एस्ट्रोसेज का यह विशेष ब्लॉग आपको तुलसीदास जयंती 2023 के बारे में समस्त जानकारी प्रदान करेगा जैसे कि तिथि, पूजन विधि एवं महत्व आदि। तुलसीदास जी को भगवान राम और हनुमान जी का परम भक्त माना जाता है। उन्होंने अपने जीवनकाल में कई महान ग्रंथों की रचना की थी जिसका लाभ आज तक लोगों को मिल रहा है। तुलसीदास जयंती पर तुलसीदास जी के जीवन और उनके द्वारा लिखी गई रचनाओं के साथ-साथ इस दिन बन रहे शुभ योग के बारे में जानने के लिए इस ब्लॉग को अंत तक जरूर पढ़ें।
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तुलसीदास जयंती 2023: तिथि और समय
हिंदू कैलेंडर के अनुसार, श्रावण महीने के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को तुलसीदास जी का जन्म हुआ था। ग्रेगोरियन कैलेंडर के मुताबिक जुलाई या अगस्त के महीने में तुलसीदास जयंती पड़ती है। इस साल सप्तमी तिथि का आरंभ 23 अगस्त, 2023 की देर रात 03 बजकर 07 मिनट पर होगा और यह 24 अगस्त की रात 03 बजकर 32 मिनट तक रहेगी।
तुलसीदास जी एक महान हिंदू कवि थे जिन्हें राम भक्ति के लिए जाना जाता है। तुलसीदास जी ने अपने संपूर्ण जीवन में कई महान ग्रंथों और काव्यों की रचनाएं की थी, लेकिन उन्हें रामचरितमानस की रचना के लिए सबसे ज्यादा लोकप्रियता प्राप्त हुई। हिंदू धर्म में रामचरितमानस एक पूजनीय ग्रंथ है और तुलसीदास जी की वजह से आज प्रत्येक व्यक्ति भगवान राम की कथा पढ़ सकता है क्योंकि वाल्मीकि जी द्वारा रचित रामायण को संस्कृत से अवधी भाषा में लिखने का श्रेय तुलसीदास जी को ही जाता है।
ऐसा माना जाता है कि तुलसीदास जी मूल रामचरितमानस के रचयिता महर्षि वाल्मीकि जी के ही अवतार थे। हनुमान चालीसा की रचना भी तुलसीदास जी ने ही की थी। अब बात करते हैं तुलसीदास जयंती पर बन रहे योग के बारे में।
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तुलसीदास जयंती पर बन रहा है ब्रह्म योग
तुलसीदास जयंती का आरंभ स्वाति नक्षत्र में होगा और अगर बात करें इस दिन बन रहे शुभ योग की, तो तुलसीदास जयंती पर यानी 23 अगस्त 2023 की सुबह 09 बजकर 44 मिनट तक ब्रह्म योग रहेगा। ज्योतिष में ब्रह्म योग को शुभ माना गया है और इस योग के निर्माण में बृहस्पति ग्रह महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह एक बेहद दुर्लभ योग है जो बहुत कम बनता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, यह शुभ योग व्यक्ति को ज्ञान, बुद्धि, संपन्नता और अच्छा स्वास्थ्य प्रदान करता है। चूंकि, तुलसीदास जयंती शुभ दिन एवं योग में पड़ रही है इसलिए आप इस दिन नए कार्यों की शुरुआत भी कर सकते हैं।
तुलसीदास जयंती का महत्व
तुलसीदास जी भारतवर्ष के सबसे महान और सम्मानित कवियों में से एक हैं। ऐसा माना जाता है कि तुलसीदास जी को साक्षात भगवान राम और उनके परम भक्त हनुमान जी ने दर्शन दिए थे। किवदंती है कि हनुमान जी ने रामचरितमानस लिखने में तुलसीदास जी की सहायता भी की थी।
तुलसीदास जी के प्रति सम्मान एवं आभार व्यक्त करने के के लिए तुलसीदास जयंती मनाई जाती है। भारत में रामायण जैसे महाकाव्य को जन-जन तक पहुंचाने का श्रेय तुलसीदास जी को भी जाता है क्योंकि उन्होंने ही इसे अवधी भाषा में लिखा था जिससे आम लोग आसानी से इसे पढ़ और समझ पाते हैं।
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कैसे मनाते हैं तुलसीदास जयंती?
भारत के महान कवि के जन्मोत्सव को हिंदू धर्म के लोग बड़ी खुशी और उमंग के साथ मनाते हैं। इस दिन तुलसीदास जी द्वारा लिखे गए भजन और कविता गाकर और उनके ग्रंथों का पाठ करके भक्त उन्हें याद करते हैं। जयंती के दिन श्रद्धालु रामचरितमानस का भी पाठ करते हैं।
तुलसीदास जयंती की पूजन विधि
इस अवसर पर भक्तजन मंदिर जाकर भगवान राम, देवी सीता और हनुमान जी की आराधना करते हैं। यदि आप घर पर ही पूजा करना चाहते हैं, तो अपने घर में किसी साफ स्थान पर राम दरबार स्थापित करें। दरबार के आगे घी का दीपक जलाएं और प्रसाद अर्पित करें। प्रसाद एवं पूजा में तुलसी के पत्ते का उपयोग जरूर करना चाहिए। अब तुलसी की माला से 108 बार तुलसीदास जी द्वारा लिखे गए दोहे और चौपाई का जाप करें। सबसे अंत में ईश्वर से अपनी मनोकामना की पूर्ति के लिए प्रार्थना करें।
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तुलसीदास जी ने की थी हनुमान चालीसा की रचना
शास्त्रों के अनुसार, हनुमान जी की स्तुति के लिए प्रसिद्ध हनुमान चालीसा की रचना का श्रेय भी तुलसीदास जी को ही जाता है। अभी तक यह स्पष्ट नहीं है कि उन्होंने हनुमान चालीसा की शुरुआत कब की थी लेकिन ऐसा माना जाता है कि 1532 से 1623 ईस्वी के बीच इसे लिखा गया था। तुलसीदास जी भगवान राम और हनुमान जी के बहुत बड़े भक्त थे। हनुमान जी की शक्ति, गुणों और कार्यों का गुणगान करने के लिए उन्होंने हनुमान चालीसा की रचना की थी।
तुलसीदास जी की जन्म कथा
पौराणिक कथाओं के अनुसार तुलसीदास जी का जन्म उत्तर प्रदेश के राजापुर गांव में 1532 ईस्वी में हुआ था। उनके पिता का नाम आत्माराम और माता का नाम हुलसी था। कहा जाता है कि जन्म के समय ही तुलसीदास जी के 32 दांत थे और पैदा होने के बाद उनके मुंह से पहला शब्द ‘राम’ निकला था।
इसके बाद उनका नाम ‘रामबोला’ पड़ गया। जन्म के कुछ दिन बाद ही उनके माता-पिता ने उनका त्याग कर दिया था और उनकी परवरिश नौकरानी ने की थी। जब रामबोला 5 वर्ष के हुए, तो उनकी नौकरानी की भी मृत्यु हो गई और इस तरह तुलसीदास जी एक बार फिर से अनाथ हो गए।
इसके बाद नरहरिदास जी ने रामबोला को गोद लिया और उन्हें अपने साथ अयोध्या ले आए। यहां पर उनका यज्ञोपवीत संस्कार किया गया। इस प्रकार, तुलसीदास जी ने अपनी शिक्षा-दीक्षा अयोध्या में सदगुरुदेव श्री नरहरिदास जी से ली थी। उन्होंने ही इनको श्री राम मंत्र दिया तथा रामाबोला से इनका नाम तुलसीदास रखा। हालांकि, तुलसीदास जी का पूरा नाम गोस्वामी तुलसीदास था।
अयोध्या में दस महीने रहने के बाद श्री नरहरिदास उन्हें वराह क्षेत्र ले आए और यहीं पर तुलसीदास जी ने पहली बार सद्गुरुदेव जी से रामायण के बारे में सुना। तुलसीदास जी ने जब पहली बार रामायण पढ़ी तो उनके मन में विचार आया कि इस महाकाव्य को बस विद्वान ही पढ़ सकते हैं इसलिए उन्होंने संस्कृत भाषा में लिखी गई रामायण को अवधी भाषा में लिखा ताकि आम लोग भी इस महाकाव्य को पढ़ सकें।
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तुलसीदास जी की रचनाएं
अपने जीवनकाल में तुलसीदास जी ने कई महान ग्रंथ और महाकाव्य लिखे थे जिनमें श्री रामचरितमानस, कृष्ण गीतावली, वैराग्य संदीपनी, पार्वती मंगल, रामाज्ञा प्रश्न, साहित्य रत्न और जानकी मंगल आदि शामिल हैं।
तुलसीदास जी के श्लोक
- राम नाम मणि दीप धरू, जीह देहरी द्वार।
तुलसी भीतर बहेराहून, जाऊ छाहसी उजियार।। - काम क्रोध लोभ मोह, जो लो मन में खान।
तो लो पंडित मूर्खो, तुलसी एक समान।। - तुलसी इस संसार में, भांति भांति के लोग।
सबसे हंस मिल बोलिये, नदी नाव संजोग।। - तुलसी भरोसे राम के, निर्भये होके सोये।
अनहोनी होनी नहीं, होनी हो सो होय।। - दाय धर्म का मूल है, पाप मूल अभिमान।
तुलसी दया नाम चाढिये, जब लग घाट में प्राण।।
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