क्यों किया जाता है दुर्गा विसर्जन? जानें महत्व, तिथि और शुभ मुहूर्त की जानकारी सिर्फ यहाँ!

शारदीय नवरात्रि के दौरान प्रारंभ होने वाला दुर्गा पूजा उत्सव मां दुर्गा के विसर्जन के साथ समाप्त हो जाता है। जिस दिन विजयदशमी होती है उस दिन दुर्गा विसर्जन आमतौर पर सुबह या फिर दोपहर के समय शुरू होती है इसीलिए विजयदशमी के दिन सुबह या फिर दोपहर में मां दुर्गा की मूर्ति को विसर्जित करने के लिए सबसे उत्तम समय माना जाता है। आज अपने इस खास ब्लॉग में हम इसी विषय पर बात करेंगे। साथ ही जानेंगे इस वर्ष दुर्गा पूजा विसर्जन किस दिन है, इसका मुहूर्त क्या होने वाला है, इसका महत्व क्या होता है, और साथ ही जानेंगे दुर्गा विसर्जन क्यों किया जाता है।

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मां दुर्गा की प्रतिमा को विसर्जित करने के लिए सुबह का समय सबसे उत्तम माना जाता है। जब दोपहर में श्रवण नक्षत्र और दशमी तिथि एक साथ आती है तब मां दुर्गा की प्रतिमा को पवित्र नदी, जलाशय, या कुंड में विसर्जित किया जाता है। 

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दुर्गा विसर्जन का यह त्योहार भारत में एक महत्वपूर्ण त्योहार माना जाता है। दुर्गा पूजा 9 दिनों तक चलती है। हालांकि कई लोग इसे 5 दिन या फिर 7 दिनों तक भी मनाते हैं। नवरात्रि की षष्ठी तिथि से दुर्गा पूजा प्रारंभ हो जाती है और 10वीं पर मां दुर्गा विसर्जन के साथ इसका समापन हो जाता है। मुख्य रूप से देखा जाए तो दुर्गा पूजा का यह त्यौहार असम, उड़ीसा, बंगाल, झारखंड, मणिपुर, और त्रिपुरा में बेहद ही भव्य रूप से मनाया जाता है। 

बंगाल के अलावा दुर्गा पूजा दिल्ली, उत्तर प्रदेश, गुजरात, पंजाब, महाराष्ट्र, में भी मनाई जाती है। शारदीय नवरात्र की षष्ठी तिथि से मां दुर्गा की पूजा प्रारंभ हो जाती है और दशमी को इसका समापन होता है। इस दौरान मंदिरों को सजाया जाता है, बड़े-बड़े पंडाल लगते हैं जिनमें मां दुर्गा की प्रतिमा रखी जाती हैं, भक्त मां दुर्गा के नौ रूपों की पूजा करते हैं, उपवास रखते हैं। इसके अलावा इस दौरान कई जगहों पर मेलों का भी आयोजन किया जाता है।

वर्ष 2023 में कब है दुर्गा विसर्जन? 

बात करें 2023 में दुर्गा विसर्जन की तो यह 24 अक्टूबर 2023 को पड़ रहा है। यह दिन मंगलवार का है। इसके अलावा इससे संबंधित मुहूर्त हम आपको नीचे प्रदान कर रहे हैं: 

दुर्गा विसर्जन समय : 06:27:12 से 08:42:24 तक

अवधि : 2 घंटे 15 मिनट

श्रवण नक्षत्र प्रारम्भ 22 अक्टूबर 2023 को 06:44 अपराह्न

श्रवण नक्षत्र समाप्त 23 अक्टूबर 2023 को 05:14 अपराह्न

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दुर्गा विसर्जन महत्व 

सनातन धर्म में विसर्जन का विशेष महत्व बताया गया है। विसर्जन का अर्थ होता है पूर्णता, जीवन की पूर्णता, आध्यात्मिक ज्ञान, या फिर प्रकृति। जब कोई भी कार्य अपनी पूर्णता प्राप्त कर लेता है तो सनातन धर्म के अनुसार उसका विसर्जन कर दिया जाना चाहिए या यूं कहिए उसका विसर्जन करना अनिवार्य होता है। शारदीय नवरात्रि के प्रारंभ होते ही भक्त मां देवी की खूबसूरत मूर्तियां बनाते हैं, उन्हें खूबसूरत आभूषण और वस्त्रों से सजाते हैं, उस मूर्ति की नौ दिनों तक पूरी श्रद्धा के अनुसार पूजा की जाती है और फिर दुर्गा विसर्जन के दिन उस मूर्ति को स-सम्मान विसर्जित कर दिया जाता है।

हालांकि आज के समय में प्रदूषण की स्थिति देखते हुये अगर आप अपने घरों में ईको-फ्रेंडली मूर्ति लेकर आयें और उसे अपने घर में ही विसर्जित कर लें तो इसे उत्तम माना जाता है।

दुर्गा पूजा का इतिहास 

माना जाता है कि 17वीं और 18वीं शताब्दी में अमीर लोग और बड़े लोग दुर्गा पूजा का आयोजन किया करते थे। जहां सभी लोग एक छत के नीचे देवी दुर्गा की पूजा करने के लिए इकट्ठा होते थे। उदाहरण के तौर पर बात करें तो कोलकाता में अचला पूजा बेहद ही प्रसिद्ध होती है। इसकी शुरुआत जमींदार लक्ष्मीकांत मजूमदार ने 1610 में कोलकाता के शोभा बाजार छोटी राजबाड़ी के 33 राज्य नव कृष्णा रोड से की थी जो मुख्य रूप से 1757 में शुरू हुई थी। इसमें भी मां दुर्गा की प्रतिमाएं मुख्य रूप से शामिल होती थी। बंगाल के बाहर बड़े-बड़े पंडाल स्थापित किए जाते थे इसमें देवियों को बिठाया जाता था और उनके भव्य रूप से पूजा की जाती थी।

दुर्गा पूजा से जुड़ी पौराणिक कथा 

मान्यता के अनुसार कहा जाता है कि, देवी दुर्गा ने इस दिन महिषासुर नमक अति बलशाली राक्षस का वध किया था। दरअसल महिषासुर भगवान ब्रह्मा का वरदान पा चुका था जिससे वह बेहद ही शक्तिशाली हो गया था। भगवान ब्रह्मा ने महिषासुर को वरदान दिया था कि कोई देवता या दानव उसे मार नहीं सकता है। इस वरदान के बाद महिषासुर अभिमानी हो गया और वह देवी देवताओं और पृथ्वी पर रहने वाले सभी जीवों आदि को परेशान करने लगा। 

अपने बल के घमंड में आकर उसने स्वर्ग में हमला किया और देवराज इंद्र को हरा दिया और स्वर्ग पर शासन प्रारंभ कर दिया। तब सभी देव परेशान होकर मदद के लिए ब्रह्मा, विष्णु, और महेश के पहुंचे पहुंचे। सभी देवताओं ने उसे हराने के लिए युद्ध तो किया लेकिन वह व्यर्थ गया। जब कोई समाधान नहीं मिल पाया तो त्रिमूर्ति ने देवी दुर्गा को महिषासुर के विनाश के लिए बनाया। मां की इस शक्ति को पार्वती के नाम से भी जाना जाता है। 

देवी दुर्गा ने महिषासुर से पूरे नौ दिनों तक भीषण युद्ध किया और दसवें दिन उसका वध किया। यही वह दिन है जिसे आज के समय में दुर्गा पूजा के रूप में मनाया जाता है और दसवें दिन को विजयदशमी के रूप में जाना जाता है। 

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दुर्गा पूजा बुराइयों पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है। ऐसे में मान्यता है कि  देवी दुर्गा अपने भक्तों को इस दिन आशीर्वाद देती हैं कि उनके जीवन से सभी तरह की समस्याएं और नकारात्मकता दूर रहे। कहना गलत नहीं होगा कि दुर्गा पूजा का त्यौहार हमारे जीवन को सकारात्मक ऊर्जा और खुशियों से भरने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

विसर्जन के अनुष्ठान 

इस दिन लोग कन्या पूजन करते हैं। कन्या पूजन के बाद हाथों में फूल और कुछ चावल के दाने लेकर संकल्प किया जाता है। पात्र में रखे नारियल को प्रसाद के रूप में लेकर परिवार को अर्पित किया जाता है। पात्र के पवित्र जल को पूरे घर में छिड़का जाता है और फिर पूरे परिवार द्वारा इसे प्रसाद के रूप में भी ग्रहण किया जाता है। सिक्कों को एक कटोरी में रख दिया जाता है। आप चाहें तो इन सिक्कों को अपने पैसे रखने वाले जगह पर भी रख सकते हैं। परिवार के लोगों को सुपारी भी प्रसाद के रूप में दे दें। अब माता की चौकी का आयोजन करें और सिंहासन को अपने मंदिर में रखें। भगवान गणेश की मूर्ति को उनके स्थान पर दोबारा स्थापित कर दें। सभी लोगों को फल और मिठाइयों का प्रसाद बांटे। चावल को चौकी और कलश के ढक्कन पर रखें और उसे पक्षियों को अर्पित कर सकते हैं। मां दुर्गा की मूर्ति के सामने झुक कर उनका आशीर्वाद ले लें। कलश का आशीर्वाद लें और फिर किसी नदी, सरोवर या समुद्र में विसर्जन का अनुष्ठान करें। विसर्जन के बाद किसी ब्राह्मण को नारियल, दक्षिणा और चौकी के कपड़े दे दें।

विसर्जन के दौरान इन मंत्रों का जप दिलाएगा सिद्ध फल 

गच्छ गच्छ सुरश्रेष्ठे स्वस्थानं परमेश्वरि।

पूजाराधनकाले च पुनरागमनाय च।।

माता की विदाई से पहले इस दिन हवन का भी विधान है, ऐसे में इस दौरान माँ के सभी नौ स्वरूपों के सिद्ध मंत्रों का जाप भी अवश्य करें। इसे बेहद ही शुभ और फलदायी माना गया है। 

मां शैलपुत्री मंत्र

ॐ ह्रीं शिवायै नम: स्वाहा।।

मां ब्रह्मचारिणी मंत्र

ॐ ह्रीं श्री अम्बिकायै नम: स्वाहा

मां चन्द्रघंटा मंत्र

ॐ ऐं श्रीं शक्तयै नम: स्वाहा।।

मां कूष्मांडा मंत्र

ॐ ऐं ह्री देव्यै नम: स्वाहा।। 

मां स्कंदमाता मंत्र 

ॐ ह्रीं क्लीं स्वमिन्यै नम: स्वाहा।। 

मां कात्यायनी मंत्र 

ॐ क्लीं श्री त्रिनेत्रायै नम: स्वाहा।।

मां कालरात्रि मंत्र 

ॐ क्लीं ऐं श्री कालिकायै नम: स्वाहा।। 

मां महागौरी मंत्र 

ॐ श्री क्लीं ह्रीं वरदायै नम: स्वाहा।।

मां सिद्धिदात्री मंत्र 

ॐ ह्रीं क्लीं ऐं सिद्धये नम: स्वाहा।।

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विसर्जन के दौरान ध्यान रखने योग्य बातें 

  • किसी पवित्र नदी या सरोवर में मां का विसर्जन करना बेहद ही शुभ माना गया है। 
  • माता की मूर्ति को पूरे विश्वास और सम्मान के साथ विसर्जित करें। 
  • इसके साथ ही पूजा की सभी आवश्यक सामानों को भी पवित्र जल में विसर्जित कर दें। 
  • विसर्जन के दौरान मां दुर्गा की मूर्ति का इस तरह से ख्याल रखें जैसे आपने 9 दिनों तक पूजा करते समय और मां को अपने घर लाते समय उनकी देखभाल की थी। 
  • विसर्जन से पहले मां दुर्गा की मूर्ति को कोई नुकसान ना पहुंचाएं। 
  • दुर्गा विसर्जन से पहले मां की आरती गायें। 
  • विसर्जन के बाद ब्राह्मण को नारियल, दक्षिणा और चौकी के कपड़े दान कर दें। ऐसा करना बेहद ही शुभ माना गया है।

क्यों किया जाता है मां दुर्गा का विसर्जन? माना जाता है की मां दुर्गा अपने बच्चों कार्तिक और गणेश के साथ माँ लक्ष्मी, माँ सरस्वती, और मां दुर्गा पृथ्वी पर कुछ दिन व्यतीत करने के लिए आती हैं और फिर उन्हें वापस अपने ससुराल अर्थात भगवान शिव के पास जाना होता है। इसी समय को विसर्जन के रूप में मनाया जाता है। विसर्जन से पहले मां दुर्गा का पूरा शृंगार किया जाता है। महिलाएं एक दूसरे की मांग और चूड़ा पर सिंदूर लगाती हैं जिसे समृद्धि का प्रतीक कहा जाता है। बंगाल में इस पर्व का विशेष महत्व होता है जिसे वहां पर सिंदूर खेला के नाम से जाना जाता है। सिंदूर पति की लंबी उम्र का प्रतीक है। इस अनुष्ठान से खुशियां और सुख समृद्धि आती है। मां दुर्गा के विसर्जन के साथ ही उनके भक्तों को इस बात का भी विश्वास रहता है कि अगले वर्ष फिर मां अपने भक्तों से मिलने उनके घर और धरती पर अवश्य आएंगी और इसी खूबसूरत याद के साथ मां को वापस उनके घर कैलाश पर्वत पर जाने के लिए विसर्जित कर दिया जाता है।

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सिंदूर खेला 

दुर्गा पूजा के दौरान सिंदूर खेला एक बेहद ही खूबसूरत अनुष्ठान है। यह मुख्य रूप से पश्चिम बंगाल में मनाया जाता है। विजयदशमी पर दुर्गा विसर्जन से पहले सिंदूर खेला की रस्म निभाई जाती है जहां विवाहित महिलाएं एक दूसरे को सिंदूर लगाती हैं और एक दूसरे के सलामती और उनके सुहाग की लंबी उम्र की कामना करती हैं।

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