लोग उनके इस अवतार की पूजा करते हैं। देश में कल्कि भगवान के कई मंदिर हैं। मान्यता है कि भगवान कल्कि के इस अवतार को भगवान निष्कलंक के नाम से जाना जाएगा। पौराणिक कथाओं के अनुसार, जब कलयुग में धरती पर पाप बढ़ जाएगा, तब भगवान विष्णु पाप का नाश करने के लिए कल्कि अवतार में आएंगे। यहीं से सतयुग का आरंभ होगा। भगवान कल्कि भोलेनाथ के परम भक्त कहलाएंगे और भगवान परशुराम उनके गुरु होंगे। आइए अब जानते हैं कि जन्म लेने से पहले ही भगवान कल्कि के मंदिर कहां-कहां बन चुके हैं।
- उत्तर प्रदेश के संभल में भगवान कल्कि का एक मंदिर है। यहां पर हर साल अक्टूबर से नवंबर तक कल्कि महोत्सव मनाया जाता है।
- इसके अलावा जयपुर में हवा महल के नज़दीक भी एक प्राचीन कल्कि मंदिर है।
- मथुरा के गोवर्धन में स्थित श्री गिरिराज मंदिर के परिसर में भी कल्कि भगवान का एक मंदिर है।
- वाराणसी के दुर्गा मंदिर के परिसर में भी भगवान कल्कि का एक मंदिर स्थित है।
- इन मंदिरों के अलावा वैष्णो देवी, मानेसर, दिल्ली, कोलकाता, गया धाम, बृज घाट गढमुक्तेश्वर में कल्कि भगवान की मूर्ति स्थापित है। भारत के अलावा नेपाल में भी कल्कि भगवान की मूर्ति की पूजा की जाती है।
कल्कि जयंती के दिन क्या करें
कल्कि जयंती पर शांत रहें और कल्कि भगवान की भक्ति में लीन रहें। इस दिन आप व्रत कर सकते हैं और मंत्र जाप एवं दान-दक्षिणा आदि कर पुण्य की प्राप्ति करें।
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