जानिए ज्योतिष शास्त्र के अनुसार पुष्य नक्षत्र का महत्व, लाभ और प्रभाव

‘सर्वसिद्धिकरः पुष्यः’

ज्योतिष शास्त्र में सही और सटीक भविष्यवाणी करने के लिए नक्षत्रों का उपयोग किया जाता है। बता दें कि नक्षत्र द्वारा किसी इंसान के सोचने-समझने की शक्ति, अंतर्दृष्टि और उसकी विशेषताओं का विश्लेषण बेहद ही आसानी से किया जा सकता है। सिर्फ इतना ही नहीं, बल्कि नक्षत्र आपकी दशा अवधि की गणना करने में भी मदद करते हैं। अपना नक्षत्र जानने या उससे जुड़ा कोई भी सवाल का जवाब चाहिए तो अभी देश के जाने-माने ज्योतिषियों से प्रश्न पूछें

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ज्योतिषीय विश्लेषण से लेकर सटीक भविष्यवाणियों तक के लिए नक्षत्र की अवधारणा का उपयोग किया जाता है। शास्त्रों में कुल 27 नक्षत्र बताये गए हैं, और इन्ही में से एक नक्षत्र है पुष्य नक्षत्र, जिसके महत्व, लाभ और प्रभाव के बारे में हम इस आर्टिकल में बात करेंगे।

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भारतीय ज्योतिष शास्त्र व धार्मिक ग्रंथों के अनुसार पुष्य नक्षत्र को सभी नक्षत्रों का राजा व मंगलकर्ता कहा गया है। इसके अलावा यह समृद्धिदायक, सर्वश्रेष्ठ सर्वोपरि शुभ फल प्रदान करने वाला नक्षत्र माना गया है। 

धार्मिक ग्रंथों के अनुसार कहा गया है कि, संस्कृति में संतुष्टि एवम् पुष्टिप्रदायक पुष्य नक्षत्र का वारों में श्रेष्ठ बृहस्पतिवार से योग होने पर यह अति दुर्लभ “गुरुपुष्यामृत योग” कहलाता है। ग्रंथों के अनुसार पुष्य नक्षत्र सर्वसिद्धिकर है। पुष्य का अर्थ है पोषण करने वाला, ऊर्जा व शक्ति प्रदान करने वाला व पुष्य को पुष्प का बिगड़ा रूप मानते हैं। 

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पुष्य का प्राचीन नाम तिष्य शुभ, सुंदर तथा सुख संपदा देने वाला है। विद्वान इस नक्षत्र को बहुत शुभ और कल्याणकारी मानते हैं। पंचांग के अंग में नक्षत्र का स्थान द्वितीय स्थान पर है। सर्वाधिक गति से गमन करने वाले चंद्रमा की स्थिति के स्थान को इंगित करते हैं जो कि मन व धन के अधिष्ठाता हैं। हर नक्षत्र में इनकी उपस्थिति विभिन्न प्रकार के कार्यों की प्रकृति व क्षेत्र को निर्धारण करती है। 

इनके अनुसार किए गए कार्यों में सफलता की मात्रा अधिकतम होने के कारण उन्हें मुहूर्त के नाम से जाना जाता है। शुभ, मांगलिक कर्मों के संपादनार्थ गुरुपुष्यामृत योग वरदान सिद्ध होता है। व्यापारिक कार्यों के लिए तो यह विशेष लाभदायी माना गया है। इस योग में किया गया जप , ध्यान, दान, पुण्य महाफलदायी होता है।

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पुष्य नक्षत्र का महत्व 

वैसे तो हर किसी शुभ कार्य के लिए अलग-अलग मुहूर्त होते हैं, लेकिन कुछ मुहूर्त हर कार्य के लिए विशेष होते हैं। इन्हीं में एक है, पुष्य नक्षत्र जिसे खरीददारी से लेकर अन्य शुभ कार्यों तक मुहूर्त का स्थान प्राप्त है। मुहूर्त का ज्योतिष शास्त्र में स्थान एवं जनसामान्य में इसकी महत्ता विशिष्ट है। कार्तिक अमावस्या के पूर्व आने वाले पुष्य नक्षत्र को शुभतम माना गया है। 

जब यह नक्षत्र सोमवार, गुरुवार या रविवार को आता है, तो एक विशेष वार नक्षत्र योग निर्मित होता है। जिसका संधिकाल में सभी प्रकार का शुभफल सुनिश्चित हो जाता है। गुरुवार को इस नक्षत्र के पड़ने से गुरु पुष्य नामक योग का सृजन होता है। यह क्षण वर्ष में कभी-कभी आता है। ज्योतिष शास्त्र में 27 नक्षत्र माने गए हैं। इनमें 8 वे स्थान पर पुष्य नक्षत्र आता है। यह बहुत ही शुभ नक्षत्र माना जाता है। हमारे शास्त्रों के अनुसार चूँकि यह नक्षत्र स्थायी होता है और इसीलिए इस नक्षत्र में खरीदी गई कोई भी वस्तु स्थायी तौर पर सुख समृद्धि देती है।

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पुष्य नक्षत्र में जन्मा व्यक्ति

पुष्य नक्षत्र का स्वामी व दिशा प्रतिनिधि‍ शनि ग्रह को माना गया है। पुष्य नक्षत्र के देव बृहस्पति शुभता, बुद्धि‍मत्ता और ज्ञान का प्रतीक हैं, तथा शनि स्थायि‍त्व का, इसलिए इन दोनों का योग मिलकर पुष्य नक्षत्र को शुभ और चिर स्थायी बना देता है। ज्योतिषशास्त्र में पुष्य नक्षत्र को बहुत ही शुभ माना गया है। वार एवं पुष्य नक्षत्र के संयोग से रवि-पुष्य जैसे शुभ योग का निर्माण होता है। 

इस नक्षत्र में जिसका जन्म होता है वे दूसरों की भलाई के लिए सदैव तत्पर रहते हैं। कम उम्र में ही विभिन्न परेशानियों एवं कठिनाइयों से गुजरने के कारण युवावस्था में कदम रखते-रखते परिपक्व हो जाते हैं। इस नक्षत्र के जातक मेहनत और परिश्रम से कभी पीछे नहीं हटते और अपने काम में लगन पूर्वक जुटे रहते हैं। ये अध्यात्म में काफी गहरी रूचि रखते हैं और ईश्वर भक्त होते हैं। 

इनके स्वभाव की एक बड़ी विशेषता है कि ये चंचल मन के होते हैं। ये अपने से विपरीत लिंग वाले व्यक्ति के प्रति काफी लगाव व प्रेम रखते हैं। ये यात्रा और भ्रमण के शौकीन होते हैं। ये अपनी मेहनत से जीवन में धीरे-धीरे तरक्की करते जाते हैं साथ ही अपने जीवन में सत्य और न्याय को महत्वपूर्ण स्थान देते हैं। ये किसी भी दशा में सत्य से हटना नही चाहते, अगर किसी कारणवश इन्हें सत्य से हटना पड़ता है तो, ये उदास और खिन्न रहते हैं। ये आलस्य को अपने ऊपर हावी नहीं होने देते, व एक स्थान पर टिक कर रहना पसंद नहीं करते।

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पुष्य नक्षत्र में करें ये काम तो मिलेगा पूर्ण फल 

ऋग्वेद में पुष्य नक्षत्र को मंगल कर्ता, वृद्धि कर्ता और सुख समृद्धि दाता कहा गया है। 

1- यह योग किसी नए कार्य की शुरूआत करने के लिए उपयुक्त माना जाता है।

2- यात्रा का आरंभ करना।

3- विद्या ग्रहण करना, या किसी नए शिक्षण संस्थान में प्रवेश लेना।

4- गुरू से मंत्र शिक्षा पाना और आध्यात्मिक उन्नति हेतु यह समय अनुकूल होता है। 

5- धार्मिक अनुष्ठानों के लिए भी इस योग का चयन श्रेष्ठ माना जाता है।

6- साथ ही राजकीय कार्यों में सफलता दिलाने में सहायक बनता है नेतृत्व की संभावना को बढ़ाता है। 

लेकिन यह भी ध्यान देना चाहिए कि पुष्य नक्षत्र भी अशुभ योगों से ग्रसित तथा अभिशापित होता है। शुक्रवार को पुष्य नक्षत्र में किया गया कार्य सर्वथा असफल ही नहीं, उत्पातकारी भी होता है। अतः पुष्य नक्षत्र में शुक्रवार के दिन को तो सर्वथा त्याग ही दें। बुधवार को भी पुष्य नक्षत्र नपुंसक होता है। अतः इसमें किया गया कार्य भी असफलता देता है। लेकिन पुष्य नक्षत्र शुक्र तथा बुध के अतिरिक्त सामान्यतया श्रेष्ठ होता है। रवि तथा गुरु पुष्य योग सर्वार्थ सिद्धिकारक माना गया है। विशेष ध्यान दें कि विवाह में पुष्य नक्षत्र सर्वथा वर्जित तथा अभिशापित है, अतः पुष्य नक्षत्र में विवाह कभी भी नहीं करना चाहिए।

आगामी आने वाले पुष्य नक्षत्र की तिथि 

13 सितंबर 2020, रविवार 

11 अक्टूबर 2020, रविवार 

08 नवम्बर 2020, रविवार 

31 दिसंबर 2020, बृहस्पतिवार 

 हम आशा करते हैं कि हमारा यह लेख आपको अवश्य पसंद आया होगा। एस्ट्रोसेज के साथ जुड़े रहने के लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद।

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