माघ नवरात्रि (Magh Navratri 2021) का आज यानी 19 फरवरी 2021 को आठवां दिन है। इस दिन मां बगलामुखी (Maa baglamukhi) की पूजा का विधान बताया गया है। गुप्त नवरात्रि (Gupt Navratri) की अष्टमी तिथि को पूजी वाली महाविद्या बगलामुखी को पितांबरा देवी भी कहा जाता है और इसके पीछे की वजह माता का पीले रंग से लगाव माना गया है। ऐसे में गुप्त नवरात्रि की पूजा करने वाले जातकों को आज के दिन माता की पूजा में विशेष तौर पर पीले रंग के वस्त्र, पीले रंग के फूल, पीले रंग की भोग की वस्तुएं, पीला चंदन इत्यादि मुख्य रूप से इस्तेमाल करना चाहिए।
मान्यता के अनुसार कहा जाता है कि, जो कोई भी भक्त आज के दिन पूरी विधि विधान से मां बगलामुखी की पूजा करता है उसे अपने शत्रुओं पर विजय प्राप्त होती है। साथ ही ऐसे व्यक्ति जीवन में किसी भी क्षेत्र में कभी भी पराजित नहीं होते हैं। मां बगलामुखी प्रसन्न होने पर अपने भक्तों को शक्ति प्रदान करती हैं। इसके अलावा मां बगलामुखी की पूजा करने से व्यक्ति के जीवन के सभी प्रकार के कष्ट और परेशानियां दूर होती है और साथ ही जीवन में सकारात्मकता आती है।
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गुप्त नवरात्रि में मां बगलामुखी की पूजन विधि (Gupt Navratri Maa BaglaMukhi Puja Vidhi)
- किसी भी पूजा-अर्चना की ही तरह इस दिन भी सुबह जल्दी उठकर स्नानादि करें।
- इसके बाद पूजा वाले जगह पर उत्तर दिशा की तरफ बैठकर पूजा प्रारंभ करें।
- मुमकिन हो तो इस दिन पीले रंग के वस्त्र धारण करें।
- पूजा में मां बगलामुखी को पीले रंग के फूल, पीला चंदन और पीले रंग के वस्त्र अर्पित करें।
- इसके अलावा इस दिन की पूजा में माता को पीले रंग के भोग जिसमें आप बेसन का लड्डू या कोई अन्य पीली मिठाई अर्पित कर सकते हैं।
- इसके बाद विधि पूर्वक माता की पूजा करें और उसके बाद आरती करें।
मां बगलामुखी की पूजा में अवश्य शामिल करें यह मंत्र (Maa Bagla Mukhi Mantra)
माँ बगलामुखी का विशेष मंत्र
ॐ ह्लीं बगलामुखी देव्यै सर्व दुष्टानाम वाचं मुखं पदम् स्तम्भय जिह्वाम कीलय-कीलय बुद्धिम विनाशाय ह्लीं ॐ नम: .
मां बगलामुखी का भयनाशक मंत्र
ॐ ह्लीं ह्लीं ह्लीं बगले सर्व भयं हर: .
मां बगलामुखी का शत्रु नाशक मंत्र
ॐ बगलामुखी देव्यै ह्लीं ह्रीं क्लीं शत्रु नाशं कुरु .
मां बगलामुखी का तंत्र मंत्र नाशक मंत्र
ॐ ह्लीं श्रीं ह्लीं पीताम्बरे तंत्र बाधां नाशय नाशय
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गुप्त नवरात्रि में पूजी जाने वाली दस महा विद्याओं की जानकारी और साथ ही जानें कैसे हुई इनकी उत्पत्ति
गुप्त नवरात्रि के दौरान मां कालिके, तारा देवी, त्रिपुर सुंदरी, भुवनेश्वरी देवी, माता चित्रमस्ता (छिन्नमस्ता), त्रिपुर भैरवी, माँ धूम्रवती, माता बगलामुखी, मातंगी देवी और कमला देवी की पूजा का विधान बताया गया है।
माँ कालीके: (उत्तर दिशा) मां कालीके दस महा विद्याओं में से एक मानी गई हैं। इसके अलावा मां कालीके को कलयुग की जागृत देवी भी कहा जाता है।
तारा देवी: (उत्तर दिशा)तारा देवी के नाम का अर्थ है तारने वाली। इसके अलावा मां तारा देवी को मुख्य रूप से तांत्रिकों की देवी माना जाता है।
त्रिपुर सुंदरी: (ईशान दिशा) त्रिपुर सुंदरी देवी भी दसों महा विद्या में से एक हैं।
भुवनेश्वरी देवी: (पश्चिम दिशा) मां भुवनेश्वरी देवी को यश और ऐश्वर्य की देवी कहा जाता है।
माता छिन्नमस्ता: (पूर्व दिशा) माता छिन्नमस्ता ने अपने ही एक हाथ में अपना कटा हुआ सिर लिया है और दूसरे हाथ में कटार धारण किया है। इन्हें भगवती त्रिपुर सुंदरी का रौद्र रूप माना जाता है।
त्रिपुर भैरवी: (दक्षिण दिशा) माना जाता है मां त्रिपुर भैरवी की पूजा करने से व्यक्ति को किसी भी तरह का मुकदमा, कोई बंधन या कारावास इत्यादि से मुक्ति प्राप्त होती है।
धूमावती माता: (पूर्व दिशा) माता धूमावती भगवान शिव द्वारा प्रकट की गई 10 महाविद्याओं में से एक है।
माता बगलामुखी: (दक्षिण दिशा) दस महा विद्याओं का आठवां स्वरूप बगलामुखी माता है। कहा जाता है मां बगलामुखी अपने भक्तों को शक्ति प्रदान करती हैं और शत्रुओं का नाश करती है।
मातंगी माता: (वायव्य दिशा) मातंगी माता भगवान शिव की शक्ति मानी जाती हैं। इसके अलावा यहां सबसे रोचक बात यह है कि, मातंगी माता को जूठन का भोग लगाया जाता है।
कमला देवी: (नैऋत्य दिशा) दसों महाविद्याओं में दसवें स्थान पर कमला देवी का नाम आता है। कमला देवी तांत्रिक लक्ष्मी के नाम से जानी जाती हैं और यह भक्तों के जीवन में सुख, समृद्धि और सौभाग्य प्रदान करने वाली मानी गई हैं।
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कैसे हुई दस महाविद्याओं की उत्पत्ति?
बताया जाता है कि, एक बार दक्ष प्रजापति ने यज्ञ का आयोजन किया। हालांकि उन्होंने इस यज्ञ में भगवान शिव और माता सती को छोड़कर सभी देवी देवताओं को आमंत्रित किया। इस बारे में जब माता सती को पता लगा तो उन्होंने इस यज्ञ में शामिल होने के लिए महादेव से ज़िद करनी शुरू कर दी। हालांकि महादेव उनकी बातों को नहीं मान रहे थे। तब माता सती ने महाकाली का अवतार धारण कर लिया।
मां सती के इस अवतार को देखकर भगवान शिव डर से भागने लगे। भगवान शिव को भागते देख माता सती उन्हें रोकने के लिए उनके पीछे भागने लगी। ऐसे में इस दौरान भगवान शिव जिस जिस दिशा में भागे उस उस दिशा में माता के विकराल रूप प्रकट होकर उनको रोकने की कोशिश करने लगे। बताया जाता है इसी प्रकार दसों दिशाओं में मां ने अलग-अलग रूप धारण किए और यही दस रूप बाद में चलकर 10 महाविद्याओं के नाम से प्रचलित हुए।
उसके बाद माता सती की बात मानकर भगवान शिव ने उन्हें यज्ञ में शामिल होने की आज्ञा दे दी। हालांकि यहां जाकर माता सती को अपने पति का अपमान महसूस हुआ जिसके चलते उन्होंने वहीं यज्ञ कुंड में कूद कर अपने प्राणों की आहुति दे दी।
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