बालारिष्ट दोष: एस्ट्रोसेज अपने पाठकों को ज्योतिष के क्षेत्र में होने वाले बदलावों और कुंडली में बनने वाले शुभ-अशुभ दोषों से अवगत करवाता रहा है। इस ब्लॉग के माध्यम से हम आपको बालारिष्ट दोष के बारे में विस्तारपूर्वक जानकारी प्रदान करेंगे। बता दें कि जब 24 मार्च 2024 की दोपहर 02 बजकर 20 मिनट पर चंद्रमा और केतु एक साथ उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र में कन्या राशि में स्थित होंगे और ऐसे में, इन दोनों ग्रहों की युति से बालारिष्ट दोष का निर्माण होगा। आइए अब आगे बढ़ते हैं और जानते हैं कि मार्च में बनने वाले इस दोष के बारे में और यह आपके बच्चे को कैसे प्रभावित करेगा और आप कैसे संतान की इस अशुभ दोष से रक्षा कर सकते हैं।
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बालारिष्ट दोष क्या है?
जब एक परिवार में नवजात शिशु का जन्म होता है वह ख़ुशियां लेकर आता है। लेकिन, संतान का जन्म कभी-कभी ग्रहों की ऐसी स्थिति के तहत होता है जो शिशु के बचपन या शिशु के जीवन के लिए खतरनाक होता है और इसे ही बालारिष्ट या बाल ग्रह दोष कहा जाता है।
बालारिष्ट दोष का अर्थ “बचपन या जन्म के साथ पैदा होने वाली समस्याएं” है। कुंडली में बन रहा बालारिष्ट दोष शिशु की लंबी आयु और उसके स्वास्थ्य के लिए ख़तरा बन जाता है। जिस बच्चे की कुंडली में बालारिष्ट दोष होता है, तो वह जीवन में बार-बार बिमारियों से पीड़ित होता है और इन रोगों के इलाज में मेडिकल भी असफल रहता हैं। हालांकि, अगर डॉक्टर की सहायता लेने के साथ-साथ ज्योतिषीय उपाय भी किये जाते हैं, तो संतान समेत माता-पिता को थोड़ी राहत प्राप्त होती है।
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बालारिष्ट दोष का महत्व
शिशु की कुंडली में बालारिष्ट दोष होता है, तो यह उसके जीवन के शुरुआती 12 वर्षों को प्रभावित करता है। हालांकि, बालारिष्ट दोष के तीन चरण होते हैं:
पहला चरण: बच्चे के जन्म से लेकर 4 वर्ष तक पहला चरण रहता है। अगर कोई शिशु इस दौरान बालारिष्ट दोष से परेशान रहता है, तो यह उसके माता के पूर्व जन्म के बुरे कर्मों की वजह से होता है।
दूसरा चरण: बालारिष्ट दोष के दूसरे चरण की शुरुआत पांचवें वर्ष से होती है जो 9 वर्ष की आयु तक चलता है। इस अवधि में संतान को जो शारीरिक समस्याएं होती हैं, वह पूर्व जन्म में पिता के बुरे कर्मों का परिणाम होती है।
तीसरा चरण: बालारिष्ट दोष का तीसरा और अंतिम चरण 9 वर्ष की आयु से लेकर 12 वर्ष की आयु तक चलता है। इस दौरान बच्चा जिन स्वास्थ्य समस्याओं से पीड़ित होता है, वह शिशु द्वारा पूर्वजन्म में किये गए पाप के कारण होता है।
बालारिष्ट दोष एक अशुभ दोष है जो बच्चे को स्वास्थ्य समस्याओं की वजह से अपंग बना सकता है या फिर ज्यादा गंभीर होने पर बचपन में शिशु की मृत्यु भी हो सकती है। लेकिन, कुछ विशेष स्थितियों में बालारिष्ट दोष बच्चे को ज्यादा नुकसान नहीं पहुंचा पाता है। अब हम उनके बारे में बात करेंगे।
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ग्रहों की स्थिति से होगा बालारिष्ट दोष का निर्माण
कुंडली में अनेक ग्रहों की स्थिति बालारिष्ट दोष को जन्म देती है और इसे नीचे दी गई ग्रहों की स्थिति के आधार पर पहचाना जा सकता है।
- अगर कुंडली में लग्न भाव के स्वामी की स्थिति कमज़ोर हो या अशुभ ग्रहों की इन पर दृष्टि हो।
- कुंडली में 5, 8, 9 और 12वें भाव में अशुभ ग्रह बैठे हो और किसी शुभ ग्रह की इन पर दृष्टि न हो।
- जब चंद्रमा छठे या आठवें भाव में किसी शुभ ग्रह की दृष्टि के बिना उपस्थित हो।
- आठवें भाव में बैठे चंद्रमा पर शनि की दृष्टि हो या वह राहु-केतु के साथ युति में हो।
- केंद्र भाव में तीन अशुभ ग्रह मौजूद हों।
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ग्रहों की विशेष स्थिति से कम होता है बालारिष्ट दोष का प्रभाव
कभी-कभी कुंडली में बालारिष्ट दोष होने पर वह शिशु को या उसके जीवन को हानि नहीं पहुंचा पाता है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि कुंडली में बनने वाली अन्य ग्रहों की शुभ स्थिति बालारिष्ट दोष के प्रभाव को नकार देती है।
- लग्न भाव में उच्च के बृहस्पति या अपनी राशि में स्थित बृहस्पति या मित्र राशि में बैठे गुरु इस दोष को समाप्त कर देते हैं।
- अगर गुरु केंद्र भाव में से किसी एक भाव (चौथे, सातवें, दसवें भाव) में बैठे हों, परन्तु अच्छी डिग्री पर स्थित होते हैं और शुभ एवं मित्र ग्रहों की इन पर दृष्टि हो, तो यह दोष हानि नहीं पहुंचा पाता है।
- शुक्र या बुध जैसे शुभ ग्रह (पापी ग्रहों की इन पर दृष्टि न हो और न ही उनके साथ बैठे हो) कुंडली में मज़बूत होने पर बालारिष्ट दोष के प्रभाव को कम कर देते हैं।
हालांकि, बालारिष्ट दोष को कुंडली से हटाने का कोई विशेष उपाय नहीं है, लेकिन फिर भी कुछ उपायों को करने से इस दोष के प्रभाव कम किये जा सकते हैं।
बालारिष्ट दोष के निवारण के लिए करें ये उपाय
- हर रोज़ भगवान गणेश की पूजा-अर्चना करने से बालारिष्ट दोष के प्रभावों में कमी आती है। अगर यह दोष केतु की वजह से बन रहा है, तो यह उपाय फलदायी साबित होता है।
- बालारिष्ट दोष के अशुभ प्रभावों से मुक्ति के लिए देवी दुर्गा की पूजा करें।
- ग्रह शांति निवारण पूजा के माध्यम से भी आप बालारिष्ट दोष को शांत कर सकते हैं।
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बालारिष्ट दोष: इन राशियों को रहना होगा सावधान
कन्या राशि
चंद्रमा और केतु की युति कन्या राशि में और उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र में होगी। यह युति आपके पहले भाव में बनेगी जिससे बालारिष्ट दोष का निर्माण होगा। इस अवधि में जिन बच्चों का जन्म होगा या जिन बच्चों की कुंडली में पहले से ही बालारिष्ट दोष है, उन्हें इस समय शारीरिक और मानसिक समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है। ऐसे बच्चों के माता-पिता को अपनी संतान के प्रति बेहद सावधान रहना होगा।
मीन राशि
मीन राशि के जातकों की कुंडली के सातवें भाव में केतु और चंद्रमा युति करेंगे। इन दोनों ग्रहों की दृष्टि आपके पहले भाव में होगी यानी कि इस राशि के बच्चों को स्वास्थ्य समस्याएं परेशान करेंगी जिससे आपका दैनिक जीवन प्रभावित हो सकता है। ऐसे में, यह अनेक रोगों से जूझते हुए दिखाई दे सकते हैं और इन बीमारियों की गंभीरता कुंडली में चंद्र की स्थिति पर निर्भर करती है। हालांकि, मीन राशि के बच्चों के माता-पिता को इस अवधि में सावधान रहने की सलाह दी जाती है।
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