हिन्दू धर्म में संकष्टी चतुर्थी को प्रमुख त्यौहार के रूप में माना जाता है। इस दिन विशेष रूप से विघ्नहर्ता भगवान श्री गणेश की पूजा की जाती है। भगवान गणेश को प्रसन्न करने के लिए उनकी एक खास पूजा-व्रत का विधान बताया गया है जिसे संकष्टी चतुर्थी कहते हैं। इस लेख में हम आपको संकष्टी चतुर्थी के महत्व और इस दिन की जाने वाली पूजा अर्चना की संपूर्ण विधि के बारे में विस्तार से बताने जा रहे हैं। आइये जानते हैं कि आखिर हिन्दू धर्म में संकष्टी चतुर्थी को क्यों महत्वपूर्ण माना गया है।
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संकष्टी चतुर्थी व्रत से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारी
संकष्टी चतुर्थी का व्रत हिन्दू पंचांग के अनुसार प्रत्येक महीने के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को रखा जाता है। अंग्रेजी कैलेंडर में यह चतुर्थी तिथि रविवार के दिन 27 जून को पड़ रही है। रविवार को होने वाली इस संकष्टी चतुर्थी के कारण इस दिन को रविवती संकष्टी चतुर्थी भी कहा जा रहा है।
संकष्टी चतुर्थी व्रत मुहूर्त
संकष्टी चतुर्थी- 27 जून, 2021, दिन – रविवार
चतुर्थी तिथि प्रारंभ – 27 जून, 3 बजकर 54 मिनट से
चतुर्थी तिथि समाप्त- 28 जून, दोपहर 2 बजकर 16 मिनट तक
संकष्टी चतुर्थी का महत्व
- हिन्दू धर्म में मान्यता है कि संकष्टी चतुर्थी के दिन पूजा करने से घर से हर प्रकार की नकारात्मक प्रभाव और ऊर्जा खत्म हो जाती है।
- संकष्टी चतुर्थी का व्रत करने से घर में सुख-शांति बनी रहती है।
- इस व्रत को रखने से भगवान गणेश जातकों की सभी मनोकामनाएं पूरी करते हैं।
- संकष्टी चतुर्थी के दिन चंद्र दर्शन का बहुत महत्व है क्योंकि यह व्रत सूर्योदय से शुरू होकर चंद्र दर्शन से खत्म होता है।
संकष्टी चतुर्थी: कैसे करें भगवान गणेश की पूजा
- इस दिन सबसे पहले सूर्योदय से पहले उठकर स्नान करें। फिर साफ़ सुथरे वस्त्र धारण करें।
- पूजा घर के ईशान कोण में एक चौकी रखें। उसपर लाल या पीले रंग का कपड़ा बिछाकर भगवान गणेश की मूर्ती स्थापित करें।
- सबसे पहले गणेश जी का ध्यान करते हुए व्रत का संकल्प लें।
- पूजन विधि शुरू करते हुए गणेश जी को जल, दूर्वा, अक्षत, पान अर्पित करें।
- गणेश जी से अच्छे जीवन की कामना करें और इस दौरान “गं गणपतये नमः:” मंत्र का जाप करें।
- प्रसाद में गणेश जी को मोतीचूर के लड्डू, बूंदी या पीले मोदक चढ़ाएं।
- चतुर्थी पूजा संपन्न करते हुए त्रिकोण के अगले भाग पर एक घी का दीया, मसूर की दाल और साबुत मिर्च रखें।
- पूजा संपन्न होने पर दूध, चंदन और शहद से चंद्रदेव को अर्घ्य दें। फिर प्रसाद ग्रहण करें।
संकष्टी चतुर्थी की रोचक कथा
पौराणिक कथा के अनुसार माता पार्वती ने अपने शरीर के मैल से भगवान गणेश का सृजन किया था और एक दिन बाल्य अवस्था में उन्हें दरवाज़े पर बैठाकर खुद स्नान के लिए चली गयीं। माता पार्वती ने जाते वक्त भगवान गणेश से कहा कि वे किसी को भी अंदर आने ना दें लेकिन इस दौरान भगवान शिव वहां पहुंच गए।
चूंकि माता पार्वती ने गणेश जी को आदेश दिया था कि किसी को भी अंदर नहीं दिया जाये इसलिए गणेश जी ने भगवान शिव को अंदर नहीं जाने दिया और द्वार पर ही उन्हें रोक दिया। इस बात से शिव जी बहुत क्रोधित हुए और उन्होंने गणेश जी का सिर धड़ से अलग कर दिया।
स्नान करने के पश्चात जब माता पार्वती को इस बात का पता चला तो उनको बहुत दुख हुआ। जिसके बाद माता पार्वती का दुख दूर करने के लिए शिवजी ने एक नवजात हाथी का सिर गणेश जी के शरीर पर लाकर लगा दिया। कहते हैं उस वक्त गणेश जी का कटा हुआ सिर चंद्रमा पर जा कर गिरा था। मान्यता है कि चंद्रमा को अर्घ्य देने की परंपरा की शुरुआत इसी वजह से हुई। संकष्टी चतुर्थी के दिन भी चंद्रमा को अर्घ्य देना शुभ माना गया है।
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