चैत्र नवरात्रि 2025 के दूसरे दिन मां दुर्गा के इस रूप की होती है पूजा!
चैत्र नवरात्रि दूसरा दिन: चैत्र नवरात्रि 2025 के नौ दिनों के उत्सव में दूसरा दिन मां ब्रह्माचारिणी को समर्पित होता है जो कि मां दुर्गा का दूसरा एवं अविवाहित रूप है। ब्रह्माचारिणी नाम संस्कृत शब्द ‘ब्रह्म’ से आया है जिसका अर्थ तपस्या होता है एवं चारिणी का मतलब होता है महिला अनुयायी। इस प्रकार मां ब्रह्माचारिणी तपस्या, भक्ति और संयम का प्रतीक हैं। नवरात्रि का दूसरा दिन अत्यंत महत्व रखता है क्योंकि इस अवसर पर भक्त बुद्धि, धैर्य और आत्म-अनुशासन की कामना के लिए मां ब्रह्माचारिणी की पूजा करते हैं।
इस साल चैत्र नवरात्रि 2025 का दूसरा और तीसरा नवरात्रि एक ही दिन पड़ रहा है। एस्ट्रोसेज एआई के इस ब्लॉग के ज़रिए हम आपको बता रहे हैं कि नवरात्रि का दूसरा दिन कब है और इसका समापन किस समय होगा। इसके साथ ही मां ब्रह्माचारिणी के महत्व एवं दूसरे नवरात्रि की पूजन विधि के बारे में भी आगे बताया गया है। तो चलिए अब बिना देर किए आगे बढ़ते हैं और जानते हैं कि नवरात्रि के दूसरे दिन की पूजन विधि एवं महत्व क्या है।
चैत्र नवरात्रि 2025 दूसरा दिन: समय और तिथि
हिंदू पंचांग के अनुसार चैत्र नवरात्रि का दूसरा दिन द्वितीया तिथि को मनाया जाता है। इस साल द्वितीया और तृतीया तिथि दोनों एक ही दिन पड़ रहे हैं। 31 मार्च को द्वितीया और तृतीया तिथि हैं और इनका समय निम्न है:
द्वितीया तिथि का समय : 30 मार्च को दोपहर 12 बजकर 51 मिनट से शुरू होकर 31 मार्च, 2025 को सुबह 09 बजकर 13 मिनट पर समाप्त।
तृतीया तिथि का समय: 31 मार्च को सुबह 09 बजकर 13 मिनट पर शुरू होकर 01 अप्रैल, 2025 को प्रात: 05 बजकर 45 मिनट पर समाप्त।
मां ब्रह्माचारिणी की पूजा का ज्योतिषीय महत्व
ज्योतिषीय मान्यताओं के अनुसार मां ब्रह्माचारिणी का संबंध मंगल ग्रह से होता है। इसलिए जिन लोगों की कुंडली में मंगल कमज़ोर या नीच का होता है, उन्हें मां ब्रह्माचारिणी की पूजा ज़रूर करनी चाहिए।
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मां ब्रह्माचारिणी का महत्व
मां ब्रह्माचारिणी का बहुत गहरा आध्यात्मिक महत्व है और इसी के लिए नवरात्रि के दूसरे दिन उनकी पूजा होती है। वह सांसारिक और दिव्य ज्ञान दोनों का प्रतिनिधत्व करती हैं एवं वह बुद्धि का भी प्रतीक हैं। शांत और संयमित स्वरूप में मां ब्रह्माचारिणी सफेद रंग के वस्त्र धारण किए होती हैं और उनके एक हाथ में अष्टदल की माला एवं दूसरे हाथ में कमंडल होता है। ये चीज़ें उनकी कठोर तपस्या और तप की भावना को दर्शाते हैं। मां दुर्गा के इस स्वरूप में उन्हें पवित्र ग्रंथों, अनुष्ठानों एवं आध्यात्मिक ज्ञान के लिए पूजा जाता है।
भक्तों का मानना है कि सच्चे मन से मां ब्रह्माचारिणी की उपासना करने से उनकी दिव्य कृपा प्राप्त होती है। उनकी पूजा से खासतौर पर बुद्धि एवं ज्ञान का आशीर्वाद मिलता है। उनका स्वरूप शांत और दिव्य है एवं अत्यंत सौम्य और करुणामयी होने की वजह से वे मां दुर्गा के अन्य रूपों से एकदम भिन्न हैं। मां अपने भक्तों पर कभी भी क्रोध नहीं करती हैं और जो भी उनकी शरण में आता है, उस पर शीघ्र अपनी कृपा बरसाती हैं।
ब्रह्माचारिणी नाम दो संस्कृत शब्दों से बना है जिसमें से एक ब्रह्म और दूसरा चारिणी है। ब्रह्म का अर्थ होता है तपस्या और चारिणी का अर्थ होता है उसका पालन करने वाला। इस तरह ब्रह्माचारिणी नाम का अर्थ बनता है ‘जो तपस्या के मार्ग पर चलता हो’। मां दुर्गा के इस रूप की पूजा करने से सुख-समृद्धि, उत्तम स्वास्थ्य, आत्मविश्वास, दीर्घायु और साहस का आशीर्वाद मिलता है।
मां दुर्गा के दूसरे स्वरूप को ‘ब्राह्मी’ के नाम से भी जाना जाता है। जो जातक चिंता, भावनात्मक तनाव या नकारात्मक परिस्थितियों का सामना कर रहे हैं, उन्हें मां ब्रह्माचारिणी की पूजा एवं व्रत करना चाहिए। ऐसा माना जाता है कि उनकी दिव्य उपस्थिति बेचैन मन को शांति, स्थिरता एवं आंतरिक शांति मिलती है।
पौराणिक कथाओं के अनुसार मां दुर्गा ने पर्वतों के शासक राजा हिमावत की पुत्री पार्वती के रूप में जन्म लिया था। महर्षि नारद की सलाह से मां पार्वती ने भगवान शिव को अपने पति के रूप में प्राप्त करने के लिए कई वर्षों तक कठोर तपस्या की थी। माता ने कई वर्षों तक पूरी लगन और सच्ची भक्ति के साथ तप किया जिसकी वजह से उन्हें ‘तपश्चारिणी’ या ‘ब्रह्माचारिणी’ नाम मिला। तपस्या के दौरान मां पार्वती ने कठोर व्रत किया और भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए गहन ध्यान में लीन रहीं।
उनकी इस तपस्या और भक्ति को सम्मान देने के लिए नवरात्रि के दूसरे दिन मां दुर्गा के इस तपस्विनी रूप की पूजा की जाती है जो भक्तों को अपनी आध्यात्मिक यात्रा में अनुशासन, धैर्य और अटूट विश्वास रखने के लिए प्रेरित करता है।
चैत्र नवरात्रि 2025 दूसरा दिन: मां ब्रह्माचारिणी की पूजन विधि
नवरात्रि के दूसरे दिन आप प्रतिपदा तिथि को स्थापित किए गए कलश की पूजा करें और इसके साथ ही भगवान गणेश का भी पूजन करें।
पूजन के दौरान पुष्प, चंदन और रोली अर्पित करें।
इस दिन पीले या सफेद रंग के वस्त्र पहनने चाहिए। मां ब्रह्माचारिणी की पूजा करने से पहले उनकी मूर्ति या तस्वीर को गंगाजल से स्नान करवाएं।
मां ब्रह्माचारिणी की पूजा में कमल का फूल ज़रूर रखें। इसके अलावा उन्हें दूध से बना भोग या मिठाई चढ़ाएं।
चैत्र नवरात्रि 2025 के दूसरे दिन भक्तों को दुर्गा सप्तशती का पाठ करना चाहिए। यदि आप पूरा पाठ नहीं कर सकते हैं, तो इस ग्रंथ में से कीलक, अर्गला और कवच का पाठ ज़रूर करें।
पूजन के आखिर में मां ब्रह्माचारिणी की आरती करें और ज्ञान, शक्ति एवं शांति की कामना करें।
चैत्र नवरात्रि के दूसरे दिन के लिए शुभ रंग
नवरात्रि के दूसरे दिन के लिए पीले रंग को शुभ माना जाता है। इस दिन माता रानी को पीले रंग के वस्त्र पहनाने की सलाह दी जाती है। इसके साथ ही भक्तों को भी पूजन के दौरान पीले रंग के वस्त्र ही पहनने चाहिए। पूजन में पीले रंग के पुष्प, मिठाई और पीले रंग की अन्य वस्तुओं को शुभ माना जाता है। यह रंग मां ब्रह्माचारिणी के पालन-पोषण करने वाले स्वरूप को दर्शाता है और इसका संबंध ज्ञान, बुद्धिमत्ता, उत्साह, आनंद और बुद्धि से होता है।
वैदिक ज्योतिष के अनुसार मां दुर्गा के दूसरे स्वरूप मां ब्रह्मचारिणी की पूजा करने से कुंडली में मौजूद मंगल दोष से मुक्ति मिलती है। जिन लोगों को मंगल के अशुभ प्रभावों के कारण समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है, उन्हें मां ब्रह्मचारिणी की पूजा करने से काफी राहत मिल सकती है। वहीं दूसरी ओर अगर मंगल कुंडली में मजबूत स्थिति में है, तो मां ब्रह्मचारिणी की पूजा करने से जमीन और प्रॉपर्टी से संबंधित क्षेत्रों में लाभ होता है और शारीरिक मजबूती मिलती है।
चैत्र नवरात्रि के दूसरे दिन निम्न उपाय करने से जीवन में सकारात्मक ऊर्जा मिलती है और मां ब्रह्मचारिणी का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
नवरात्रि के दूसरे दिन मंदिर जाएं और मां पार्वती एवं भगवान शिव को जल चढ़ाएं और पुष्प अर्पित करें। इनकी पंचोपचार से पूजा करें।
इसके बाद शिव और पार्वती जी को मौली बांधे। इस उपाय को करने से वैवाहिक जीवन में सुख-शांति आती है।
रामायण काल में माता सीता ने भी विवाह से पूर्व मां गौरी की पूजा की थी और बाद में उनका भगवान राम से मिलन हुआ था। जो स्त्रियां मनचाहा या योग्य वर चाहती हैं, उनके लिए मां गौरी का पूजन करना बहुत महत्व रखता है।
नवरात्रि के दसूरे दिन स्नान करने के बाद दुर्गा सप्तशती के मंत्रों का जाप करें। इससे मनचाहा जीवनसाथी मिलने के योग बनते हैं और ईश्वर का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
अपने ज्ञान को बढ़ाने और जीवन में सुख-शांति की कामना से आप मां ब्रह्माचारिणी का निम्न श्लोक पढ़ सकते हैं: “तपश्चारिणी त्वंहि तापत्रय निवारिणी, ब्रह्मरूपा धारा ब्रह्मचारिणी प्रणमाम्यहम्।” शंकर प्रिया त्वं हि भुक्ति-मुक्ति दायिनी, शांतिदा ज्ञान दा ब्रह्मचारिणी प्रणमाम्यहम्”।।
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अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न
प्रश्न 1. चैत्र नवरात्रि 2025 का दूसरा नवरात्रि किस तिथि पर पड़ रहा है?
उत्तर. 31 मार्च, 2025 को दूसरा नवरात्रि है।
प्रश्न 2. नवरात्रि के दूसरे दिन मां दुर्गा के किस रूप की पूजा की जाती है?
उत्तर. दूसरे दिन मां ब्रह्माचारिणी की पूजा होती है।
प्रश्न 3. मां ब्रह्माचारिणी का किस ग्रह से संबंध है?
उत्तर. मां ब्रह्माचारिणी का मंगल ग्रह से संबंध है।
मार्च का आख़िरी सप्ताह रहेगा बेहद शुभ, नवरात्रि और राम नवमी जैसे मनाए जाएंगे त्योहार!
साप्ताहिक राशिफल के इस ब्लॉग के साथ ही हम मार्च 2025 के अंतिम सप्ताह में कदम रख देंगे और अब जल्द ही अप्रैल माह का भी आगाज़ हो जाएगा। लेकिन, यहाँ हम बात करेंगे मार्च के इस अंतिम सप्ताह की, तो बता दें किएस्ट्रोसेज एआई के साप्ताहिक राशिफल के इस विशेष ब्लॉग में आपको जीवन से जुड़े कई प्रमुख सवालों के सही एवं सटीक जवाब प्राप्त होंगे जैसे कि करियर और व्यापार में कैसे मिलेंगे आपको परिणाम? किन राशियों को मिलेगा इस हफ़्ते भाग्य का साथ? निवेश से होगा लाभ या उठाना पड़ेगा नुकसान? प्रेम जीवन में मिलेगा साथी का साथ? वैवाहिक जीवन का कैसा रहेगा हाल? इन सभी सवालों के जवाब आपको हमारे इस लेख में मिलेंगे।
बता दें कि साप्ताहिक राशिफल का यह ब्लॉग एस्ट्रोसेज एआई के अनुभवी एवं विद्वान ज्योतिषियों द्वारा ग्रह-नक्षत्रों की चाल, दशा एवं स्थिति की गणना करके तैयार किया गया है। यहाँ हम आपको ग्रहों के नकारात्मक प्रभावों को कम करने के अचूक उपाय भी बताएंगे। साथ ही, 31 मार्च से 06 अप्रैल 2025 के बीच पड़ने वाले व्रत-त्योहार, ग्रहण, गोचर के साथ-साथ इस सप्ताह जन्मे कुछ मशहूर हस्तियों के जन्मदिन से भी रूबरू करवाएंगे। तो आइए आगे बढ़ते हैं और राशि अनुसार जानते हैं कि मार्च का यह आख़िरी सप्ताह आपके लिए कौन सी सौगात लेकर आएगा।
इस सप्ताह के हिंदू पंचांग की गणना और ज्योतिषीय तथ्य
मार्च के अंतिम सप्ताह की शुरुआत अश्विनी नक्षत्र के तहत शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि यानी कि 31 मार्च 2025 को होगी। वहीं, इस हफ़्ते का समापन पुष्य नक्षत्र के तहत शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि यानी कि 06 अप्रैल 2025 को होगा। हालांकि, व्रत-त्योहार और ग्रहण-गोचर की दृष्टि से इस हफ्ते को विशेष माना जाएगा क्योंकि इस दौरान कुछ बड़े पर्वों को मनाया जाएगा। तो आइए अब हम आगे बढ़ते हैं और जानते हैं कि इस सप्ताह में कब-कब कौन से व्रत-त्योहार किया जाएगा।
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इस सप्ताह में पड़ने वाले व्रत और त्योहार
बदलते समय के साथ इंसान के जीवन जीने के तरीके में भी बदलाव हुआ है और इसी के साथ, वह अपनी रोज़मर्रा की ज़िन्दगी में इतना व्यस्त हो गया है कि वह जीवन की महत्वपूर्ण बातों को भी भूल जाता है और इन्हीं में व्रत-त्योहार भी शामिल हैं। साप्ताहिक राशिफल के इस ब्लॉग में हम 31 मार्च से 06 अप्रैल, 2025 के बीच पड़ने वाले त्योहारों की तिथियों और उनके महत्व के बारे में विस्तारपूर्वक चर्चा करेंगे। चलिए नज़र डालते हैं इस सप्ताह के व्रत-त्योहारों की तिथियों पर।
चेटी चंड (31 मार्च 2025, सोमवार): हिंदू पंचांग के अनुसार, प्रत्येक वर्षचैत्र महीने के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को चेटीचंड मनाया जाता है। यह सिंधी समुदाय के लोगों का प्रमुख पर्व होता है जो कि सिंधी समाज के भगवान झूलेलाल के जन्मदिन के रूप में मनाया जाता है। इसे झूलेलाल जयंती भी कहा जाता है।
राम नवमी (06 अप्रैल 2025, रविवार): राम नवमी हिन्दुओं का महत्वपूर्ण पर्व है और यह भगवान विष्णु के सातवें अवतार मर्यादा पुरुषोत्तम राम के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है। पंचांग के अनुसार, चैत्र माह की नवमी तिथि को श्रीराम का जन्म हुआ था इसलिए यह दिन श्री राम के भक्तों के लिए विशेष होता है।
हम आशा करते हैं कि यह व्रत-त्योहार आपके जीवन में खुशियाँ और आशा की नई किरण लेकर आयेंगे।
इस सप्ताह (31 मार्च से 06 अप्रैल 2025) पड़ने वाले ग्रहण और गोचर
मार्च के इस अंतिम सप्ताह में मनाए जाने वाले व्रत-त्योहार के बारे में जानने के बाद अब हम बात करेंगे इस अवधि में पड़ने वाले ग्रहण और गोचर के बारे में। इस सप्ताह केवल एक ग्रह का गोचर होगा जबकि दो ग्रह अपनी स्थिति में बदलाव करते हुए दिखाई देगा। बात करें ग्रहण की, तो इस हफ़्ते में कोई ग्रहण नहीं लगने जा रहा है। आइए अब हम आपको रूबरू करवाते हैं कि कब और कौन सा ग्रह अपनी चाल और राशि में परिवर्तन करेगा।
बुध का मीन राशि में उदय (31 मार्च 2025): व्यापार के कारक ग्रह कहे जाने वाले बुध देव अपनी अस्त अवस्था से बाहर आते हुए 31 मार्च 2025 की शाम 05 बजकर 57 मिनट पर मीन राशि में उदित हो जाएंगे।
शनि का मीन राशि में उदय (31 मार्च 2025): सूर्य पुत्र शनि देव को न्याय एवं कर्मफल दाता कहा गया है जो लोगों को उनके कर्म के अनुसार फल देते हैं। अब यह 31 मार्च की देर रात 12 बजकर 43 मिनट पर मीन राशि में उदित हो जाएंगे।
मंगल का कर्क राशि में गोचर (03 अप्रैल 2025): मंगल देव साहस एवं पराक्रम के ग्रह हैं जिन्हें लाल ग्रह के नाम से भी जाना जाता है। मंगल अब 03 अप्रैल 2025 की देर रात 01 बजकर 32 मिनट पर कर्क राशि में गोचर कर जाएंगे जो कि इनकी नीच राशि है।
नोट: मार्च के इस अंतिम सप्ताह में कोई ग्रहण नहीं लगेगा।
इस सप्ताह में पड़ने वाले बैंक अवकाश
यहां हम आपको 31 मार्च से लेकर 06 अप्रैल 2025 के बीच आने वाले बैंक अवकाशों की सूची दे रहे हैं जो कि इस प्रकार हैं:
तिथि
दिन
पर्व
राज्य
31 मार्च 2025
सोमवार
ईद उल-फ़ित्र
राष्ट्रीय अवकाश
1 अप्रैल 2025
मंगलवार
उड़ीसा दिवस
उड़ीसा
1 अप्रैल 2025
मंगलवार
ईद उल-फ़ित्र छुट्टियां
तेलंगाना
1 अप्रैल 2025
मंगलवार
सरहुल
झारखंड
5 अप्रैल 2025
शनिवार
बाबू जगजीवन राम जयंती
तेलंगाना, आंध्र प्रदेश
6 अप्रैल 2025
रविवार
रामनवमी
सभी राज्य सिवाय अरुणाचल प्रदेश , असम, गोवा, झारखंड, कर्नाटक, केरल, लक्षद्वीप, मणिपुर, मेघालय , मिजोरम, नागालैंड, पुडुचेरी, तमिलनाडु, त्रिपुरा और पश्चिम बंगाल
एस्ट्रोसेज इन सभी सितारों को जन्मदिन की ढेरों शुभकामनाएं देता है। यदि आप अपने पसंदीदा सितारे की जन्म कुंडली देखना चाहते हैं तो आप यहां पर क्लिक कर सकते हैं।
साप्ताहिक राशिफल 31 मार्च से 06 अप्रैल, 2025
यह भविष्यफल चंद्र राशि पर आधारित है। अपनी चंद्र राशि जानने के लिए क्लिक करें: चंद्र राशि कैलकुलेटर
मेष साप्ताहिक राशिफल
मेष राशि वालों आपकी चंद्र राशि से राहु के बारहवें भाव में विराजमान होने के कारण…..(विस्तार से पढ़ें)
मेष प्रेम राशिफल
इस सप्ताह भाग्य आपके साथ होगा, जिससे आपकी शोहरत तो बढ़ेगी….(विस्तार से पढ़ें)
वृषभ साप्ताहिक राशिफल
इस सप्ताह आपके स्वास्थ्य राशिफल को देखें तो, आपका स्वास्थ्य….(विस्तार से पढ़ें)
वृषभ प्रेम राशिफल
यदि आप अभी तक सिंगल हैं और सच्चे प्रेमी की प्रतीक्षा कर रहे हैं तो….(विस्तार से पढ़ें)
मिथुन साप्ताहिक राशिफल
मिथुन राशि वालों को इस सप्ताह कुछ जातकों को अपनी आपको सेहत….(विस्तार से पढ़ें)
मिथुन प्रेम राशिफल
ये सप्ताह आपके प्रेम जीवन के लिए, बहुत ही अच्छा रहने वाले….(विस्तार से पढ़ें)
कर्क साप्ताहिक राशिफल
कर्क राशि वालों के लिए इस समय आपके द्वारा खेल-कूद जैसी गतिविधियों में भाग….(विस्तार से पढ़ें)
कर्क प्रेम राशिफल
आप इस सप्ताह अपने प्रेम संबंधों में जुनून और रोमांस की….(विस्तार से पढ़ें)
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सिंह साप्ताहिक राशिफल
सिंह राशि वालों को इस सप्ताह आपको, अपने शरीर को आराम देने की ज़रूरत ….(विस्तार से पढ़ें)
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अक्सर पूछे जाने वाले सवाल
1. मार्च 2025 में शनि कब उदित होंगे?
शनि देव 31 मार्च 2025 को मीन राशि में उदित हो जाएंगे।
2. 2025 में रामनवमी कब है?
इस साल रामनवमी 06 अप्रैल 2025, रविवार को मनाई जाएगी।
3. क्या मार्च के इस सप्ताह में कोई ग्रहण लगेगा?
नहीं, 31 मार्च से 06 अप्रैल, 2025 के बीच कोई ग्रहण नहीं लगेगा।
मीन राशि में उदित होकर शनि इन राशियों के करेंगे वारे-न्यारे!
शनि का मीन राशि में उदय: वैदिक ज्योतिष में शनि ग्रह को न्याय के देवता या न्यायाधीश का पद प्राप्त है क्योंकि यह मनुष्य को उनके कर्मों के अनुसार अच्छे-बुरे फल प्रदान करते हैं। हालांकि, यह एक शुष्क और ठंडा ग्रह है जिन्हें नवग्रहों में सबसे मंद और धीमी गति से चलने वाला ग्रह माना जाता है। इनका संबंध अधिकतर पुरानी चीज़ों से जोड़ा जाता है। बता दें कि शनि महाराज को क्रूर ग्रह माना गया है जो किसी इंसान के जीवन में समस्याओं और परेशानियों को बढ़ाने के लिए जाने जाते हैं। इसके विपरीत, यदि किसी जातक की कुंडली में इनकी स्थिति मज़बूत होती है, तो यह आपको जीवन में हर तरह का सुख प्रदान करते हैं। शायद ही आप जानते होंगे कि शनि ग्रह एकमात्र ऐसे ग्रह हैं जो किसी इंसान को राजा से रंक और रंक से राजा बनाने की क्षमता रखते हैं। अब यह जल्द ही अपनी स्थिति में बदलाव करते हुए मीन राशि में उदित होने जा रहे हैं।
इसी क्रम में, एस्ट्रोसेज एआई का यह विशेष ब्लॉग आपको “शनि का मीन राशि में उदय” के बारे में समस्त जानकारी प्रदान करेगा जैसे कि तिथि और समय आदि। अब एक लंबे समय तक शनि अस्त रहने के बाद पुनः उदित होने जा रहे हैं और ऐसे में, यह देखना होगा कि राशि चक्र की किन राशियों को शनि की उदित अवस्था शुभ परिणाम देगी? किन जातकों को करियर में उतार-चढ़ाव का सामना करना होगा या फिर बनेंगे आपके रुके हुए काम? आर्थिक जीवन, प्रेम वैवाहिक और पारिवारिक जीवन के लिए कैसा रहेगा शनि का मीन राशि में उदय? इन सभी सवालों का जवाब जानने के लिए इस लेख को पढ़ना जारी रखें जिसे हमारे अनुभवी ज्योतिषियों द्वारा ग्रहों-नक्षत्रों की चाल, दशा और स्थिति के आधार पर तैयार किया गया है। तो आइए बिना रुके आगे बढ़ते हैं और सबसे पहले जान लेते हैं शनि उदित का समय।
शनि का मीन राशि में उदय: तिथि और समय
जैसे कि हम सभी जानते हैं कि शनि ग्रह से मिलने वाले परिणामों में देर अवश्य हो सकती है, लेकिन यह देर-सवेर अवश्य फल देते हैं। ज्योतिष शास्त्र में शनि ग्रह समस्याओं, देरी, परंपराओं, प्रतिबंध, दुख, दुर्भाग्य और आयु का प्रतिनिधित्व करते हैं जो अब लगभग एक महीने के बाद 31 मार्च 2025 की रात 12 बजकर 43 मिनट पर मीन राशि में उदित होने जा रहे हैं। बता दें कि शनि देव 22 फरवरी 2025 को मीन राशि में अस्त हो गए थे।
हालांकि, शनि ग्रह के उदित होने से कुछ राशियों को सकारात्मक और कुछ राशियों को नकारात्मक परिणाम मिलने शुरू हो जाएंगे। कौन सी हैं वह राशियां? इस बारे में हम विस्तार से बात करेंगे, लेकिन उससे पहले जान लेते हैं उदित अवस्था के बारे में।
बृहत् कुंडली में छिपा है, आपके जीवन का सारा राज, जानें ग्रहों की चाल का पूरा लेखा-जोखा
किसे कहते हैं ग्रह का उदय होना?
ज्योतिष की दुनिया में ग्रहों की चाल या दशा में होने वाले बदलाव को महत्वपूर्ण माना जाता है। इसी क्रम में, ग्रहों का अस्त होना और उदित होना दोनों ही मनुष्य जीवन को प्रभावित करने का सामर्थ्य रखते हैं। हालांकि, ग्रह का उदित होना किसे कहते हैं, इस बात को समझने के लिए आपको अस्त अवस्था के बारे में जानना होगा। बता दें कि जब कोई ग्रह परिक्रमा पथ पर चलते हुए सूर्य के बेहद करीब चला जाता है, तो सूर्य के तेज़ प्रभाव से अस्त हो जाता है। ऐसे में, वह अपनी सभी शक्तियां खोकर कमज़ोर हो जाता है।
ठीक इसी प्रकार, जब अस्त अवस्था में ग्रह चलता हुआ पुनः सूर्य देव से एक निश्चित दूरी पर आ जाता है, तो इसे ग्रह का उदय होना कहते हैं। इसके साथ ही, जैसे ही ग्रह उदित होता है, वह अपनी सारी शक्तियां दोबारा हासिल कर लेता है और एक बार फिर से जातक को अपनी पूरी क्षमता के साथ परिणाम देने लगता है।
चलिए अब नज़र डालते हैं और जानते हैं शनि ग्रह का महत्व।
वैदिक ज्योतिष में शनि ग्रह
शनि ग्रह को वैदिक ज्योतिष में एक अत्यंत महत्वपूर्ण एवं प्रमुख ग्रह का स्थान प्राप्त है। यह व्यक्ति को उनकी सीमाओं, प्रतिबद्धता और जिम्मेदारियों की याद दिलाते हैं।
मनुष्य जीवन में शनि महाराज दुख, आयु, पीड़ा, रोग, तकनीकी, विज्ञान आदि के कारक ग्रह माने जाते हैं।
राशि चक्र में मकर और कुंभ राशि को शनि देव की राशि माना गया है। वहीं, तुला इनकी उच्च राशि है जबकि मेष में शनि देव नीच अवस्था में होते हैं।
मंद गति से चलने की वजह से शनि ग्रह एक राशि में लगभग ढाई साल तक रहते हैं और इसको ही शनि की ढैया कहा जाता है।
वहीं, शनि ग्रह की दशा साढ़े सात साल तक चलती है और इसे ही शनि की साढ़े साती कहते हैं।
इसी आशा के साथ कि, आपको यह लेख भी पसंद आया होगा एस्ट्रोसेज के साथ बने रहने के लिए हम आपका बहुत-बहुत धन्यवाद करते हैं।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न
1. शनि का उदय कब होगा?
मीन राशि में शनि देव 31 मार्च 2025 को उदित होंगे।
2. मीन राशि में शनि का गोचर कब हुआ था?
शनि ग्रह 29 मार्च 2025 को मीन राशि में गोचर कर गए थे।
2. मीन राशि किसकी है?
राशि चक्र की बारहवीं राशि मीन के स्वामी गुरु ग्रह हैं।
चैत्र नवरात्रि 2025 में नोट कर लें घट स्थापना का शुभ मुहूर्त और तिथि!
चैत्र नवरात्रि 2025: हिंदू त्योहारों में चैत्र नवरात्रि अत्यंत महत्व रखते हैं। पूरे देश में इस पर्व को श्रद्धा और आध्यात्मिक उत्साह के साथ मनाया जाता है। भारत के कई हिस्सों में चैत्र नवरात्रि से हिंदू नववर्ष की शुरुआत होती है और नवरात्रि के नौ दिन मां दुर्गा और उनके नौ स्वरूपों को समर्पित होते हैं। शारदीय नवरात्रि शरद ऋतु में आते हैं जबकि चैत्र नवरात्रि वसंत ऋतु में आते हैं। हिंदू पंचांग के चैत्र के महीने यानी मार्च या अप्रैल में चैत्र नवरात्रि मनाई जाती है। इस बार रविवार को 30 मार्च, 2025 से चैत्र नवरात्रि की शुरुआत हो रही है और इनका समापन सोमवार को 07 अप्रैल, 2025 को होगा।
चैत्र नवरात्रि का पहला दिन बहुत महत्वपूर्ण होता है क्योंकि इससे पूरे नौ दिनों के लिए आध्यात्मिक माहौल तैयार होता है। नवरात्रि का पहला दिन मां शैलपुत्री को समर्पित होता है जो कि मां दुर्गा का पहला स्वरूप है। इन दिनों में श्रद्धालु समृद्धि, उत्तम स्वास्थ्य और सफलता के लिए अनुष्ठान और विशेष पूजा करते हैं एवं मां दुर्गा का आशीर्वाद लेते हैं।
एस्ट्रोसेज एआई के इस विशेष ब्लॉग में नौ दिनों तक चलने वाले चैत्र नवरात्रि 2025 के पहले दिन की तिथि के बारे में बताया गया है। साथ ही घट स्थापना की विधि, महत्व आदि की जानकारी भी दी गई है। तो चलिए आगे बढ़ते हैं और जानते हैं चैत्र नवरात्रि के प्रथम दिन के बारे में।
चैत्र नवरात्रि 2025 प्रथम दिन: घट स्थापना के लिए समय और तिथि
हिंदू पंचांग के अनुसार चैत्र नवरात्रि 2025 की शुरुआत चैत्र के महीने की प्रतिपदा तिथि से यानी 30 मार्च, 2025 से होगी। घट स्थापना के लिए शुभ समय है:
घट स्थापना मुहूर्त
घट स्थापना मुहूर्त: सुबह 06 बजकर 13 मिनट से लेकर 10 बजकर 22 मिनट तक
समयावधि: 4 घंटे 8 मिनट
घट स्थापना अभिजीत मुहूर्त: दोपहर 12 बजकर 01 बजे से लेकर दोपहर 12 बजकर 50 मिनट तक
समयावधि: 50 मिनट
बृहत् कुंडलीमें छिपा है, आपके जीवन का सारा राज, जानें ग्रहों की चाल का पूरालेखा-जोखा
चैत्र नवरात्रि 2025: मां दुर्गा का वाहन
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार नवरात्रि के दौरान मां दुर्गा किसी विशेष वाहन पर बैठकर पृथ्वी पर आती हैं और हर एक वाहन का अलग अर्थ एवं महत्व होता है। इस साल चैत्र नवरात्रि 2025 का पर्व रविवार से शुरू हो रहा है इसलिए इस बार मां दुर्गा हाथी पर सवार होकर आ रही हैं।
मां दुर्गा का हाथी पर सवार होकर आना विकास, शांति और सकारात्मक बदलाव को दर्शाता है। यह संकेत देता है कि इस बार वर्षा अच्छी होगी जिससे फसल भी अच्छी आएगी और भूमि समृद्ध होगी। यह कृषि के लिए अनुकूल परिस्थितियों और भक्तों को कष्टों से मुक्ति दिलाने का भी प्रतीक है।
चैत्र नवरात्रि 2025: घट स्थापना के लिए पूजन विधि
चैत्र नवरात्रि के पहले दिन पर्व की शुरुआत के लिए कलश स्थापना की जाती है। ऐसा माना जाता है कि कलश स्थापना करने से घर में सुख-शांति और समृद्धि का आगमन होता है। तो चलिए अब आगे बढ़ते हैं और जानते हैं चैत्र नवरात्रि के पहले दिन की कलश स्थापना या घट स्थापना करने की पूजन विधि क्या है:
शारीरिक और आध्यात्मिक रूप से शुद्ध होने के लिए आप ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान कर लें।
एक पात्र में मिट्टी डालें। यह प्रजनन और विकास का प्रतीक है।
अब इस मिट्टी में जौ के बीज बोएं जो घर के अंदर समृद्धि और संपन्नता को दर्शाते हैं।
अब मिट्टी के पात्र के ऊपर एक मिट्टी का कलश रखें। कलश संपन्नता और दिव्य ऊर्जा का प्रतीक होता है।
वातावरण को पवित्र बनाने के लिए कलश के अंदर गंगाजल भर दें।
कलश के अंदर सुपारी, सिक्का और पुष्प डाल दें। ये चीज़ें संपन्नता, समृद्धि और भक्ति का प्रतीक हैं।
इस कलश को मिट्टी के ढक्कन से ढक दें और उसके ऊपर अक्षत रखें। यह शुद्धता और पूर्णता को दर्शाता है।
प्रमुख देवी के रूप में कलश के सामने मां दुर्गा की मूर्ति या तस्वीर स्थापित करें।
वैदिक अनुष्ठान के अनुसार पूजन एवं पवित्र मंत्रों का जाप करें। आप मां दुर्गा को धूप-दीप, पुष्प, फल एवं मिठाई अर्पित करें।
नवरात्रि के नौ दिनों तक लगातार पूजा की जाती है और माता रानी को रोज़ प्रसाद चढ़ाया जाता है।
नौवें दिन नवरात्रि की नवमी तिथि को भगवान राम के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है। यह दिन नवरात्रि के समापन का प्रतीक है।
नवरात्रि के अंतिम दिन पर कन्या पूजन का बहुत महत्व है। इस दिन छोटी कन्याओं को देवी के रूप में पूजा जाता है और उन्हें भोजन खिलाकर उपहार दिए जाते हैं।
संस्कृत में नवरात्रि का अर्थ नौ दिन होता है जो कि मां दुर्गा के नौ स्वरूपों को समर्पित होते हैं। नवरात्रि के प्रत्येक दिन मां दुर्गा के एक अलग अवतार की पूजा की जाती है जो दिव्य स्त्री के विभिन्न गुणों एवं शक्तियों को दर्शाते हैं। हिंदू पंचांग के अनुसार चैत्र नवरात्रि से हिंदुओं के नववर्ष की शुरुआत होती है इसलिए यह पर्व अत्यधिक महत्व रखता है। नए काम की शुरुआत करने, फसल बोने और धार्मिक यात्रा पर जाने के लिए इस समय को शुभ माना जाता है।
मां दुर्गा के नौ स्वरूप
शैलपुत्री: नवरात्रि के पहले दिन मां शैलपुत्री की पूजा की जाती है। शैलपुत्री पर्वत की बेटी हैं और ब्रह्मा, विष्णु एवं महेश की शक्ति का प्रतीक हैं।
ब्रह्मचारिणी: दूसरे दिन मां ब्रह्मचारिणी की पूजा की जाती है जो कि तपस्या और कठोर साधना का प्रतीक हैं। इस रूप में मां आध्यात्मिक ज्ञान का प्रतिनिधित्व करती हैं।
चंद्रघंटा: तीसरे दिन मां चंद्रघंटा की पूजा होती है जो साहस और दृढ़ता का प्रतीक हैं।
कूष्मांडा: ऐसा माना जाता है कि मां कूष्मांडा की दिव्य मुस्कान से ब्रह्मांड की रचना हुई थी और उनका यह स्वरूप रचनात्मकता और ऊर्जा को दर्शाता है।
स्कंदमाता: नवरात्रि के पांचवे दिन मां स्कंदमाता की पूजा होती है जो कि भगवान कार्तिकेय यानी स्कंद की मां हैं। मां दुर्गा का यह रूप मां की शक्ति का प्रतीक है।
कात्यायनी: छठे दिन मां कात्यायनी की आराधना होती है। इस रूप में मां दुर्गा योद्धा के रूप में दिखाई देती हैं एवं वह साहस का प्रतीक है।
कालरात्रि: सातवें दिन मां कालरात्रि की पूजा होती है जो अंधकार और अज्ञानता का नाश करने के लिए उग्र एवं विनाशकारी रूप रखती हैं।
महागौरी: आठवें दिन मां गौरी की उपासना होती है जो कि पवित्रता और शांति का प्रतीक हैं।
सिद्धिदात्री: मां दुर्गा का नौवां स्वरूप अलौकिक शक्तियां प्रदान करने के साथ-साथ सभी इच्छाओं की पूर्ति करता है।
नवरात्रि का पहला दिन मां शैलपुत्री को समर्पित होता है जो कि मां दुर्गा का प्रथम स्वरूप है। चूंकि, मां दुर्गा ने देवी पार्वती के रूप में हिमालय की पुत्री के रूप में जन्म लिया था इसलिए उन्हें ‘पर्वत की पुत्री’ के रूप में मां शैलपुत्री के नाम से पूजा जाता है। वे नंदी पर सवार रहती हैं और उनके एक हाथ में त्रिशूल और दूसरे हाथ में कमल का फूल होता है।
देवी शैलपुत्री का संबंध मूलाधार चक्र से होता है जो कि स्थिरता, संतुलन और शक्ति का प्रतीक है। नवरात्रि के पहले दिन पर मां शैलपुत्री की पूजा करने से भक्तों की आत्मा शुद्ध होती है, उनके सारे पाप नष्ट हो जाते हैं एवं आध्यात्मिक रूप से आगे बढ़ने के लिए असीम शक्ति प्राप्त होती है। मां शैलपुत्री का संबंध चंद्रमा से है इसलिए ऐसा कहा जाता है कि सच्चे मन से मां शैलपुत्री की पूजा करने से कुंडली में चंद्रमा की स्थिति मज़बूत होती है, सकारात्मकता आती है और चंद्रमा से संबंधित क्षेत्रों में अनुकूल परिणाम मिलते हैं।
नवरात्रि के पहले दिन मां शैलपुत्री की पूजा की जाती है जो कि मां दुर्गा का प्रथम स्वरूप हैं। शैलपुत्री नाम का मतलब होता है पर्वत की पुत्री। उन्हें भगवान शिव की पहली पत्नी सती का पुर्नजन्म माना जाता है। देवी शैलपुत्री को एक दिव्य रूप में दर्शाया गया है जो नंदी पर सवार रहती हैं। उनके माथे पर चंद्रमा विराजमान है और एक हाथ में त्रिशूल एवं दूसरे हाथ में कमल का फूल होता है।
पुनर्जन्म में मां शैलपुत्री ने राजा दक्ष की पुत्री सती के रूप में जन्म लिया था जो कि भगवान शिव की पहली पत्नी थीं। सती भगवान शिव से विवाह करना चाहती थीं लेकिन उनके पिता दक्ष प्रजापति भगवान शिव का तिरस्कार किया करते थे और उन्होंने शिव के साथ अपनी पुत्री के विवाह को स्वीकार नहीं किया था।
एक बार राजा दक्ष ने महायज्ञ का आयोजन किया था और इसमें उन्होंने सभी देवी-देवताओं, ऋषियों को आमंत्रित किया लेकिन भगवान शिव को आमंत्रण नहीं भेजा। सती इस यज्ञ में शामिल होना चाहती थीं लेकिन भगवान शिव ने उन्हें चेतावनी दी थी कि अगर वे बिना बुलाए यज्ञ में गईं, तो वहां पर उनका तिरस्कार होगा। सती ने भगवान शिव के परामर्श को नज़रअंदाज़ किया और राजा दक्ष के महल में पहुंच गईं। यज्ञ के दौरान सती को देखकर राजा दक्ष ने उनका बहुत तिरस्कार किया और भगवान शिव की अत्यंत निंदा की। अपने पति के बारे में अपमानजनक शब्दों को सती सहन नहीं कर पाई और उन्होंने यज्ञ की पवित्र अग्नि में ही स्वयं को भस्म करने का निर्णय ले लिया।
सती के अंत से भगवान शिव अत्यंत दुखी और क्रोधित हुए थे। उन्होंने सती के मृत शरीर को उठाया और तांडव करने लगे। यह संपूर्ण सृष्टि के विनाश का संकेतक था। शिव के इस प्रलयंकारी रूप से सृष्टि के विनाश का खतरा उत्पन्न हो गया।
इस महाविनाश को रोकने के लिए भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से माता सती के शरीर के कई टुकड़े कर दिए जो कि भारतीय महाद्वीप के कई हिस्सों में जाकर गिरे। जिस भी जगह मां सती के अंग गिरे थे, उन्हें शक्तिपीठ का नाम दिया गया और ये मां दुर्गा के पवित्र तीर्थस्थान बन गए।
इसके बाद पर्वतों के राजा हिमालय के घर माता सती ने देवी शैलपुत्री के रूप में दोबारा जन्म लिया और यहां उन्हें पार्वती नाम मिला। कम उम्र से ही देवी पार्वती भगवान शिव की परम भक्त थीं और शिव से मिलन के लिए देवी पार्वती ने कठोर तपस्या की थी। उनकी असीम भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने एक बार फिर से उन्हें अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार किया।
चैत्र नवरात्रि 2025: देवी के नौ रूपों से संबंधित ग्रह
नवरात्रि का दिन
देवी का रूप
संबंधित ग्रह
पहला दिन : प्रतिपदा
मां शैलपुत्री
चंद्रमा
दूसरा दिन : द्वितीया
मां ब्रह्माचारिणी
मंगल
तीसरा दिन : तृतीया
मां चंद्रघंटा
शुक्र
चौथा दिन : चतुर्थी
मां कूष्मांडा
सूर्य
पांचवां दिन : पंचमी
मां स्कंदमाता
बुध
छठा दिन: षष्ठी
मां कात्यायनी
बृहस्पति
सातवां दिन : सप्तमी
मां कालरात्रि
शनि
आठवां दिन : अष्टमी
मां महागौरी
राहु
नौवां दिन : नवमी
मां सिद्धिदात्री
केतु
चैत्र नवरात्रि 2025 पर क्या करें और क्या न करें
क्या करें
सुबह जल्दी उठकर स्नान कर लें।
घर और पूजन स्थल की साफ-सफाई करें।
रोज़ दुर्गा सप्तशती या देवी महात्मय का पाठ करें।
माता रानी को ताज़े पुष्प और भोग चढ़ाएं।
पूरी श्रद्धा के साथ व्रत रखें और केवल सात्विक भोजन ही करें।
क्या न करें
नवरात्रि के दिनों में नाखून और बाल नहीं कटवाने चाहिए।
मांसाहारी भोजन, शराब या तंबाकू इत्यादि का सेवन न करें।
नकारात्मक विचारों, गुससे और निंदा करने से बचें।
नवरात्रि के दौरान काले रंग के वस्त्र नहीं पहनने चाहिए क्योंकि इन्हें अशुभ माना जाता है।
दिन के समय सोने से बचें क्योंकि इससे व्रत के आध्यात्मिक लाभ नहीं मिल पाते हैं।
मां दुर्गा को प्रसन्न करने के लिए चैत्र नवरात्रि 2025 के उपाय
नवरात्रि के पहले दिन अपने घर के बाहर स्वास्तिक बनाएं। इससे नकारात्मक ऊर्जा खत्म होती है और घर के अंदर सकारात्मकता आती है।
घर के अंदर सुख-शांति के आगमन के लिए लाल रंग के पुष्प और लाल रंग की चुनरी मां दुर्गा को अर्पित करें।
नवरात्रि के दौरान मां दुर्गा की सप्तशती का पाठ करें। इससे सभी इच्छाओं की पूर्ति होती है और जीवन में आ रही सभी अड़चनें दूर हो जाती हैं।
मां दुर्गा की कृपा पाने और मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए कमल के पुष्प अर्पित करें।
नवरात्रि के पूरे नौ दिनों तक अखंड ज्योत जलाएं। यह दिव्य ऊर्जा का प्रतीक है और इससे सभी इच्छाओं की पूर्ति होती है।
छोटी कन्याओं की अष्टमी या नवमी के दिन पूजा करें। इससे घर-परिवार में सुख-समृद्धि आती है।
हवन करने से नकारात्मक दूर होती है, वास्तु दोष का नाश होता है एवं बुरी नज़र से रक्षा होती है। यदि आप रोज़ हवन नहीं कर सकते हैं, तो अष्टमी, नवमी या दशमी तिथि पर हवन कर सकते हैं।
चैत्र नवरात्रि 2025 पर राशि अनुसार उपाय
चैत्र नवरात्रि 2025 पर आप अपनी राशि के अनुसार निम्न उपाय कर सकते हैं:
मेष राशि: मां दुर्गा को लाल रंग के चमेली के फूल अर्पित करें और गरीब लोगों को मसूर की दाल का दान करें।
वृषभ राशि: मां लक्ष्मी की पूजा करें और छोटी कन्याओं को परफ्यूम एवं श्रृंगार की चीज़ें दान में दें।
मिथुन राशि: ‘ॐ बुधाय नम:’ मंत्र का जाप करें और हरे रंग के फल एवं सब्जियों जैसे कि अमरूद और पालक आदि का दान करें।
कर्क राशि: मां ब्रह्माचारिणी की उपासना करें और गरीब लोगों को दूध एवं चावल से बनी चीज़ें दान में दें।
सिंह राशि: इस राशि वाले गायत्री मंत्र का जाप करें और मंदिर में गुड़ का दान करें।
कन्या राशि: सुख-समृद्धि के लिए कन्या राशि वाले मां सरस्वती की उपासना करें, उन्हें लाल रंग के पुष्प अर्पित करें और छोटी कन्याओं को हरे रंग के वस्त्र उपहार में दें।
तुला राशि: मां लक्ष्मी और मां दुर्गा की पूजा करें। गरीब लोगों को चावल, दूध, चीनी, सेवईयां दान में दें या हल्वा एवं खीर बांटें।
वृश्चिक राशि: आप मां चंद्रघंटा की पूजा करें एवं गरीब लोगों को तांबे के बर्तन दान में दें।
धनु राशि: आप ‘ॐ बृहस्पताये नम:’ मंत्र का जाप करें एवं मां सरस्वती का पूजन करें।
मकर राशि: अपने घर के पूजन स्थल में सरसों के तेल का दीपक जलाएं और गरीब एवं अनाथ लोगों को अन्न का दान करें।
कुंभ राशि: काले तिलों का दान करें और भाग्य में वृद्धि के लिए गरीब लोगों को अन्न एवं जल दें।
मीन राशि: मां स्कंदमाता की उपासना करें, वंचित बच्चों के स्कूल जाएं और उन्हें किताबें या पढ़ाई की अन्य चीज़ें दान में दें।
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अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न
प्रश्न 1. 2025 में चैत्र नवरात्रि कब हैं?
उत्तर. इस साल 30 मार्च, 2025 को रविवार को चैत्र नवरात्रि शुरू होंगे और इनका समापन 07 अप्रैल, 2025 को होगा।
प्रश्न 2. इस साल मां दुर्गा किस वाहन पर आ रही हैं?
उत्तर. इस साल मां दुर्गा हाथी पर सवार होकर आ रही हैं।
प्रश्न 3. चैत्र नवरात्रि के पहले दिन मां दुर्गा के किस रूप की पूजा होती है?
उत्तर. नवरात्रि का पहला दिन मां शैलपुत्री को समर्पित होता है।
अंक ज्योतिष साप्ताहिक राशिफल: 30 मार्च से 05 अप्रैल, 2025
कैसे जानें अपना मुख्य अंक (मूलांक)?
अंक ज्योतिष साप्ताहिक भविष्यफल जानने के लिए अंक ज्योतिष मूलांक का बड़ा महत्व है। मूलांक जातक के जीवन का महत्वपूर्ण अंक माना गया है। आपका जन्म महीने की किसी भी तारीख़ को होता है, उसको इकाई के अंक में बदलने के बाद जो अंक प्राप्त होता है, वह आपका मूलांक कहलाता है। मूलांक 1 से 9 अंक के बीच कोई भी हो सकता है, उदाहरणस्वरूप- आपका जन्म किसी महीने की 10 तारीख़ को हुआ है तो आपका मूलांक 1+0 यानी 1 होगा।
इसी प्रकार किसी भी महीने की 1 तारीख़ से लेकर 31 तारीख़ तक जन्मे लोगों के लिए 1 से 9 तक के मूलांकों की गणना की जाती है। इस प्रकार सभी जातक अपना मूलांक जानकर उसके आधार पर साप्ताहिक राशिफल जान सकते हैं।
अपनी जन्मतिथि से जानें साप्ताहिक अंक राशिफल (30 मार्च से 05 अप्रैल, 2025)
अंक ज्योतिष का हमारे जीवन पर सीधा प्रभाव पड़ता है क्योंकि सभी अंकों का हमारे जन्म की तारीख़ से संबंध होता है। नीचे दिए गए लेख में हमने बताया है कि हर व्यक्ति की जन्म तिथि के हिसाब से उसका एक मूलांक निर्धारित होता है और ये सभी अंक अलग-अलग ग्रहों द्वारा शासित होते हैं।
जैसे कि मूलांक 1 पर सूर्य देव का आधिपत्य है। चंद्रमा मूलांक 2 का स्वामी है। अंक 3 को देव गुरु बृहस्पति का स्वामित्व प्राप्त है, राहु अंक 4 का राजा है। अंक 5 बुध ग्रह के अधीन है। 6 अंक के राजा शुक्र देव हैं और 7 का अंक केतु ग्रह का है। शनिदेव को अंक 8 का स्वामी माना गया है। अंक 9 मंगल देव का अंक है और इन्हीं ग्रहों के परिवर्तन से जातक के जीवन में अनेक तरह के परिवर्तन होते हैं।
बृहत् कुंडलीमें छिपा है, आपके जीवन का सारा राज, जानें ग्रहों की चाल का पूरालेखा-जोखा
मूलांक 1
(अगर आपका जन्म किसी भी महीने की 1, 10, 19, 28 तारीख़ को हुआ है)
इस मूलांक वाले जातक अनुशासन में रहना पसंद करते हैं। ये जातक व्यवस्थित होते हैं और महत्वपूर्ण निर्णय लेने के लिए हमेशा तैयार रहते हैं।
प्रेम जीवन: इस सप्ताह आप अपने जीवनसाथी के साथ ईमानदार रहेंगे। ऐसा आपके व्यवहार के कारण हो सकता है।
शिक्षा: आप शिक्षा के क्षेत्र में उत्कृष्ट प्रदर्शन करेंगे और शानदार सफलता हासिल करने में सक्षम होंगे। इस समय आप बिज़नेस एडमिनिस्ट्रेशन और लॉ जैसी प्रोफेशनल स्टडीज़ में अच्छा प्रदर्शन कर सकते हैं।
पेशेवर जीवन: नौकरीपेशा जातकों को नौकरी के नए अवसर मिल सकते हैं और इनमें आपको सफलता एवं अधिकार प्राप्त हो सकता है। वहीं व्यापारियों के लिए रणनीतियां लाभदायक सिद्ध होंगी।
सेहत: इस समय आपका स्वास्थ्य उत्तम रहने वाला है और ऐसा आपकी हिम्मत एवं साहस की वजह से होगा। इस सप्ताह आप अपनी क्षमता को और अधिक विकसित कर सकते हैं।
उपाय: आप शनिवार के दिन शनि ग्रह के लिए यज्ञ-हवन करें।
मूलांक 2
(अगर आपका जन्म किसी भी महीने की 2, 11, 20, 29 तारीख़ को हुआ है)
यदि आपका मूलांक 2 है, तो इस समय आप कंफ्यूज़ रह सकते हैं और इसकी वजह से आप निर्णय लेने में संकोच कर सकते हैं। यह आपकी अपेक्षाओं के विरूद्ध हो सकता है।
प्रेम जीवन: आप अपने पार्टनर से बात करते समय असहज नज़र आ सकते हैं जिसकी वजह से आप आगे नहीं बढ़ सकेंगे और इसका असर आपके रिश्ते पर पड़ सकता है।
शिक्षा: आप शिक्षा के क्षेत्र में सफल होने के लिए अधिक दृढ़ता दिखा सकते हैं। इससे आप अपने साथी छात्रों से आगे निकल सकते हैं।
पेशेवर जीवन: नौकरीपेशा जातकों को नौकरी के नए अवसर मिलने की संभावना है। इससे आपके करियर को प्रगति मिलेगी। व्यापारियों के लिए अधिक मुनाफा कमाने के योग बन रहे हैं।
सेहत: इस समय आपकी सेहत उत्तम रहने वाली है और यह आपकी रोग प्रतिरोधक क्षमता के मज़बूत होने की वजह से संभव हो पाएगा।
उपाय: आप सोमवार के दिन मां पार्वती के लिए यज्ञ-हवन करें।
(अगर आपका जन्म किसी भी महीने की 3, 12, 21, 30 तारीख़ को हुआ है)
इस मूलांक वाले जातक अधिक व्यवस्थित और सिद्धांतों पर चलना पसंद करते हैं। ये लोग समय-समय पर अपने सिद्धांतों में बदलाव भी करते रहते हैं।
प्रेम जीवन: अहंकार की वजह से इस सप्ताह आपके रिश्ते में खटास आने की आशंका है। इस वजह से आप अपने पार्टनर के साथ खुश नज़र नहीं आएंगे।
शिक्षा: आप अपने साथी छात्रों के मुकाबले अच्छा प्रदर्शन करेंगे और उनसे अधिक अंक लेकर आएंगे। इससे पढ़ाई के मामले में आपकी प्रगति होगी।
पेशेवर जीवन: कार्यक्षेत्र में आपको सफलता मिलने के संकेत हैं। आपको नौकरी के नए अवसर भी मिल सकते हैं। वहीं व्यापारियों को इस सप्ताह अपनी रणनीतियों की वजह से अधिक मुनाफा कमाने का मौका मिलेगा।
सेहत: साहस और इम्युनिटी मज़बूत रहने के कारण आप शारीरिक रूप से स्वस्थ रहेंगे।
उपाय: आप बृहस्पतिवार के दिन बृहस्पति ग्रह के लिए यज्ञ-हवन करें।
मूलांक 4
(अगर आपका जन्म किसी भी महीने की 4, 13, 22, 31 तारीख़ को हुआ है)
इस मूलांक वाले जातक अधिक कुशल हो सकते हैं और इनकी लंबी यात्रा करने की अधिक इच्छा रहती है। ये जातक जीवन के प्रति जोश से भरे रह सकते हैं।
प्रेम जीवन: इस सप्ताह आप अपने जीवनसाथी में अधिक रुचि नहीं दिखा पाएंगे और इस वजह से आप दोनों के बीच दूरियां बढ़ सकती हैं और आपका रिश्ता खराब हो सकता है। इससे आपके रिश्ते को नुकसान पहुंच सकता है।
शिक्षा: इस समय छात्र पढ़ाई में उच्च अंक प्राप्त करने में असफल रह सकते हैं। आपको इस सप्ताह पढ़ाई को लेकर कोई महत्वपूर्ण निर्णय लेने से बचना चाहिए। साथ ही प्रतियोगी परीक्षा के लिए भी यह समय अनुकूल नहीं है।
पेशवर जीवन: नौकरीपेशा जातकों के ऊपर काम का दबाव बढ़ सकता है जिस वजह से कार्यक्षेत्र में उनके प्रदर्शन में गिरावट आने की आशंका है। वहीं व्यापारियों की रणनीतियां पुरानी होने के कारण, उन्हें नुकसान हो सकता है।
सेहत: इस सप्ताह आप शारीरिक रूप से अस्वस्थ रह सकते हैं। आपकी रोग प्रतिरोधक क्षमता के कमज़ोर होने की वजह से आपके बीमार होने का खतरा है।
उपाय: आप रोज़ 22 बार ‘ऊं राहवे नम:’ मंत्र का जाप करें।
मूलांक 5
(अगर आपका जन्म किसी भी महीने की 5, 14, 23 तारीख़ को हुआ है)
इस मूलांक वाले जातक अधिक बुद्धिमान होते हैं। ये हमेशा व्यवसाय पर ध्यान केंद्रित कर सकते हैं और इससे लाभ प्राप्त कर सकते हैं।
प्रेम जीवन: इस सप्ताह आपके और आपके जीवनसाथी के बीच अच्छे संबंध रहेंगे एवं आप दोनों का रिश्ता मज़बूत होगा। आप दोनों एक-दूसरे का सहयोग करते हुए नज़र आएंगे।
शिक्षा: छात्र पढ़ाई में उच्च कौशल विकसित करने और अधिक अंक प्राप्त करने में सक्षम हो सकते हैं। प्रोफेशनल स्टडीज़ जैसे कि सॉफ्टवेयर, फाइनेंशियल अकाउंटिंग आपके लिए लाभकारी सिद्ध होंगे।
पेशेवर जीवन: इस सप्ताह नौकरीपेशा जातकों को आसानी से सफलता मिल सकती है। वहीं आपको अपने उच्च अधिकारियों से पहचान और सराहना मिलने के योग हैं। यदि आप व्यवसाय करते हैं, तो इस समय आप अपने बिज़नेस के लिए एक टीम लीडर के रूप में उभर कर सामने आ सकते हैं।
सेहत: इस सप्ताह आपका स्वास्थ्य अच्छा रहने वाला है। आपकी रोग प्रतिरोधक क्षमता भी मज़बूत रहेगी जिससे आप फिट रहने वाले हैं।
उपाय: आप रोज़ 41 बार ‘ऊं नमो नारायण’ मंत्र का जाप करें।
(अगर आपका जन्म किसी भी महीने की 6, 15, 24 तारीख़ को हुआ है)
इस मूलांक वाले जातक जोश से भरपूर होते हैं। इनकी घूमने-फिरने और ललित कला में अधिक रुचि हो सकती है।
प्रेम जीवन: इस सप्ताह आप अपने पार्टनर के साथ अधिक जोश और उत्साह के साथ पेश आएंगे। आप अपने पार्टनर से रोमांटिक बातें कर सकते हैं।
शिक्षा: पढ़ाई के मामले में छात्रों के कौशल की सराहना होगी। मल्टीमीडिया, ग्राफिक्स और सॉफ्टवेयर टेस्टिंग जैसे विषय आपके लिए अच्छे साबित होंगे।
पेशेवर जीवन: इस सप्ताह नौकरीपेशा जातकों को अपने कार्यक्षेत्र में सफलता मिलने के संकेत हैं। यदि आप व्यापार करते हैं, तो आपको लाभ और हानि दोनों का सामना करना पड़ सकता है।
सेहत: इस समय आपकी सेहत अच्छी रहने वाली है। आपको कोई बड़ी स्वास्थ्य समस्या परेशान नहीं करेगी। हालांकि, आपको सिरदर्द जैसी समस्याएं हो सकती हैं।
उपाय: आप रोज़ 33 बार ‘ऊं शुक्राय नम:’ मंत्र का जाप करें।
मूलांक 7
(अगर आपका जन्म किसी भी महीने की 7, 16, 25 तारीख़ को हुआ है)
मूलांक 7 वाले जातकों का अलग-अलग दृष्टिकोण हो सकता है और ये ऊंचे लक्ष्य निर्धारित कर सकते हैं। ये लोग दूसरों से अलग-थलग रह सकते हैं।
प्रेम जीवन: आपके और आपके जीवनसाथी के बीच आपसी समझ की कमी के कारण आप अपने पार्टनर के साथ आगे नहीं बढ़ सकेंगे।
शिक्षा: हो सकता है कि आपको पढ़ाई के बारे में पूरी जानकारी न हो। मुमकिन है कि आप शिद्वाा के क्षेत्र में प्रगति करने के लिए सही निर्णय लेने की स्थिति में न हों।
पेशेवर जीवन: इस सप्ताह नौकरीपेशा जातकों के ऊपर काम का दबाव बढ़ सकता है और इस वजह से वे सफलता प्राप्त करने में असफल रह सकते हैं। गलत पद्धति के कारण व्यापारियों के हाथ से अधिक मुनाफा छूट सकता है।
सेहत: इम्युनिटी कमज़ोर होने की वजह से आपकी त्वचा धूप से जल सकती है या त्वचा पर जलन हो सकती है। त्वचा पर दाने होने के कारण आप परेशान हो सकते हैं।
उपाय: आप रोज़ 41 बार ‘ऊं केतवे नम:’ मंत्र का जाप करें।
मूलांक 8
(अगर आपका जन्म किसी भी महीने की 8, 17, 26 तारीख़ को हुआ है)
इस मूलांक वाले जातक इस सप्ताह अधिक अनुशासन में रह सकते हैं और इसी पर उनका ध्यान केंद्रित रह सकता है। ये जातक अपने करियर में कुछ बड़ा करने के लिए अपने लक्ष्यों पर ध्यान केंद्रित कर सकते हैं।
प्रेम जीवन: इस समय आप अपने जीवनसाथी के साथ खुले विचार नहीं रख पाएंगे। इस वजह से आप अपने पार्टनर के करीब जाने से चूक सकते हैं।
शिक्षा: मैकेनिकल और ऑटामोबाइल इंजीनियरिंग जैसे विषयों की पढ़ाई कर रहे छात्रों को इस सप्ताह सफलता मिल पाने की संभावना कम बनी हुई है।
पेशेवर जीवन: इस सप्ताह आपको अपने सहकर्मियों और उच्च अधिकारियों के साथ कुछ समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है। आप अपनी नौकरी से भी असंतुष्ट रहने वाले हैं। वहीं व्यापारियों के लिए उनके प्रतिद्वंदी परेशानियां खड़ी कर सकते हैं।
सेहत: इस सप्ताह मूलांक 8 वाले जातकों को पैरों और जांघों में अकड़न के साथ दर्द हो सकता है। इम्युनिटी के कमज़ोर होने की वजह से ऐसा हो सकता है।
उपाय: आप रोज़ 11 बार ‘ऊं हनुमते नम:’ मंत्र का जाप करें।
(अगर आपका जन्म किसी भी महीने की 9, 18, 27 तारीख़ को हुआ है)
मूलांक 9 वाले जातक अधिक भाग्यशाली हो सकते हैं और अधिक संपत्ति प्राप्त कर सकते हैं। ये जातक व्यवस्थित होते हैं और इनका अपने रिश्तों पर अधिक ध्यान केंद्रित रहता है।
प्रेम जीवन: आपके और आपके पार्टनर के बीच अहंकार से संबंधित समस्याएं हो सकती हैं और इसकी वजह से आप अपने जीवनसाथी के साथ खुशनुमा पल नहीं बिता पाएंगे।
शिक्षा: इस सप्ताह पढ़ाई में छात्रों का प्रदर्शन कमज़ोर रह सकता है। कभी-कभी आपकी पढ़ाई में रुचि कम हो सकती है और इसके कारण आप पीछे रह सकते हैं।
पेशेवर जीवन: आप कार्यक्षेत्र में अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पाएंगे और इसकी वजह से आप पीछे रह सकते हैं। यदि आप व्यापार करते हैं, तो इस सप्ताह आपके लिए अधिक मुनाफा कमाना मुश्किल हो सकता है।
सेहत: इस सप्ताह अधिक तनाव लेने के कारण आपको जांघों और कंधों में दर्द हो सकता है। आपको ध्यान करने की ज़रूरत है।
इसी आशा के साथ कि, आपको यह लेख भी पसंद आया होगा एस्ट्रोसेज के साथ बने रहने के लिए हम आपका बहुत-बहुत धन्यवाद करते हैं।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न
प्रश्न 1. इस सप्ताह मूलांक 8 वालों की सेहत कैसी रहेगी?
उत्तर. उन्हें पैरों और जांघों में अकड़न के साथ दर्द हो सकता है।
प्रश्न 2. कौन-सा नंबर बहुत लकी होता है?
उत्तर. 7 अंक को भाग्यशाली माना जाता है।
प्रश्न 3. मूलांक 6 वाले लोग कैसे होते हैं?
उत्तर. ये मिलनसार होते हैं।
एकसाथ पड़ रही है चैत्र और शनि अमावस्या, आज कर लिया ये काम तो फिर कभी नहीं सताएंगे शनि महाराज!
सनातन धर्म एवं वैदिक ज्योतिष में अमावस्या का बहुत महत्व है। हर महीने की कृष्ण पक्ष की अंतिम तिथि को अमावस्या पड़ती है। एक साल में कुल 12 अमावस्या पड़ती हैं और हर महीने में एक अमावस्या तिथि आती है। हिंदू पंचांग के अनुसार चैत्र अमावस्या हिंदू वर्ष का अंतिम दिन होता है। इसे भूतड़ी अमावस्या के नाम से भी जाना जाता है। अमूमन यह मार्च के आखिर या अप्रैल की शुरुआत में आती है।
आज एस्ट्रोसेज एआई के इस विशेष ब्लॉग में हम आपको चैत्र अमावस्या 2025 के बारे में बताने जा रहे हैं। इसके साथ ही इस बारे में भी चर्चा करेंगे कि इस दिन राशि अनुसार क्या दान करना चाहिए एवं चैत्र अमावस्या का क्या महत्व है और इस दिन किन बातों का विशेष ध्यान रखना चाहिए। तो चलिए अब बिना देर किए आगे बढ़ते हैं और जानते हैं चैत्र अमावस्या की तिथि एवं पूजन विधि के बारे में।
28 मार्च, 2025 को शाम को 07 बजकर 57 मिनट पर अमावस्या तिथि आरंभ होगी और इसका समापन 29 मार्च को शाम 04 बजकर 29 मिनट पर होगा। इस प्रकार चैत्र अमावस्या 29 मार्च को पड़ रही है।
शनि अमावस्या भी है इस दिन
चूंकि, यह अमावस्या शनिवार के दिन पड़ रही है इसलिए इस दिन शनिश्चरी अमावस्या भी मनाई जाएगी। शनि अमावस्या पर शनि देव को प्रसन्न करने एवं उनकी कृपा प्राप्त करने के लिए उनसे संबंधित वस्तुओं जैसे कि लोहा, तेल और काले वस्त्र दान करने का बहुत महत्व है। इस दिन काले तिल और काली उड़द की दाल का भी दान कर सकते हैं। इस दिन पितरों को प्रसन्न एवं शांत करने के लिए पूजा-पाठ एवं पिंडदान करना चाहिए। इसके अलावा शनि देव की मूर्ति के आगे सरसों के तेल का दीपक जलाएं।
चैत्र अमावस्या पर बन रहा है शुभ योग
इस दिन ब्रह्म योग बन रहा है जिसकी शुरुआत 28 मार्च को 02 बजकर 06 मिनट पर होगी और 29 मार्च को रात 10 बजकर 02 मिनट पर यह योग खत्म होगा। ज्योतिषशास्त्र के अनुसार ब्रह्म योग एक शक्तिशाली योग है जो कि अपार धन, बुद्धि, स्वास्थ्य, दीर्घायु और साहस प्रदान करता है।
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चैत्र अमावस्या का क्या महत्व है
पितरों का तर्पण करने के लिए अमावस्या तिथि को उपयुक्त माना जाता है। इस तरह चैत्र अमावस्या पर भी पितरों की शांति के लिए कुछ उपाय किए जा सकते हैं। इससे पितृ दोष से मुक्ति मिलती है और सारे कष्ट दूर हो जाते हैं। चैत्र अमावस्या पर कौवे, गाय, कुत्ते या गरीब लोगों को खाना खिलाया जाता है या उन्हें अपने सामर्थ्य के अनुसार दान दिया जाता है।
गरुण पुराण में वर्णित है कि अमावस्या तिथि पर पूर्वज अपने वंशजों के घर आते हैं। इसलिए इस दिन पितरों के नाम पर दान करने से उच्च फल प्राप्त होता है। इस दिन व्रत रखने का भी बहुत महत्व है। ऐसा करने से पितृ दोष से मुक्ति मिल सकती है। इसमें अमावस्या तिथि से व्रत शुरू करके प्रतिपदा तिथि पर चंद्रमा के दर्शन करने पर व्रत संपूर्ण होता है।
अगर आप चैत्र अमावस्या पर व्रत रखना चाहते हैं, तो इस दिन सुबह सूर्योदय से पहले उठकर स्नान आदि से निवृत्त हो जाएं। अगर संभव हो, तो इस दिन किसी पवित्र नदी में स्नान भी कर सकते हैं या फिर आप अपने नहाने के पानी में गंगाजल मिलाकर स्नान करें।
इसके बाद आप अपने घर के पूजन स्थल में दीपक जलाएं और व्रत का संकल्प लें। फिर एक लोटे जल में गंगाजल डालकर सूर्य देव को अर्घ्य दें।
इस दिन पितरों के नाम पर दान करना चाहिए। ऐसा करने से पितर प्रसन्न होते हैं एवं मनुष्य के जीवन के सारे कष्ट दूर हो जाते हैं।
चैत्र अमावस्या पर अपने इष्ट देव का ध्यान करना भी शुभ होता है।
अगर आपकी कुंडली में पितृ दोष है, तो इससे मुक्ति पाने के लिए आप चैत्र अमावस्या के दिन काले तिलों का दान कर सकते हैं। माना जाता है कि इस उपाय को करने से पितृ दोष दूर होता है और शनि देव की कृपा प्राप्त होती है।
पितरों की शांति के लिए ब्राह्मण को भोजन करवाना ज़रूरी होता है। इससे पितरों की आत्मा को तृप्ति मिलती है।
इसके अलावा पीपल के वृक्ष की पूजा करें, जल चढ़ाएं और शाम के समय दीपक जलाएं।
दरिद्रता दूर करने के लिए
अमावस्या तिथि पर तांबे के लोटे में लाल चंदन, गंगा जल और शुद्ध जल मिलाकर ‘ॐ घृणि सूर्याय नम:’ मंत्र का जाप करते सूर्य देव को अर्घ्य दें। इस उपाय को करने से गरीबी दूर हो जाती है।
इस दिन पितरों के नाम पर असहाय और गरीब लोगों को भोजन कराएं। इससे पैसों की तंगी दूर होती है और धन-संपत्ति की प्राप्ति होती है।
चंद्रमा कमज़ोर हो तो क्या करें
यदि किसी व्यक्ति की कुंडली में चंद्रमा कमज़ोर है, तो वह जातक अमावस्या के दिन गाय को दही और चावल खिलाए। इससे मन शांत रहता है।
चैत्र अमावस्या पर न करें ये गलतियां
सनातन धर्म में चैत्र अमावस्या का बहुत महत्व है इसलिए इस दिन तामसिक भोजन एवं मदिरा आदि का सेवन नहीं करना चाहिए। इस दिन प्याज़ और लहसुन से भी परहेज़ करना चाहिए।
इसके अलावा अमावस्या तिथि पर घर आए भिक्षुक या ब्राह्मण को खाली हाथ नहीं भोजना चाहिए।
अमावस्या पर देर तक सोने से बचना चाहिए बल्कि सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि कर लेना चाहिए एवं रातभर ईश्वर का ध्यान करना चाहिए।
इस तिथि पर बाल एवं नाखून भी नहीं काटने चाहिए। ऐसा करना बहुत अशुभ होता है।
अमावस्या पर आप गरीबों को दान करें एवं बड़ों का सम्मान करें और किसी से भी अपशब्द न कहें।
चैत्र अमावस्या 2025 पर राशि अनुसार क्या दान करें
आप चैत्र अमावस्या पर राशि अनुसार निम्न चीज़ों का दान कर सकते हैं:
मेष राशि: आप मसूर की दाल, गुड़, लाल रंग के वस्त्र और तांबे के बर्तनों का दान करें। ऐसा करने से आपका कर्ज़ खत्म होगा, शत्रुओं का नाश और मानसिक शांति मिलेगी।
वृषभ राशि: चैत्र अमावस्या पर वृषभ राशि के जातक सफेद रंग के वस्त्र, दही चावल, मिश्री और शंख का दान करें। इससे आपके परिवार में सुख और धन में वृद्धि होगी।
मिथुन राशि: इस राशि वाले हरे रंग के कपड़े, मूंग की दाल, पान के पत्ते और हरे रंग का फूल दान में दें। इससे आपको अपने करियर में प्रगति मिलेगी।
कर्क राशि: आप चैत्र अमावस्या पर दूध, चावल, चांदी, सफेद रंग की मिठाई और मोती का दान करें। इस उपाय से आपके घर में शांति आएगी और आपकी मां की सेहत में सुधार आएगा।
सिंह राशि: आप गेहूं, गुड़, तांबे के बर्तन, लाल रंग के फल जैसे कि सेब और अनार का दान करें। इससे आपको करियर में उन्नति मिलेगी और आपके आत्मविश्वास में वृद्धि होगी।
कन्या राशि: चैत्र अमावस्या पर कन्या राशि वाले तुलसी, किताबों, स्टेशनरी, अनाज और हरी मूंग का दान करें। इससे आपको आर्थिक समृद्धि मिलेगी।
तुला राशि: आप इत्र, चंदन, सफेद रंग के वस्त्र, दही और सुगंधित फूल आदि का दान करें। इससे वैवाहिक जीवन में सुख आता है और प्रेम संबंध मज़बूत होते हैं।
वृश्चिक राशि: आप लाल मसूर की दाल, तांबे का सिक्का, बेलपत्र और लाल रंग के कपड़ों का दान करें।
धनु राशि: पीले रंग के वस्त्र, हल्दी, केले, घी, चने की दाल का दान करने से आपको लाभ होगा।
मकर राशि: इस राशि वाले सरसों के तेल, लोहे की वस्तुओं, उड़द की दाल और काले तिल का दान करें।
कुंभ राशि: आप चैत्र अमावस्या पर नीले रंग के कपड़ों, छाता, जूते और तिल आदि का दान करें।
मीन राशि: ये जातक मानसिक शांति के लिए अमावस्या तिथि पर पीले रंग की मिठाई, हल्दी, केसर, चंदन का दान करें और गाय को चारा खिलाएं।
हम उम्मीद करते हैं कि आपको हमारा यह लेख ज़रूर पसंद आया होगा। अगर ऐसा है तो आप इसे अपने अन्य शुभचिंतकों के साथ ज़रूर साझा करें। धन्यवाद!
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न
प्रश्न 1. 2025 में चैत्र अमावस्या कब है?
उत्तर. चैत्र अमावस्या 29 मार्च को पड़ रही है।
प्रश्न 2. चैत्र अमावस के दिन क्या करना चाहिए?
उत्तर. इस दिन स्नान और दान करना चाहिए।
प्रश्न 3. अमावस्या की रात को क्या नहीं करना चाहिए?
उत्तर. इस दिन क्रोध, ईर्ष्या और मास मदिरा का सेवन नहीं करना चाहिए।
शनि गोचर के साथ ही लग रहा है सूर्य ग्रहण, इन राशियों को भुगतने पड़ेंगे भयंकर परिणाम
सूर्य ग्रहण 2025: एस्ट्रोसेज एआई की हमेशा से यही पहल रही है कि किसी भी महत्वपूर्ण ज्योतिषीय घटना की नवीनतम अपडेट हम अपने रीडर्स को समय से पहले दे पाएं और इसी कड़ी में हम आपके लिए लेकर आए हैं सूर्य ग्रहण 2025 से संबंधित यह खास ब्लॉग।
29 मार्च, 2025 को साल का पहला सूर्य ग्रहण लगेगा। इसी दिन एक और दिलचस्प एवं प्रभावशाली ज्योतिषीय घटना देखने को मिलेगी जो कि शनि का मीन राशि में गोचर है। आप पंचांग 2025 में भी इसे देख सकते हैं।
ज्योतिष में सूर्य ग्रहण को एक शक्तिशाली घटना के रूप में देखा जाता है जो कि बदलाव और परिवर्तन का समय होता है। जब चंद्रमा पृथ्वी और सूर्य के बीच आ जाता है, तब वह कुछ क्षणों के लिए सूर्य की रोशनी को अवरूद्ध कर देता है जिसे सूर्य ग्रहण के रूप में जाना जाता है। वैदिक ज्योतिष के अनुसार इस समय जो चीज़ें अज्ञात या गुप्त होती हैं, वे सामने आ सकती हैं और जीवन में बड़े बदलाव ला सकती हैं। इस समय लोगों को अपने स्वास्थ्य खासतौर पर आंखों और हृदय को लेकर अधिक सतर्क रहने की ज़रूरत होती है। तो चलिए आगे बढ़ते हैं और जानते हैं कि ज्योतिषीय दृष्टि से सूर्य ग्रहण 2025 का क्या प्रभाव पड़ेगा।
सूर्य ग्रहण प्रारंभ होने का समय(भारतीय स्टैंडर्ड टाइम के अनुसार)
सूर्य ग्रहण समाप्त होने का समय
दृश्यता का क्षेत्र
चैत्र मासकृष्ण पक्षअमावस्या तिथि
शनिवार, 29 मार्च, 2025
दोपहर 02 बजकर 21 मिनट से शुरू
शाम 06 बजकर 14 मिनट तक
बरमूड़ा, बारबदोस, डेनमार्क, ऑस्ट्रिया, बेल्जियम, उत्तरी ब्राज़ील, फिनलैंड, जर्मनी, फ्रांस, हंगरी, आयरलैंड, मोरक्को, ग्रीनलैंड, पूर्वी कनाडा, लिथुआनिया, नीदरलैंड, पुर्तगाल, उत्तरी रूस, स्पेन, सूरीनाम, स्वीडन, पोलैंड, पुर्तगाल, नॉर्वे, यूक्रेन, स्विट्जरलैंड, इंग्लैंड और संयुक्त राज्य अमेरिका का पूर्वी क्षेत्र)(यह ग्रहण भारत में दृश्यमान नहीं है)
नोट: सूर्य ग्रहण 2025 की बात करें, तो उपरोक्त तालिका में बताया गया समय भारतीय मानक समय (IST) के अनुसार है।
सूर्य ग्रहण 2025: सभी राशियों पर प्रभाव
मेष राशि
मेष राशि के बारहवें भाव में मीन राशि में सूर्य राहु के साथ विराजमान रहेंगे। ये अपनी योग्यता और वित्तीय समझ का सही उपयोग कर के अपनी आय और खर्चों को संभालने में सक्षम होंगे। इससे इनकी आर्थिक स्थिति बेहतर होगी। आपको अपनी जान-पहचान के लोगों के सहयोग से अपने लक्ष्यों को पूरा करने में मदद मिलेगी। आज आपको अपने भाई-बहनों और अपने अधीन काम करने वाले लोगों से अत्यधिक सहयोग मिलने की संभावना है। आप अपने परिवार को किसी तीर्थस्थल की यात्रा पर लेकर जा सकते हैं।
वृषभ राशि के चौथे भाव के स्वामी सूर्य देव हैं और यह भाव मां एवं सुख का होता है। सूर्य वृषभ राशि के ग्यारहवें भाव में राहु के साथ युति में बैठे हैं। इस समय काम को लेकर आपके फोकस में कमी आ सकती है जिससे आपके लिए अपने लक्ष्यों पर ध्यान केंद्रित कर पाना मुश्किल हो सकता है। इसका प्रभाव कार्यक्षेत्र में आपकी उत्पादकता पर भी देखने को मिलेगा। आपके लिए धार्मिक स्थल की यात्रा करने के योग बन रहे हैं। हालांकि, शाम तक चीज़ें आपके नियंत्रण में आ जाएंगी और आप अपनी गलतियों को पहचानने में सक्षम होंगे। आप आगे के लिए योजना बना सकते हैं। आपको अपने माता-पिता की सेहत का ख्याल रखने की सलाह दी जाती है। आज के दिन प्रेमियों को बेवजह की बातों पर झगड़ा करने से बचना चाहिए।
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मिथुन राशि
मिथुन राशि के तीसरे भाव के स्वामी सूर्य देव हैं और अब वह इस राशि के दसवें भाव में उपस्थित हैं। आपको एहसास होगा कि आपके अंदर धैर्य की कमी है जिसका असर आपके काम करने के तरीके पर पड़ सकता है। हालांकि, शाम तक या सूर्य ग्रहण 2025 के बाद कुछ दिनों के अंदर परिस्थिति बेहतर होने लगेगी। आपको अपनी संतान के स्वास्थ्य और शिक्षा पर ध्यान देने की आवश्यकता है। आप अपने शत्रुओं और प्रतिद्वंदियों पर हावी रहेंगे। हालांकि, मुश्किल निर्णय लेते समय निवेशकों को सावधान रहने की ज़रूरत है। यदि आप कहीं और जाना चाहते हैं, तो आपको कुछ दिनों के लिए अपने इस निर्णय को टाल देना चाहिए।
कर्क राशि के दूसरे भाव के स्वामी सूर्य ग्रह हैं जो कि अब राहु के साथ आपके नौवें भाव में रहेंगे। कर्क राशि वाले अपने करियर और नौकरी को लेकर महत्वपूर्ण निर्णय लेने में सक्षम होंगे जिससे उन्हें भविष्य में लाभ होने की उम्मीद है। आप कहीं घूमने की योजना बना सकते हैं। आपके अधीन काम करने वाले लोग आपके लिए सहायक साबित होंगे। आपको अपने भाई-बहनों की उपलब्धियों को लेकर कोई शुभ समाचार मिल सकता है। इसके अलावा अगर कोई कानूनी मुकदमा चल रहा है, तो आप उसमें जीत हासिल कर सकते हैं। अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए इस समय छात्र अधिक एकाग्र नज़र आएंगे।
सिंह राशि के पहले भाव के स्वामी सूर्य देव हैं और अब वह आपके आठवें भाव में विराजमान रहेंगे। बातचीत करने में कुशल होने के कारण आपको अपने करियर में सफलता प्राप्त होगी। सभी से विनम्रता से बात करने की वजह से आपकी प्रतिष्ठा में इज़ाफा होगा। खर्चे बढ़ने के कारण आपकी बचत प्रभावित हो सकती है। आपके सहकर्मी आपके निर्णयों में आपका समर्थन करेंगे जिससे आपके कार्य और तेजी से आगे बढ़ेंगे। प्रेमी एक-दूसरे से सकारात्मक विचार साझा कर सकते हैं जिससे उनके रिश्ते की नींव मज़बूत होगी।
कन्या राशि के बारहवें भाव के स्वामी सूर्य देव हैं जो कि अब आपके सातवें भाव में बैठे हैं। ये जातक अपने जीवनसाथी पर हावी होने की कोशिश कर सकते हैं जिससे इनके वैवाहिक जीवन पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है। आपको अपनी नौकरी और कार्यक्षेत्र में दिए गए दायित्व बोझ लग सकते हैं। इस समय आपकी ऊर्जा काफी कम रह सकती है। आपको अपनी कड़ी मेहनत की वजह से आर्थिक स्तर पर सफलता मिलने के योग हैं। आप अपनी गरिमा को बनाए रखकर नकारात्मक लोगों से खुद को दूर रख सकते हैं।
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तुला राशि
तुला राशि के ग्यारहवें भाव के स्वामी सूर्य देव हैं जो कि अब इस राशि के छठे भाव में राहु के साथ युति में बैठे हैं। कुंडली का छठा भाव कर्ज़ और रोग का कारक होता है। चूंकि, यह भाव सरकार को भी दर्शाता है इसलिए जो जातक सरकारी नौकरी करते हैं, उनके ऊपर उच्च अधिकारी सवाल उठा सकते हैं या उन्हें अन्य समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है। अत्यधिक कठोर बनने या दूसरों पर हावी होने की प्रवृत्ति के कारण आपकी अपने सहकर्मियों, परिवार के सदस्यों या अन्य लोगों से मतभेद होने की आशंका है। इससे आपके विकास में बाधा आ सकती है और आप अपने भविष्य के बारे में सोच पाने में असमर्थ हो सकते हैं। इससे आपके विचार और सफल होने की प्रेरणा पर प्रभाव पड़ सकता है। यह समय अपने शब्दों और कार्यों पर विचार करने एवं उनकी समीक्षा करने के लिए है।
वृश्चिक राशि के दसवें भाव के स्वामी सूर्य देव हैं जो कि अब आपके शिक्षा, व्यवसाय और रचनात्मकता के भाव यानी पंचम भाव में विराजमान रहेंगे। वृश्चिक राशि के जातकों को अपने अज्ञात शत्रुओं, बीमारी और पैसों की तंगी या चोरी होने जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है। चूंकि, सूर्य आपके दशम भाव के स्वामी हैं इसलिए सूर्य गोचर 2025 की समयावधि आपके लिए ज्यादा अनुकूल नहीं रहने वाली है। आपके ऊपर कर्ज़ एवं वित्तीय समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है। इन्हें कार्यक्षेत्र में अपने सहकर्मियों या प्रतिद्वंदियों से खतरा हो सकता है। आपके अपने पिता, प्रोफेसर या सलाहकार से विवाद होने के संकेत हैं। ऐसे में आपको सावधान रहने की आवश्यकता है।
धनु राशि के नौवें भाव के स्वामी सूर्य देव हैं और अब सूर्य गोचर 2025 के दौरान वह राहु के साथ आपके चौथे भाव में विराजमान रहेंगे। अत्यधिक काम करने की वजह से आप थका हुआ महसूस कर सकते हैं। इसके अलावा आपकी एकाग्रता में भी कमी आने के संकेत हैं। इस गोचर के प्रभाव के कारण आप लापरवाह और सुस्त हो सकते हैं इसलिए आपको इस समय धैर्य बनाए रखने की सलाह दी जाती है। आप अपनी लंबी दूरी की यात्राओं को कुछ समय के लिए टाल दें। आपके सभी पुराने निवेश घाटे में जा सकते हैं। छात्रों को अत्यधिक प्रयास करने की ज़रूरत है। वहीं विवाहित जातकों को किसी भी बात पर अपने जीवनसाथी से बहस करने से बचना चाहिए।
मकर राशि वाले जातक अपने काम और करियर में बहुत ज्यादा व्यस्त रहने वाले हैं। आपको कम मेहनत करने पर भी सफलता मिलने के योग हैं। आपको पूर्व में किए गए अपने निवेश से अच्छा लाभ मिलने की संभावना है। आप अपने निजी जीवन और करियर दोनों का आनंद ले पाएंगे। आपकी लोकप्रियता में इज़ाफा देखने को मिलेगा। आप कोई नया व्यवसाय शुरू सकते हैं। आप इस समय अपने जीवनसाथी के साथ अपने विवादों को सुलझा सकते हैं।
पहले की चुनौतीपूर्ण स्थितियों के ठीक होने की वजह से कुंभ राशि के जातक सूर्य ग्रहण 2025 के दौरान राहत महसूस कर सकते हैं। कार्यक्षेत्र में आपको अपने नेटवर्क से फायदा हो सकता है। आपको काम के सिलसिले में विदेश यात्रा पर जाने का मौका मिल सकता है। इस समयावधि में पारिवारिक जीवन में सुख-शांति बनी रहेगी और प्रेम संबंध भी फल-फूलेंगे। आप अपने परिवार के लिए कलात्मक या रचनात्मक वस्तुएं ला सकते हैं। आप अपने परिवार या दोस्तों को कहीं बाहर घुमाने भी लेकर जा सकते हैं।
मीन राशि के छठे भाव के स्वामी सूर्य देव हैं जो कि अब आपके पहले भाव में रहेंगे। यह स्थिति आपको नकारात्मक लग सकती है लेकिन इससे आपको अशुभ परिणाम प्राप्त नहीं होंगे बल्कि कुछ हद तक इससे आपको मदद ही मिलेगी। इस समय आपके अंदर रचनात्मकता बढ़ सकती है जिससे आपकी अपने घर को रेनोवेट करने की इच्छा हो सकती है। आप अपने घर या ऑफिस को बेहतर बनाने के लिए कुछ सामान खरीद सकते हैं। इससे समाज में आपकी प्रतिष्ठा बढ़ेगी। इसके अलावा आपके और आपके जीवनसाथी के बीच अच्छे संबंध रहेंगे। इससे आपको अपने निजी जीवन में संतोष महसूस होगा। आपके अपने पार्टनर, सहकर्मियों और दोस्तों के साथ चल रहे मतभेद अब सुलझ सकते हैं। यदि पहले से कोई मुकदमा या विवाद चल रहा है, तो आपको इस संबंध में शुभ समाचार मिल सकता है।
ग्रहण के दौरान शरीर पर तेल लगाने या स्पा जाने या मालिश करवाने से बचें।
यदि संभव हो, तो ग्रहण के दौरान कहीं भी यात्रा करने से बचना चाहिए।
ग्रहण शुरू होने से पहले तुलसी के पत्ते का सेवन करना चाहिए।
आप ग्रहण के दौरान धार्मिक ग्रंथों का पाठ और मंत्रों का जाप कर सकते हैं।
सूर्य ग्रहण के दौरान सूर्य मंत्र ‘ॐ सूर्याय नम:’ का जाप करना भी लाभकारी होता है।
सूर्य ग्रहण के समय ईश्वर का ध्यान करें और आप शुभ कार्य जैसे कि दान आदि भी कर सकते हैं। आप अपनी इच्छा के अनुसार दान कर सकते हैं।
सूर्य ग्रहण के दौरान गेहूं का दान करने से आर्थिक लाभ होता है।
सूर्य आत्मा के कारक हैं इसलिए सूर्य ग्रहण के दौरान योग और ध्यान करना लाभकारी रहता है। इससे शांति मिलती है एवं आत्मविश्वास में वृद्धि होती है।
ग्रहण के समाप्त होने पर स्नान करना चाहिए।
सूर्य ग्रहण 2025: गर्भवती महिलाओं के लिए सावधानियां
वैदिक ज्योतिष के अनुसार सूर्य ग्रहण के दौरान दुनियाभर के लोगों पर नकारात्मक ऊर्जाएं हमला करने लगती हैं। इसलिए विशेष रूप से गर्भवती महिलाओं को सावधानी बरतनी चाहिए क्योंकि गर्भावस्था में महिला के शरीर के अंदर कई तरह के हार्मोनल बदलाव आते हैं जिसके कारण नकारात्मक ऊर्जाएं आसानी से इन पर हमला कर सकती हैं। ग्रहण के दौरान खासतौर पर गर्भवती महिलाओं के लिए स्वस्थ रहना बहुत महत्वपूर्ण होता है। आगे सूर्य ग्रहण 2025 के दौरान गर्भवती महिलाओं की सुरक्षा के लिए कुछ उपाय बताए गए हैं।
कभी भी सूर्य ग्रहण के दौरान नंगी आंखों से सूर्य की ओर नहीं देखना चाहिए क्योंकि इससे आंखों को नुकसान पहुंच सकता है। चूंकि, आजकल ज्यादातर महिलाएं कामकाजी होती हैं और अगर आप गर्भवती हैं और आपको काम के लिए घर से बाहर निकलना है, तो आपको अधिक सावधान रहना चाहिए।
अगर आप गर्भवती हैं और आपका ग्रहण के दौरान बाहर जाना ज़रूरी है, तो आप सुरक्षा मानकों को पूरा करने वाले चश्मे या ग्रहण को देखने वाले अन्य उपकरणों का प्रयोग करें।
जिन महिलाओं की कुंडली में सूर्य कमज़ोर होता है, उन्हें अत्यधिक सावधानी बरतनी चाहिए क्योंकि सूर्य आंखों की रोशनी एवं आरोग्य बल या स्वास्थ्य के कारक हैं।
यदि आप गर्भवती हैं, तो ग्रहण के दौरान और सूतक काल में सुईं का इस्तेमाल करने से बचें। इसके अलावा इस समय सोना भी नहीं चाहिए।
परंपरा के अनुसार ग्रहण के समय कुछ भी खाना-पीना वर्जित है, हालांकि गर्भवती महिलाओं को हाइड्रेट रहना चाहिए और खूब पानी पीना चाहिए। किसी भी तरह की समस्या से बचने के लिए आप खीरे जैसे फल खा सकती हैं।
अगर आपको काम को लेकर सार्वजनिक स्थान पर जाना पड़ रहा है, तो आप लोगों से दूरी बनाकर रखें और खासतौर पर भीड़भाड़ वाली जगहों से दूर रहें। अगर आपकी प्रेग्नेंसी के आखिरी महीने चल रहे हैं, तो आप किसी भी ऐसी परिस्थिति से बचें जहां पर धक्का-मुक्की होने या तनाव होने का डर रहे।
कुछ गर्भवती महिलाओं को ग्रहण के दौरान होने वाली उत्तेजना या तनाव से चिंता हो सकती है। अगर आपको तनाव या असहज महसूस हो रहा है, तो आप घर से बाहर न निकलें और आराम करें।
यदि आप थका हुआ या असहज महसूस कर रही हैं, तो आपको अपने शरीर पर ध्यान देना चाहिए और आराम करना चाहिए। प्रेग्नेंसी में थकान होना आम बात है इसलिए काम से ब्रेक लेने में हिचकिचाएं नहीं और ज्यादा थकान न होने दें।
यदि संभव हो, तो सूर्य ग्रहण के दौरान कुछ भी खाएं-पिएं नहीं।
ग्रहण के समय नुकीली चीज़ों का इस्तेमाल करने से बचें।
कुछ परंपराओं के अनुसार ग्रहण के दौरान मंत्र जाप या प्रार्थना करना शुभ माना जाता है।
मान्यता है कि ग्रहण से पहले और बाद में स्नान करना चाहिए।
पूरे ढ़के हुए कपड़े पहनें या विशेष ताबीज़ पहनना लाभकारी हो सकता है।
सूर्य ग्रहण 2025: स्वास्थ्य पर प्रभाव
वैदिक चिकित्सा ज्योतिष में सूर्य ग्रहण को इम्युनिटी के कमज़ोर होने और जीवनशैली में कुछ बदलाव करने को दर्शाता है। यह महत्वपूर्ण घटनाओं जैसे कि नई नौकरी शुरू करने या किसी रिश्ते को खत्म करने का संकेत भी दे सकता है। सूर्य हृदय, हड्डियों, मांसपेशियों और आंखों आदि का कारक है और सूर्य ग्रहण 2025 के दौरान लोगों को इन अंगों से संबंधित समस्याएं होने का खतरा अधिक रहता है। यदि किसी व्यक्ति को पहले से ही इन अंगों से जुड़ी कोई समस्या है, तो उन जातकों को विशेष रूप से सावधानी बरतनी चाहिए।
सूर्य ग्रहण का स्वास्थ्य पर क्या असर पड़ता है
सूर्य ग्रहण स्वास्थ्य से संबंधित चिंताओं को दूर करने के लिए बदलाव लाने की प्रेरणा दे सकता है।
यह लोगों को अपनी ऐसी पुरानी आदतों, धारणाओं और भावनाओं को छोड़ने के लिए प्रोत्साहित कर सकता है जो अब उनके विकास में सहायक नहीं हैं।
सूर्य ग्रहण छिपी हुई बातों या रहस्यों को उजागर कर सकता है।
सूर्य ग्रहण का लाभ कैसे उठाएं
अतीत को पीछे छोड़कर विकास और नवीनीकरण के नए अवसरों को अपनाएं।
स्पष्ट उद्देश्य निर्धारित करें, अपने लक्ष्यों पर विचार करें, अपनी राशि के अनुसार मार्गदर्शन के लिए किसी ज्योतिषी से परामर्श लें और ध्यान करें।
अपने लक्ष्यों को निर्धारित कर उन्हें प्राप्त करने का प्रयास करें।
अपने जीवन के बारे में सोचें और जो चीज़ें आपको रोक रही हैं, उन्हें छोड़ने की कोशिश करें।
आप सच्चाई का सामना करें जिससे आपको विकास करने और विश्वसनीय बनने में मदद मिले।
इसी आशा के साथ कि, आपको यह लेख भी पसंद आया होगा एस्ट्रोसेज के साथ बने रहने के लिए हम आपका बहुत-बहुत धन्यवाद करते हैं।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न
प्रश्न 1. सूर्य ग्रहण को सकारात्मक क्यों नहीं माना जाता है?
उत्तर. सूर्य ग्रहण को नकारात्मक माना जाता है क्योंकि इस दौरान सूर्य राहु या केतु की छाया में आ जाता है और ग्रहण के समय सूर्य की किरणों का प्रभाव नकारात्मक पड़ सकता है।
प्रश्न 2. किस राशि में सूर्य ग्रहण 2025 लगेगा?
उत्तर. यह ग्रहण मीन राशि में लगेगा।
प्रश्न 3. किस महीने में सूर्य ग्रहण लगने जा रहा है?
उत्तर. चैत्र मास, कृष्ण पक्ष।
हिन्दू नववर्ष 2025: चैत्र शुक्ल प्रतिपदा (विक्रमी संवत् 2082) की विशेष भविष्यवाणी
हिंदू नव वर्ष 2025 इस बार 29 मार्च 2025 शनिवार की शाम 16 बजकर 27 मिनट से आरंभ हो जाएगा। लेकिन, सूर्योदय कालीन तिथि ग्रहण करने के कारण सनातन धर्म का नव वर्ष 2025 यानी कि विक्रम संवत् 2082 इस वर्ष 30 मार्च 2025 रविवार के दिन मनाया जाएगा। चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को हिंदू नव वर्ष की शुरुआत माना जाता है और इसी दिन से विक्रम संवत बदल जाता है। इस बार 29 मार्च को चैत्र शुक्ल प्रतिपदा प्रारंभ होगी, लेकिन उदया तिथि के अनुसार, चैत्र नवरात्रि और नव वर्ष उत्सव 30 मार्च 2025, रविवार के दिन पूरे हर्षोल्लास से मनाया जाएगा।
सनातन धर्म प्राचीन काल से ही अस्तित्व में रहा है और चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि को हिंदू धर्म का नव वर्ष मनाया जाता है इसलिए यह सभी सनातन धर्म को मानने वाले लोगों के लिए एक विशेष और अत्यंत महत्वपूर्ण दिन है जो इस वर्ष भी प्रत्येक वर्ष की भांति भक्ति भाव और भव्य तरीके से मनाया जाएगा। सनातन धर्म के लोग इस पर्व को पूरे विधि-विधान और उत्साह के साथ मनाएंगे। मां दुर्गा की शक्ति आराधना का पवित्र पावन चैत्र नवरात्रि भी 30 मार्च 2025 से शुरू हो जाएगा और इसी दिन घट स्थापना भी होगी।
चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को नूतन संवत्सर का आरंभ होता है। यह विशेष दिन सभी के लिए अत्यंत शुभ समय लेकर आता है। यही वजह है कि इस दिन को सभी अपने निवास स्थान पर अपने कुल गोत्र और संप्रदाय के अनुसार ध्वज लगाकर विधि विधान से मनाते हैं। इस दिन अपने घर को सजाना चाहिए, प्रकाश करना चाहिए, मंगल गीत गाने चाहिए, रोशनी करनी चाहिए, तोरण को लगाना चाहिए तथा मंगल स्नान करने के बाद इस दिन विशेष रूप से देवी-देवताओं, कुल पुरोहित, ब्राह्मणों, गुरुजनों और धर्म ध्वज की पूजा-अर्चना करनी चाहिए। इस दिन विशेष रूप से अपने ध्वज के नीचे बैठकर सभी को पूजा-अर्चना करनी चाहिए। इस दिन नए वस्त्र-आभूषण धारण करने चाहिए और अपने व्यक्तिगत ज्योतिषी से नए संवत्सर का भविष्यफल भी जानना चाहिए जिससे आप अपने आने वाले समय को और बेहतर बना सकें।
नए संवत्सर का आरंभ होना यानी हिंदू नव वर्ष का शुरू होना सभी के लिए बहुत महत्वपूर्ण होता है इसलिए ज्योतिषी से पूरे वर्ष का पूर्ण अवलोकन भी करवा लेना चाहिए। इससे हमें पता चलता है कि हमारे जीवन में किस प्रकार की घटनाएं पूरे वर्ष संवत्सर के दौरान घट सकती हैं। हम यह भी जानने की उत्सुकता रखते हैं कि नया संवत्सर हमारे देश और दुनिया के लिए तथा आम इंसान के लिए किस प्रकार के परिणाम लेकर आएगा? ईश्वर की कृपा से और ग्रहों के गोचर एवं चाल के परिणाम स्वरूप किस प्रकार के परिणाम हम सभी को प्राप्त होंगे।
इस वजह से हम चैत्र महीने के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि यानी कि वर्ष लग्न कुंडली का विशेष रूप से अवलोकन करते हैं। जब भी हमें नव वर्ष के बारे में भविष्यवाणी करने की आवश्यकता होती है, तो हम चैत्र शुक्ल प्रतिपदा यानी कि वर्ष लग्न कुंडली का अवलोकन विशेष रूप से करते हैं और उसके साथ ही वर्ष जगत लग्न कुंडली का भी अवलोकन करते हैं। इन्हीं के आधार पर पूरे संवत्सर में होने वाली शुभ-अशुभ घटनाओं के बारे में पूर्ण रूप से विचार किया जाता है और यह जानने का प्रयास किया जाता है कि आने वाला संवत्सर किस प्रकार की अच्छी और बुरी परिस्थितियों को जन्म देने वाला है।
(चैत्र शुक्ल प्रतिपदा 2025 वर्ष लग्न कुंडली)
बृहत् कुंडली में छिपा है, आपके जीवन का सारा राज, जानें ग्रहों की चाल का पूरा लेखा-जोखा
हिंदू नव वर्ष 2025 चैत्र शुक्ल प्रतिपदा विक्रम संवत् 2082 जिसे हम नूतन वर्षारंभ या नूतन संवत्सर आरंभ भी कहते हैं, उसकी कुंडली सिंह लग्न की बनी है। लग्न के स्वामी सूर्य महाराज अष्टम भाव में चंद्रमा, बुध, शुक्र और राहु के साथ विराजमान हैं। शनि महाराज कुंभ राशि में सप्तम भाव में विराजमान हैं और केतु दूसरे भाव में कन्या राशि में हैं। बृहस्पति महाराज वृषभ राशि में दशम भाव में उपस्थित हैं, तो मंगल महाराज मिथुन राशि में एकादश भाव में उपस्थित हैं। यहां पर ध्यान देने की बात है कि चंद्रमा, बुध और शनि अस्त अवस्था में हैं जबकि शुक्र वक्री अवस्था में विराजमान हैं। मंगल भाग्य स्थान के स्वामी होकर एकादश भाव में विराजमान हैं जबकि पंचमेश और अष्टमेश बृहस्पति दशम भाव में विराजित हैं।
लग्नेश सूर्य का अष्टम भाव में जाना ज्यादा अनुकूल नहीं है, लेकिन त्रिकोणेश बृहस्पति का दशमस्थ केंद्र में जाना राजयोग कारक परिणाम देने में सक्षम है। मंगल की स्थिति भी अनुकूल है। सप्तम भाव में शनि स्वराशि में होकर मजबूत और दिग्बली अवस्था में हैं। विपरीत राजयोग की स्थितियां भी निर्मित हो रही हैं।
अभी ऊपर हमने यह जाना कि नूतन वर्ष 2025 की प्रवेश लग्न कुंडली में ग्रह किस स्थिति में हैं और कौन से ग्रह कौन सी राशियों में गोचर कर रहे हैं जिससे हमारे जीवन पर विभिन्न प्रकार के प्रभाव पड़ सकते हैं। चलिए अब आगे बढ़ते हैं और यह जानने का प्रयास करते हैं कि वर्ष लग्न कुंडली के अनुसार नूतन संवत्सर 2082 यानी हिंदू नव वर्ष 2025 हमारे देश और देशवासियों के लिए तथा अन्य देशों और उनमें रहने वाले लोगों को किस तरह से प्रभावित करने की संभावना है:
उपरोक्त कुंडली में मीन राशि में सूर्य, बुध, चंद्र, शुक्र और राहु ये पांच ग्रह विराजमान हैं। सूर्य लग्नेश अष्टम भाव में उपस्थित हैं जो कि प्राकृतिक आपदाओं को दर्शाता है और ऐसे में, प्राकृतिक प्रकोप, प्राकृतिक आपदाएं, राजनीतिक आपदा, भूकंप, बाढ़, अग्निकांड आदि के कारण जन-धन की हानि होने के योग बन सकते हैं।
सप्तम भाव में शनि अपनी राशि में उपस्थित होकर लग्न को देख रहे हैं जो कि कुछ जटिल समस्याओं को जन्म दे सकते हैं।
ग्रहों की स्थिति के अनुसार, पूर्व और उत्तर-पश्चिम तथा दक्षिण की ओर से भारत के विरोधी देश अपनी कुछ सक्रियता दिखा सकते हैं। इसके प्रति सरकार को सतर्क रहना होगा।
बृहस्पति महाराज राजयोग निर्मित कर रहे हैं और चतुर्थ भाव पर दृष्टि डाल रहे हैं जिससे भारत की आर्थिक समृद्धि बढ़ने के योग बनेंगे। विश्व पटल पर भारत की प्रगति आश्चर्यजनक रूप से होने की संभावना बनेगी।
नवम स्थान पर शनि की दृष्टि होने के कारण राजनीतिक क्षेत्र में उठापटक होने के योग बनेंगे। कई राजनीतिक पार्टियों में एकता बढ़ने की स्थिति बनेगी, लेकिन भाजपा का प्रभाव बढ़ने के योग बनेंगे।
वर्ष 2082 की वर्ष प्रवेश कुंडली में सिंह लग्न उदित हो रहा है। यह संवत् आम जनजीवन के लिए और विशेष रूप से कृषक समुदाय के लिए ज्यादा लाभप्रद होने की संभावना नहीं है।
देश के दक्षिणी राज्यों में जीव-जंतुओं से कष्ट होने की संभावना जनता को हो सकती है।
आमतौर पर ग्रहों की इस स्थिति के अनुसार छह महीने तक अनाज के सस्ते होने की संभावना बनेगी। कुछ स्थानों पर बादल फटने जैसी स्थिति और भारी वर्षा से जनहानि के समाचार मिल सकते हैं।
देश के पश्चिमी राज्यों में धातुएं महंगी हो सकती हैं जैसे सोना आदि। वहीं, देश के उत्तरी भागों में अधिक वर्षा से हानिकारक घटनाएं हो सकती हैं।
देश के पूर्वी भाग में कृषि वर्ग को भारी हानि उठानी पड़ सकती है जबकि देश के मध्य में स्थित राज्यों में राजनीतिज्ञों में मतभेद और शासन सत्ता में उलटफेर होने के योग बन सकते हैं।
भारत की प्रभाव राशि मकर है जिसके स्वामी शनि स्वराशि के होने से आर्थिक और सामाजिक रूप से प्रगति होने के योग बनेंगे।
उपरोक्त कुंडली कुंभ लग्न की है जिसके स्वामी शनि उच्च राशि के शुक्र, राहु और बुध के साथ दूसरे भाव में विराजमान हैं। कन्या राशि में अष्टम भाव में केतु उपस्थित हैं। सूर्य मेष राशि में तीसरे भाव में, बृहस्पति वृषभ राशि में दूसरे भाव में, मंगल अपनी नीच राशि कर्क में छठे भाव में और चंद्रमा तुला राशि में नवम भाव में विराजमान हैं। आइए जानते हैं इस कुंडली से आने वाले समय की क्या जानकारी मिलती है:
जगत लग्न कुंडली में लग्नेश शनि और भारत की प्रभाव राशि मकर के स्वामी शनि पंचमेश और अष्टमेश बुध के साथ शुक्र व राहु संयुक्त विराजमान हैं। इसके परिणामस्वरूप, भारत के सीमावर्ती प्रांतों जैसे कि लद्दाख, मिजोरम, कश्मीर आदि अशांत क्षेत्रों में सैन्य क्षमता को बढ़ाने पर ध्यान देना होगा। भारत के शत्रु देश विशेष रूप से चीन और पाकिस्तान आदि की गतिविधियां और कुछ अवांछित घटनाएं अशांति उत्पन्न कर सकती हैं। नीच राशि के मंगल छठे भाव में बैठकर चंद्रमा को देख रहे हैं और उनकी कुंभ लग्न पर दृष्टि भी है जिससे अश्विन और पौष मास के बीच किसी प्रकार की महामारी जैसी परेशानी उत्पन्न होने की संभावना बन सकती है।
इस कुंडली में बृहस्पति महाराज जो आय भाव और धन भाव के स्वामी हैं। वह चतुर्थ भाव में विराजमान हैं जिससे भारत का व्यापार तेजी से बढ़ेगा और देश की प्रगति होगी और अर्थव्यवस्था में सुधार आएगा।
सूर्य के तीसरे भाव में उच्च राशि में और शुभ ग्रह बृहस्पति के केंद्र भाव में होने से भारत में खुशहाली के योग बन सकते हैं।
लग्नेश शनि के दूसरे भाव में राहु, बुध व शुक्र के साथ विराजमान होने के कारण विश्व में मुस्लिम राष्ट्रों जैसे कि इजरायल, ईरान आदि में प्रतिशोध की भावना बढ़ सकती है जिससे युद्ध,अपराध और मानवता के खिलाफ अशांति का वातावरण उत्पन्न हो सकता है।
यूक्रेन और रूस के युद्ध के बीच विश्व के कुछ अन्य देशों में भी प्रतिशोध की भावना विश्व की शांति को भंग करने का कार्य कर सकती है।
जगत लग्न कुंडली में शुक्र नवमेश होकर शनि और राहु के साथ बैठे हैं जिससे ऊर्जा संयंत्र और परमाणु क्षेत्र क्षतिग्रस्त होने का खतरा भी बना रहेगा। इन पर संकट मंडराता रहेगा जिससे दुनिया डर के वातावरण में जीने को मजबूर हो सकती है।
दूसरे भाव में राहु, बुध और शुक्र, शनि के साथ विराजमान होने से भारत की आर्थिक स्थिति अच्छी होने की कगार पर आएगी। लेकिन, उसके लिए हद से ज्यादा प्रयास करने की आवश्यकता पड़ेगी और कुछ नए उद्योग-धंधों की स्थापना करना आवश्यक होगा।
उपरोक्त ग्रह स्थितियों के अनुसार, जुलाई 2025 तक यूरोपीय देशों के लिए समय कठिन रहेगा। हत्याकांड, भूकंप, समुद्री तूफान जैसी स्थितियां बन सकती हैं। जून-जुलाई में शनि मंगल का षडाष्टक योग भी युद्ध जैसी अशांति दे सकता है।
जून 2025 से अगस्त 2025 के बीच यूरोपीय देशों में भयंकर अशांति फैलने के योग बन सकते हैं। शनि और मंगल के समसप्तक संबंध और कुंभ राशि के राहु के कारण आतंकवादी घटनाओं में भी बढ़ोतरी हो सकती है। साथ ही, कई क्षेत्रों में युद्ध जैसी स्थितियां उत्पन्न हो सकती हैं। इसी समय समुद्री तूफान, भूकंप, आदि की स्थिति भी बनेगी और किसी अत्यंत प्रतिष्ठित व्यक्ति का पद खाली हो सकता है।
इस दौरान चीन, अमेरिका, ब्रिटेन, ब्राजील, रूस, जर्मनी, पोलैंड, इजरायल, ईरान, यूक्रेन, हंगरी जैसे देशों के बीच शस्त्रों की होड़ दिखाई देगी जिससे विश्व का वातावरण अशांत हो सकता है।
भारत के संदर्भ में बात करें तो, मार्च से अप्रैल तक शनि-मंगल की स्थिति भारत की राजनीतिक पार्टियों के बीच अति महत्वपूर्ण रह सकती है जिससे राजनीतिक दलों में प्रलोभन की प्रवृत्ति बढ़ेगी और उससे निराशाजनक परिणाम मिलेंगे। हालांकि, भारतीय जनता पार्टी का प्रभुत्व अभी बना रहने की संभावना है।
शनि और राहु का प्रभाव मई के अंत तक किसी अत्यंत महत्वपूर्ण व्यक्ति के लिए विशेष दुखद रहने की संभावना है।
इसी दौरान मंगल और राहु का षडाष्टक योग और शनि की सूर्य पर दृष्टि भारत के सीमावर्ती क्षेत्रों में आतंकवाद के कारण अशांति को जन्म दे सकती है।
इस दौरान नाटो देशों में भी परस्पर वैमनस्य बढ़ने की संभावना रहेगी।
जून से जुलाई के अंत तक का समय राजनीति के लिए कठिन रहेगा। इस दौरान छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, कश्मीर, उत्तर प्रदेश में अवांछित घटनाक्रम और अभूतपूर्व घटनाएं हो सकती हैं। भारत के सीमावर्ती प्रांत चीन और पाकिस्तान की गतिविधियों से अशांत हो सकते हैं।
अगस्त से सितंबर के मध्य तक का समय शनि और मंगल की स्थिति के कारण राजनीतिक अस्थिरता और अशांति का संकेत दे रहा है। इस दौरान चीन और पाकिस्तान की गतिविधियों से सावधान रहना बहुत ज्यादा आवश्यक होगा।
शनि-मंगल और सूर्य-राहु की स्थिति इस वर्ष अनेक चुनौतीपूर्ण स्थितियों को अंजाम दे सकती हैं जिनमें एलओसी पर साइबर अटैक, अफगानिस्तान में नए युद्ध का सूत्रपात होने और पाकिस्तान में आंतरिक विद्रोह या विस्फोट आदि से भारी हानि होने के योग बन सकते हैं। इसी प्रकार, भारत में मई से सितंबर के बीच बंगाल, महाराष्ट्र, असम, छत्तीसगढ़, पंजाब, मध्य प्रदेश आदि राज्यों में आतंकवाद अथवा सांप्रदायिक उपद्रव से अशांति फैल सकती है।
इसी दौरान भारत की सरकार संविधान में संशोधन को विशेष महत्व देगी।
इस प्रकार कहा जा सकता है कि अष्टम भाव में ग्रहों का अधिक प्रभाव होने के कारण प्राकृतिक आपदाओं की स्थिति बन सकती है जिसके प्रति आपदा मोचन बल और अन्य सेवाओं को सतर्क रहने की आवश्यकता पड़ेगी। हालांकि, अंतरिक्ष के क्षेत्र में भारत को विशेष रूप से सम्मान और सफलता प्राप्त होने के योग बन सकते हैं।
हिन्दू नववर्ष 2025 – चैत्र शुक्ल प्रतिपदा (नूतन संवत्सर २०८२) का महत्वएवं प्रभाव
चैत्रे मासि जगद्ब्रह्मा ससर्ज प्रथमेऽहनि।
शुक्लपक्षे समग्रं तु तदा सूर्योदय सति।।
-हेमाद्रौ ब्राहोक्तेः
जब कभी हम हिंदू नव वर्ष या नूतन संवत्सर के बारे में बातचीत करते हैं, तो हेमाद्री के ब्रह्म पुराण के अनुसार, चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि यानी कि चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को सूर्योदय के समय जगत पिता ब्रह्मदेव जी ने इस संपूर्ण चराचर जगत की रचना की थी। यही वजह है कि प्रत्येक सनातन धर्मी चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रथम तिथि यानी प्रतिपदा तिथि को नूतन संवत्सर का आरंभ मानता है इसलिए हिंदू नव वर्ष का प्रारंभ इसी दिन से माना जाता है और यहीं से नया विक्रमी संवत् भी शुरू होता है। यदि अंग्रेजी कैलेंडर वर्ष 2025 की बात करें तो, 29 मार्च, 2025 शनिवार को शाम 16:27 बजे उत्तराभाद्रपद नक्षत्र, ब्रह्म योग और किंस्तुघ्न करण में मीन राशि में नव संवत्सर का प्रवेश होगा। यह विक्रम संवत् 2082 कहलाएगा तथा इसका नाम “सिद्धार्थी” नामक संवत्सर होगा।
चूंकि इस वर्ष संवत्सर का प्रवेश सायंकाल के समय होगा, तो सूर्योदय कालीन तिथि लेने के कारण सूर्योदय के समय प्रतिपदा तिथि उपस्थित होगी इसलिए चैत्र मास के शुक्ल पक्ष के नवरात्रि का प्रारंभ अगले दिन यानी 30 मार्च, 2025 रविवार को होगा। रविवार से ही जप, पाठ, पूजन, दान, व्रत, अनुष्ठान, यज्ञ आदि धार्मिक कार्य किए जाएंगे। सूर्योदय कालीन तिथि के कारण चैत्र शुक्ल प्रतिपदा रविवार के दिन मनाई जाएगी इसलिए रविवार को शुरू होने के कारण इस संवत्सर के राजा सूर्य होंगे। यह संवत्सर बार्हस्पत्यमान (गुरु मान) से शिव (रूद्र) विंशति के अंतर्गत एकादश युग का तृतीय सिद्धार्थी नामक (संवत्सर में 53 वां) संवत्सर होगा।
नूतन संवत्सर 2082 का नाम सिद्धार्थी नामक संवत्सर है जिसका फल शास्त्रों में निम्न प्रकार बताया गया है:
सिद्धार्थवत्सरे भूयो ज्ञान वैराग्य युक्त प्रजा:।
सकला वसुधा भाति बहुसस्य अर्घ वृष्टिभि:।।
इसका तात्पर्य है कि सिद्धार्थी नामक संवत्सर के दौरान प्रजा ज्ञान, वैराग्य जैसे विषयों में विशेष रूप से रुचि महसूस करेगी। धार्मिक आयोजन विशेष रूप से आयोजित किए जाएंगे और इनमें अधिकता रहेगी। वर्ष में अच्छी वर्षा हो सकती है और प्रतिकूल जलवायु के उपरांत भी अच्छा उत्पादन देखने को मिल सकता है। शासन तंत्र में स्थिरता की स्थिति बनी रह सकती है। संपूर्ण पृथ्वी पर प्रसन्नता का योग बनेगा। इस संवत्सर के स्वामी सूर्य देव हैं, इस कारण से देश में सुकाल के बावजूद प्रजा असंतुष्टि की भावना से भरी रह सकती है। धन की मांग अधिक रह सकती है। चैत्र के महीने में आय में वृद्धि होने की संभावना है जबकि वैशाख में कुछ मंदी रहेगी। वैशाख और ज्येष्ठ में लोगों को पीड़ा और युद्ध का भय हो सकता है। भाद्रपद में खंड वृष्टि होगी जिससे वर्षा कम होगी। अश्विन में रोग और पीड़ा होने की संभावना रहेगी तथा धन में वृद्धि की रफ़्तार भी औसत रह सकती है जबकि मार्गशीर्ष आदि चार महीनों में राज्य में विरोध, प्रजा में अशांति तथा धान्य, आदि आवश्यक वस्तुओं में तेजी की स्थिति बनी रह सकती है।
तोयपूर्णा: भवेन्मेघा: बहुसस्या च मेदिनी।
सुखिनः पार्थिवाः सर्वे सिद्धार्थे वरवर्णिनि।।
इसका तात्पर्य है कि इस संवत्सर में वर्षा पर्याप्त होने की संभावना बनेगी। खाद्य पदार्थ एवं जन जीवन के उपयोग में आने वाली वस्तुओं की उपलब्धता पर्याप्त हो सकती है। शासन में राजनीतिक स्थिरता बने रहने की संभावना है, लेकिन कुछ प्रदेशों में अति वर्षा और बाढ़ की स्थिति बन सकती है।
इसके अतिरिक्त, वर्ष प्रबोध ग्रंथ के अनुसार सिद्धार्थी संवत्सर का फल जानने का प्रयास करें, तो उसके अनुसार चैत्र और वैशाख माह में जनता रोग आदि से परेशान हो सकती है। ज्येष्ठ और आषाढ़ में प्राकृतिक प्रकोप होने और श्रावण मास में भयंकर वर्षा से हानि हो सकती है, लेकिन राजनीतिक दृष्टि से समय कुछ अनुकूल रह सकता है।
नूतन संवत्सर 2082 के राजा
चैत्रसितप्रतिपदि यो वारोऽर्कोदये सः वर्षेशः।
-ज्योतिर्निबन्ध
उपरोक्त वर्णित श्लोक ज्योतिर्निबन्ध में दिया गया है। इस श्लोक का तात्पर्य है कि चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि को सूर्योदयकालीन समय पर जो भी वार या दिन होता है, उस वार के अनुसार ही उस संवत्सर का राजा घोषित किया जाता है। इस बार नूतन संवत्सर 2082 में चैत्र शुक्ल प्रतिपदा शनिवार 29 मार्च को आएगी, लेकिन सूर्योदय कालीन चैत्र शुक्ल प्रतिपदा अगले दिन रविवार को व्याप्त होने के कारण इस बार हिंदू नव वर्ष विक्रमी संवत् 2082 के राजा रवि (सूर्य) होंगे।
नूतन संवत्सर (वर्ष) 2082 के विशेष एवं महत्वपूर्ण बिंदु
उपरोक्त श्लोक के अनुसार, संवत्सर का राजा सूर्य होने पर देश के कुछ क्षेत्रों में उपयोगी वर्ष की कमी हो सकती है। दूध देने वाले जानवर जैसे कि गाय, भैंस आदि दूध कम देंगे। सामान्य जनमानस में दुख, कलह, क्लेश, विग्रह, कष्ट बढ़ सकते हैं। धान, गन्ना, आदि फसलों, फल, फूल और मौसमी फलों का उत्पादन कम होने की संभावना बनेगी। राजनेताओं और प्रशासकों में परस्पर टकराव और विरोध अधिक रह सकता है। डकैती, चोरी, ठगी, लूटमार, रेल अग्निकांड, आदि की घटनाएं अधिक होने के योग बन सकते हैं। सांप्रदायिक उपद्रव और कट्टरवाद जैसी घटनाएं बढ़ सकती हैं।
लोगों के बीच उत्तेजना, क्रोध, कलह और आंखों से जुड़े गंभीर रोग आदि बढ़ सकते हैं। लोगों के मन में राजसिक प्रवृत्ति बढ़ने के योग बनेंगे। इसके अतिरिक्त, किसी बड़े राजनेता का आकस्मिक निधन होने से देश में शोक की स्थिति भी उत्पन्न हो सकती है। राजा के पद पर नूतन संवत्सर 2082 में सूर्य के आसीन होने के कारण इस संवत्सर का वाहन अश्व रहेगा। दूध और फलों के कम उत्पादन और वर्ष में कमी से महंगाई बढ़ने के योग बन सकते हैं। कई सत्ताधीशों के अधिकारों की हानि हो सकती है और कुछ राज्यों में सत्ता परिवर्तन और मंत्रिमंडल में फेरबदल के योग बन सकते हैं।
तीक्ष्णोऽर्कः स्वल्पसस्यश्च गतमेघेऽतितस्करः।
बहूरग-व्याधिगणो भास्कराब्दो-रणाकुलः।।
संवत्सर का राजा सूर्य होने के कारण फल, औषधि, कृषि और अन्य उत्पादों में कमी हो सकती है। प्रतिकूल वर्षा होने से खड़ी फसलों को नुकसान हो सकता है। पाखंडियों, तस्करों, अपराधियों, चोरों और लुटेरों का प्रभुत्व बढ़ सकता है। असाध्य रोग और विचित्र प्रकार की शारीरिक समस्याओं का प्रसार होने का भय रहेगा। सीमावर्ती प्रांतों में उग्रवादी घटनाओं और छद्म युद्ध में खतरनाक अस्त्रों का प्रयोग होने की आशंका है। साथ ही, अग्निकांड जैसी घटनाएं हो सकती हैं, राजनीतिक दलों में परस्पर मतभेद और विरोध चरम सीमा तक पहुंचने के योग बनेंगे। जंगलों में आग लगने से वन संपदा की हानि और शरद ऋतु में सर्दी कम पड़ने तथा गर्मी में बढ़ोतरी होने की संभावना है। रेंगने वाले और जंगली जानवरों का आम जनमानस की बस्तियों में प्रवेश हो सकता है। सज्जन लोगों को कष्ट हो सकता है तथा बाढ़ जैसी विपरीत परिस्थितियों में पशुधन की हानि हो सकती हैं।
वर्ष का मंत्री सूर्य ग्रह
नृपभयं गदतोऽपि हि तस्करात् प्रचुर धान्यधनादि महीतले।
रसचयं हिसमर्घतमन्दतारविमात्यबदांहिसमागतः।।
नए संवत्सर के मंत्री पद पर भी सूर्य देव ही विराजमान होंगे जिसके परिणामस्वरूप, राजाओं यानी राजनेताओं को भय होने, राजनीतिक पार्टियों और प्रशंसकों में परस्पर विरोध और टकराव बढ़ने के योग बनेंगे। इसके अतिरिक्त, केंद्र व राज्य सरकारों में भी मतभेद बढ़ सकता है। धन-धान्य आदि सुख-साधनों में वृद्धि होगी, परंतु कठोर सरकारी नीति और गतिविधियों के कारण तथा चोर, लुटेरों और डकैतों के कारण प्रजा में असंतोष की स्थिति उत्पन्न हो सकती है। कठिन और असाध्य रोगों की अधिकता होने से जनता में अराजकता रह सकती है। दूध, तेल, पेयजल, फल, सब्जियां, चीनी, इत्यादि रसदार वस्तुओं की कमी और उनके दामों में तेजी आने के योग बन सकते हैं। जन उपयोगी वस्तुओं के मूल्य में भी तेजी आ सकती है। सूर्य के मंत्री पद पर बैठने से संवत्सर में प्रशासनिक कठोरता बढ़ने के योग बनेंगे। चोरी, तस्करी और जीएसटी चोरी जैसी घटनाएं बढ़ सकती हैं, लेकिन जीडीपी में सुधार होने की स्थिति बनेगी। धन में वृद्धि और इंपोर्ट से महंगाई पर नियंत्रण पाने के प्रयास किए जा सकते हैं। खांड, शक्कर, तेल, घी, आदि की मांग में कमी आ सकती है।
वर्ष का सस्येश बुध ग्रह
जलधराजलराशिमुचोभृशं सुख समृद्धि युतं निरूपद्रवम्।
द्विजगणाः स्तुति पाठरताः सदा प्रथमसस्यपतौसतिबोधने।।
सस्येश यानी ग्रीष्मकालीन फसलों का स्वामी बुध ग्रह होने से देश में वर्षा अधिक होने के योग बनते हैं। लोगों के जीवन में सुख और समृद्धि का वातावरण रहता है, लेकिन महंगाई और खर्चों में बढ़ोतरी होने के योग बनते हैं। सामाजिक स्थिति शांतिपूर्ण रहने की स्थिति बनती है। जो बुद्धिजीवी वर्ग के लोग हैं, उनकी शासन तंत्र द्वारा प्रशंसा होती है जबकि विभिन्न प्रकार के उपद्रवों और आतंक आदि की घटनाओं में अपेक्षाकृत कमी होने के योग बनते हैं। द्विजगण, ब्रह्म वेद अध्ययन करने वाले, हवन करने वाले, धार्मिक कार्यों में और अधिक प्रवृत्त होने लगेंगे। बुद्धिजीवी लोग अध्ययन और अध्यापन के कार्यों में अधिक सक्रिय होंगे और इनमें बढ़-चढ़कर हिस्सा लेंगे, उच्च तकनीकी की तरफ लोगों का विशेष रुझान देखने को मिल सकता है।
वर्ष का धान्येश चन्द्र ग्रह
चन्द्रेधान्याधिपतेजातेप्रजावृद्धिः प्रजायते।
गोधूमाःसर्षपाश्चैव गोषुक्षीरंतदाबहुः।।
धान्येश यानी कि शीतकालीन फसलों का स्वामी ग्रह यदि चंद्रमा बनता है, तो इस वर्ष के दौरान शीतकाल में होने वाली फसलों जैसे कि चना, कपास, सरसों, सोयाबीन, गेहूं, अन्य धान्य सहित गाय का घी, गाय का दूध आदि के उत्पादन में विशेष वृद्धि होने के योग बनेंगे। श्रेष्ठ, अच्छी तथा उपयोगी वर्षा होने की संभावना बढ़ जाती है। धरती पर नदी, तालाब में जल का स्तर अच्छा रहता है तथा लोगों के मध्य उत्साह बने रहने की स्थिति बनती है।
मेघेश यानी कि वर्षा का स्वामी अर्थात मेघों का स्वामी सूर्य ग्रह होने पर जौ, गेहूं, चना, चावल, बाजरा, मूंग, आदि की पैदावार बढ़िया होती है। पृथ्वी पर विभिन्न प्रकार के सुख साधन, ऐश्वर्य और विविध प्रकार के साधनों का विस्तार होने की स्थिति बनती है। लेकिन, गुड़, शक्कर, दूध, चावल की पैदावार कम हो सकती है। कई स्थानों पर नदी-नालों में जल स्तर कम हो सकता है तथा वर्षा की कमी हो सकती है। जनता पाखंड, भय, ढोंग से परेशान हो सकती है।
वर्ष का रसेश शुक्र ग्रह
यजनयाजनकोत्सवकोत्सुकाजनपदाजलतोषितमानसाः।
सुखसुभिक्षसुमादवतीधराधरणिपा हतपापगणप्रियाः।।
नूतन संवत्सर का रसेश यदि शुक्र ग्रह हो, तो लोग यज्ञ और मांगलिक उत्सव करने में उत्सुकता दिखाते हैं। अनुकूल वर्षा होने से लोगों में संतुष्टि और प्रसन्नता का भाव बढ़ता है। पृथ्वी पर अच्छी फसल रहती है, सुख साधनों में बढ़ोतरी होती है और संपन्नता बढ़ती है। मौसमी फलों और कृषि आदि की पैदावार बढ़िया होती है। शासन-प्रशासन के लोग लोक कल्याण के कार्यों में अधिक दिलचस्पी दिखाते हैं।
वर्ष का नीरसेश बुध ग्रह
चित्रवस्त्रादिकंचैवशंखचन्दनपूर्वकम्।
अर्घवृद्धिःप्रजायेतनीरसेशोबुधोयदि।।
नीरसेश, जिसे ठोस धातु पदार्थों का स्वामी कहा जाता है, यदि बुध ग्रह हो तो विभिन्न रंगों के यानी कि रंग-बिरंगे सुंदर वस्त्र, चंदन, लकड़ी, हीरा, मोती, पुखराज, पन्ना और जवाहरात के भावों में तेजी देखने को मिलती है। साथ ही, विभिन्न धातुओं जैसे कि सोना, चांदी, तांबा, लोहा आदि के भावों में भी विशेष तेजी दिखाई देती है।
वर्ष का फलेश शनि ग्रह
यदिशनिःफलपःफलहाभवेज्जनित पुष्पगणस्य दमःसदा।
हिमभयंवरतस्करजन्तुभीर्जनपदो गदराशिसमाकुलः।।
यदि वर्ष के फलों का स्वामी फलेश शनि ग्रह हो, तो फलदार वृक्षों पर फल और पुष्पों के उत्पादन में कमी की स्थिति बनती है। पहाड़ी क्षेत्रों में कहीं प्रतिकूल वर्षा होती है और कहीं असमय बाढ़ आदि आने के कारण हानि के योग बनते हैं। बेईमानी, चोरी, ठगी और भ्रष्टाचार की घटनाएं अधिक होती हैं। पहाड़ी क्षेत्रों में कहीं हिमपात, बर्फबारी से हानि हो सकती है। प्रदूषण, स्वास्थ्य संबंधित समस्याएं और पेचीदा रोगों के कारण अधिकांश लोग दुखी रहते हैं तथा शहरों में जनसंख्या का दबाव बढ़ता है।
वर्ष का धनेश मंगल ग्रह
असममौल्यकरोधरणीसुतः शरदितांपकरस्तुषधान्यहृत्।
सहसिमासिभवेद्विगुणंतदानरपतिर्जनशोखविधायकः।।
वर्ष का धनेश यानी कि कोषाध्यक्ष यदि मंगल हो, तो उस नूतन वर्ष में थोक व्यापार की वस्तुओं के मूल्य में विशेष उतार-चढ़ाव के योग बनते हैं यानी व्यापार में अस्थिरता की संभावना बढ़ जाती है। शेयर बाजार में भी अस्थिरता का माहौल रहता है। माघ के महीने में वर्षा न होने और असमय या बेमौसम वर्षा होने के कारण गेहूं, आदि भूसे से प्राप्त होने वाले अनाजों का उत्पादन कम हो जाता है। समस्त देश में अनिश्चितता और अस्थिरता का माहौल रहने की स्थिति बनती है। शासन-प्रशासन की अधिकांश नीतियां आम जनमानस के दुखों और कष्टों को बढ़ाने वाली हो सकती हैं।
वर्ष का दुर्गेश शनि ग्रह
रविसुतेगढ़पालिनिविग्रहे सकलदेशगताश्चलिताजनाः।
विविधवैरिविशेषितनागराः कृषिधनं शलभैर्भुषितंभुवि।।
दुर्गेश यानी सेनापति यदि शनि ग्रह हो, तो उस वर्ष अनेक देशों के बीच आंतरिक संघर्ष, दंगे-फसाद और युद्ध जैसे वातावरण से अराजकता फैलती है जिससे लोग आतंकित होकर अपना निवास स्थान छोड़कर दूसरी जगह पलायन करने के लिए मजबूर हो जाते हैं। विभिन्न प्रांतों में सांप्रदायिक और जातीय झगड़ा-फसाद, टकराव की घटनाएं अधिक होती हैं तथा वातावरण अशांत हो जाता है। कुछ स्थानों पर विषाक्त कीटाणुओं, चूहों, टिड्डियों, अतिवृष्टि और अनावृष्टि, प्राकृतिक आपदाओं और प्रकोप से खड़ी फसलों को नुकसान होता है जिससे कृषि की भी स्थिति खराब होती है। ऐसा वर्ष के दौरान विशेषकर भाद्रपद और अश्विन मास में देखने को मिल सकता है।
स्वयं राजा स्वयं मंत्री जनेषु रोगपीड़ा चौराग्नि।
शंका – विग्रह – भयं च नृपाणाम्।।
नव संवत्सर 2082 में राजा और मंत्री दोनों ही पद सूर्य देव को प्राप्त हुए हैं। यदि एक वर्ष में यह दोनों ही पद एक ही ग्रह को प्राप्त हो जाएं तो विभिन्न देशों के राजनेता निरंकुश हो सकते हैं। ऐसे में, मनमाना आचरण करने की स्थिति बनेगी और स्वार्थ पूर्ण करने के लिए कुछ भी करने को तत्पर रहेंगे। भूकंप, बाढ़, अग्निकांड, प्राकृतिक उपद्रव, प्रकोप तथा सांप्रदायिक हिंसा और जातीय उपद्रव अधिक होने के योग बन सकते हैं। वर्षा की कमी और उसके कारण जलवायु में गर्मी बढ़ने के योग बनेंगे तथा सर्दी कम रहेगी। लोगों में आवेश, क्रोध और उत्तेजना के कारण हिंसक घटनाएं अधिक हो सकती हैं। विपक्षी नेताओं और सत्ताधारी नेताओं के बीच टकराव और आरोप-प्रत्यारोप अधिक होने के योग बनेंगे। सब्जी, अनाज, फल और धान्य आदि की पैदावार कम हो सकती है। डकैती, चोरी, लूटमार, तस्करी, अग्निकांड और लोगों में गंभीर रोग, तनाव, आंखों से संबंधित तथा रक्त व पित्त से जुड़े रोग होने की संभावना बनेगी। अनाज में तेजी के कारण व्यापारी लोग इसका लाभ उठा सकते हैं।
इस प्रकार हमने नूतन संवत्सर 2082 के बारे में बहुत कुछ ऊपर जान लिया है। यदि इसकी संक्षेप में बात करें और उसके प्रभाव की बात करें, तो निम्नलिखित बातों को समझा जा सकता है:
इस वर्ष में सिद्धार्थी नाम का संवत्सर होगा जिससे आम जनमानस में ज्ञान, वैराग्य जैसे विषयों में विशेष रूप से जिज्ञासा और रुचि बढ़ेगी। देश में धार्मिक आयोजनों में बढ़ोतरी होगी।
संवत्सर के राजा और मंत्री दोनों ही मुख्य पदों पर सूर्य देव को अधिकार प्राप्त हुआ है जिससे समाज के लोगों में क्रोध और उत्तेजना बढ़ेगी। आवेश के कारण हिंसक घटनाएं और उपद्रव में अधिकता हो सकती है।
सांप्रदायिक उपद्रव और कट्टरवाद की स्थिति अधिक होगी। लोगों के बीच नेत्र संबंधी गंभीर रोग, गंभीर समस्याएं और कलह जैसी स्थितियां उत्पन्न हो सकती हैं।
हिंदू नव वर्ष 2082 में सूर्य को तीन, शनि और बुध को दो-दो, चंद्र, शुक्र और मंगल को एक-एक पद प्राप्त हुए हैं।
इस वर्ष क्रूर ग्रहों को छह पद और सौम्य ग्रहों को चार पद प्राप्त हुए हैं।
यदि राजनीतिक स्थिति को देखा जाए तो, इस वर्ष भारत में विशेष उतार-चढ़ाव देखने को मिल सकते हैं। विभिन्न राजनीतिक दलों के बीच आपसी आरोप-प्रत्यारोप से राजनीतिक माहौल अत्यंत ही खराब हो जाएगा। कुछ नए गठबंधन होने की स्थिति बनेगी तथा सरकारी नीतियां और गतिविधियां काफी कठोर हो सकती हैं जिसके कारण आम जनता में असंतोष और भय उत्पन्न हो सकता है।
इस वर्ष मार्च से जून और जुलाई से अक्टूबर के बीच खप्पर योग बनेगा जिससे किसी राज्य में सत्ता भंग होने, किसी प्रमुख नेता के पद से हट जाने या कष्टपूर्ण स्थिति के योग बन सकते हैं। प्राकृतिक प्रकोप में भी बढ़ोतरी हो सकती है तथा अग्निकांड, रेल दुर्घटना और तेल और गैस के दामों में भी तेजी आ सकती है।
हम आशा करते हैं कि हिन्दू नववर्ष चैत्र शुक्ल प्रतिपदा 2025 (नूतन संवत्सर 2082) आपके लिए अत्यंत ही शुभ और मंगलमय रहे तथा आपके जीवन में सब शुभ ही शुभ हो। हम आपके उज्जवल भविष्य की शुभकामना करते हैं।
इसी आशा के साथ कि, आपको यह लेख भी पसंद आया होगा एस्ट्रोसेज के साथ बने रहने के लिए हम आपका बहुत-बहुत धन्यवाद करते हैं।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न
1. 2025 में हिंदू नव वर्ष कब से शुरू होगा?
हिंदू पंचांग के अनुसार, इस साल हिंदू नव वर्ष का आरंभ 30 मार्च 2025, रविवार से होगा।
2. इस साल विक्रम संवत् के किस वर्ष का आरंभ होगा?
वर्ष 2025 में चैत्र माह की प्रतिपदा तिथि से विक्रम संवत् 2082 की शुरुआत होगी।
3. विक्रम संवत् 2082 का राजा कौन होगा?
संवत् 2082 के राजा सूर्य देव होंगे।
प्रेम एवं ऐश्वर्य के कारक ग्रह शुक्र होंगे उदित, इन राशियों की होगी चांदी ही चांदी!
शुक्र का मीन राशि में उदय: एस्ट्रोसेज एआई हमेशा से अपने लेखों के माध्यम से ग्रहों की चाल, दशा या राशि में होने वाला परिवर्तन के बारे में आपको बताता आया है जिसका प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष प्रभाव मनुष्य जीवन पर पड़ता है। इसी क्रम में, ज्योतिष शास्त्र में शुक्र ग्रह को “प्रेम का देवता” माना जाता है क्योंकि यह सुंदरता, लक्ज़री और प्रेम के कारक कहे गए हैं। साथ ही, यह मनुष्य जीवन में भौतिक वस्तुओं के प्रति लगाव को नियंत्रित करने का भी काम करते हैं। शुक्र महाराज के प्रभाव से कोई व्यक्ति आपके प्रति और आप दूसरों के प्रति आकर्षित होता है। ऐसे में, जब-जब शुक्र ग्रह की स्थिति में या राशि में परिवर्तन होता है, तो इसका असर प्रत्येक व्यक्ति के प्रेम जीवन से लेकर वैवाहिक जीवन तक पर पड़ता हैं। अब जल्द ही शुक्र महाराज मीन राशि में उदित होने जा रहे हैं।
आज के इस विशेष ब्लॉग में हम “शुक्र का मीन राशि में उदय” के बारे में विस्तारपूर्वक चर्चा करेंगे। साथ ही, शुक्र देव कब और किस समय करेंगे अपनी चाल में बदलाव? शुक्र का मीन राशि में उदित होना आपको कैसे परिणाम देगा? क्या होती है ग्रह की उदित अवस्था? शुक्र का उदय किन राशियों को देगी सकारात्मक परिणाम और किन राशियों को इस अवधि में रखना होगा फूंक-फूंक कर कदम? इन सभी सवालों के जवाब आपको हमारे इस लेख में मिलेंगे जो कि हमारे अनुभवी एवं विद्वान ज्योतिषियों द्वारा ग्रह-नक्षत्रों की चाल, स्थिति एवं दशा की गणना करके आपके लिए तैयार किया गया है। तो आइए सबसे पहले नज़र डालते हैं शुक्र उदित के समय पर।
शुक्र का मीन राशि में उदय: तिथि एवं समय
विलासिता, समृद्धि, प्रसिद्धि, प्रेमपूर्ण रिलेशनशिप और रचनात्मकता का आशीर्वाद देने वाले शुक्र ग्रह तक़रीबन 28 दिन तक एक राशि में रहते हैं और उसके बाद दूसरी राशि में गोचर कर जाते हैं। हालांकि, जब यह किसी एक राशि में मौजूद होते हैं, तो उस दौरान अपनी चाल में बदलाव करते हुए अस्त, उदय, वक्री और मार्गी होते हैं। इसी क्रम में, अब शुक्र देव 28 मार्च 2025 की सुबह 06 बजकर 50 मिनट पर मीन राशि में उदित हो जाएंगे। बता दें कि शुक्र देव 18 मार्च 2025 को मीन राशि में अस्त हो गए थे। ऐसे में, शुक्र की उदित अवस्था संसार समेत कुछ राशियों के जीवन में बड़े परिवर्तन लेकर आ सकती हैं। अब हम आगे बढ़ने से पहले आपको अवगत करवाते हैं कि क्या होता है ग्रह का उदय होना।
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क्या होता है ग्रह का उदय होना?
जैसे कि हम आपको पहले भी बता चुके हैं कि जब कोई ग्रह सूर्य के बेहद नज़दीक चला जाता है, तो वह अस्त होकर अपनी शक्तियां खो देता है। इसी प्रकार, ज्योतिष शास्त्र में उदय शब्द का अर्थ उस अवधि से है जब कोई ग्रह सूर्य से एक निश्चित दूरी पर आकर पुनः उदित हो जाता है। साथ ही, उदित होकर वह दोबारा अपनी शक्तियां प्राप्त कर लेता है और अपनी पूरी क्षमता से परिणाम देने में सक्षम होता है। हालांकि, शुक्र ग्रह के उदित होने को शुभ माना जाएगा क्योंकि यह अपनी उच्च राशि में उदित हो रहे हैं और ऐसे में, वह जातकों को बेहतर परिणाम दे सकते हैं।
शुक्र करेंगे मीन राशि में इन चार ग्रहों से युति
मार्च 2025 का महीना बेहद ख़ास रहने वाला है क्योंकि इस अवधि में मीन राशि में एक साथ कई ग्रह मौजूद होंगे। इसके परिणामस्वरूप, एक नहीं अनेक युतियों और शुभ योगों का निर्माण होगा। सबसे पहले बात करते हैं शुक्र ग्रह की, मीन राशि में शुक्र देव के साथ बुध ग्रह, सूर्य देव, राहु ग्रह और माह के अंत में शनि महाराज भी विराजमान होंगे। ऐसे में, शुक्र ग्रह इन तीनों ग्रहों के साथ युति का निर्माण करेंगे और इसके फलस्वरूप, शुक्र और बुध की युति से लक्ष्मी नारायण योग का निर्माण होगा। साथ ही, शुक्र, सूर्य, बुध, राहु और महीने के अंत में शनि महाराज के एक साथ एक राशि में बैठे होने से पंचग्रही योग भी निर्मित होगा।
सनातन धर्म में शुक्र ग्रह को धार्मिक रूप से विशेष महत्व प्राप्त है जो कि असुरों के गुरु यानी कि दैत्यगुरु के नाम से भी जाने जाते हैं। इनका एक नाम शुक्राचार्य भी हैं।
धन की देवी लक्ष्मी से भी शुक्र ग्रह का संबंध माना जाता है क्योंकि वह धन, वैभव, और समृद्धि की देवी हैं।
धार्मिक ग्रंथों में शुक्राचार्य का वर्णन इस प्रकार किया गया है कि शुक्र देव ने असुरों को ज्ञान, विज्ञान और जीवन के गूढ़ रहस्यों की शिक्षा प्रदान की थी।
शुक्राचार्य को कई महत्वपूर्ण मंत्रों और औषधियों के आविष्कार का श्रेय जाता है जिससे असुरों ने देवताओं के साथ युद्ध में विजय प्राप्त की।
धार्मिक दृष्टि से शुक्र ग्रह प्रेम, सौंदर्य और भौतिक समृद्धि का प्रतिनिधित्व करते हैं। यह जातकों को आकर्षक व्यक्तित्व प्रदान करते हैं और उन्हें कला और संगीत जैसी कलाओं में निपुण बनाते हैं।
शुक्र देव की पूजा करने से जातक के जीवन में धन-समृद्धि, प्रेम, सुख और ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है।
आइए अब जानते हैं मनुष्य जीवन को शुक्र ग्रह किस तरह प्रभावित करता है।
कुंडली में शुक्र देव का शुभ प्रभाव
कुंडली में शुक्र देव की स्थिति मज़बूत होने पर जातक के प्रेम जीवन और रिश्तों में मधुरता, और खुशहाली बनी रहती है।
शुक्र ग्रह सौंदर्य, संगीत, कला, आकर्षण और वैवाहिक जीवन के कारक होने के नाते इन क्षेत्रों में सकारात्मक परिणाम प्रदान करते हैं।
शुक्र महाराज के बलवान होने पर जातक आर्थिक रूप से मजबूत होता है और उसे अपने जीवन में कभी भी धन की कमी नहीं होती है।
शुक्र की शुभ स्थिति जातक को सुख-शांति से पूर्ण वैवाहिक और पारिवारिक जीवन का आशीर्वाद देती है। शादीशुदा जीवन मधुर बना रहता है।
कुंडली में शुक्र देव की स्थिति कमजोर होने पर जातक के घर-परिवार में गरीबी दस्तक देने लगती है।
शुक्र ग्रह की दुर्बलता जातक के जीवन को धन से जुड़ी समस्याओं से भरने का काम करती है। ऐसे में, आपको पैसों की कमी का सामना करना पड़ सकता है।
जिन जातकों की कुंडली में शुक्र ग्रह की स्थिति अशुभ होती है, उन्हें अपने शादीशुदा जीवन में कई तरह की परेशानियों एवं समस्याओं से जूझना पड़ता है।
ऐसे लोग जिनकी कुंडली में शुक्र देव का अशुभ प्रभाव होता है, उन्हें हर कार्य में असफलता की प्राप्ति होती है। साथ ही, कड़ी मेहनत करने के बाद भी तरक्की पाने में बाधाएं आती हैं।
शुक्र ग्रह से जुड़ी रोचक बातें
रत्न: ज्योतिष शास्त्र में शुक्र देव का रत्न हीरा माना गया है जो उन्हें अत्यंत प्रिय है। शुक्र ग्रह से शुभ फलों की प्राप्ति के लिए हीरा धारण करना शुभ माना जाता है।
देवता: बात करें शुक्र ग्रह के देवता की तो, शुक्र महाराज के देवता भगवान विष्णु हैं। बता दें कि शुक्र सुंदरता, सौभाग्य, प्रेम, ऐश्वर्य और विलासिता के कारक हैं।
धातु: शुक्र ग्रह का संबंध चांदी से माना जाता है और इन्हें प्रसन्न करने के लिए इसका उपयोग भी किया जा सकता है।
रंग: शुक्र ग्रह को सफेद रंग अतिप्रिय है इसलिए शुक्र देव से शुभ फल पाने के लिए सफ़ेद रंग की वस्तुओं को दान करना चाहिए।
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शुक्र मीन राशि में उदित के दौरान करें ये उपाय
शुक्र ग्रह की कृपा प्राप्ति के लिए जातक को ज्यादा से ज्यादा सफेद और गुलाबी रंग के कपड़े धारण करने चाहिए।
शुक्र को समर्पित दिन शुक्रवार का व्रत करें।
देवी लक्ष्मी को हर शुक्रवार 5 लाल रंग के फूल अर्पित करें।
प्रत्येक शुक्रवार शुक्र ग्रह के बीज मंत्र का जाप करें।
हर शुक्रवार माता लक्ष्मी को खीर का प्रसाद के रूप में भोग लगाएं और फिर इसे छोटी कन्या को बांटें।
प्रतिदिन कनकधारा स्तोत्र का पाठ करें।
घर और कार्यस्थल पर शुक्र यंत्र की स्थापना करें और उसकी नियमित रूप से पूजा करें।
इसी आशा के साथ कि, आपको यह लेख भी पसंद आया होगा एस्ट्रोसेज के साथ बने रहने के लिए हम आपका बहुत-बहुत धन्यवाद करते हैं।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न
1. शुक्र मीन राशि में उदित कब होंगे?
मीन राशि में शुक्र का उदय 28 मार्च 2025 को होगा।
2. शुक्र किसके कारक हैं?
ज्योतिष में शुक्र देव को प्रेम, ऐश्वर्य, विलासिता और भौतिक सुखों के कारक माना गया है।
3. मीन राशि किसकी राशि है?
गुरु ग्रह को मीन राशि का स्वामित्व प्राप्त है।
30 साल बाद मीन राशि में प्रवेश करेंगे शनिदेव, इन राशियों का होगा बुरा समय शुरू!!
शनि का मीन राशि में गोचर: ज्योतिष में शनि ग्रह को महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। इन्हें कर्मफल दाता कहा जाता है क्योंकि यह इंसान को उनके अच्छे और बुरे कर्मों के आधार पर फल प्रदान करते हैं। दूसरी तरफ, सनातन धर्म में शनि महाराज को सूर्य देव का पुत्र माना जाता है। न्यायाधीश का पद प्राप्त होने की वजह से शनि ग्रह की गिनती सबसे शक्तिशाली ग्रहों में होती है जो कि नवग्रहों में सबसे धीमी गति से चलते हैं। मंद चाल में चलने के कारण शनि ग्रह का गोचर ढाई साल में होता है इसलिए इनकी चाल, दशा और स्थिति में होने वाला परिवर्तन विशेष मायने रखता है। अब शनि का मीन राशि में गोचर होने जा रहा है जिसका प्रभाव मनुष्य जीवन को अत्यधिक प्रभावित करेगा।
एस्ट्रोसेज एआई के इस लेख के माध्यम से आपको “शनि का मीन राशि में गोचर” से जुड़ी सारी जानकारी प्राप्त होगी जैसे कि तिथि और समय आदि। सिर्फ़ इतना ही नहीं, शनि गोचर के दिन होने वाली एक ज्योतिषीय घटना के बारे में आपको बताएंगे। साथ ही, शनि का राशि परिवर्तन किन राशियों के सौभाग्य में वृद्धि करेगा और किन राशियों के लिए दुर्भाग्य लेकर आ सकता है? किन राशियों पर साढ़े साती और ढैय्या की शुरुआत होगी? शनि गोचर के इस नकारात्मक प्रभावों से बचने के लिए आप कौन से उपाय अपना सकते हैं, आदि के बारे में हम विस्तार से बात करेंगे। इन सभी सवालों के जवाब पाने के लिए आपको इस ब्लॉग को अंत तक पढ़ना होगा। आइए सबसे पहले जान लेते हैं शनि गोचर की तिथि और समय।
शनि का मीन राशि में गोचर: तिथि एवं समय
शनि देव को एक राशि से निकलकर दूसरी राशि में प्रवेश करने में ढाई साल का समय लगता है। ऐसे में, अब यह लगभग ढाई साल बाद अपनी आधिपत्य वाली राशि कुंभ से निकलकर 29 मार्च 2025 की रात 10 बजकर 07 मिनट पर मीन राशि में गोचर करने जा रहे हैं। इस प्रकार, शनि का यह गोचर बहुत ख़ास रहेगा क्योंकि इस अवधि में मीन राशि में एक साथ कई ग्रह मौजूद होंगे जिससे कई विशेष योगों का निर्माण होगा जिसका असर संसार के साथ-साथ राशि चक्र की 12 राशियों पर सकारात्मक और नकारात्मक रूप से दिखाई दे सकता है।
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शनि गोचर और सूर्य ग्रहण एक साथ
ज्योतिष की दुनिया की दो सबसे बड़ी घटनाएं मार्च 2025 में एक दिन एक साथ होने जा रही हैं। हम बात कर रहे हैं सूर्य ग्रहण और शनि गोचर की, तो आपको बता दें कि साल 2025 का पहला सूर्य ग्रहण और ढाई साल बाद होने वाला शनि का मीन राशि में गोचर 29 मार्च 2025 को एक साथ होने जा रहा है। जहां सूर्य ग्रहण 29 मार्च 2025, शनिवार के दिन लगेगा और इसका आरंभ दोपहर 02 बजकर 21 मिनट होगा जबकि इसका अंत शाम 06 बजकर 14 मिनट पर हो जाएगा। हालांकि, यह ग्रहण भारत में दिखाई नहीं देगा इसलिए सूतक भी मान्य नहीं होगा। वहीं, शनि देव भी इसी दिन मीन राशि में प्रवेश करेंगे। साथ ही जानेगे, शनि गोचर से किन राशियों पर होगी साढ़े साती और ढैय्या शुरू? लेकिन उससे पहले जानते हैं साढ़े साती और ढैय्या के बारे में।
क्या होती है शनि साढ़े साती और ढैय्या?
साढ़े साती, शनि ग्रह की साढ़े सात साल तक चलने वाली ऐसी दशा होती है जो व्यक्ति के जीवन में एक बार अवश्य आती है। यह साढ़े सात वर्ष की अवधि ढाई-ढाई साल के तीन चरणों में आती हैं। पहला चरण व्यक्ति को आलसी बनाता है और दूसरा चरण आपसे ख़ूब मेहनत करवाता है। वहीं, इसका तीसरा और अंतिम चरण पिछले दो चरणों की तुलना में कम नुकसानदेह माना गया है।
दूसरी तरफ, शनि की ढैय्या ढाई साल की अवधि होती है और इस दौरान जब कुंडली में शनि देव चौथे भाव या आठवें भाव में मौजूद होते है, तब व्यक्ति ढैय्या के प्रभाव में आ जाता है। इस दौरान किसी व्यक्ति को मानसिक समस्याओं और धन से जुड़ी परेशानी का सामना करना पड़ता है।
अब बात करते हैं उन राशियों पर जिनके ऊपर शनि साढ़े साती और ढैय्या शुरू हो रही है।
किन राशियों पर शुरू होगी शनि साढ़े साती और ढैय्या?
जैसे कि हम जानते हैं कि शनि महाराज साल 2023 से अपनी आधिपत्य वाली कुंभ राशि में विराजमान थे और अब यह 29 मार्च 2025 को मीन राशि में गोचर करने जा रहे हैं। बता दें कि शनि देव जिस राशि में उपस्थित होते हैं, उस राशि पर, उससे पहले वाली राशि और बाद की राशि पर शनि साढ़े साती शुरू हो जाती है।
ऐसे में, शनि का मीन राशि में गोचर होने से कुंभ राशि पर अंतिम और मीन राशि पर साढ़े साती का दूसरा चरण शुरू हो जाएगा जबकि मंगल ग्रह की मेष राशि पर शनि साढ़े साती का आरंभ हो जाएगा। वर्तमान समय में शनि कुंभ राशि में होने से मकर राशि, कुंभ राशि और मीन राशि वालों के ऊपर साढ़ेसाती चल रही है। वहीं, अब मकर राशि वालों को साढ़े साती से मुक्ति मिल जाएगी।
अगर बात करें शनि ढैय्या की तो, शनि का मीन राशि में गोचर होने से सिंह राशि और वृश्चिक राशि पर शनि ढैय्या की शुरुआत हो जाएगी।
ज्योतिष की नज़रों में शनि देव
नौ ग्रहों में शनि ग्रह को अत्यंत महत्वपूर्ण दर्जा प्राप्त है जो कि किसी व्यक्ति की आयु, रोग, दुख, तकनीकी, विज्ञान, पीड़ा आदि के कारक माने गए हैं।
राशि चक्र में शनि को मकर और कुंभ शनि का स्वामी माना गया है जबकि तुला इनकी उच्च राशि है और मेष राशि में शनि नीच अवस्था में होते हैं।
शनि महाराज के एक राशि में ढाई साल तक रहने की अवधि को ज्योतिष की भाषा में शनि की ढैया के नाम से जाना जाता है।
जिन लोगों की कुंडली में शनि ग्रह की स्थिति मजबूत होती है, उन्हें जीवन में हर तरह का सुख प्राप्त होता है।
मज़बूत शनि वाले जातक कर्मठ और कर्मशील होते हैं। साथ ही, यह न्याय प्रिय भी होते हैं।
इसके विपरीत, ऐसे जातक जिनकी कुंडली में शनि महाराज दुर्बल या पीड़ित अवस्था में होते है, तो ऐसे जातकों की जीवन में कई तरह की समस्याओं से दो-चार होना पड़ता है।
शनि के कमज़ोर होने पर इन लोगों को अपने जीवन में दुर्घटना और जेल जाने जैसी परिस्थितियों का भी सामना करना पड़ सकता हैं।
इस तरह की स्थिति से बचने और शनि देव के दुष्प्रभावों को शांत करने के लिए ज्योतिष में कई तरह के सरल उपाय बताए गए हैं जिन्हें अपनाकर आप शनि के प्रभावों को कम कर सकते हैं। चलिए जान लेते हैं इन उपायों के बारे में।
ज्योतिष में प्रत्येक ग्रह का संबंध किसी न किसी रत्न से माना जाता है। इसी क्रम में, अगर आप शनि देव की कृपा पाना चाहते हैं या फिर शनि ग्रह को शांत करना चाहते हैं, तो आप नीलम रत्न पहन सकते हैं, विशेष रूप से मकर राशि और कुंभ राशि के जातकों के लिए नीलम रत्न को धारण करना शुभ रहेगा।
कुंडली में शनि शांति के लिए इन चीज़ों का करें दान
हिंदू धर्म में दान को कल्याणकारी माना जाता है जो व्यक्ति को हर तरह की समस्या से बाहर निकलने की क्षमता रखता है। ऐसे में, अगर आप कुंडली में कुपित शनि को शांत करना चाहते हैं, तो शनिवार के दिन शनि के होरा और शनि के नक्षत्र में शनि ग्रह से जुड़ी चीज़ों का दान करना अत्यंत फलदायी साबित होता है।
शनि देव पुष्य नक्षत्र, अनुराधा और उत्तराभाद्रपद नक्षत्र के स्वामी है। आप दोपहर या संध्या काल में शनि से जुड़ी वस्तुएं जैसे कि साबुत उड़द की दाल, लोहा, काले रंग के वस्त्र, तिल के बीज और तेल आदि का दान कर सकते हैं।
बृहत् कुंडली में छिपा है, आपके जीवन का सारा राज, जानें ग्रहों की चाल का पूरा लेखा-जोखा
शनि ग्रह को प्रसन्न करने के सरल एवं अचूक उपाय
वैदिक ज्योतिष में शनि को क्रूर और पापी ग्रह के रूप में जाना जाता है, इसलिए इनके नाम से भी लोग भयभीत हो जाते हैं। आपको बता दें कि शनि आपके कोई शत्रु नहीं हैं और आपके कर्म अच्छे होने पर आपको इनसे भयभीत होने की आवश्यकता नहीं है। व्यक्ति के जीवन में शनि एक शिक्षक की भूमिका निभाते हैं जो व्यक्ति को सही मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करते हैं। लेकिन, अगर आप गलत राह पर चलते हैं, तो शनि देव आपको दंडित भी करते हैं। जिन जातकों को जीवन में शनि के अशुभ प्रभावों का सामना करना पड़ रहा है, वह नीचे दिए ज्योतिषीय उपायों को अपनाकर कुंडली में शनि देव को मज़बूत कर सकते हैं।
शनिवार के दिन शनि देव की पूजा करें।
शनि ग्रह को प्रसन्न करने के लिए राधा-कृष्ण की उपासना शुभ रहती है।
आप अपने कर्मचारियों और सेवकों को प्रसन्न रखें और उनके साथ दुर्व्यवहार करने से बचें।
जातक मांस और मदिरा का सेवन न करें।
संभव हो, तो रात को दूध न पिएं।
कुंडली में शनि देव दुर्बल अवस्था में होने पर काले रंग के कपड़े धारण करने से बचें।
हनुमान जी की पूजा नियमित रूप से करने पर शनि ग्रह की कृपा प्राप्त होती है।
शनि देव के कुप्रभाव से बचने के लिए नीलम रत्न पहन सकते हैं। लेकिन, किसी अनुभवी ज्योतिषी से सलाह लेने के बाद ही आप नीलम धारण करें।
करियर एवं व्यापार में सफलता पाने के लिए शनि यंत्र की स्थापना करें।
आप शनि महाराज की जड़ी धतूरे की जड़ भी पहन सकते हैं।