महाराज पाण्डु और रानी कुंती के तीसरे पुत्र थे अर्जुन। अर्जुन महाभारत के मुख्य पात्र थे और सबसे अच्छे धनुर्धर और द्रोणाचार्य के प्रिय शिष्य थे। कहा जाता है कि द्रौपदी के अलावा श्रीकृष्ण और बलराम की बहन सुभद्रा, नाग की कन्या उलूपी और मणिपुर नरेश की पुत्री चित्रांगदा अर्जुन की पत्नियां थीं। द्रौपदी से जन्मे अर्जुन के बेटे का नाम श्रुतकर्मा था, सुभद्रा से अभिमन्यू, उलूपी से इरावन,चित्रांगदा से बभ्रुवाहन अर्जुन के पुत्र थे। कहते हैं कि अर्जुन की मृत्यु एक बार नहीं दो बार हुई थी। पहली बार अर्जुन अपने ही पुत्र के हाथों मारे गए थे। जानते हैं इससे जुड़ी एक कथा-
मणिपुर जा पहुंचे थे अर्जुन
एक दिन महर्षि वेदव्यास और श्रीकृष्ण के कहने पर पांडवों ने शुभ मुहुर्त देखकर अश्वमेध यज्ञ करने का तय किया। यज्ञ का शुभांरभ हुआ और अर्जुन को रक्षक बनाकर घोड़े को छोड़ दिया गया। वह घूमते-घूमते मणिपुर जा पहुंचा। जब मणिपुर नरेश और अर्जुन के बेटे बभ्रुवाहन ने सुना की मेरे पिता आए हैं, तब वह खुशी से उनसे मिलने के लिए नगर सीमा पर पहुंच गया। बेटे को इस प्रकार आता देख अर्जुन क्रोध में बोले- “बेटा तेरा आने का ये तरीका सही नहीं है ऐसा ज्ञात होता है कि तुझे क्षत्रिय धर्म से बहिष्कृत कर दिया गया है। मैं तो महाराज युधिष्ठिर के यज्ञ संबंधी घोड़े की रक्षा करते यहां आ गया हूं, फिर भी तू मुझसे युद्ध क्यों नहीं करता? तू एक क्षत्रिय है और क्षत्रिय का धर्म होता है युद्ध करना।”
पुत्र के हाथों मारा गया था अर्जुन
अर्जुन और बभ्रुवाहन की ये बातें अर्जुन की पत्नी नागकन्या उलूपी सुन रहीं थीं। सारी बात सुनने के बाद उलूपी ने बभ्रुवाहन से कहा, ‘तुम्हारे पिता कुरुकुल के श्रेष्ठ वीर है और हमेशा युद्ध के लिए तैयार रहने वाले योद्धा हैं। अत: तुम इनके साथ युद्ध ज़रूर करो, ये बहुत खुश होंगे। उलूपी की बात सुनकर बभ्रुवाहन ने पिता अर्जुन से युद्ध किया। कहा जाता हैं इस युद्ध में बभ्रुवाहन मूर्छित हो गए थे और अर्जुन की मृत्यु हो गई थी।
अर्जुन के प्राणों की भीख मांगती चित्रांगदा
जब अर्जुन के मारे जाने की खबर उनकी पत्नी चित्रांगदा को मिली तो वो फूट-फूट कर रोने लगी और उलूपी से अर्जुन के प्राणों की भीख मांगने लगी, क्योंकि उलूपी धर्म की अच्छी जानकार थी।चित्रांगदा ने उलूपी से कहा कि तुम्हारे कहने पर मेरे पुत्र ने अपने पिता से युद्ध किया था, तूमने ही मेरे बेटे को युद्ध के लिए उकसाया था। इसलिए मैं चाहती हूं कि मेरा बेटा भले ही मारा जाए लेकिन तुम अर्जुन को जीवित कर दो नहीं तो मैं भी अपनी जान दे दूंगी। तभी बभ्रुवाहन को भी होश आ गया और उसने देखा की उसकी मां अर्जुन के पास बैठकर रो रही है और उलूपी उनके पास खड़ी है। बभ्रुवाहन भी अपने पिता के पास जाकर विलाप करने लगा और प्रण लिया कि इस रणभूमि में वो भी अपने प्राण त्याग देगा। बेटे और माता के विलाप को देखकर उलूपी का दिल पसीज गया और उसने संजीवन मणिका का स्मरण किया और मणि के स्पर्श से अर्जुन को जीवित कर दिया।
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दूसरी बार ऐसे हुई थी अर्जुन की मृत्यु
अर्जुन द्वारा यदुवंशियों के नाश किए जाने की बात से युधिष्ठर काफी दुखी थे। महर्षि वेदव्यास की बात सुनकर पांडवों ने अपना राज-पाठ त्याग कर शरीर के साथ स्वर्ग जाने की बात तय की। यात्रा करते-करते पांडव हिमालय तक पहुंच गए। लेकिन रास्ता कठिन होने के कारण मंज़िल तक पहुंचने में उन्हें मुश्किल आ रही थी।इस बीच रास्ते में द्रौपदी का पैर लड़खड़ाया और वो गिर पड़ी। जिसके बाद नकुल, सहदेव, अर्जुन और अंत में भीम ने भी गिरकर मृत्यु को प्राप्त कर लिया। अंत में युधिष्ठिर और उनका कुत्ता ही शरीर के साथ स्वर्ग पहुंच पाए।