Gupt Navratri 2021: गुप्त नवरात्रि में करें माता के चमत्कारी मंदिर के दर्शन

12 फरवरी 2021 से माघ नवरात्रि प्रारंभ हो चुकी है जिसका समापन 21 फरवरी 2021 को हो जाएगा। आज यानी कि 16 फरवरी 2021 को गुप्त नवरात्रि (Gupt Navratri) या जिसे माघ नवरात्रि (Maagh Navratri 2021) भी कहते हैं उसका पांचवा दिन है। इस दौरान मां दुर्गा के विभिन्न रूपों की पूजा और उपासना की जाती है। गुप्त नवरात्रि के दौरान मां कालीके, त्रिपुर सुंदरी, तारा देवी, माता चित्र मस्ता, भुवनेश्वरी, त्रिपुर भैरवी, माता बगलामुखी, मां धूमावती, मातंगी, कमला देवी की पूजा का विधान बताया गया है। 

तो आइए इस पावन मौके पर घर बैठे माता के एक ऐसे मंदिर के दर्शन करते हैं जिसे बेहद ही चमत्कारी और अनोखा माना जाता है। गुप्त नवरात्रि (Gupt Navratri) विशेष अपने इस आर्टिकल में आज हम बात करने जा रहे हैं मां कौमारी देवी गुफा मंदिर (Maa Kaumari Devi Gufa Mandir) के बारे में जो देवभूमि उत्तराखंड में स्थित है। 

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यह मंदिर बेहद ही चमत्कारी माना जाता है और यह एक गुफा के अंदर बसा एक बेहद ही खूबसूरत मंदिर है। इस मंदिर को कत्युर काल युग से संबंधित माना गया है। जानकार बताते हैं कि, इस मंदिर से कुमार कार्तिकेय से लेकर पांडवों तक का संबंध है। तो आइए जानते हैं इस मंदिर के बारे में कुछ और बेहद ही रोचक और जानने वाली जानकारियां। 

माँ कौमारी गुफा मंदिर और शिव पुत्र कार्तिकेय का संबंध 

मां दुर्गा के कौमारी स्वरूप को समर्पित है यह मंदिर। माता के इस बेहद ही चमत्कारी मंदिर से भगवान शिव के पुत्र कार्तिकेय और पांडवों का संबंध माना जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार माना जाता है कि, जब पार्वती माता ने भगवान शिव से गणेश जी और कार्तिकेय जी का विवाह की ज़िद ठान ली तब महादेव जी ने अपने दोनों ही पुत्रों से कहा कि, ‘जो कोई भी पूरी पृथ्वी का चक्कर लगाकर अपने माता-पिता के सामने पहले आ जाएगा उसका विवाह पहले किया जाएगा।’ 

ऐसे में कुमार कार्तिकेय अपने वाहन मयूर पर सवार होकर पृथ्वी के चक्कर के लिए निकल पड़े। हालांकि गणपति भगवान वहीं खड़े रहे। उन्होंने भगवान शिव और माता पार्वती का चक्कर लगाया और उनके सामने प्रणाम कर वहीं खड़े हो गए। ऐसे में जब उनसे पूछा गया कि, आप पृथ्वी का चक्कर लगाने क्यों नहीं गए? तो उन्होंने जवाब दिया कि, ‘मेरे लिए मेरी पूरी पृथ्वी और दुनिया मेरे माता-पिता ही हैं। ऐसे में भगवान शिव और माता पार्वती ने भगवान गणेश को आशीर्वाद दे दिया। 

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इधर कुमार कार्तिकेय पृथ्वी का चक्कर लगाकर वापस लौटे तो उन्हें हारा हुआ महसूस हुआ। जिससे कार्तिकेय काफी नाराज हो गए और कैलाश पर्वत छोड़कर चले गए। कैलाश पर्वत छोड़कर कार्तिकेय दक्षिण की तरफ चलते हुए उन्होंने बहुत सारी गुफाओं में प्रवेश किया। उस दौरान कुमार कार्तिकेय की शक्तियां इन शीला खंडों में निहित होती चली गई। 

बताया जाता है कि, इसी स्वरूप हो मां कौमारी कहा जाता है। इस गुफा में माँ के शील विग्रह की पूजा की जाती है। 

माँ कौमारी गुफा और पांडवों का संबंध 

कहा जाता है कि, जब पांडव बद्रीनाथ की यात्रा पर थे तो उस दौरान यहां की सकारात्मक शक्ति उन्हें अपनी और खींच लाई थी। इसी गुफा में पांडवों ने तप भी किया था और कई दिनों तक ध्यान भी किया था। 

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मौजूदा समय के अनुसार बात करें तो मां कौमारी गुफा मंदिर में आज के समय में संतों और महात्माओं का हुजूम देखने को मिलता है। यहां पर भागवत कथाओं का पाठ होता है और शिवरात्रि के दौरान विशेष रूप से यहां भव्य मेलों का आयोजन किया जाता है। जो भी भक्त यहां मां से अपनी मनोकामना पूर्ति के लिए आते हैं वो कौमारी देवी को चुन्नी, बिंदी, सिंदूर, चूड़ी और श्रृंगार की चीजें चढ़ाते हैं। 

कैसे पहुंचे इस मंदिर में?

उत्तराखंड नगरी अल्मोड़ा से 27 किलोमीटर से पहले ढकोली बाजार से धर्मशाला जाने के बाद आधा किलोमीटर चलने के बाद आपको मां कौमारी की गुफा के दर्शन मिल जाएंगे।

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