जानें कब है पौष पुत्रदा एकादशी, संपूर्ण पूजा विधि और व्रत कथा

हिंदू धर्म में एकादशी व्रत को बेहद महत्वपूर्ण माना गया है। हिंदू मान्यताओं के अनुसार एकादशी का व्रत करने से मनुष्य को जीवन में हर प्रकार के सुखों की प्राप्ति होती है। हिंदू कैलेंडर के अनुसार पुत्रदा एकादशी साल में दो बार पड़ती है, और इस व्रत को करने से संतान सुख की प्राप्ति होती हैइस साल 2021 में पौष पुत्रदा एकादशी 24 जनवरी को है। इस दिन सृष्टि के रचनाकार भगवान विष्णु की पूजा की जाती है और व्रत रखा जाता है।

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इस दिन व्रत करने से भगवान विष्णु की विशेष कृपा प्राप्त होती है, और संतान सुख की कामना करने वाली स्त्रियों की गोद भर जाती है, पौष पुत्रदा एकादशी व्रत विशेष कर संतान सुख के लिए किया जाता है, इस व्रत को करने वाले स्त्री या पुरुष की संतान पर भी भगवान विष्णु का सदैव आशीर्वाद बना रहता है। हिंदू मान्यताओं के अनुसार एकादशी का व्रत करने वाले जातकों को जीवन भर सुख की प्राप्ति होती है और जीवन उपरांत मोक्ष मिलता है। 

 पुत्रदा एकादशी पूजा व्रत मुहूर्त- 07:12:49  से  09:21:06 तक, 25 जनवरी

                                    अवधी – 2 घंटे 8 मिनट

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पौष पुत्रदा एकादशी पूजा विधि

पौष पुत्रदा एकादशी के दिन भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। व्रत रखने से एक दिन पहले भक्तों को सात्विक भोजन ही ग्रहण करना चाहिए। इसके अलावा व्रती महिला या पुरुष को संयमित और ब्रह्मचर्य का भी पालन करना चाहिए। आगले दिन व्रत शुरू करने के लिए सुबह उठकर स्नान करने के बाद व्रत का संकल्प लें, और भगवान विष्णु का ध्यान करें।  गंगाजल, तुलसीदल, फूल, पंचामृत से भगवान विष्णु की पूजा करें। पुत्रदा एकादशी का व्रत रखने वाली महिला या पुरुष निर्जला व्रत करें। यदि आपका स्वास्थ्य ठीक नहीं है, तो शाम को दीपक जलाने के बाद फलाहार कर सकते हैं। व्रत के अगले दिन द्वादशी पर किसी ब्राह्मण व्यक्ति या किसी जरूरतमंद को भोजन कराएं, और दान दक्षिणा दें। उसके बाद ही व्रत का पारण करें।

संतान प्राप्ति के लिए क्या करें ?

  • सुबह जल्दी उठकर स्नान करने के बाद पति-पत्नी एक साथ भगवान श्री कृष्ण की उपासना करें।
  • पति-पत्नी संतान गोपाल मंत्र का जाप करें।
  • मंत्र का जाप करने और पूजा खत्म होने के बाद प्रसाद ग्रहण करें।
  • जरूरतमंदों को अपनी सामर्थ्य अनुसार दान दक्षिणा दें, और भोजन कराएं।

पौष पुत्रदा एकादशी कथा

एक समय की बात है भद्रावती नगर में सुकेतु नाम के राजा का राज्य था। राजा सुकेतु और उनकी रानी शैव्या के कोई संतान ना थी। इसके कारण दोनों पति-पत्नी बेहद दुखी रहते थे। एक दिन राजा सुकेतु ने अपनी रानी शैव्या के साथ वन जाने का मन बना लिया, और अपना राजपाठ मंत्री को सौंप कर निकल पड़े। वन पहुंचने के बाद राजा सुकेतु के मन में आत्महत्या करने का ख्याल आया, लेकिन फिर उनके अंतर्मन से मन आवाज आई की आत्महत्या करने से बड़ा पाप और कोई नहीं। इसके बाद अचानक राजा सुकेतु के कानों में वेदों के पाठ गुंजने लगे। और राजा सुकेतु और उनकी पत्नी उस ध्वनि को सुनते हुए साधुओं के पास पहुंची। जहां साधुओं ने उन्हें पौष पुत्रदा एकादशी व्रत के महत्व के बारे में ज्ञात कराया। दोनों पति-पत्नी ने पौष पुत्रदा एकादशी का व्रत किया और उन्हें संतान प्राप्ति हुई। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार तब से पौष पुत्रदा एकादशी व्रत का महत्व बढ़ गया, और नि:संतान दंपत्ति इस व्रत को करने लगे। इसलिए ऐसी मान्यता है कि जो दंपत्ति नि:संतान है, उन्हें पौष पुत्रदा एकादशी व्रत जरूर करना चाहिए ।      

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