उत्पन्ना एकादशी: इस एकादशी को क्यों माना गया है सर्वश्रेष्ठ, जानें शुभ मुहूर्त और पूजन विधि

एकादशी का हिंदू धर्म में विशेष महत्व बताया गया है। साल भर में अलग-अलग महीने में अलग-अलग एकादशी मनाई जाती है। इन्हीं में से एक एकादशी होती है उत्पन्ना एकादशी। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार बताया जाता है कि इसी दिन एकादशी माता का जन्म हुआ था, इसलिए इसे उत्पन्ना एकादशी के नाम से जाना जाता है। 

माता एकादशी को भगवान विष्णु की ही शक्ति माना गया है। इनके बारे में ऐसी मान्यता है कि इस दिन एकादशी माता ने उत्पन्न होकर राक्षस मुर का वध किया था। हिंदू धर्म की मान्यता के अनुसार उत्पन्ना एकादशी के दिन स्वयं भगवान विष्णु ने माता एकादशी को आशीर्वाद दिया था और उनके इस व्रत को पूजनीय बताया था। 

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यही वजह है जिसके चलते कहा जाता है कि जो कोई भी इंसान उत्पन्ना एकादशी का व्रत रखता है इस व्रत के प्रभाव से उसके सभी पाप अवश्य नष्ट हो जाते हैं। 

जाने कब है उत्पन्ना एकादशी? 

देश में अलग-अलग हिस्सों में उत्पन्ना एकादशी अलग-अलग दिनों को मनाई जाती है। जहां उत्तर भारत में या एकादशी मार्गशीर्ष में पड़ती है वहीं दक्षिण भारत में उत्पन्ना एकादशी कार्तिक मास में मनाई जाती है। उत्तर भारत के अनुसार बताएं तो इस बार उत्पन्ना एकादशी 11 दिसंबर 2020, को मनाई जाएगी। 

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उत्पन्ना एकादशी की तिथि और शुभ मुहूर्त 

11 दिसंबर 2020, शुक्रवार
उत्पन्ना एकादशी पारणा मुहूर्त :07:04:38 से 09:08:48 तक 12, दिसंबर को
अवधि :2 घंटे 4 मिनट

यहाँ दिया गया मुहूर्त दिल्ली के अनुसार है। अपने शहर के अनुसार मुहूर्त जानने के लिए 

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उत्पन्ना एकादशी पूजन विधि 

  • सुबह उठकर स्नान आदि करने के बाद साफ कपड़े पहन कर भगवान श्री कृष्ण का ध्यान करें और पूरे घर में गंगा जल छिडकें। 
  • इसके बाद विघ्नहर्ता भगवान गणेश और भगवान श्री कृष्ण की मूर्ति रखें। 
  • पूजा में सबसे पहले भगवान गणेश को तुलसी की मंजरियाँ अर्पित करें। 
  • इसके बाद भगवान विष्णु को धूप, दीप, नैवेद्य इत्यादि दिखाएं और रोली और अक्षत चढ़ाएं। 
  • इस दिन की पूजा करने के बाद उत्पन्ना एकादशी की व्रत कथा अवश्य सुननी चाहिए।
  • पूजा के बाद आरती करें और सभी लोगों में प्रसाद बांटे। 

एकादशी का व्रत अगले दिन सूर्योदय के बाद ही पूरा करना चाहिए। इस दिन अन्य ग्रहण नहीं करना चाहिए और ग़रीबों और ज़रूरतमंदों को यथाशक्ति दान देना का भी महत्व बताया गया है। व्रत खोलने से पहले भी ज़रूरतमंदों को दान दें और किसी ब्राह्मण को भोजन कराएं इसके बाद ही अपना व्रत पूरा करें। 

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उत्पन्ना एकादशी महत्व 

हिंदू धर्म में उत्पन्ना एकादशी का खास महत्व बताया गया है। इस व्रत के बारे में ऐसी मान्यता है कि जो कोई भी इंसान उत्पन्ना एकादशी का व्रत पूरी निष्ठा के साथ करता है उस इंसान के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं। इतना ही नहीं इस व्रत के बारे में भी कहा जाता है कि जो कोई भी इंसान एकादशी का व्रत करने के इच्छुक हैं उन्हें उत्पन्ना एकादशी से ही इस व्रत की शुरुआत करनी चाहिए। 

जानकारी के लिए बता दें कि साल में 24 एकादशी व्रत होते हैं और हर महीने में दो एकादशी आती है। उत्पन्ना एकादशी के दिन भगवान विष्णु ने मुरसुरा नाम के राक्षस का वध किया था। ऐसे में भगवान विष्णु की जीत की खुशी में इस एकादशी को मनाए जाने की परंपरा की शुरुआत हुई। इस दिन भगवान विष्णु और माता एकादशी का व्रत और पूजन करने का विधान बताया गया है। 

उत्पन्ना एकादशी की व्रत कथा 

पौराणिक कथाओं के अनुसार सतयुग में मुर नाम का राक्षस हुआ करता था। यह राक्षस बेहद ही बलवान और भयानक था। अपनी शक्ति से मुर ने इंद्र, आदित्य, वसु, वायु, अग्नि इत्यादि सभी देवताओं को पराजित करके देव लोक से निकाल दिया था। राक्षस के आतंक से परेशान होकर सभी देवता भगवान शिव के पास पहुंचे और उन्हें सारी बात कह सुनाई। सभी भगवानों ने भगवान शिव से कहा, ‘हे कैलाश पति! राक्षस से भयभीत होकर सब देवता मृत्यु लोक में फिर रहे हैं।’ सभी देवताओं की बात सुनकर भगवान शिव ने कहा हे देवताजन, आप लोग तीनों लोक के स्वामी और भक्तों के दुख का नाश करने वाले भगवान विष्णु की शरण में जाइए। आप लोगों को इस दुख से वही बचा सकते हैं। 

शिव जी की यह बात सुनकर सभी देवता क्षीरसागर में पहुंच गए। वहां भगवान के सामने सभी ने हाथ जोड़कर विनती की। देवताओं ने कहा, ‘हे दे! हे देवताओं द्वारा स्तुति करने योग्य प्रभु ! आपको हमारा बारंबार प्रणाम है। देवताओं की रक्षा करने वाले मधुसूदन आपको हमारा नमस्कार है। कृपा हमारी रक्षा करें। दैत्यों से भयभीत होकर हम आपकी शरण में आए हैं।’ तब देवताओं की ऐसी बात सुनकर भगवान बोले ऐसा मायावी राक्षस कौन है जिसमें सभी देवताओं को जीत लिया है? उसका क्या नाम है? और उसमें इतना बल कैसे आया? तथा वह कहां है यह सब मुझ से बताओ। 

तब भगवान इंद्र ने कहा, प्राचीन समय में एक नाड़ीजंघ नाम का राक्षस हुआ करता था। उस महा पराक्रमी राक्षस का पुत्र हुआ मुर। उसकी चंद्रवती नाम की एक नगरी भी है। इस राक्षस ने अपने आतंक के बल पर हमें स्वर्ग से निकाल दिया है और वहां पर अपना अधिकार जमा लिया है। उस राक्षस ने इंद्र, अग्नि, वरुण, एवं वायु, ईश, चंद्रमा, नेत्रत आदि सभी देवों के के स्थानों पर अधिकार जमा लिया है। अब वो खुद ही सूर्य बनकर स्वयं ही प्रकाश करता है और मेघ भी स्वयं बना बैठा है।

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यह वचन सुनकर भगवान ने कहा- “हे देवताओं, मैं शीघ्र ही उस राक्षस का संहार करुंगा। आप लोग  चंद्रावती नगरी जाओ। भगवान के ऐसा कहने पर भगवान सहित सभी देवताओं ने चंद्रावती नगरी की ओर प्रस्थान किया। उस समय दैत्य मुर अपने बल के अभिमान में अपनी सेना के साथ युद्ध भूमि में गरज रहा था। उसकी गर्जना इतनी भयानक थी कि सभी देवता डर से इधर-उधर भागने लग गए। इसके बाद जैसे ही भगवान रणभूमि में आए तो दैत्य उन पर भी अस्त्र, शस्त्र, आयुध लेकर दौड़े।

ये युद्ध काफी समय तक चला। इसमें बहुत से दैत्य मारे गए तब अंत में केवल राक्षस मुर ही बचा रहा। भगवान और मुर के बीच 10 हजार वर्षों तक युद्ध चलता रहा किंतु मुर ना ही हारा और ना ही मरा। तब थक-कर भगवान बद्रिकाश्रम चले गए। वहां हेमवती नाम की एक बेहद सुंदर गुफा थी। भगवान  विश्राम करने के लिए उस गुफा में चले गए। बताया जाता है यह सुंदर गुफा 12 योजन लंबी थी और उसका केवल एक ही द्वार था। अंदर जाकर विष्णु भगवान वहां योगनिद्रा की गोद में सो गए।तब भगवान का पीछा करते-करते राक्षस मुर भी वहां आ पहुंचा और भगवान को सोया देखकर मारने को उद्यत हुआ तभी भगवान के शरीर से उज्ज्वल, कांतिमय रूप वाली देवी प्रकट हुई। देवी ने राक्षस मुर को ललकारा, युद्ध किया और उसे तत्काल मौत के घाट उतार दिया।

जब श्री हरि अपनी योगनिद्रा की गोद से उठे, तो उन्हें सभी बात पता चली कि कैसे माता ने मुर का वध कर दिया है। सब बातों को जानकर भगवान विष्णु ने उस देवी से कहा कि आपका जन्म एकादशी के दिन हुआ है, इसलिए जग में आप उत्पन्ना नाम से जानी जाएँगी और लोगों के बीच आप उत्पन्ना एकादशी के नाम से पूजित होंगी। जो मेरे भक्त हैं वो आपके भी भक्त होंगे।

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