भारत तीज-त्यौहारों का देश है। प्रत्येक महीने यहाँ त्यौहार मनाएँ जाते हैं। कई बार तो एक महीने में ढेर सारे पर्व मनाए जाते हैं। चूँकि वर्तमान में अगस्त महीना चल रहा है और इस महीने तीज-त्यौहारों की झड़ी लग जाती है। इस महीने की 03 तारीख को हरियाली तीज पड़ रही है और हरियाली तीज की पूर्व संध्या में रतजगा मनाने की परंपरा है। हालाँकि पूर्वी भारत में रतजगा की परंपरा कजरी तीज की पूर्व संध्या में होती है। आज हम इस ख़बर के माध्यम से रतजगा के बारे में विस्तार से जानने की कोशिश करेंगे। तो आइए जानते हैं कि हरियाली तीज से पहले क्यों है रतजगा की परंपरा।
हरियाली तीज की पूर्व संध्या में होने वाला रतजगा क्या है?
रतजगा एक प्रकार का जगराता है जो हरियाली तीज की पूर्व संध्या में किया जाता है, इसमें महिलाएँ रात्रि जागरण करते हुए हर्ष और उल्लास के साथ लोकगीत और भजन गाती हैं। हिन्दू पंचांग के अनुसार, रतजगा की परंपरा श्रावण शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को होती है। जबकि हरियाली इसके एक दिन तृतीया तिथि को पड़ती है। रतजगा के दौरान विवाहित महिलाएं एक जगह एकत्रित होकर इसे मनाती हैं। सभी मिलकर पूरी रात जलेबा खाते है। हालाँकि जगह-जगह पर इस त्यौहार को भी अलग-अलग तरीके से मनाया जाता है।
हरियाली तीज की पूर्व संध्या में होने वाले रतजगा का महत्व
रतजगा के दिन महिलाएँ हरियाली तीज के व्रत की तैयारी करती हैं। वे अपनी सखी-सहेलियों के साथ अपने हाथों में मेहंदी लगाती हैं और बाज़ार से अपने लिए सोहल शृंगार और व्रत का सामान ख़रीद कर लाती हैं। इस अवसर उनके चेहरे में मुस्कान होती है। रतजगा की प्रथा समाज में एक-दूसरे से जुड़ने का अवसर प्रदान करती है। यह लोगों को ख़ुश होने का अवसर प्रदान करती है।