सुध महादेव मंदिर : जहां महादेव ने अपने त्रिशूल को तोड़ कर जमीन में गाड़ दिया था

सनातन धर्म में देवी-देवताओं की खंडित मूर्ति की पूजा करना निषेध माना गया है लेकिन देश में एक ऐसा मंदिर भी है जहां न सिर्फ भगवान शिव का खंडित त्रिशूल मौजूद है बल्कि इसे पूजा भी जाता है। आज के लेख में बात इसी खास मंदिर की।

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कहाँ है यह मंदिर?

जम्मू से लगभग 120 किलोमीटर दूर पटनीटॉप इलाके में मौजूद है भगवान शिव का एक अति प्राचीन मंदिर जिसे सभी सुध महादेव के नाम से जानते हैं। इस मंदिर की सबसे खास बात यहाँ मौजूद एक विशाल त्रिशूल है जो तीन अलग-अलग हिस्सों में विभाजित है और जमीन में गड़ा हुआ है। मान्यता है कि यह भगवान शिव का त्रिशूल है और यही वजह है कि लोग इस खंडित त्रिशूल को पवित्र मान कर इसकी पूजा करते हैं।

कितना पुराना है सुध महादेव का मंदिर?

इस मंदिर के बारे में बताया जाता है कि यह लगभग 2800 साल पुराना है। हालांकि यह भी बताया जाता है कि लगभग एक शताब्दी पूर्व स्थानीय निवासी रामदास महाजन ने अपने पुत्र के साथ मिल कर इस मंदिर का पुनर्निर्माण करवाया था। इस मंदिर में भगवान शिव के खंडित त्रिशूल के साथ-साथ एक अति प्राचीन शिवलिंग भी मौजूद है। इसके अलावा यहाँ भगवान शिव के परिवार के सभी सदस्यों की प्रतिमा भी मौजूद है। साथ ही भगवान शिव की सवारी नंदी महराज भी यहां विराजमान हैं। 

कैसे खंडित हुआ भगवान शिव का त्रिशूल और क्या है सुध महादेव की कथा?

सुध महादेव मंदिर का नाम और भगवान शिव के खंडित त्रिशूल का आपस में एक खास संबंध है जिसको लेकर एक कथा बताई जाती है। दरअसल पुराणों में माता पार्वती का जन्म स्थान मनतलाई बताया जाता है जो कि इस मंदिर से लगभग 05 किलोमीटर की दूरी पर है।

कहा जाता है कि माता पार्वती यहाँ इस मंदिर में भगवान शिव की पूजा करने के लिए रोज आया करती थीं। एक दिन जब वो मंदिर गईं तब सुधान्त नामक एक दानव भी उस मंदिर में पहुंचा। सुधान्त दानव होते हुए भी भगवान महादेव का भक्त था और वह भी मंदिर में पूजा करने ही आया था। माता पार्वती उस समय भगवान महादेव की आराधना कर रही थीं इसलिए उनकी आँखें बंद थीं। ऐसे में वो सुधान्त को देख नहीं पाईं लेकिन जैसे ही उन्होंने आँखें खोलीं, अपने सामने दानव को खड़ा देख उनकी चीख निकल गयी।

भगवान शिव इस समय तपस्या में लीन थे और माता पार्वती की चीख सुनकर उनका ध्यान भंग हुआ। भगवान शिव को लगा कि सुधान्त ने माता पार्वती पर हमला कर दिया है और उन्होंने उस पर अपना त्रिशूल चला दिया जो सुधान्त की छाती में जा धंसा। कुछ ही क्षणों में भगवान शिव को अपनी गलती का एहसास हुआ और उन्होंने सुधान्त को जीवनदान देना चाहा लेकिन सुधान्त ने उनसे यह विनती करते हुए जीवनदान ठुकरा दिया कि वह अपने इष्ट के हाथों मृत्यु पाकर मोक्ष प्राप्त करना चाहता है।

भगवान शिव ने सुधान्त के निष्कपट मन को देखते हुए उसे आशीर्वाद दिया कि आज के बाद इस जगह को सुधान्त के नाम से ही सुध महादेव के तौर पर जाना जाएगा। इसके बाद भगवान शिव ने उस त्रिशूल के तीन टुकड़े कर दिये जिससे सुधान्त की मृत्यु हुई थी और उसे वहीं जमीन में गाड़ दिया। भगवान शिव के हाथों जमीन में गाड़ा हुआ वो त्रिशूल आज भी मंदिर मेन देखा जा सकता है जिसे लोग खंडित होने के बावजूद पूजते हैं।

आपको बता दें कि सुधान्त की मृत्यु को लेकर एक और कथा का जिक्र मिलता है जिसमें सुधान्त को दानव के साथ-साथ दुराचारी भी बताया गया है। दूसरी कथा के अनुसार सुधान्त ने माता पार्वती पर बुरी दृष्टि डाली थी इसलिए ही भगवान शिव ने उसका वध कर दिया था।

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