PapMochani Ekadashi 2021: जानें इस दिन की व्रत कथा और इससे मिलने वाला फल

व्यक्ति के समस्त पापों का नाश करने वाली पापमोचनी एकादशी इस वर्ष 7 अप्रैल के दिन पड़ रही है। पापमोचनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु के चतुर्भुज स्वरूप की विधिपूर्वक पूजा का विधान बताया गया है। जो व्यक्ति ऐसा करता है और इस दिन व्रत करता है उसके समस्त पापों को श्रीहरि देखते ही देखते उसके जीवन से दूर कर देते हैं।

पापमोचनी एकादशी 2021 शुभ मुहूर्त 

पापमोचनी एकादशी पारणा मुहूर्त :13:39:14 से 16:10:59 तक 8, अप्रैल को

अवधि :2 घंटे 31 मिनट

हरि वासर समाप्त होने का समय :08:42:30 पर 8, अप्रैल को

विधिपूर्वक पूजा के साथ-साथ पापमोचनी एकादशी के दिन इस दिन से संबंधित व्रत कथा पढ़ने का भी विशेष महत्व बताया जाता है। जो कोई भी व्यक्ति इस दिन की पूजा व्रत के साथ इस दिन की व्रत कथा सुनता है उसे पूर्ण फल की प्राप्ति होती है। तो आइए जानते हैं क्या है पापमोचनी एकादशी से संबंधित व्रत कथा।

पापमोचनी एकादशी व्रत कथा

पापमोचनी एकादशी व्रत के बारे में स्वयं भगवान कृष्ण ने अर्जुन को बताया था कि, राजा मांधाता ने लोमश ऋषि से जब यह पूछा कि अनजाने में किए हुए पाप से व्यक्ति को मुक्ति कैसे हासिल हो? तब लोमश ऋषि ने पापमोचनी एकादशी व्रत के महात्म्य का जिक्र किया था और तभी ऋषि ने राजा को एक पौराणिक कथा भी सुनाई थी। आइए जानते हैं क्या थी वह कथा,

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च्यवन ऋषि के पुत्र मेधावी वन में तपस्या कर रहे थे। समय अप्सरा मंजुघोषा वहां से गुजर रही थी और तभी उनकी नजर मेधावी पर पड़ी। एक ही नजर में वह मेधावी पर मोहित हो गयीं। इसके बाद अप्सरा ने मेधावी का ध्यान अपनी और केंद्र करने के लिए ढेरों जतन किए। मंजुघोषा को जतन करता देख कामदेव उनकी मदद करने के लिए वहां पहुंच गए। इसके बाद मेधावी मंजुघोषा की ओर आकर्षित हो गए और दोनों एक दूसरे में इस प्रकार लीन हो गए की मेधावी भगवान शिव की तपस्या करना ही भूल गए।

काफी समय बाद मेधावी को जब अपनी गलती का एहसास हुआ तो उन्होंने इस बात का दोषी मंजुघोषा को मानते हुए उन्हें पिशाचिनी होने का श्राप दे दिया जिससे अप्सरा बेहद ही दुखी हुई। इसके बाद उन्होंने अपनी गलती की क्षमा मांगी। तब मेधावी ने मंजुघोषा को चैत्र मास में पढ़ने वाली पापमोचनी एकादशी के बारे में बताया। जिसके बाद मंजुघोषा ने विधिपूर्वक पापमोचनी एकादशी का व्रत किया जिससे उनके सभी पाप दूर हो गए। इस व्रत के प्रभाव से मंजुघोषा के पिशाचिनी होने का श्राप भी दूर हो गया और एक बार फिर वह अप्सरा में परिवर्तित हो गई जिसके बाद मंजुघोषा स्वर्ग में वापस चली गई। मंजुघोषा के बाद मेधावी ने भी पापमोचनी एकादशी का व्रत कर अपने पापों को अपने जीवन से दूर कर अपना खोया हुआ तेज पुनः हासिल कर लिया।

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