12000 फीट पर स्थित भगवान विष्णु का वो अनोखा मंदिर जो केवल रक्षाबंधन के दिन खुलता है

देवभूमि के चमोली जिले के जोशीमठ विकासखंड की उर्गम घाटी के सुदूर बुग्याल क्षेत्र में स्थित वंशीनारायण मंदिर यूँ तो उत्तराखंड आने वाले पर्यटकों की हमेशा से ही पहली पसंद बना रहता है लेकिन शायद ही आप जानते होंगे कि इस मंदिर के कपाट साल में केवल रक्षाबंधन के दिन ही खोले जाते हैं। जिस दौरान यहाँ आसपास के गाँवों की महिलाएं भगवान नारायण को भाई-बहन के इस पावन पर्व पर रक्षासूत्र यानी राखी बांधने आती हैं और भगवान नारायण से अपनी व अपने परिवार की कुशलता का वचन मांगती हैं। मान्यता है कि यह परंपरा वर्षों से ही चली आ रही है।

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12000 फीट की ऊंचाई पर स्थित ये दुर्लभ मंदिर 

जानकारी के लिए बता दें कि उत्तराखंड का वंशीनारायण मंदिर समुद्र तल से 12000 फीट की ऊंचाई पर स्थित है। उर्गम घाटी के बुग्याल के मध्य में स्थित इस मंदिर का निर्णाम छठवीं सदी में राजा यशोधवल के समय में किया गया था। तभी से लेकर अब तक इस अनोखे मंदिर में भगवान विष्णु भगवान की पूजा किये जाने का चलन है। इस मंदिर को लेकर ये भी मान्यता है कि इस मंदिर का निर्माण पांडव काल में किया गया था। 

साल में केवल एक दिन होती है भगवान विष्णु की पूजा

सबसे हैरान करने वाली बात वंशीनारायण मंदिर में ये हैं कि यहाँ रक्षाबंधन के दिन केवल भगवान विष्णु की पूजा होती है, इसके अलावा साल के बाकी 364 दिन यहां देवर्षि नारद भगवान की पूजा-अर्चना किये जाने का विधान है। वर्षों से चली आ रही इस परंपरा के अनुसार सिर्फ इसी पर्व पर मनुष्यों को दर्शन और पूजा-अर्चना करने की अनुमति होती है। बाकी पूरे वर्ष मंदिर के कपाट बंद रहते हैं और मंदिर के अंदर सभी का प्रवेश वर्जित होता है। 

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परन्तु रक्षाबंधन का पर्व यहाँ बड़ी धूमधाम के साथ मनाया जाता है। इस दिन आस पास की घाटी जैसे किमाणा, डुमक, कलगोठ, जखोला, पल्ला और उर्गम से महिलाएं भगवान विष्णु को ख़ास तौर से राखी बांधने यहाँ आती हैं, जबकि यहाँ के ग्रामीण उन्हें राखी भेंट करते हैं। इसके बाद इस दिन सामूहिक भोज या लंगर का आयोजन किया जाता है। मान्यता अनुसार इस दिन कलगोठ गांव के जाख देवता के पुजारी ही इस मंदिर में यहां पूजा करते हैं।

मंदिर की है पौराणिक महत्वता 

वंशीनारायण मंदिर द्वारा मनुष्यों को सिर्फ एक दिन ही पूजा का अधिकार दिया गया है, जिसके पीछे भी यहाँ के लोग बेहद रोचक कहानी का वर्णन करते हैं। पुजारी रघुवीर सिंह अनुसार एक बार राजा बलि के आग्रह करने पर भगवान नारायण को पाताल लोक में द्वारपाल की ज़िम्मेदारी संभालनी पड़ी थी, जिसके बाद मां लक्ष्मी उन्हें खोजते हुए देवर्षि नारद के पास यहीं वंशीनारायण मंदिर पहुँचीं जहाँ उन्होंने भगवान नारायण का पता पूछा। इसके बाद देवर्षि नारद ने माता लक्ष्मी को भगवान के पाताल लोक में द्वारपाल बनने तक की पूरी घटना बतलाई और भगवान नारायण को पाताक लोक से मुक्त कराने की एक योजना भी बताई।

देवर्षि ने मां लक्ष्मी को कहा कि आप राजा बलि के हाथों में रक्षासूत्र बांधकर उनसे वचन के तौर पर भगवान नारायण को वापस मांग लें। देवर्षि की बात सुनकर मां लक्ष्मी योजना के तहत ही कार्य करने लगीं लेकिन पाताल लोक का मार्ग न ज्ञात होने के चलते उन्होंने नारद से अपने साथ चलने की विनती की। जिसके बाद नारद माता लक्ष्मी के साथ पाताल लोक की ओर बढ़ गए और भगवान को मुक्त कराकर वापस स्वर्ग लोक ले आए। माना जाता है कि यही वो दिन था, जब देवर्षि वंशीनारायण मंदिर में पूजा नहीं कर पाए, जिस कारण देवर्षि की गैरमजदगी में इस दिन उर्गम घाटी के कलकोठ गांव के जाख पुजारी ने भगवान वंशी नारायण की पूजा की। तभी से यह परंपरा चली आ रही है।

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मक्खन से लगाया जाता है भगवान को भोग 

इस मंदिर से जुड़ी धार्मिक मान्यताओं को लेकर पुजारी दरबान सिंह बताते हैं कि वंशीनारायण मंदिर के कपाट खुलने के अवसर पर यानी रक्षाबंधन के पर्व पर कलकोठ गांव के प्रत्येक घर से भगवान नारायण के भोग के लिए शुद्ध मक्खन आता है, जिसके बाद भगवान को इसी मक्खन से भोग लगाया जाता है। 

भगवान को बांधा जाता है रक्षासूत्र

भगवान वंशीनारायण के इस मंदिर में यहाँ आपको भिन्न-भिन्न प्रकार के कई दुर्लभ रंग-बिरंगे फूल दिखाई देंगे, इन्हे भी सिर्फ श्रावण पूर्णिमा यानी रक्षाबंधन के पर्व पर ही तोड़े जाने का विधान है। साल में एक बार मंदिर के कपाट खुलने पर इन्ही फूलों से भगवान नारायण का श्रृंगार होता है। जिसके बाद भक्त व स्थानीय ग्रामीण भगवान वंशीनारायण के दर्शन कर उन्हें रक्षाबंधन पर रक्षासूत्र बांधते हुए सुख-समृद्धि का वचन मांगते हैं। 

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यहाँ नारायण के साथ भगवान शिव के भी होते हैं दर्शन

समुद्र तट से करीब 12000 फीट ऊपर स्थित वंशीनारायण के इस दुर्लभ मंदिर तक पहुँचना भी कोई आसान काम नहीं है। यहाँ पहुँचने के लिए श्रद्धालुओं को बेहद दुर्गम रास्तों से होकर गुजरना पड़ता है। यहाँ पहुँचने के लिए बदरीनाथ हाइवे पर हेलंग से उर्गम घाटी तक आठ किमी तक का सफर पैदल नहीं तय किया जा सकता, इसके लिए वाहन का इस्तेमाल ही करना पड़ता है, हालांकि उसके बाद आगे 12 किमी का रास्ता पैदल नापना पड़ता है। दूर-दूर तक फैले हरी घास के मैदान को पार करने के बाद ही सामने नजर आता है प्रसिद्ध पहाड़ी शैली कत्यूरी पर स्थित वंशीनारायण का ये अनोखा मंदिर। जानकारी के लिए बता दें कि दस फीट ऊंचे इस प्राचीन मंदिर में श्रद्धालु भगवान विष्णु की चतुर्भुज पाषाण मूर्ति के दर्शन तो कर ही पाते हैं, साथ ही इस मूर्ति में भगवान नारायण व भगवान शिव, दोनों के भी उन्हें दर्शन करने को मिलते है।  

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