रंग पंचमी 2024 एक प्रसिद्ध हिंदू त्योहार है जो प्रेम व खुशियों के पर्व होली के बाद मनाया जाता है। हर साल रंग पंचमी चैत्र माह की पंचमी तिथि को आती है और इस त्योहार का संबंध रंगों से है। इस पर्व को सभी लोग पूरे देश में जोश और उत्साह के साथ मनाते हैं। एस्ट्रोसेज का यह विशेष ब्लॉग आपको रंग पंचमी 2024 से जुड़ी समस्त जानकारी प्रदान करेगा जैसे कि तिथि, मुहूर्त आदि। साथ ही, रंग पंचमी के दिन कौन से काम करने चाहिए और कौन से नहीं, इन बातों से भी हम आपको अवगत करवाएंगे। इसके अलावा, रंग पंचमी पर बन रहे शुभ योग के बारे में बताएंगे जिससे इसे त्योहार का महत्व कई गुना बढ़ जाएगा। तो चलिए बिना देर किये शुरुआत करते हैं इस लेख की।
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हालांकि, आपको बता दें कि सामान्य तौर पर रंग पंचमी को होली के नाम से भी जाना जाता है। अधिकतर फाल्गुन के महीने में मनाये जाने वाला यह पर्व देश के विभिन्न हिस्सों में अलग-अलग समय पर भिन्न-भिन्न तरीकों से मनाया जाता है। रंग पंचमी किसी स्थान पर दो दिन तो कहीं पांच दिनों तक चलता है और इस दौरान कई तरह की परंपराओं को किया जाता है। चलिए अब आगे बढ़ते हैं और आपको रूबरू करवाते हैं इस साल कब मनाई जाएगी रंग पंचमी और कब है पूजा का मुहूर्त।
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रंग पंचमी 2024: तिथि एवं मुहूर्त
होली के ठीक पांच दिन बाद रंग पंचमी का त्योहार मनाया जाता है और यह खुशियों व प्रेम का प्रतिनिधित्व करता है। हिंदू पंचांग के अनुसार, हर साल चैत्र माह के कृष्ण पक्ष की पंचमी तिथि को रंग पंचमी आती है जबकि ग्रेगोरियन कैलेंडर में यह फरवरी-मार्च के महीनों के दौरान पड़ती है। इस साल रंग पंचमी 30 मार्च 2024, शनिवार के दिन मनाई जाएगी।
रंग पंचमी 2024 मुहूर्त
पंचमी तिथि का आरंभ: 29 मार्च 2024 की रात 08 बजकर 23 मिनट पर
पंचमी तिथि की समाप्ति: 30 मार्च 2024 की रात 09 बजकर 16 मिनट तक।
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रंग पंचमी पर बन रहा है शुभ योग
इस बार रंग पंचमी का त्योहार बेहद ख़ास होने वाला है क्योंकि इस दिन सिद्धि योग का निर्माण हो रहा है जो कि बहुत शुभ योग माना जाता है। ऐसा कहते हैं कि सिद्धि योग में जो भी काम किया जाता है उसमें अपार सफलता की प्राप्ति होती है इसलिए किसी भी तरह का शुभ काम करने के लिए सिद्धि योग श्रेष्ठ रहता है। हालांकि, सिद्धि योग 29 मार्च 2024 की रात 11 बजकर 10 मिनट से 30 मार्च 2024 की रात 10 बजकर 44 मिनट तक रहेगा। ऐसे में, आप शुभ एवं मांगलिक कार्यों को इस अवधि में संपन्न कर सकते हैं।
रंग पंचमी का महत्व
धार्मिक दृष्टि से रंग पंचमी का त्योहार हिन्दुओं के लिए विशेष रूप से महत्व रखता है। हालांकि, भगवान कृष्ण की भूमि ब्रज में पाँच दिनों तक लगातार चलने वाली होली का समापन रंग पंचमी के साथ होता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, रंग पंचमी के अवसर पर सभी देवी-देवता अपने भक्तों के साथ होली खेलने के लिए पृथ्वी पर आते हैं इसलिए इस पर्व को देव पंचमी के नाम से भी जाना जाता है। लेकिन, अगर हम बात करें रंग पंचमी के अर्थ की, तो रंग शब्द का संबंध रंगों से है जबकि पंचमी का अर्थ पंचमी तिथि से होता है। इस प्रकार, रंग पंचमी का शाब्दिक अर्थ होता है कि यह रंगों के त्योहार के पांचवें दिन का प्रतिनिधित्व करता है।
पौराणिक कथाओं के अनुसार, प्रत्येक वर्ष इस शुभ तिथि पर अबीर-गुलाल, हल्दी और चंदन सहित तरह-तरह के फूलों से बने रंगों को आसमान में उड़ाने से राजसिक और तामसिक शक्तियों का प्रभाव कम होता है जिससे मन में सात्विक भाव पैदा होते हैं। साथ ही, ऐसा करने से सभी देवी-देवता भी प्रसन्न होते हैं। शायद ही आप जानते होंगे कि हिंदू धर्म में जिस तरह कार्तिक पूर्णिमा को देवताओं की दिवाली माना गया है, ठीक उसी प्रकार रंग पंचमी को देवताओं की होली माना जाता है।
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रंग पंचमी 2024: धार्मिक महत्व
धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, रंग पंचमी का त्योहार देवताओं को समर्पित होता है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन रंगों का इस्तेमाल करने से संसार में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है और इस सकारात्मक ऊर्जा के माध्यम से लोगों को देवताओं के स्पर्श का एहसास होता है। सामाजिक रूप से भी रंग पंचमी को विशिष्ट स्थान प्राप्त है क्योंकि यह पर्व प्रेम-सौहार्द और भाईचारे का प्रतीक माना गया है।
इसके अलावा, रंग पंचमी के दिन कुछ लोग राधा रानी और भगवान कृष्ण को अबीर गुलाल अर्पित करते हैं, तो वहीं कुछ लोग इस शुभ अवसर पर आसमान में गुलाल उड़ाते हैं। साथ ही, अपने आराध्य से सुख-समृद्धि एवं सौभाग्य के लिए प्रार्थना करते हैं। ऐसी मान्यता है कि देवी-देवता गुलाल से प्रसन्न होते हैं और जब यह गुलाल वापस नीचे आकर गिरता है, तो उससे सारे वातावरण की शुद्धि हो जाती है और आसपास मौजूद नकारात्मक ऊर्जा तथा बुरी शक्तियां नष्ट हो जाती है।
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देश में रंग पंचमी मनाने के तरीके
हम आपको ऊपर बता चुके हैं कि रंग पंचमी को समूचे भारत में जोश और उत्साह से मनाया जाता है। हालांकि, इस पर्व को मनाने के तरीकों में अंतर देखने को मिलता है। अब हम आगे बढ़ते हैं और आपको बताते हैं कि कौन से राज्य में रंग पंचमी कैसे मनाई जाती है।
मध्यप्रदेश: मध्यप्रदेश में रंग पंचमी बहुत ही धूमधाम से मनाते हैं। इस दिन लोग एक जगह इकट्ठे होते हैं और पानी व रंगों से होली खेलते हैं। प्रेम से एक-दूसरे को रंग लगाते हैं और रंग-बिरंगे रंगों में डूब जाते हैं। इस दिन भांग का इस्तेमाल बड़े पैमाने पर किया जाता है। रंग पंचमी के शुभ अवसर पर लोग इंदौर में विश्वप्रसिद्ध गेर के रंग में सरोबार नज़र आते हैं।
महाराष्ट्र: मुंबई, पुणे नागपुर समेत पूरे महाराष्ट्र में रंग पंचमी को जोरो-शोरों से मनाया जाता है। इसके विपरीत, गोवा में मछुआरों द्वारा इसे शिमगो या शिमगा कहा जाता हैं। इस राज्य में रंग पंचमी को सभी धर्म और सम्प्रदाय के लोग मिलजुल कर मनाते हैं।
राजस्थान: रंग पंचमी के मौके पर राजस्थान के जैसलमेर स्थित मंदिर महल में सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किये जाते हैं और रंगों से होली खेलने का भी विशेष प्रबंध किया जाता है। यहां पर लाल, नारंगी और फिरोजी रंगों को हवा में उड़ाने की परंपरा है।
गुजरात: गुजरात में रंग पंचमी पर होली के रूप में मटकी फोड़ने का रिवाज़ है। इसके अलावा, बिहार, मथुरा, वृंदावन समेत गोकुल के मंदिरों में इस पर्व की रौनक अलग ही देखने को मिलती है।
दक्षिण भारत: तमिलनाडु, कर्नाटक, तेलंगाना और आंध्र प्रदेश आदि राज्यों में रंग पंचमी को कामदेव के बलिदान के तौर पर मनाया जाता है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन भगवान शिव ने कामदेव को भस्म कर दिया था।
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रंग पंचमी से जुड़ी पौराणिक कथा
धर्म ग्रंथों में वर्णित रंग पंचमी की पौराणिक कथा का संबंध भक्त प्रहलाद और होलिका से है। कथा के अनुसार, प्राचीन काल में दैत्यों का राजा हिरण्यकश्यप था जिसने खुद को भगवान घोषित कर दिया था। सभी को आदेश दिया कि वह उसकी पूजा करें और उसको ही भगवान का दर्जा दें। हिरण्यकश्यप से भयभीत होकर सबने उसके कहे अनुसार ही शुरू करना दिया, परंतु हिरण्यकश्यप के पुत्र प्रहलाद भगवान श्रीहरि विष्णु का अनन्य भक्त था और उसने अपने पिता को भगवान मानने से इंकार कर दिया। इस बात से क्रोधित होकर हिरण्यकश्यप ने प्रहलाद को मारने की कई बार कोशिश की, लेकिन प्रहलाद हर बार विष्णु जी का नाम लेने मात्र से ही बचता गया। यह सब देखकर हिरण्यकश्यप ने अपनी बहन होलिका को बुलाया जो कि एक राक्षसी थी और उसे वरदान मिला था कि आग उसे जला नहीं सकती थी। एक दिन जब होलिका प्रहलाद को नुकसान पहुंचाने की मंशा से उसे अपनी गोद में लेकर आग में बैठी, उस दौरान प्रहलाद विष्णु जी के नाम का जाप करता रहा और देखते ही देखते होलिका आग में जल गई और प्रहलाद उस आग से सुरक्षित बच गया।
रंग पंचमी की एक अन्य कथा भगवान श्रीकृष्ण से जुड़ी है जो इस प्रकार है, श्रीकृष्ण ने अपने बाल्यकाल में राक्षसी पूतना का वध कर दिया था जिसे उनके मामा कंस ने भेजा था। मथुरा के राजा कंस एक दुष्ट राजा था और वह जानता था कि कृष्ण उनकी बहन देवकी की आठवीं संतान है जो उसका काल बनेगा। भगवान कृष्ण का वध करने के लिए कंस ने राक्षसी पूतना को गोकुल भेजा था। पूतना अपने स्तन पर जहर लगाकर गोकुल आई थी और वह कृष्ण जी को स्तनपान कराने लगी। कन्हैया ने बालस्वरूप में ही पूतना का संहार कर दिया। जब गोकुल वासियों को पता लगा कि कि पूतना के शरीर पर जहर लगा हुआ है, तो उन्होंने उसे आग के हवाले कर दिया। ऐसा माना जाता है कि उस दिन से ही रंग पंचमी का त्योहार माना जाता है।
रंग पंचमी पर जरूर करें इन उपायों को, माँ लक्ष्मी की बरसेगी कृपा
धन-समृद्धि के लिए: रंग पंचमी के दिन गुलाबी रंग का गुलाल माता लक्ष्मी को अर्पित करें और इसके बाद, कनकधारा स्तोत्र का पाठ करें। ऐसा करने से देवी लक्ष्मी का घर में सदा वास रहता है और धन की कमी नहीं होती है।
सुखी वैवाहिक जीवन के लिए: इस पर्व पर राधा जी और श्रीकृष्ण को पीला रंग का गुलाल अर्पित करें। इस उपाय को करने से वैवाहिक जीवन से समस्याएं दूर होती हैं और मनचाहे जीवनसाथी पाने का आशीर्वाद मिलता है।
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