02 जुलाई को शीतला अष्टमी, जानें पूजा विधि व इस दिन का महत्व

हिन्दू पंचांग के अनुसार प्रत्येक माह दो अष्टमी तिथि पड़ती है। एक कृष्ण पक्ष में और दूसरी शुक्ल पक्ष में। इसमें से आषाढ़ महीने के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि का विशेष महत्व है क्योंकि इस दिन शीतला अष्टमी का पर्व मनाया जाता है। वैसे शीतला अष्टमी का पर्व देश के कई हिस्सों में अलग-अलग समय मनाया जाता है जैसे कि कहीं शीतला अष्टमी चैत्र महीने में मनाने का प्रावधान है तो कहीं वैशाख, ज्येष्ठ और कहीं आषाढ़ महीने में इस पर्व को मनाने की परंपरा है।

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ऐसे में आज हम आपको इस लेख में आषाढ़ महीने में मनाए जाने वाले शीतला अष्टमी पर्व की तिथि, शुभ मुहूर्त, महत्व और पूजा विधि की जानकारी देने वाले हैं।

कब है शीतला अष्टमी?

हिन्दू पंचांग के अनुसार शीतला अष्टमी का पर्व आषाढ़ महीने के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि  को मनाया जाता है। साल 2021 के आषाढ़ महीने में अष्टमी तिथि 01 जुलाई को दोपहर 02 बजकर 04 मिनट से शुरू हो जाएगी और इसका समापन 02 जुलाई को दोपहर 03 बजकर 31 मिनट पर होगा। ऐसे में शीतलाष्टमी का पर्व 02 जुलाई को शुक्रवार के दिन मनाया जाएगा।

क्या है शीतला अष्टमी का महत्व?

शीतला अष्टमी को कई जगहों पर बसौड़ा जयंती के नाम से भी जाना जाता है। बसौड़ा शब्द बसियारा से लिया गया है जिसका अर्थ होता है बासी भोजन। शीतला अष्टमी के दिन माता शीतला को बासी भोजन का भोग लगाया जाता है। मान्यता है कि माता शीतला की पूजा करने से जातकों को रोग आदि से मुक्ति मिलती है। विवाहित महिलाएं इस दिन अपनी संतान की लंबी आयु व परिवार के सदस्यों के रोगमुक्त रहने के लिए ये व्रत रखती हैं। मान्यता है कि इस दिन व्रत करने से जातकों के संतान को चेचक, खसरा, नेत्र संबंधी बीमारियां आदि नहीं होती हैं।

आइये अब आपको शीतला अष्टमी के दिन की जाने वाली पूजा की विधि बता देते हैं।

शीतला अष्टमी पूजा विधि

इस दिन सुबह जल्दी उठकर नहाने के पानी में गंगाजल मिलाकर स्नान कर लें। इसके बाद साफ व नारंगी रंग के वस्त्र धारण करें। पूजा करने की दो थालियां सजाएं। इसमें से एक थाल में दही, पुआ, रोटी, बाजरा, नमक पारे, मातृ और सप्तमी के दिन बने बासी मीठे चावल रख दें। वहीं दूसरी थाली में आते के दीपक बनाकर रख लें। इसके साथ-साथ दूसरी थाल में रोली, वस्त्र, अक्षत, सिक्के, मेहंदी और एक लोटा ठंडा पानी रख लें। घर में माता शीतला की पूजा करें और उन्हें थाली में रखा भोग अर्पित करें। ध्यान रहे कि इस समय आपको दीपक नहीं जलाना है। घर में पूजा करने के बाद नीम के पेड़ की जड़ में जल अर्पित करें। 

दोपहर में मंदिर जाकर एक बार फिर से शीतला माता की पूजा करें। माता को जल अर्पित करें व रोली और हल्दी का टीका लगाएं। माता को मेहंदी और नए वस्त्र अर्पित करें। इसके बाद माता को बासी भोजन का भोग लगाकर उनकी आरती करें। पूजा सामग्री बचने पर किसी गाय या ब्राह्मण को दान कर दें।

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