आषाढ़ अमावस्या के दिन करें स्नान-दान, पितरों के आशीर्वाद से बढ़ेगा धन-वैभव, होगी उन्नति

सनातन धर्म में अमावस्या तिथि को बहुत अधिक महत्वपूर्ण माना जाता है। इस दिन स्नान दान और पूजा पाठ करने का विशेष महत्व होता है। इस दिन विधि-विधान से स्नान व पूजा पाठ करने से देवताओं और पितरों का आशीर्वाद मिलता है और शुभ फलों की प्राप्ति होती है। इसी क्रम में हर साल आषाढ़ माह के कृष्ण पक्ष की अमावस्या के दिन आषाढ़ अमावस्या मनाई जाती है। इस अमावस्या को अषाढ़ी अमावस्या या हलहारिणी अमावस्या के नाम से भी जाना जाता है।

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हिंदू धर्म में आषाढ़ मास की अमावस्या की तिथि का बहुत अधिक महत्व है। इस दिन किसी पवित्र नदी, सरोवर में स्नान और पितरों के नाम का दान पुण्य करने का विशेष महत्व है। मान्यता है कि ऐसा करने से आपके पितृ प्रसन्न होते हैं और व्यक्ति को पितृ दोष से मुक्ति मिलती है। वहीं पितरों के आशीर्वाद से जातक के जीवन में मान-सम्मान में वृद्धि होती है। तो चलिए आगे बढ़ते हैं और जानते है कि इस साल आषाढ़ अमावस्या कब है और इस दिन किए जाने वाले आसान उपायों के बारे में।

आषाढ़ अमावस्या 2024: तिथि व समय

अमावस्या आरम्भ: 05 जुलाई, 2024 की सुबह 05 बजे से 

अमावस्या समाप्त: 06 जुलाई, 2024 की सुबह 04 बजकर 29 मिनट तक 

उदया ति​थि के आधार पर आषाढ़ अमावस्या 05 जुलाई 2024 को है। उस दिन ही स्नान दान और पूजा पाठ किया जाएगा।

आषाढ़ अमावस्या पर दो शुभ योग 

चातुर्मास की पहली अमावस्या या यूं कहिए आषाढ़ माह की अमावस्या का दिन अपने आप में विशेष महत्व रखता है। हालांकि इस वर्ष आषाढ़ अमावस्या पर दो शुभ योग इस दिन की शुभता और बढ़ाने वाले हैं। बात करें इन शुभ योगों की तो, इस दिन ध्रुव योग और शिववास योग का निर्माण हो रहा है। 

दरअसल इस दिन बनने वाला ध्रुव योग 06 जुलाई को देर रात 03 बजकर 49 मिनट पर समाप्त होगा। मान्यताओं के अनुसार इस योग में यदि स्नान और दान किया जाए तो इससे व्यक्ति को शुभ परिणाम प्राप्त होते हैं। इसके अलावा इस दिन शिववास योग का भी निर्माण हो रहा है। मान्यता है कि शिववास योग में भगवान शिव का अभिषेक करने से शुभ फलों की प्राप्ति होगी।

क्या ये जानते हैं आप? आषाढ़ अमावस्या के दिन शुभ मुहूर्त में यदि पूजा-पाठ, दान-पुण्य, पितरों का तर्पण आदि किया जाए तो इससे कुंडली में मौजूद कालसर्प दोष से छुटकारा भी प्राप्त किया जा सकता है।  

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आषाढ़ अमावस्या का महत्व

आषाढ़ अमावस्या के दिन पितरों की शांति के लिए किये जाने वाला तर्पण बहुत पुण्यकारी माना जाता है। इस दिन गंगा स्नान करने व किसी पवित्र नदी में स्नान करने का बहुत अधिक महत्व है। इस दिन धार्मिक दान करना बहुत फलदायी माना जाता है। विद्या दान, अन्न दान और वस्त्र दान जैसे विभिन्न प्रकार के दान आषाढ़ अमावस्या करना बहुत अधिक शुभ माना जाता है। कई जगहों पर आषाढ़ अमावस्या के दिन धार्मिक मेले और पंडालों का आयोजन किया जाता है। यही नहीं भंडारा, भजन-कीर्तन और कई धार्मिक कार्यक्रमों का भी आयोजन लोग बड़ी धूमधाम से करते हैं।

इसके अलावा, हर प्रकार की नकारात्मक ऊर्जा और बुरी नज़र व बुरी शक्तियों से बचने के लिए अमावस्या व्रत करना उपयोगी होता है। अपने पितरों की आत्मा को प्रसन्न करने के लिए अमावस्या व्रत का महत्व बहुत अधिक माना गया है। इस घर के आंगन में अपने पूर्वजों के लिए खाने पीने का सामान अवश्य निकालें। इसके अलावा, माना जाता है कि जो कोई भी व्यक्ति अमावस्या का व्रत करता है उसकी सारी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। यही नहीं यदि विधि विधान के साथ अमावस्या का व्रत किया जाए तो व्यक्ति की कुंडली में मौजूद काल सर्प दोष से भी बचा जा सकता है।

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आषाढ़ अमावस्या की पूजा विधि

  • आषाढ़ अमावस्या के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर सबसे पहले भगवान विष्णु को प्रणाम करें।
  • इसके बाद सभी कार्यों से निवृत होकर गंगाजल युक्त पानी से स्नान-ध्यान करें। यदि संभव हो तो किसी पवित्र नदी में जाकर स्नान करें। इसके बाद व्रत का संकल्प लें।
  • अब सबसे पहले सूर्य देव का जलाभिषेक करें। इसके बाद, भगवान विष्णु की श्रद्धा और भक्ति भाव से पूजा करें। पूजा के दौरान आषाढ़ अमावस्या की कथा जरूर पढ़ें।
  • पूजा समापन के बाद बहते हुए पानी में काले तिल प्रवाहित करें और सुख, शांति, समृद्धि और सौभाग्य की कामना करें। 
  • इस पूजा पाठ करने के साथ-साथ दान-पुण्य करने का भी विशेष महत्व है। साथ ही, गरीबों और ब्राह्मणों को खाना जरूर खिलाएं। 

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आषाढ़ अमावस्या के व्रत नियम

  • इस दिन यदि आप व्रत रखते हैं तो अन्न ग्रहण न करें। 
  • अमावस्या तिथि के दिन सुबह जल्दी उठकर गायत्री मंत्र का 108 बार जाप करें। 
  • साथ ही, सूर्य और तुलसी को जल अर्पित करें। 
  • इस दिन शिवलिंग पर जल चढ़ाएं। 
  • गाय को चावल अर्पित करें।
  • विवाहित महिलाएं को इस दिन पीपल के पेड़ की परिक्रमा करना चाहिए। इस दौरान परिक्रमा करते समय बिंदी, मेहंदी, चूड़ियां, आदि भी रख सकती हैं। साथ ही, 108 बार विष्णु मंत्र का जाप करें।
  • इसके बाद पितरों के नाम पर बाह्ममणों को घर पर भोजन कराएं और उन्हें दान दक्षिणा दें।
  •  गरीबों और जरूरतमंदों को वस्त्र, भोजन, और मिठाई का दान करें।

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आषाढ़ अमावस्या की कथा

पौराणिक कथा के अनुसार, स्वर्ग धाम के अलकापुरी नामक नगरी में एक कुबेर नाम का राजा रहता था। बहुत बड़ा शिव भक्त था और प्रतिदिन पूरे विधि-विधान से शिव जी की भक्ति किया करता था। राजा के यहां हेम नाम का एक माली हर रोज शिव पूजन के लिए फूल लाया करता था।  हेम माली की पत्नी बेहद सुंदर थी, जिसका नाम विशालाक्षी था।

एक दिन माली मानसरोवर से फूल लेने गया और फूल लाते समय पत्नी के साथ हास्य विनोद करने लगा। राजा पूजा में चढ़ने के लिए फूल का इंतजार करने लगा। जब काफी देर हो गई और राजा का सब्र टूट गया तो राजा ने अपने सेवकों को माली का पता लगाने के लिए भेजा। सैनिकों ने माली को देख लिया और उसके बारे में राजा को कहा कि महाराज के माली बहुत पापी अतिकामी है।

वह अपनी स्त्री के साथ हास्य विनोद कर रहा है। यह सुनकर राजा को काफी क्रोधित हो गए। राजा ने सैनिकों को आज्ञा दी की माली को लेकर आए। माली राजा के पास पहुंचते ही कांपने लगा। राजा कुबेर ने गुस्से में आकर माली को श्राप दे दिया और कहा कि ‘तू स्त्री का वियोग सहेगा और मृत्यु लोग में जाकर कोहड़ी हो जाएगा।’ राजा कुबेर के श्राप देने से हेम माली का स्वर्ग से पृथ्वी लोग में चला गया। व पृथ्वी पर आते ही उसके शरीर पर कोहड हो गया। हेम माली की स्त्री उसी समय अंतर्ध्यान हो गई। पृथ्वी पर आकर माली ने बहुत कष्ट झेलने पड़े। वह बिना भोजन और जल के जंगल में भटकता रहा। हेम माली को रात में नींद भी नहीं आती थी, लेकिन शिवजी की पूजा करने के प्रभाव से उसे अपने पिछले जन्म में किए गए कर्मों का ज्ञान हो गया।

एक दिन घूमते घूमते माली मार्कंडेय ऋषि के आश्रम में पहुंच जाता है और वहां जाकर ऋषि के पैरों पर गिर गया। इसे देखकर ऋषि ने पूछा कि उसने  ऐसा कौन सा पाप किया है। जिसके प्रभाव से उसकी यह हालत हो गई है। हेम माली ने ऋषि को सारा हाल बताया ऋषि ने कहा कि उसे एक व्रत करना होगा, जिससे उसका उद्धार होगा। ऋषि ने कहा आषाढ़ मास की कृष्ण पक्ष की एकादशी का व्रत पूरे विधि विधान से करेगा, तो उसके सारे पाप नष्ट हो जाएंगे। यह सुनकर माली बहुत खुश हुआ। उसने ऋषि को प्रणाम किया। इसके बाद हेम माली ने विधिपूर्वक व्रत किया। जिसके बाद माली अपने सभी बुरे कर्मों से छुटकारा पा गया।

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आषाढ़ अमावस्या के दिन जरूर करें ये ख़ास उपाय

पितृ दोष से छुटकारा पाने के लिए

पितृ दोष की वजह से घर में कलह और आर्थिक तंगी आती है। ऐसे में, आषाढ़ अमावस्या के दिन पितृ दोष से छुटकारा पाने के लिए ब्राह्मण को भोजन कराकर दान करना चाहिए। साथ ही, गाय, कुत्ते और चींटियों को भोजन खिलाना चाहिए। इससे आपके पितर प्रसन्न होंगे और आपको आशीर्वाद प्रदान करेंगे।

शनि दोष से मुक्ति के लिए

यदि आपकी कुंडली में शनि की महादशा चल रही है या आप शनि के साढ़ेसाती या ढैय्या के अशुभ प्रभाव से पीड़ित हैं तो आपको शाम को पीपल के पेड़ में सरसों के तेल का दीपक जलाकर पांच बार हनुमान चालीसा का पाठ करना चाहिए। इससे शनि दोष से मुक्ति मिल जाएगी।

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कालसर्प दोष के लिए

जिनकी कुंडली में कालसर्प दोष है उन्हें संतानहीनता का सामना करना पड़ता है। ऐसे में, उनकी नौकरी व व्यवसाय में कई प्रकार की समस्याएं आती है। साथ ही, साधक कर्ज या किसी प्रकार से लोन में डूब सकता है। ऐसे में, इससे मुक्ति पाने के लिए चांदी के नाग नागिन की करें। ऐसा करना आपके लिए फलदायी साबित होगा।  

पापों से मुक्ति पाने के लिए

आषाढ़ अमावस्या के दिन आटे में चीनी मिलाकर काली चीटियों को खिलाना चाहिए। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार ऐसा करने से व्यक्ति को पापों से मुक्ति मिलती है और भाग्य का भी साथ मिलता है।

आर्थिक समस्याओं से निपटने के लिए

मान्यता है कि आषाढ़ अमावस्या के दिन पीपल के वृक्ष के पास शाम के समय सरसों तेल का दीपक जलाने से और सात बार परिक्रमा करने से आर्थिक जीवन में आ रही समस्याएं दूर होती है।

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अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न

प्रश्न 1. इस साल आषाढ़ अमावस्या कब है?

उत्तर 1. इस साल आषाढ़ अमावस्या 05 जुलाई 2024 को है।

प्रश्न 2. आषाढ़ अमावस्या का क्या महत्व है?

उत्तर 2. इस दिन गंगा स्नान करने व किसी पवित्र नदी में स्नान करने का बहुत अधिक महत्व है।

प्रश्न 3. आषाढ़ अमावस्या पर क्या करें?

उत्तर 3. धार्मिक मान्यता के अनुसार इस दिन पवित्र नदी में जाकर स्नान करने और किसी जरूरतमंद को दान-दक्षिणा देने का महत्व होता है।

प्रश्न 4. अमावस्या में हमें क्या नहीं करना चाहिए?

उत्तर 4.  अमावस्या पर क्रोध, हिंसा, अनैतिक कार्य, मांस-मदिरा का सेवन एवं स्त्री से शारीरिक संबंध निषेध है।

 

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