केतु गोचर 2024: इन राशियों को करियर में मिलेगी खूब तरक्की
30 अक्टूबर, 2023 को दोपहर 02 बजकर 13 मिनट पर केतु ने कन्या राशि में प्रवेश किया है और इस राशि में वह 2025 तक रहेंगे। केतु के इस महत्वपूर्ण गोचर का राशिचक्र की सभी 12 राशियों पर प्रभाव पड़ेगा लेकिन कुछ चुनिंदा राशियां ऐसी हैं जिन्हें करियर में अभूतपूर्व तरक्की मिलने की संभावना है। केतु एक आध्यात्मिक ग्रह है और इस ग्रह के प्रभाव से व्यक्ति सभी तरह के सांसारिक और भौतिक सुखों से खुद को दूर कर लेता है। केतु एक ऐसा ग्रह है जो व्यक्ति से काफी कुछ छीन लेता है और इसके प्रभाव की वजह से व्यक्ति के विकास में भी रुकावटें आने की संभावना रहती है लेकिन इस बार केतु के गोचर करने पर कुछ राशियों के लोगों को अपने करियर में असीम तरक्की और लाभ प्राप्त होने के संकेत हैं।
तो चलिए आगे जानते हैं कि केतु गोचर 2024 से किन राशियों के लोगों को करियर के क्षेत्र में प्रगति और सफलता मिलने की संभावना है।
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मेष राशि: केतु आपके छठे भाव में आए हैं इसलिए यह गोचर आपके करियर के लिए ही नहीं बल्कि जीवन के अन्य पहलुओं के लिए भी लाभकारी सिद्ध होगा। आप अपने कार्यक्षेत्र में जो भी प्रयास करेंगे, उसमें आपको सफलता मिलेगी। करियर में आप कोई बड़ी उपलब्धि हासिल कर सकते हैं और इस समय आपको शानदार सफलता मिलने की भी संभावना है। नौकरीपेशा जातकों को नौकरी के नए अवसर मिल सकते हैं। इससे आप संतुष्ट महसूस करेंगे। आपकी आय में भी वृद्धि होने के योग बन रहे हैं।
कर्क राशि: केतु का गोचर आपके तीसरे भाव में हुआ है जिससे आपको करियर में शानदार सफलता प्राप्त होगी। आप इस समय अपने करियर को चमकाने के लिए जो भी प्रयास करेंगे, उसमें आपको निश्चित ही सफलता प्राप्त होगी। आपको काम के सिलसिले में विदेश जाने का अवसर भी मिल सकता है और इस अवसर की मदद से आपका काफी विकास हो पाएगा। आपको नौकरी के नए अवसर मिलने की भी संभावना है।
कन्या राशि: केतु का गोचर आपके पहले भाव में हुआ है। मई, 2024 के महीने के बाद आपको अपने करियर में अच्छे परिणाम मिलने शुरू होंगे। करियर के क्षेत्र में आपको लाभ प्राप्त होगा और आपकी आर्थिक स्थिति में भी मज़बूती आएगी।
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वृश्चिक राशि : केतु आपके ग्यारहवें भाव में गोचर करेंगे जिससे आपकाे अत्यंत लाभ मिलने वाला है। आप अपने हुनर काे पहचानने में सफल होंगे और करियर के क्षेत्र में बुद्धिमानी से निर्णय लेंगे। अपने कार्यक्षेत्र में आप एक लीडर के रूप में उभर कर सामने आएंगे। इस समय आप अपने करियर या काम में जो भी प्रयास करेंगे, उसमें आपको सफलता अवश्य मिलेगी।
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धनु राशि: केतु के कन्या राशि में गोचर करने पर आप अपने करियर को लेकर काफी गंभीर रहने वाले हैं। इस समय आपका सारा ध्यान करियर के क्षेत्र में आगे बढ़ने और सफलता पाने पर रहने वाला है। आप अपने करियर में नए अवसरों की तलाश में रहने वाले हैं। अगर आप इस समय अपना पूरा ध्यान अपने करियर पर लगाकर रखेंगे, तो आपको अपने प्रयासों में सफलता जरूर मिलेगी। यह समय आपके लिए बहुत महत्वपूर्ण है इसलिए इस दौरान अपन हाथ में आने वाले किसी भी मौके को जाने न दें।
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मंगल दोष कर रहा है परेशान, तो जरूर करें मंगला गौरी व्रत पर ख़ास ये उपाय
भगवान शिव का प्रिय महीना सावन या श्रावण मास की शुरुआत होने वाली है। सावन की पहली तिथि कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा होती है। श्रावण मास में सावन सोमवार व्रत, मंगला गौरी व्रत और सावन शिवरात्रि बहुत अधिक महत्वपूर्ण मानी जाती है। वैसे तो सावन का पूरा महीना भगवान शिव की पूजा के लिए समर्पित है, लेकिन जिस प्रकार सावन सोमवार का व्रत भगवान भोलेनाथ की कृपा पाने के लिए विशेष माना जाता है, उसी प्रकार सावन माह में पड़ने वाले मंगलवार को माता पार्वती की पूजा-अर्चना की जाती है। यह व्रत मुख्य रूप से सुहागन महिलाएं और कन्याएं रखती हैं।
बता दें कि प्रत्येक साल सावन महीने के प्रत्येक मंगलवार को मंगला गौरी का व्रत रखा जाता है। मंगला गौरी व्रत के दिन माता पार्वती के साथ भगवान शिव, भगवान गणपति और नंदी की भी पूजा करने का विधान है। तो आइए आगे बढ़ते हैं और जानते हैं कि इस साल मंगला गौरी का व्रत किस तिथि को पड़ेगा और मंगल दोष से छुटकारा पाने के लिए इस दिन कौन से उपाय फलदायी साबित हो सकते हैं।
मंगला गौरी 2024 की तिथि एवं मुहूर्त
भगवान शिव की तरह माता पार्वती को भी यह महीना बहुत अधिक प्रिय है इसलिए इस माह भोलेनाथ के साथ-साथ माता गौरी की भी पूजा करना शुभ माना जाता है। इस बार सावन या श्रावण माह की शुरुआत 22 जुलाई, सोमवार के दिन से हो रही है। ऐसे में सावन का पहला मंगला गौरी व्रत 23 जुलाई 2024, मंगलवार के दिन रखा जाएगा। इस व्रत पर मुख्य रूप से माता पार्वती की उपासना की जाती है।
मंगला गौरी का व्रत मुख्य रूप से सुहागिन महिलाएं अपने पति की लंबी आयु के लिए रखती है, साथ ही कुंवारी कन्याएं भी अच्छे वर की प्राप्ति और सौभाग्य एवं समृद्धि के लिए व्रत का पालन करती हैं। मान्यताओं के अनुसार, इस व्रत को करने से पति को दीर्घायु की प्राप्ति होती है और कुंवारी कन्याओं को मनचाहे वर की। जिस प्रकार से माता गौरी और भगवान भोलेनाथ का साथ जन्म जन्मांतर का है, उसी प्रकार से व्रती महिलाएं भी उनसे ऐसे सौभाग्य की प्राप्ति के लिए व्रत रखती हैं। इसके साथ ही, घर-परिवार में भी सुख-शांति का माहौल बना रहता है। ऐसी मान्यता है कि मंगला गौरी व्रत करने से विवाह में आ रही बाधाएं भी दूर हो सकती हैं।
मंगला गौरी व्रत के दिन सबसे पहले व्रत रखने वाली महिलाओं को सूर्योदय से पूर्व स्नान करने के बाद नए वस्त्र धारण कर व्रत का संकल्प लेना चाहिए।
संकल्प लेते समय महिलाओं को विशेष रूप अपने मन में इन बातों को बार-बार दोहरना चाहिए- “मैं अत्यंत आनंदित होकर एक वक़्त के भोजन का त्याग कर व्रत का संकल्प लेती हूं, मेरे सभी पापों का नाश हों और मेरे सौभाग्य में वृद्धि हो।”
इसके बाद घर के मंदिर में गौरी और शिव जी मूर्ति या तस्वीर स्थापित करें।
एक कलश में मिट्टी डालकर उसमें जौ की कुछ बीजें डाल दें, अगले पांच दिनों तक पूजा के समय इस कलश में पानी डालें और पूरे विधि विधान से इसकी पूजा करें।
यह व्रत एक दिन, तीन दिन और पांच दिनों के लिए लिया जा सकता है।
इस दौरान माता गौरी की पूजा के लिए कुमकुम, अश्वगंधा, कस्तूरी और लाल रंग के फूलों का प्रयोग करें।
प्रसाद के रूप में आप नारियल जरूर चढ़ाएं, इशके अलावा अनार या कोई भी अन्य मौसमी फल चढ़ा सकते हैं।
पूजा व आरती के बाद इस व्रत से संबंधित कथा जरूर सुनें क्योंकि कथा के बिना व्रत अधूरा माना जाता है और इसके बाद ब्राह्मणों को भोजन करवाएं व अपनी क्षमता अनुसार, दान-दक्षिणा प्रदान करें।
पौराणिक कथा के अनुसार, प्राचीन समय में धर्मपाल नामक एक सेठ रहता था। सेठ धर्मपाल के पास धन दौलत की कोई कमी नहीं थी। वह पूरी तरह सर्व गुण संपन्न था और भगवान शंकर का भक्त था। कालांतर में सेठ धर्मपाल की शादी गुणवान कन्या से हुई। हालांकि, विवाह के बाद कई वर्षों तक संतान की प्राप्ति नहीं हुई। इससे सेठ धर्मपाल काफी चिंतित रहने लगा। वह सोचने लगा कि अगर संतान नहीं हुई, तो उसके कारोबार का कौन उत्तराधिकारी होगा? एक दिन सेठ धर्मपाल की पत्नी ने संतान प्राप्ति के लिए किसी पंडित से संपर्क करने की बात कही।
पत्नी की सलाह को मानते हुए सेठ ने नगर के सबसे प्रसिद्ध पंडित के पास जाकर मुलाकात की। उस समय पंडित ने सेठ दंपत्ति को भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा-उपासना करने की सलाह दी। इसके बाद सेठ धर्मपाल और उसकी पत्नी ने विधि विधान से महादेव और माता पार्वती की पूजा-उपासना की। सेठ धर्मपाल की पत्नी की कठिन भक्ति भाव को देखकर माता प्रसन्न हुई और प्रकट होकर बोली- हे देवी! तुम्हारी भक्ति देखकर मैं बहुत अधिक खुश हूं, जो वर मांगना चाहते हो! मांगो। तुम्हारी हर इच्छाओं की पूर्ति होगी। सेठ धर्मपाल की पत्नी ने तुरंत ही अपनी संतान प्राप्ति की कामना की। माता पार्वती ने संतान प्राप्ति का वरदान दिया लेकिन, संतान अल्पायु था।
एक वर्ष बाद, धर्मपाल की पत्नी ने पुत्र को जन्म दिया। जब पुत्र का नामकरण किया गया, तो उस समय धर्मपाल ने माता पार्वती के वचन से ज्योतिष को अवगत कराया। तब ज्योतिष ने सेठ धर्मपाल को पुत्र की शादी मंगला गौरी व्रत करने वाली कन्या से करने की सलाह दी। ज्योतिष के कहने पर सेठ धर्मपाल ने अपने पुत्र की शादी मंगला गौरी व्रत करने वाली कन्या से की। कन्या के व्रत करने से सेठ धर्मपाल के पुत्र को लंबी आयु की प्राप्ति हुई।
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मंगला गौरी पर करें ये ख़ास उपाय
मंगला गौरी के दिन कुछ ख़ास उपाय बताए जा रहे हैं, जिसे अपनाकर आप मंगल दोषों से मुक्ति पा सकते हैं। साथ ही, अखंड सौभाग्य का आशीर्वाद प्राप्त कर सकते हैं। आइए जानते हैं मंगला गौरी व्रत के उपायों के बारे में…
विवाह में आ रही देरी के लिए
यदि किसी जातक के विवाह में देरी हो रही है तो, इसके लिए मंगला गौरी व्रत पर मां गौरी को 16 श्रृंगार की सामग्री अर्पित करनी चाहिए। इससे मां गौरी प्रसन्न होती हैं और अपना विशेष आशीर्वाद प्रदान करती है। इसके साथ ही, व्रत के दिन मिट्टी का घड़ा बहते नदी में प्रवाहित करने से भी विवाह में आ रही समस्याएं दूर होती है।
मंगल ग्रह मजबूत करने के लिए
मंगला गौरी व्रत के दिन गरीबों और जरूरतमंदों में लाल मसूर की दाल और लाल वस्त्र आदि लाल सामान दान करना चाहिए। इससे कुंडली में मंगल ग्रह की स्थिति मजबूत होती है और जातक को मंगल दोष के बुरे प्रभावों से भी छुटकारा मिलता है। इसके साथ ही, इस दिन मां गौरी की पूजा के दौरान ‘ॐ गौरी शंकराय नमः’ मंत्र का जाप 108 बार करना चाहिए। इससे मंगल के शुभ प्रभाव प्राप्त होते हैं।
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मनचाहा वर प्राप्ति के लिए
ज्योतिष के अनुसार, मंगला गौरी व्रत के दिन कुंवारी कन्याओं मनचाहा वर प्राप्ति करने के लिए दो मुट्ठी मसूर दाल को एक लाल कपड़े में बांधकर किसी जरूरतमंद या गरीब व्यक्ति को दान कर देना चाहिए। इससे आपको मनचाहा वर की प्राप्ति होगी।
विवाह में आ रही अड़चनें दूर करने के लिए
यदि आपके विवाह में बार-बार अड़चनें आ रही है या बात बनते-बनते किसी कारण से रह जा रही है तो सावन ने हर मंगला गौरी व्रत का व्रत करें और इस दौरान इस मंत्र का जाप करें- सर्वमंगल मांगल्ये शिवे सवार्थ साधिके। शरण्येत्र्यंबके गौरी नारायणी नमोस्तुते। इससे शुभ फलों की प्राप्ति होती है।
आठवें भाव में मंगल
यदि किसी अविवाहित कन्या की कुंडली में आठवें भाव में मंगल विराजमान हैं तो ज्योतिष अनुसार कन्या को हर मंगलवार के दिन रोटी बनाने से पहले तवे पर ठंडे पानी के छींटे मारकर फिर रोटी बनानी चाहिए। इससे मंगल के शुभ प्रभाव की प्राप्ति होगी।
इसी आशा के साथ कि, आपको यह लेख भी पसंद आया होगा एस्ट्रोसेज के साथ बने रहने के लिए हम आपका बहुत-बहुत धन्यवाद करते हैं।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न
प्रश्न 1. इस साल मंगला गौरी का व्रत कब रखा जाएगा?
उत्तर 1. साल 2024 में मंगला गौरी का व्रत 23 जुलाई 2024, मंगलवार के दिन रखा जाएगा।
प्रश्न 2. मंगला गौरी में माता को क्या अर्पित करना चाहिए?
उत्तर 2. मां मंगला गौरी व्रत के दौरान माता को आटे के लड्डू, फल, पान, सुपारी, लौंग, इलायची, और सुहाग सामग्री अर्पित करनी चाहिए।
प्रश्न 3. मंगला गौरी किसकी पत्नी थी?
उत्तर 3. माता गौरी भगवान शिव की पत्नी थी।
प्रश्न 4. मंगला गौरी व्रत कौन रख सकता है?
उत्तर 4. मंगला गौरी का व्रत सुहागिन महिला से लेकर कुंवारी कन्याएं भी रखती हैं।
दो शुभ योगों में मनाई जाएगी देवशयनी एकादशी, इस दिन जरूर करें राशि अनुसार ये ख़ास उपाय!
सनातन धर्म में सभी 24 एकादशी का बहुत अधिक महत्व है लेकिन, आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष में पड़ने वाली एकादशी तिथि बहुत अधिक महत्वपूर्ण और ख़ास मानी जाती है। इस एकादशी को देवशयनी एकादशी के नाम से जाना जाता है। हर महीने आने वाली दो एकादशी में यह सबसे बड़ी एकादशी है। इसका बड़ा महत्व है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस दिन भगवान विष्णु की पूजा करने से व्यक्ति को कई गुना पुण्य फल की प्राप्ति होती है।
सनातन धर्म में देवशयनी एकादशी वर्ष का वह दिन होता है जब भगवान विष्णु चार महीने के लिए योग निद्रा अवस्था में चले जाते हैं और कार्तिक शुक्ल एकादशी पर जागते हैं। मान्यता के अनुसार इस दौरान धरती का संचालन भगवान शिव करते हैं। देवशयनी एकादशी से चातुर्मास भी प्रारंभ होता है। सनातन धर्म में चातुर्मास का विशेष महत्व है। चातुर्मास का शाब्दिक अर्थ है चार महीने। इन चार महीनों के दौरान भगवान विष्णु क्षीरसागर में विश्राम करते हैं और इस अवधि से सभी मांगलिक और शुभ कार्यों को करने की मनाही हो जाती है। इसके बाद देवउठनी ग्यारस के बाद शुभ कार्य और विवाह संपन्न होते हैं।
ख़ास बात यह है कि इस साल पड़ने वाली देवशयनी एकादशी कई मायनों में महत्वपूर्ण रहने वाली है क्योंकि, इस दिन बेहद शुभ योगों का निर्माण हो रहा है, तो आइए जानते हैं इस साल कब है देवशयनी एकादशी, इसका महत्व, पूजा-विधि, पौराणिक कथा व इस दिन किए जाने वाले उपायों के बारे में।
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देवशयनी एकादशी 2024: तिथि व समय
हिंदू पंचांग के अनुसार, आषाढ़ माह की शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को देवशयनी एकादशी मनाई जाती है और साल 2024 में यह तिथि 17 जुलाई बुधवार के दिन पड़ेगी।
एकादशी तिथि प्रारंभ: 16 जुलाई की शाम 8 बजकर 35 मिनट से शुरू होगी।
एकादशी तिथि समाप्त: 17 जुलाई की शाम 9 बजकर 4 मिनट तक रहेगी।
ऐसे में उदया तिथि के अनुसार, देवशयनी एकादशी 17 जुलाई को मनाई जाएगी। इस दिन विष्णु भगवान की पूजा और व्रत करना शुभ होता है।
आषाढ़ी एकादशी पारण मुहूर्त : 18 जुलाई की सुबह 05 बजकर 34 मिनट से 08 बजकर 19 मिनट तक
अवधि : 2 घंटे 44 मिनट
इस दिन बनने वाले योग
इस बार देवशयनी एकादशी 17 जुलाई को मनाई जाएगी। इस दिन कई ऐसे में शुभ योग बन रहे हैं, जिनमें भगवान विष्णु की विधि-विधान से पूजा अर्चना करने से आपकी सभी मनोकामना पूर्ण हो जाएंगी। एकादशी पर पहला शुभ योग सर्वार्थ सिद्धि और दूसरा अमृत सिद्धि योग बन रहा है। पहला योग सुबह 7 बजकर 5 मिनट से शुरू होकर अगले दिन 18 जुलाई को समाप्त होगा। वहीं दूसरा अमृत सिद्धि योग 5 बजकर 34 मिनट से शुरू होकर अगले दिन सुबह 3 बजकर 13 मिनट तक रहेगा। इन योग में सभी शुभ कार्यों को करने से सकारात्मक परिणामों की प्राप्ति होती है।
देवशयनी एकादशी का सनातन धर्म में बहुत अधिक महत्व है। मान्यता है कि इस दिन से चार महीने तक सूर्य, चंद्रमा और प्रकृति का तेजस तत्व कम हो जाता है इसलिए कहा जाता है कि देवशयन हो गया है। शुभ और सकारात्मक शक्तियों के कमज़ोर होने के चलते सभी शुभ कार्यों को करने की मनाही हो जाती है। चातुर्मास के दौरान कोई भी शुभ कार्य नहीं करना चाहिए। मान्यता है कि देवशयनी एकादशी का व्रत करने व्यक्ति को सभी 24 एकादशी के बराबर फल की प्राप्ति होती है।
शास्त्रों के अनुसार देवशयनी एकादशी पर इस मंत्र से- ‘सुप्ते त्वयि जगन्नाथ जमत्सुप्तं भवेदिदम्। विबुद्दे त्वयि बुद्धं च जगत्सर्व चराचरम्।’ श्रीहरि भगवान विष्णु बहुत जल्द प्रसन्न हो जाते हैं और साथ ही पापों का नाश होता है।
देवशयनी एकादशी की पूजा विधि
देवशयनी एकादशी पर भगवान विष्णु की पूजा करना बेहद शुभ होता है। इस दिन सुबह ब्रह्म मुहूर्त में उठकर सभी कार्यों से निवृत होकर स्नान करें।
इसके बाद पीले वस्त्र धारण करें और व्रत रखने का संकल्प लें।
फिर घर के मंदिर को साफ कर पीला वस्त्र बिछाकर भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी की तस्वीर या मूर्ति को विराजमान करें।
इसके बाद शंख में दूध भरकर भगवान अभिषेक करें। अभिषेक करते वक्त केसर व शहद जरूर डालें। ऐसा करना शुभ माना जाता है।
इस दिन भगवान विष्णु को खीर का भोग जरूर लगाएं और भोग लगाते समय इसमें तुलसी जरूर डालें क्योंकि तुलसी उन्हें अति प्रिय हैं।
इस साथ ही, इस दिन पीले वस्त्र, चंदन, पान का पत्ता, सुपारी आदि अर्पित करें। साथ ही ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय नमः मंत्र का जाप करें। इससे आपको विशेष कृपा प्राप्त होगी।
इसके बाद द्वादशी के दिन ब्राह्मणों को भोजन कराकर व अपनी क्षमता अनुसार दान करें। फिर मुहूर्त में व्रत पारण करें।
देवशयनी एकादशी के दिन चावल या चावल से बनी चीजों का सेवन गलती से भी न करें। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, चावल में जल की मात्रा अधिक होती है और जल में चंद्रमा का प्रभाव पड़ता है इसलिए इस दिन चावल से दूर रहना चाहिए।
देवशयनी एकादशी के दिन व्यक्ति को बाल नहीं धोने चाहिए, न कटवाना चाहिए और न ही नाखून काटना चाहिए। मान्यता है कि इस दिन बाल टूटना बहुत अधिक अशुभ माना जाता है।
इस तामसिक भोजन जैसे- लहसुन, प्याज और मांसाहारी का सेवन भूलकर भी न करें और न ही घर पर बनने दें।
देवशयनी एकादशी के दिन भूलकर भी काले रंग के वस्त्र न पहने क्योंकि काले वस्त्र पहनना अशुभ माना गया है। यह दिन भगवान विष्णु को समर्पित है और उन्हें पीला रंग अति प्रिय है इसलिए इस दिन पीले रंग के कपड़े पहनें।
जो जातक देवशयनी एकादशी का व्रत करते हैं तो जमीन पर बिस्तर बैठना और लेटना चाहिए। इस दिन सोना नहीं चाहिए और रात भर भगवान का भजन करना चाहिए।
देवशयनी एकादशी व्रत में तन के साथ मन की शुद्धता भी रखें। मन में किसी प्रकार के बुरे विचार न लाने दें और किसी से अप-शब्द न बोलें।
देवशयनी एकादशी के दिन जरूर पढ़ें ये कथा
पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार धर्मराज युधिष्ठिर ने भगवान श्रीकृष्ण से देवशयनी एकादशी के बारे में जानने की इच्छा जाहिर की। श्रीकृष्ण ने जो कथा सुनाई थी उसमें सूर्यवंश के एक सत्यवादी राजा का वर्णन था। कथा के अनुसार, सूर्यवंश में मांधाता नाम का एक प्रतापी और सत्यवादी राजा राज्य करता था। राजा के कामों से प्रजा बहुत अधिक खुश रहती थी और इस वजह से राज्य में बहुत खुशहाली का माहौल था। लेकिन, एक बार फिर अचानक राज्य में अकाल पड़ गया था और चारों तरफ त्राहि-त्राहि मचने लगी थी। प्रजा ही हाल बुरा होने लगा, जिसे देखकर राजा बहुत दुखी और परेशान हो गया।
राजा ने अपने राज्य का भला करने हेतु एक फैसला लिया वे जंगलों की तरफ प्रस्थान करेंगे और इस परेशानियों से निकलने का हल खोजने का प्रयास करेंगे। वन में घूमते-घूमते राजा को राजा ब्रह्माजी के पुत्र अंगिरा का आश्रम मिला और उस आश्रम से राजा मांधाता को देवशयनी एकादशी का व्रत के बारे में पता चला। राजा मांधाता ने भगवान विष्णु की कृपा पाने के लिए विधि-विधान से देवशयनी एकादशी का व्रत रखा और इसके बाद राज्य का अकाल मिट गया और पूरे राज्य में खुशी का वातावरण छा गया। एक बार फिर राजा के राज्य में हरियाली छा गई और सभी अपना जीवन सुखमय तरीके से जीने लगे। इसके बाद से ही सभी देवशयनी एकादशी का व्रत रखने लगे और इस व्रत का महत्व बहुत अधिक बढ़ गया।
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देवशयनी एकादशी के दिन करें राशि अनुसार उपाय
मेष राशि
मेष राशि के स्वामी मंगल हैं और यह ऊर्जा का ग्रह है। ऐसे में, यदि आप देवशयनी एकादशी के दिन लाल रंग के कपड़े पहनकर भगवान विष्णु की पूजा करें और उन्हें उनकी पसंद की चीजें भोग में अर्पित करें तो आपके जीवन में आ रही सभी प्रकार की समस्याओं से छुटकारा मिलेगा और जीवन सुखमय तरीके से बीतेगा।
वृषभ राशि
वृषभ राशि के लोगों को इस दिन भगवान विष्णु के साथ-साथ माता लक्ष्मी का पूजन भी करना चाहिए और साथ ही, भोग में मखाने की खीर चढ़ाना चाहिए। ऐसा करने से आपकी सारी मनोकामना की पूर्ती होगी। इसके अलावा, इस दिन किसी भी सफ़ेद मिठाई का दान जरूर करें। इससे आपके रुके काम बनने लगेंगे।
मिथुन राशि
मिथुन राशि के जातकों के लिए देवशयनी एकादशी के दिन मंदिर में घी का दीपक जलाना अत्यंत शुभ होगा। यदि आप इस दिन घर के मुख्य द्वार पर भी घी का दीपक जलाएंगी तो घर में हमेशा सुख-समृद्धि बनी रहेगी और सकारात्मक ऊर्जा का वास रहेगा।
कर्क राशि
कर्क राशि के जातकों को देवशयनी एकादशी के दिन घर में लौंग कपूर जलाना चाहिए। ऐसा करना आपके लिए शुभ रहेगा और घर से सभी नकारात्मक ऊर्जाएं दूर हो जाएंगी। इस दिन आप किसी महिला को नारियल का दान करें। इससे स्वास्थ्य समस्याएं दूर होंगी।
सिंह राशि
सिंह राशि के लोग इस दिन तुलसी की विशेष रूप से पूजा करें और घी का दीपक जलाएं व लाल चुनरी चढ़ाएं। यदि आप इस दिन तुलसी जी की विधि-विधान से पूजा करेंगी तो आपको सभी परेशानियों से लड़ने की क्षमता मिलेगी।
कन्या राशि
आप इस दिन पीले वस्त्र पहनकर भगवान विष्णु की पूजा करें। ऐसा करने से आपको विशेष फलों की प्राप्ति होगी। इस दिन आप विष्णु को पीले फूल चढ़ाएं। इसके साथ ही यदि आप पीले फल या अनाज का दान करेंगे तो इससे आपको सकारात्मक फल की प्राप्ति होगी।
तुला राशि
तुला राशि जातकों को इस दिन गरीबों और जरूरतमंदों को उनकी जरूरतों की चीजें जरूर दान करना चाहिए। ऐसा करने से आपके सभी कष्ट दूर हो सकते हैं। इस दिन भगवान विष्णु को भोग में पीली चीजें चढ़ाएं।
वृश्चिक राशि
यदि आप इस दिन घर के ईशान कोण पर दीपक जलाएंगी तो आपको शुभ फलों की प्राप्ति होगी। इस दिन माता लक्ष्मी को सिन्दूर और विष्णु जी को हल्दी चढ़ाएं। ऐसा करने से आपके रुके काम बनने लगेंगे।
धनु राशि
धनु राशि के जातकों को देवशयनी एकादशी के दिन सूर्य को जल देना चाहिए और साथ ही, सूर्य के मंत्रों का जाप करना चाहिए। ऐसा करने से आपकी सभी मनोकामनाओं की पूर्ति हो सकती है। इस दिन आप सरसों के तेल का दान अवश्य करें।
मकर राशि
मकर राशि जातकों को इस दिन अनाज का दान करना चाहिए। ऐसा करने से आपको सभी पापों से मुक्ति मिल सकती है। इसके अलावा, इस दिन यदि आप भगवान विष्णु को पीली चीजें चढ़ाएं तो आपके घर में समृद्धि बनी रहेगी।
कुंभ राशि
कुंभ राशि के जातकों को इस दिन चीनी का दान करना चाहिए। ऐसा करने से आपको धन लाभ हो सकता है। इसके अलावा, इस दिन एकादशी की कथा जरूर पढ़ें और हो सके तो घर के सदस्यों को भी सुनाएं।
मीन राशि
मीन राशि वालों को इस एकादशी के दिन चावल का सेवन भूलकर भी नहीं करना चाहिए अपितु चावल का दान करना आपके लिए फलदायी रहेगा। ऐसा करने से आपको अपने बिज़नेस और कार्यक्षेत्र में तरक्की हासिल होगी।
इसी आशा के साथ कि, आपको यह लेख भी पसंद आया होगा एस्ट्रोसेज के साथ बने रहने के लिए हम आपका बहुत-बहुत धन्यवाद करते हैं।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्नों
प्रश्न 1. देवशयनी एकादशी साल 2024 में कब पड़ रही है?
उत्तर. साल 2024 में योगिनी एकादशी 17 जुलाई बुधवार के दिन पड़ रही है।
प्रश्न 2.देवशयनी एकादशी क्यों मनाई जाती है?
उत्तर. इस एकादशी का शास्त्रों में विशेष महत्व है क्योंकि माना जाता है कि इस एकादशी से भगवान नारायण योग निद्रा में चले जाते हैं।
प्रश्न 3. देवउठनी एकादशी का दूसरा नाम क्या है?
उत्तर. देवउठनी एकादशी को प्रबोधिनी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है।
प्रश्न 4. भगवान विष्णु किस एकादशी को सोने जाते हैं?
उत्तर. आषाढ़ मास की देवशयनी एकादशी पर भगवान विष्णु चार माह के लिए शयन करते हैं।
घर के वास्तु दोष से हो सकती है ये बड़ी बीमारियां, इन उपायों से दूर होगी सारी समस्या
मानव जीवन को सुखद और सुगम बनाने में वास्तु शास्त्र का बहुत अधिक योगदान है। यह पांच तत्वों से मिलकर बना है, जो इस प्रकार है- पृथ्वी, अग्नि, आकाश, जल और वायु। वास्तु शास्त्र के अनुसार, घर बनने से लेकर घर में रखे हर एक वस्तु और दिशा का खास महत्व होता है। वास्तु के अनुसार घर की हर एक दिशा खास संकेत देती है। इन दिशाओं से सकारात्मक और नकारात्मक दोनों तरह की ऊर्जा निकलती है। इन दिशाओं से निकलने वाली ऊर्जा का असर घर के हर एक सदस्यों पर पड़ता है। दरअसल घर पर वास्तु दोष तब लगता है जब वास्तु के नियमों का पालन न किया जा रहा है और इसके बाद ही वास्तु दोष लगना शुरू होता है। वास्तु दोष के परिणामस्वरूप घर में रहने वाला व्यक्ति शारीरिक व मानसिक रोगी तक बन जाता है। यह नहीं व्यक्ति को कई अन्य प्रकार की बीमारियां भी घेर लेती है। यदि वास्तु दोष से निपटने के लिए सही से उपाय न किया जाए तो व्यक्ति बड़ी से बड़ी बीमारी से घिर सकता है इसलिए इससे मुक्ति पाने के लिए उपाय करना जरूरी है।
एस्ट्रोसेज के इस विशेष ब्लॉग में हम जानेंगे कि वास्तु दोष होने पर व्यक्ति किस प्रकार की बीमारियों से ग्रस्त रहता है, वास्तु दोष कब होता है और इससे बचने के आसान उपाय आदि के बारे में यहां जानकारी हासिल करेंगे। तो बिना देरी किए आगे बढ़ते हैं और सबसे पहले जान लेते हैं कि वास्तु दोष होने पर कौन सी बड़ी बीमारियां व्यक्ति को परेशान कर सकती है।
वास्तु शास्त्र भारतीय संस्कृति का एक प्राचीन विज्ञान है, जो प्रकृति और ऊर्जा के नियमों पर आधारित है।विशेष रूप से सनातन धर्म में इसका विशेष महत्व है। लोग घर बनाते समय वास्तु के नियमों का खासतौर से ध्यान रखते हैं। वास्तु शास्त्र का मुख्य उद्देश्य प्रकृति और उपयोगिता पूर्ण शक्तियों का संचार और संतुलन सुनिश्चित करना है। इसके अनुसार, सही तरीके से इस्तेमाल से घर में सुख-शांति और समृद्धि का आगमन होता है और व्यक्ति तमाम तरह की समस्याओं से निजात पाता है।
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वास्तु दोष होने पर इन बीमारियों से परेशान रहता है व्यक्ति
वास्तु दोष से ऐसे तो कई तरह की बीमारियां पैदा हो सकती है लेकिन कुछ ऐसी बीमारियां है, जो काफी गंभीर रूप ले लेती है। यदि समय पर इसका समाधान न किया जाए तो यह व्यक्ति के लिए जानलेवा साबित हो सकती है। तो आइए जानते हैं इन बीमारियों के बारे में।
पेट संबंधी समस्या
वास्तु दोष होने से पेट से संबंधित बीमारियों का खतरा बढ़ने लगता है। वास्तु दोष के अनुसार, घर का किचन उत्तर पूर्वी दिशा में नहीं होना चाहिए क्योंकि इस दिशा में किचन होना अशुभ माना जाता है। इस दिशा में खाना बनाने से पेट से संबंधित बीमारियां परेशान कर सकती है और यह बीमारी बड़ा रूप ले सकती है इसलिए इस बात का विशेष ध्यान रखें।
गैस और रक्त संबंधी बीमारी
घर की दीवारों के रंग का भी वास्तु में बहुत अधिक महत्व है इसलिए घर में पेंट करवाते समय वास्तु के नियमों का जरूर ध्यान करें। वास्तु जानकारों के अनुसार, अच्छे स्वास्थ्य के लिए दीवारों पर दिशा के अनुरूप हल्का और सात्विक रंगों का इस्तेमाल करना शुभ साबित हो सकता है। ऐसा करने से वास्तु दोष से बचा जा सकता है। वास्तु के हिसाब से घर में नारंगी या पीला रंग ब्लड प्रेशर, काला या गहरा नीला रंग वायु रोग, पेट में गैस, हाथ-पैरों में दर्द, गहरा लाल रंग रक्त संबंधी बीमारी या दुर्घटना का कारण बन सकता है इसलिए घर का पेंट करवाते समय अधिक ध्यान दें।
यदि आप भोजन करते समय वास्तु के नियमों का पालन नहीं करते हैं तो इससे आपके लिए बड़ी समस्या पैदा हो सकती है। वास्तु के नियम के अनुसार, दक्षिण दिशा की ओर मुंह करके भोजन करने से बचना चाहिए क्योंकि इससे पैरों में दर्द की समस्या परेशान कर सकती है। जिन लोगों के पैरों में अक्सर दर्द रहता है वह वास्तु दोष के कारण ही होता है। वास्तु शास्त्र के अनुसार, भोजन करते समय मुंह पूरब दिशा की तरफ होना चाहिए। इससे आपका स्वास्थ्य रहता है और कोई बड़ी समस्या आपको परेशान नहीं कर सकती है। इसके अलावा किचन में खाना बनाते समय अगर मुंह दक्षिण की ओर है तो त्वचा एवं हड्डी से संबंधित समस्या आपको परेशान कर सकती है। पश्चिम की तरफ मुंह करके खाना बनाने से आंख,नाक,कान और गले की समस्याएं हो सकती है।
नींद न आने की समस्या
नींद न आना, थकान, अधिक तनाव लेना सिर और हाथ पैरों में दर्द और बेचैनी आदि का भी वास्तु दोष से गहरा संबंध है। यदि आपने वास्तु के नियम का सही से पालन नहीं किया तो आपको इन समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है। यदि आप सोने जा रहे हैं तो अपना बिस्तर इस प्रकार करें कि आपका पैर पूरब की ओर आए। इस दिशा में सोने और बैठने से स्वास्थ्य समस्याओं से राहत पाया जा सकता है। इसके अलावा, आय के भी स्त्रोत खुलते हैं। वास्तु के अनुसार, उत्तर की तरफ सिर और दक्षिण की तरफ पैर करके सोने से कई तरह की समस्याएं व्यक्ति को परेशान कर सकती है।
वास्तु शास्त्र में ऐसे कई नियमों के बारे में बताया गया है, जिसको ध्यान में रखकर घर से वास्तु दोष को कम किया जा सकता है और बीमारी होने से बचा जा सकता है। तो आइए जानते हैं इन नियमों के बारे में।
वास्तु शास्त्र के अनुसार, दक्षिण और पश्चिम दिशा के बीच पानी से संबंधित चीज़े जैसे नल या कुआं नहीं होना चाहिए। इसके अलावा, इस दिशा में वॉश बेसिन या वॉशिंग मशीन रखने से बचना चाहिए।
घर में कोई बीमारी है तो दवाइयों को भूलकर भी दक्षिण के दिशा में नहीं रखना चाहिए। दवाइयों को उत्तर या उत्तर पूर्व दिशा में रखना चाहिए।
यदि आप दवाओं का सेवन कर रहे हैं तो दवा हमेशा उत्तर की ओर मुंह करके खाना चाहिए।
वास्तु के अनुसार, उत्तर और उत्तर पूर्व दिशा में भारी बॉक्स नुमा चीजें जैसे इन्वर्टर रखने से बचना चाहिए। इन दिशाओं में कोई भी वास्तु दोष होने पर घर में बीमारियों का घर बन सकता है।
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अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न
प्रश्न 1. वास्तु के अनुसार, घर में किस दिशा में क्या होना चाहिए?
उत्तर 1. घर पूर्व या उत्तर दिशा में ही होना चाहिए।
प्रश्न 2. कैसे पता करें कि घर में वास्तु दोष है?
उत्तर 2. यदि घर में समय-समय पर आर्थिक समस्याएं उत्पन्न हो रही है या घर में रहने वाले सदस्य बार-बार बीमार पड़ रहे हैं तो यह वास्तु दोष का कारण है।
प्रश्न 3. वास्तु शास्त्र के अनुसार घर में शौचालय कहाँ होने चाहिए?
उत्तर 3. बाथरूम को या तो उत्तर या उत्तर पश्चिम दिशा में बनवाना चाहिए।
प्रश्न 4. कौन सी दिशा में सिर रखकर सोना चाहिए?
उत्तर 4. दक्षिण से उत्तर की तरफ सोने से व्यक्ति पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
जुलाई में सूर्य के गोचर से बनेंगे दो शुभ संयोग, पलट जाएगी तीन लोगों की किस्मत, पैसों से भरी रहेगी जेब
ज्योतिषशास्त्र में सूर्य को आत्मा का कारक कहा गया है। सूर्य देव की कृपा के बिना किसी भी व्यक्ति को अपने करियर एवं कार्यक्षेत्र में सफलता मिल पाना मुश्किल होता है। जब सूर्य गोचर करता है, तो इसका असर मनुष्य के जीवन के हर एक पहलू पर पड़ता है।
इस बार सूर्य 16 जुलाई को कर्क राशि में प्रवेश करने जा रहे हैं। कर्क राशि में पहले से ही शुक्र और बुध उपस्थित हैं। इस प्रकार सूर्य, बुध और शुक्र तीनों की कर्क राशि में युति हो रही है। तीनों ग्रहों की इस युति से बेहद शुभ योगों का निर्माण होने जा रहा है। बुध और सूर्य की युति से बुधादित्य योग बन रहा है और सूर्य एवं शुक्र की युति से शुक्रादित्य योग बन रहा है। ज्योतिष में इन दोनों ही योगों को बहुत शुभ माना गया है।
जुलाई के महीने में शुक्रादित्य और बुधादित्य योग बनने से कुछ खास राशियों के लोगों को विशेष लाभ मिलने के संकेत हैं। इस ब्लॉग में हम आपको उन्हीं राशियों के बारे में बता रहे हैं जिन्हें इन दो संयोगों के कारण अपने जीवन में सकारात्मक बदलाव देखने को मिलेंगे।
ये राजा की तरह अपना जीवन बिताएंगे और इन्हें भाग्य का साथ तो मिलेगा ही साथ ही धन-वैभव भी प्राप्त होगा। तो चलिए आगे बढ़ते हैं और जानते हैं कि इस समय किन राशियों की किस्मत खुलने वाली है।
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इन राशियों को होगा फायदा
कर्क राशि
जुलाई में बन रहे इस डबल राजयोग से कर्क राशि के लोगों को बहुत फायदा होने वाला है। इनके आत्मविश्वास में वृद्धि देखने को मिलेगी। आपको अपने भाग्य का पूरा साथ मिलेगा। इसके साथ ही समाज के बड़े और प्रभावशाली लोगों से आपकी जान-पहचान होगी। ये आगे चलकर आपके लिए लाभकारी सिद्ध होंगे।
आपकी बुद्धिमानी और समझदारी में वृद्धि देखने को मिलेगी और आप अपने लक्ष्य को प्राप्त करने का प्रयास करेंगे। आपकी आय के स्रोत बढ़ेंगे और आप अपने खर्चों की पूर्ति करने के साथ-साथ पैसों की बचत कर पाने में भी सक्षम होंगे। सिंगल जातकों के लिए शादी का प्रस्ताव आ सकता है।
इस डबल राजयोग से कन्या राशि के लोगों को भी लाभ होने के संकेत हैं। इनकी आमदनी में वृद्धि होगी और समाज में भी इनका मान-सम्मान बढ़ेगा। नौकरीपेशा जातकों के लिए भी अनुकूल समय है। व्यापारियों को अपने क्षेत्र में सकारात्मक परिणाम देखने को मिलेंगे। आपको अपने भाग्य का पूरा साथ मिल पाएगा जिससे आपके कार्य आसानी से पूरे हो पाएंगे।
इस समय आप प्रसन्न और संतुष्ट रहने वाले हैं। आपकी आर्थिक स्थिति में भी सुधार आने वाला है। आप अपने लिए प्रॉपर्टी या वाहन आदि खरीद सकते हैं। निवेश करने के लिए भी अच्छा समय है। अटका हुआ पैसा वापिस मिल सकता है। पारिवारिक जीवन में खुशियां आएंगी। पति-पत्नी के बीच प्यार और स्नेह बढ़ेगा।
तुला राशि के लोगों को सूर्य के गोचर करने पर अपने जीवन के हर क्षेत्र में शुभ परिणाम मिलने शुरू हो जाएंगे। आपके अधूरे और अटके हुए काम पूरे हो सकते हैं। व्यापारियों के लिए अपार सफलता के योग बन रहे हैं। आपकी आमदनी में भी वृद्धि देखने को मिलेगी। इससे आपकी आर्थिक स्थिति बेहतर होने वाली है।
बिज़नेस करने वाले लोगों को खूब धन कमाने का मौका मिलेगा। आप एक सफल उद्यमी के रूप में खुद को साबित कर पाएंगे। परिवार के सदस्यों के साथ आपके संबंध मज़बूत होंगे। संतान की प्रगति से आपका मन खुश रहेगा। आपका स्वास्थ्य भी अच्छा रहने वाला है। आपको इस समय किसी भी बात की चिंता नहीं रहेगा।
जब सूर्य और शुक्र की युति होती है, तब शुक्रादित्य राजयोग बनता है। सूर्य को आदित्य के नाम से भी जाना जाता है इसलिए सूर्य और शुक्र के एकसाथ आने पर बनने वाले योग का नाम शुक्रादित्य रखा गया है।
इस योग को बहुत ज्यादा शुभ माना गया है। इस योग के प्रभाव से व्यक्ति के जीवन की सभी समस्याएं दूर हो सकती हैं। सूर्य लगभग एक माह के अंतराल में राशि परिवर्तन करता है जबकि शुक्र हर 28 दिन में गोचर करता है।
बुधादित्य योग क्या होता है
ज्योतिष में सूर्य को आदित्य के नाम से भी जाता है इसलिए सूर्य और बुध की युति होने पर बनने वाले राजयोग को बुधादित्य योग के नाम से जाना जाता है। बुधादित्य योग जातक को सफलता, मान-सम्मान, प्रतिष्ठा और आर्थिक स्थिरता प्रदान करता है।
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अक्सर पूछे जाने वाले सवाल
प्रश्न. बुधादित्य योग क्या है?
उत्तर. बुध और सूर्य की युति बनने पर यह योग बनता है।
प्रश्न. शुक्रादित्य योग क्या है?
उत्तर. शुक्र और सूर्य की युति पर इस योग का निर्माण होता है।
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चातुर्मास 2024: 118 दिनों के लिए वर्जित रहेंगे सभी शुभ कार्य- जान लें नियम और महत्व!
हिंदू पंचांग के अनुसार देवशयनी एकादशी से चातुर्मास की शुरुआत हो जाती है। चातुर्मास अर्थात 4 महीनों की ऐसी अवधि जब भगवान विष्णु अपनी योग निद्रा में चले जाते हैं। ऐसे में सनातन धर्म में इस दौरान कोई भी शुभ और मांगलिक कार्य नहीं किया जाता है। आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि से चातुर्मास या चौमासा की ये अवधि शुरू होती है और कार्तिक माह की एकादशी तिथि को इसका समापन हो जाता है।
लेकिन सवाल उठता है कि, आखिर चातुर्मास के दौरान मांगलिक कार्य वर्जित क्यों होते हैं? इस वर्ष चातुर्मास कब से प्रारंभ हो रहा है? चातुर्मास के दौरान क्या कुछ कार्य करने से व्यक्ति को शुभ फल की प्राप्ति होती है? आपके इन्ही सब सवालों का जवाब हम आपको अपने इस विशेष लेख के माध्यम से देने का प्रयत्न करेंगे। तो चलिए शुरू करते हैं यह खास ब्लॉग और सबसे पहले जान लेते हैं चातुर्मास इस वर्ष कब से शुरू हो रहा है।
चातुर्मास चार महीना की अवधि होती है जिसमें श्रावण महीना, भाद्रपद महीना, अश्विन माह और कार्तिक महीना शामिल होते हैं। इन महीनों में जहां एक तरफ मांगलिक और शुभ कार्य नहीं किए जाते हैं वहीं चातुर्मास की अवधि में यदि कोई व्यक्ति सच्चे मन से पूजा, अर्चना, तप, दान, पुण्य करें तो इससे उसे शुभ फलों की प्राप्ति होती है। बात करें वर्ष 2024 में चातुर्मास कब से प्रारंभ हो रहा है तो इस साल चातुर्मास 17 जुलाई से प्रारंभ हो जाएगा और 12 नवंबर को इसका समापन होगा।
चातुर्मास 2024 में 5 महायोग
इस वर्ष का चातुर्मास 118 दोनों का होने वाला है और चातुर्मास की शुरुआत 17 जुलाई से हो रही है। इस दिन कई शुभ योग बन रहे हैं जैसे शुक्ल योग, सौम्या योग, सर्वार्थ सिद्धि योग और अमृत सिद्धि योग। मान्यता है कि इन शुभ योगों में अगर भगवान शिव और विष्णु की पूजा की जाए तो इससे व्यक्ति को कई गुना शुभ परिणामों की प्राप्ति होती है।
चातुर्मास में क्यों नहीं किए जाते हैं शुभ काम?
धार्मिक मान्यता के अनुसार आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी के दिन से भगवान विष्णु के साथ सभी देवी देवता योग निद्रा में चले जाते हैं। इस दौरान पृथ्वी का सारा कार्य भार महादेव संभालते हैं और कार्तिक माह की शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि पर भगवान निद्रा से जाते हैं और यही वजह है कि चातुर्मास की इस अवधि में सनातन धर्म में कोई भी शुभ और मांगलिक कार्य नहीं किया जाता है।
चातुर्मास 2024 में नहीं लगेगा खरमास- जानें प्रभाव
वर्ष 2024 के चातुर्मास के दौरान अधिक मास या खरमास नहीं लगने वाला है जिसके चलते सभी त्योहार समय से पूर्व अर्थात पिछले वर्ष की तुलना में 11 दिनों पहले ही मनाए जाएंगे।
चातुर्मास में क्या करें?
चातुर्मास के दौरान भगवान की भक्ति करने पूजा पाठ करने, भजन कीर्तन करने का विशेष महत्व बताया गया है। चातुर्मास के दौरान व्रत, साधना, सेवा, तप आदि किया जाए तो इससे व्यक्ति को अपने जीवन में शुभ परिणाम प्राप्त होते हैं। साथ ही भगवान का आशीर्वाद भी ऐसे व्यक्तियों के जीवन पर हमेशा के लिए बना रहता है। चातुर्मास की अवधि साधु संतों के लिए साधन और स्वाध्याय का महीना होता है। इस दौरान धर्म, व्रत और पुण्य के काम करने वाले लोगों को विशेष फल प्राप्त होते हैं। इसके अलावा इन महीनों में अगर ध्यान और तप आदि भी किया जाए तो इससे भी इंसान को शुभ फलों की प्राप्ति होती है।
चातुर्मास का यह समय साधना का समय होता है। ऐसे में इस दौरान श्री हरि की उपासना करें, आप इसके लिए विशेष अनुष्ठान, मंत्र, जप, गीता आदि का पाठ भी कर सकते हैं। चातुर्मास के दौरान गरीब और जरूरतमंद लोगों को धन, वस्त्र, छाता, चप्पल और ज़रूरी चीजों का दान करें। चातुर्मास के दौरान संयमित जीवन जीएँ, सुबह जल्दी उठें, रात को जल्दी सोएँ और समय पर भोजन करें।
चातुर्मास में क्या काम भूल से भी ना करें?
चातुर्मास के दौरान भूमि पूजन, मुंडन संस्कार, विवाह, तिलक समारोह, गृह प्रवेश, उपनयन संस्कार जैसे सभी मांगलिक कार्य वर्जित हो जाते हैं। इसके अलावा इस अवधि में किसी भी तरह का कोई नया काम नहीं शुरू किया जाना चाहिए। कहते हैं कि अगर चातुर्मास के दौरान कोई शुभ काम शुरू भी करें तो इससे व्यक्ति को शुभ परिणाम नहीं प्राप्त होते हैं।
चातुर्मास के दौरान दही, मूली, बैंगन और साग का सेवन भी वर्जित होता है। इस दौरान झूठ, छल, कपट, नशा जैसी आदतों से दूर रहें। इसके अलावा बहुत से लोग चातुर्मास के दौरान व्रत रखते हैं या विशेष साधना करते हैं। अगर आप भी ऐसा कर रहे हैं तो इस दौरान यात्रा न करें।
चातुर्मास का यह समय काफी महत्वपूर्ण भी होता है। ऐसे में इस अवधि से संबंधित कुछ विशेष नियम और उनके महत्व बताए गए हैं जैसे कि,
चातुर्मास के दौरान सात्विक भोजन का ही सेवन करना चाहिए।
इस दौरान अंडा, मछली, मांस, प्याज़, लहसुन जैसी तामसिक वस्तुओं का भोजन वर्जित माना जाता है। खान-पान के इन नियमों का पालन किया जाए तो धार्मिक दृष्टि के साथ-साथ यह सेहत के लिए भी अनुकूल रहता है।
इसके अलावा चातुर्मास के दौरान ब्रह्मचर्य का पालन करना भी शुभ फलदाई रहता है क्योंकि इन महीनों में तामसिक प्रवृत्तियां बहुत ज्यादा बढ़ जाती हैं जो व्यक्ति को गलत रास्ते पर ले जाने का प्रयत्न करती हैं।
इसके अलावा अगर आप चातुर्मास में विशेष तौर पर 10 नियमों का पालन करते हैं तो इससे आपको लाभ भी मिलेगा। चलिए जान लेते हैं क्या कुछ हैं ये नियम और उनके लाभ।
चातुर्मास के दौरान व्रत अवश्य करें।
इस दौरान भूमि पर सोएँ।
सूर्योदय से पहले उठ जाएँ।
अच्छे से स्नान करें।
जितना हो सके मौन रहें।
इन चार महीनों के दौरान दिन में केवल एक बार ही उत्तम भोजन करें। रात्रि में फलाहार कर लें।
ब्रह्मचर्य का पालन करें।
ध्यान योग और सत्संग में हिस्सा लें।
भगवान विष्णु और शिव की उपासना करें और अपने पितरों का तर्पण करें और जितना हो सके गरीब और ज़रूरतमन्द लोगों को दान करें।
अब बात करेंगे नियमों से मिलने वाले लाभ की तो,
इससे सेहत में सुधार आता है।
ऐश्वर्या की प्राप्ति होती है।
मानसिक दुख दूर होते हैं।
मनोकामनाएं पूरी होती हैं।
पापों का नाश होता है।
मानसिक विकार दूर होते हैं और मानसिक दृढ़ता प्राप्त होती है।
पितरों का आशीर्वाद मिलता है।
महादेव और श्री हरि की कृपा प्राप्त होती है।
सुख समृद्धि बढ़ती है।
धन धान्य में वृद्धि होती है।
भाई बांधों का सुख प्राप्त होता है।
आत्मविश्वास, त्याग समर्पण की भावना विकसित होती है।
चातुर्मास में कर लिए ये काम तो बदल जाएगा भाग्य
चातुर्मास के दौरान कुछ विशेष कार्य करने से व्यक्ति को जीवन में तमाम तरह के शुभ परिणाम भी प्राप्त हो सकते हैं। जैसे,
अगर आप अपने मान सम्मान में वृद्धि करवाना चाहते हैं तो चातुर्मास के दौरान ब्रह्म मुहूर्त में उठें, जमीन पर सोएँ। ऐसा करने से समाज में आपका मान सम्मान बढ़ेगा और बल और बुद्धि का आशीर्वाद मिलेगा।
नौकरी में तरक्की प्राप्त करना चाहते हैं तो आप चातुर्मास के दौरान चप्पल, छाता, कपड़ों का दान करें। ऐसा करने से महादेव की प्रसन्नता हासिल होती है और आपके सभी कार्य पूरे होने लगते हैं।
शत्रुओं से मुक्ति प्राप्त करनी है तो चातुर्मास के दौरान धार्मिक ग्रंथो या फिर मंत्रों का जाप करें। ऐसा करने से आपके जीवन की परेशानियां भी दूर होने लगेगी और आपको शत्रुओं से भी छुटकारा मिलेगा।
अगर आपके जीवन में कर्ज का बोझ बढ़ गया है तो चातुर्मास के दौरान अन्न और गोदान अवश्य करें।
जीवन में सकारात्मकता और सुख शांति के लिए चातुर्मास के दौरान श्रीमद् भागवत का पाठ अवश्य करें।
वर्ष 2024 का चातुर्मास पूरे 118 दिनों तक चलने वाला है। हालांकि पिछले साल के चातुर्मास की बात करें तो यह 148 दिनों का था। इसमें एक अधिक मास या खरमास था। हालांकि वर्ष 2024 में अधिक मास या खरमास नहीं लगने वाला है और यही वजह है कि सभी व्रत और त्योहार 11 दिन पहले ही मनाए जाएंगे।
दरअसल जब वैदिक आधार पर मास की गणना की जाती है तो यह चंद्रमा के आधार पर होती है। इसके आधार पर साल में 354 दिन होते हैं जबकि सूर्य के अनुसार साल में 365 दिन होते हैं। सौर वर्ष और चंद्र वर्ष में 11 दोनों का अंतर होता है। किसी मास में अधिक होने पर इन दिनों की गणना उसमें कर दी जाती है।
बात करें वर्ष 2024 में चातुर्मास के दौरान पड़ने वाले महत्वपूर्ण व्रत और त्योहारों की तो इसकी सूची हम आपको नीचे प्रदान कर रहे हैं।
कृष्ण जन्माष्टमी अगस्त के महीने में मनाई जाएगी, हरतालिका तीज 6 सितंबर को है, जलझूलनी एकादशी 14 सितंबर को है, अनंत चतुर्दशी 17 सितंबर को है, पितृपक्ष की शुरुआत 18 सितंबर से हो जाएगी और शारदीय नवरात्रि 3 अक्टूबर से शुरू हो जाएंगे, दशहरा 12 अक्टूबर को मनाया जाएगा और दीपावली 1 नवंबर को होगी।
4 अगस्त 2024 दिन रविवार को श्रावण अमावस्या और हरियाली अमावस्या
7 अगस्त 2024 दिन बुधवार को हरियाली तीज
9 अगस्त 2024 दिन शुक्रवार को नाग पंचमी
19 अगस्त 2024 दिन सोमवार को रक्षा बंधन, श्रावण पूर्णिमा व्रत
22 अगस्त 2024 दिन गुरुवार को संकष्टी चतुर्थी, कजरी तीज, बहुला चौथ
26 अगस्त 2024 दिन सोमवार को जन्माष्टमी
27 अगस्त 2024 दिन मंगलवार को दही हांडी
6 सितंबर 2024 दिन शुक्रवार को हरतालिका तीज और वराह जयंती
7 सितंबर 2024 दिन शनिवार को गणेश चतुर्थी और गणेश उत्सव शुरू
8 सितंबर 2024 दिन रविवार को ऋषि पंचमी
16 सितंबर 2024 दिन सोमवार को कन्या संक्रांति और विश्वकर्मा जयंती
17 सितंबर 2024 दिन मंगलवार को अनंत चतुर्दशी और गणेश विसर्जन
18 सितंबर 2024 दिन बुधवार को भाद्रपद पूर्णिमा व्रत, पितृ पक्ष शुरू और चंद्र ग्रहण
25 सितंबर 2024 दिन बुधवार को जीवित्पुत्रिका व्रत
3 अक्टूबर 2024 दिन गुरुवार को शरद नवरात्रि और घटस्थापना
11 अक्टूबर 2024 दिन शुक्रवार को दुर्गा महा नवमी पूजा और दुर्गा महा अष्टमी पूजा
12 अक्टूबर 2024 दिन शनिवार को दशहरा और शरद नवरात्रि पारण
13 अक्टूबर 2024 दिन रविवार को दुर्गा विसर्जन
20 अक्टूबर 2024 दिन रविवार को संकष्टी चतुर्थी और करवा चौथ
29 अक्टूबर 2024 दिन मंगलवार को धनतेरस और प्रदोष व्रत
1 नवंबर 2024 दिन शुक्रवार को दिवाली और कार्तिक अमावस्या
2 नवंबर 2024 दिन शनिवार को गोवर्धन पूजा
3 नवंबर 2024 दिन रविवार को भाई दूज
7 नवंबर 2024 दिन गुरुवार को छठ पूजा
चातुर्मास उपाय
चातुर्मास की यह अवधि ध्यान साधना पूजा तप के साथ-साथ अपने जीवन में सकारात्मक बदलाव लेकर आने के लिए भी बेहद उपयुक्त बताई गई है। अगर आप भी अपने जीवन में कुछ सकारात्मक बदलाव लाना चाहते हैं तो नीचे हम आपको कुछ बेहद ही सरल ज्योतिषीय उपायों की जानकारी दे रहे हैं।
चातुर्मास के दौरान अगर आप दूध, दही, घी, शहद, मिश्री और पंचामृत से भगवान विष्णु का अभिषेक करते हैं तो आपको अक्षय सुख की प्राप्ति होती है।
चातुर्मास के दौरान चांदी के बर्तन में अगर आप हल्दी भरकर दान करेंगे तो इससे मां लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं, आपके जीवन में धन-धान्य की वृद्धि होती है, साथ ही आपकी तिजोरी हमेशा भरी रहती है।
चातुर्मास के दौरान भगवान विष्णु के समक्ष दीप और गुग्गल जलाने से व्यक्ति के जीवन में धन की कभी भी कोई कमी नहीं रहती है।
इसके अलावा चातुर्मास में अगर आप अन्न, वस्त्र, कपूर, छाता, चप्पल का दान करते हैं तो भगवान भोलेनाथ की कृपा से आपको नौकरी, व्यवसाय और करियर में उन्नति मिलती है।
चातुर्मास में अन्न और गाय का दान करने से कर्ज से मुक्ति मिलती है, आय के नए स्रोत मिलते हैं और धन लाभ के योग बनने लगते हैं।
चातुर्मास के दौरान अगर आप अपने ईष्ट देवता की पूजा करते हैं, उनसे संबंधित मंत्रों का जाप करते हैं तो आपके जीवन से रोग, दोष और ग्रह दोष दूर होते हैं और आपकी मनोकामनाएं पूरी होती है।
चातुर्मास के दौरान पीपल के पेड़ की सेवा अवश्य करें। ऐसा करने से और प्रतिदिन पीपल पर जल चढ़ाने और दीपक जलाने से कभी ना खत्म होने वाले पुण्य की प्राप्ति होती है और जीवन में सुख शांति बनी रहती है।
इसके अलावा अगर आप मनोकामना पूर्ति चाहते हैं तो चातुर्मास के दौरान मां लक्ष्मी, मां पार्वती, भगवान गणेश, अपने पितृ देवों की पूजा अवश्य करें। ऐसा करने से आपके घर में खुशहाली आएगी और संतान सुख भी बनता है।
हम उम्मीद करते हैं कि आपको हमारा यह ब्लॉग ज़रूर पसंद आया होगा। अगर ऐसा है तो आप इसे अपने अन्य शुभचिंतकों के साथ ज़रूर साझा करें। धन्यवाद!
अक्सर पूछे जाने वाले सवाल
प्रश्न 1: वर्ष 2024 में चातुर्मास कब से है?
उत्तर: इस साल चातुर्मास 17 जुलाई से प्रारंभ हो जाएगा और 12 नवंबर को इसका समापन होगा।
प्रश्न 2: चातुर्मास का क्या अर्थ होता है?
उत्तर: चातुर्मास 4 महीनों की अवधि को कहा जाता है जब भगवान विष्णु योगनिद्रा में चले जाते हैं और सभी शुभ और मांगलिक कार्यों पर रोक लग जाती है।
प्रश्न 3: चातुर्मास के दौरान क्या करें?
उत्तर: चातुर्मास के दौरान भगवान की भक्ति करने पूजा पाठ करने, भजन कीर्तन करने का विशेष महत्व बताया गया है।
प्रश्न 4: चातुर्मास के दौरान किस देवता की पूजा की जाती है?
उत्तर; भगवान विष्णु, महादेव, माँ लक्ष्मी, ईष्ट देव
सूर्य पर पड़ेगी शनि की टेढ़ी नज़र, चार राशियों का होगा बुरा हाल, बन रहा है षडाष्टक योग
16 जुलाई को सूर्य देव कर्क राशि में प्रवेश करने वाले हैं। इस राशि में सूर्य 16 अगस्त तक रहने वाले हैं और इसके बाद वे सिंह राशि में गोचर कर जाएंगे। वहीं दूसरी ओर, इस समय शनि देव कुंभ राशि में बैठे हैं। इस प्रकार सूर्य और शनि एक-दूसरे से छठे और आठवे भाव में उपस्थित रहेंगे। ज्योतिष की दृष्टि से देखें तो सूर्य और शनि के इस स्थिति में होने से षडाष्टक राजयोग बन रहा है।
इस राजयोग से कुछ राशियों के जातकों को नुकसान होने की आशंका है। इन लोगों को अपने निजी जीवन के साथ-साथ कार्यक्षेत्र में भी अशुभ परिणाम देखने को मिल सकते हैं। तो चलिए जानते हैं कि षडाष्टक राजयोग किन राशियों को प्रतिकूल परिणाम देने वाला है।
आपके लग्न भाव में सूर्य का यह गोचर होने जा रहा है। इस समय आपके आत्मविश्वास में कमी आ सकती है। आप सही निर्णय नहीं ले पाएंगे। वहीं नौकरीपेशा जातकों को भी उच्च अधिकारियों के साथ कोई समस्या हो सकती है। आपकी अपने सहकर्मियों के साथ भी अनबन होने की आशंका है। इस वजह से आपके मन में नौकरी बदलने का विचार आ सकता है।
पिता के साथ भी आपके संबंध खराब हो सकते हैं। वहीं आपका स्वास्थ्य भी इस समय ज्यादा अच्छा नहीं रहने वाला है। काम का बोझ बढ़ने की वजह से आपको मानसिक तनाव हो सकता है।
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कन्या राशि
कन्या राशि के ग्यारहवें भाव में सूर्य का गोचर होने जा रहा है। आपके निजी जीवन में कुछ परेशानियां खड़ी हो सकती हैं। इसके साथ ही आपके करियर के लिए भी यह समय ज्यादा अनुकूल नहीं है। इस दौरान आप चिंता में आ सकते हैं। आपको सावधानी से काम करने की सलाह दी जाती है। ऑफिस के लोगों से गॉसिप आदि न करें। आवेग में आकर कुछ न कहें।
व्यापारियों के लिए नुकसान के योग बन रहे हैं। इस वजह से आप थोड़ा तनाव में भी आ सकते हैं। निवेश करने के लिए यह समय ठीक नहीं है।
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धनु राशि
धनु राशि के आठवें भाव में सूर्य का गोचर होगा। यह समय आपके प्रेम जीवन के लिए थोड़ा मुश्किल साबित हो सकता है। आपके खर्चों में वृद्धि होगी जिससे आप पैसों की बचत करने में असक्षम हो सकते हैं। बेहतर होगा कि आप इस समय पैसों का कोई लेन-देन न करें वरना आपका पैसा फंस सकता है।
नौकरी बदलने के बारे में सोच रहे हैं, तो अभी आपको अपने इस फैसले को टाल देना चाहिए। आप अपने दोस्तों को भी अपना कोई रहस्य न बताएं।
आपके छठे भाव में सूर्य का गोचर होगा। इस समय आपके सामने कुछ अड़चनें आ सकती हैं। भाई-बहनों के साथ गलतफहमी की वजह से अनबन होने की आशंका है। आपको इस दौरान किसी भी तरह के वाद-विवाद से दूर रहने की सलाह दी जाती है।
परिवार में किसी सदस्य की सेहत बिगड़ने से आपको चिंता हो सकती है। आपको उनके लिए भागदौड़ भी करनी पड़ सकती है। यात्रा के दौरान अपने सामान का ध्यान रखें वरना वह चोरी हो सकता है।
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कर्क संक्रांति के ठीक एक दिन बाद मांगलिक कार्यों पर लग जाएगी रोक, जानें इस दिन के उपाय!
ग्रहों के राजा सूर्य हर माह अपनी राशि में परिवर्तन करते हैं। ऐसे में, इनकी चाल, दशा या राशि में होने वाला बदलाव सभी राशियों के साथ-साथ संसार और देश-दुनिया को भी प्रभावित करता है। इसी क्रम में, कर्क संक्रांति 2024 का पर्व बहुत धूमधाम से मनाया जाता है जो कि सूर्य देव को समर्पित होता है। एस्ट्रोसेज का यह ब्लॉग आपको कर्क संक्रांति से जुड़े सभी सवालों के जवाब देगा जैसे कि इस साल कब मनाया जाएगा कर्क संक्रांति का त्योहार और क्या है इस दिन का महत्व? साथ ही, आपको अवगत करवाएंगे कि कर्क संक्रांति पर कब और कैसे करें सूर्य देव की पूजा। इसके अलावा, किन उपायों को करने से मिलेगा भगवान सूर्य का आशर्वाद, यह भी बताएंगे। तो आइए बिना देर किये आगे बढ़ते हैं और शुरुआत करते है इस लेख की।
सूर्य देव की कर्क संक्रांति 16 जुलाई 2024, रविवार के दिन मनाई जाएगी। बता दें कि सूर्य के एक राशि से दूसरी राशि में गोचर को संक्रांति कहते हैं। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, कर्क संक्रांति पर भक्त पवित्र नदियों के जल में स्नान करते हैं और इसके पश्चात, सूर्य देव की पूजा करके दान करते हैं जिससे पुण्य कर्मों की प्राप्ति होती है। कर्क संक्रांति का दिन कई मायनों में बेहद खास होता है क्योंकि इस दिन सूर्य देव की कृपा प्राप्त करने से लेकर ग्रहों को शांत भी किया जा सकता है। चलिए अब हम नज़र डालते हैं कर्क संक्रांति 2024 की तिथि एवं मुहूर्त पर।
कर्क संक्रांति 2024: तिथि एवं शुभ मुहूर्त
ज्योतिष में संक्रांति का दिन सूर्य की राशि में बदलाव का प्रतिनिधित्व करता है जिसका शुभ-अशुभ असर सभी प्राणियों पर देखने को मिलता है। कर्क संक्रांति के दिन सूर्य देव कर्क राशि में प्रवेश करते है इसलिए इसे कर्क संक्रांति कहते हैं। हिंदू पंचांग के अनुसार, सूर्य महाराज विशाखा नक्षत्र के अंतर्गत शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि यानी कि 16 जुलाई 2024, मंगलवार के दिन सुबह 11 बजकर 08 मिनट पर कर्क राशि में गोचर करेंगे। इस दिन दान-पुण्य, पूजा-पाठ और स्नान आदि का विशेष महत्व होता है इसलिए इस दिन सूर्य पूजा शुभ मुहूर्त में ही करनी चाहिए।
कर्क संक्रांति की तिथि एवं पूजा मुहूर्त
कर्क संक्रांति की तिथि: 16 जुलाई 2024, मंगलवार
कर्क संक्रांति पुण्य काल का मुहूर्त: 16 जुलाई 2024 की सुबह 05 बजकर 29 मिनट से सुबह 11 बजकर 29 मिनट तक,
कर्क संक्रांति महापुण्य काल का मुहूर्त: सुबह 09 बजकर 10 मिनट से 11 बजकर 29 मिनट तक
अवधि: 02 घंटे 19 मिनट
कर्क संक्रांति का क्षण: सुबह 11:29 पर
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आगे बढ़ने से पहले आपका यह जानना जरूरी है कि संक्रांति किसे कहते हैं।
क्या होती है संक्रांति?
जैसे कि हम आपको ऊपर बता चुके हैं कि सूर्य के गोचर या राशि परिवर्तन को संक्रांति कहते हैं। ज्योतिष में जहां सूर्य को नवग्रहों के राजा माना जाता है, तो वहीं सनातन धर्म में इनकी देवता स्वरूप में पूजा की जाती है इसलिए सूर्य के गोचर की तिथि सभी तरह के कार्यों के लिए शुभ मानी जाती है। बता दें कि सूर्य ग्रह एक राशि में एक माह तक रहते हैं और ऐसे में, हर महीने में सूर्य देव का गोचर होता है। इस प्रकार, सूर्य को मेष से लेकर मीन राशि तक का चक्र पूरा करने में एक साल का समय लगता है और जब सूर्य मेष, वृषभ या फिर किसी भी राशि में गोचर करते हैं, तो उस संक्रांति को राशि के नाम से जाना जाता है, उदाहरण के लिए सूर्य का यह गोचर कर्क राशि में होगा इसलिए इसे कर्क संक्रांति कहा जाएगा।
कर्क संक्रांति 2024 को हिंदू धर्म में अत्यंत शुभ माना जाता है और यह वर्ष में एक बार आती है इसलिए इस दिन को बेहद हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। कर्क संक्रांति सूर्य देव के दक्षिणायन होने को दर्शाती है क्योंकि इस गोचर के साथ सूर्य की छह महीने के उत्तरायण काल का अंत हो जाता है और दक्षिणायन यात्रा का शुभारंभ होता है। सरल शब्दों में कहें, तो इस दिन सूर्य देव उत्तरायण से दक्षिणायन होते हैं और इसके साथ ही धीरे-धीरे दिन छोटे होने लगते हैं। कर्क संक्रांति से शुरू हुई दक्षिणायन यात्रा का समापन मकर संक्रांति के साथ होता है।
पौरणिक मान्यताओं के अनुसार, कर्क संक्रांति पर सूर्य के कर्क राशि में प्रवेश करने पर मौसम में बदलाव नज़र आने लगते हैं। बारिश की शुरुआत हो जाती है जिससे मौसम सुहावना हो जाता है और बादलों का खुलकर बरसना कृषि के लिए अति आवश्यक होता है। इससे लोगों को गर्मी से भी राहत मिलती है।
कर्क संक्रांति के दिन जब सूर्य दक्षिणायन होंगे उस दिन से वह आने वाले अगले छह माह तक कर्क, सिंह, कन्या, तुला, वृश्चिक, धनु समेत मकर राशि में बारी-बारी से एक-एक महीने के लिए रहेंगे। सूर्य के कर्क राशि में प्रवेश करते ही चातुर्मास का भी आरंभ हो जाता है। चातुर्मास चार महीनों की ऐस अवधि होती है जब भगवान विष्णु निद्रा में चले जाते हैं। चातुर्मास को चौमासा
के नाम से भी जाना जाता है।
कर्क संक्रांति और देवशयनी एकादशी एक दिन होने की वजह से इस दिन भगवान सूर्य के अलावा विष्णु जी की पूजा करना फलदायी साबित होता है। इस अवसर पर श्रीहरि की कृपा एवं आशीर्वाद पाने के लिए भक्तों द्वारा उपवास किया जाता है। साथ ही, कर्क संक्रांति पर अन्न और वस्त्र का दान करना बेहद पुण्यदायी होता है। जो लोग अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए पितृ तर्पण करना चाहते हैं, तो ऐसा करने के लिए कर्क संक्रांति का दिन श्रेष्ठ रहता हैं।
ज्योतिष की दृष्टि से, वर्ष 2024 की कर्क संक्रांति की बात करें, तो इस संक्रांति का नाम महोदर और दृष्टि वायव्य है। सूर्य देव का वाहन गज है और यह पश्चिम दिशा में गमन करेंगे। ऐसे में, यह संक्रांति पशुओं के लिए बहुत अच्छी रहेगी और इस दौरान वस्तुओं की लागत सामान्य रहने के संकेत है। यह कर्क संक्रांति व्यक्ति के जीवन में धन-समृद्धि लेकर आएगी। लेकिन, लोगों को सर्दी-खांसी की समस्या परेशान कर सकती है इसलिए थोड़ा सतर्क रहना होगा।
कर्क संक्रांति के दिन सूर्य देव के कर्क राशि में प्रवेश के साथ चातुर्मास शुरू हो जाते हैं। मान्यताओं के अनुसार, हर साल जगत के पालनहार छह महीने के लिए सो जाते हैं और इसी के साथ चार महीनों के लिए सभी तरह के शुभ कार्यों पर रोक लग जाती है। इस प्रकार, कर्क संक्रांति के दिन ही देवशयनी एकादशी पड़ती है।
इस साल देवशयनी एकादशी 17 जुलाई 2024 को मनाई जाएगी। बता दें कि कर्क संक्रांति के दिन एकादशी तिथि का आरंभ 16 जुलाई 2024 की रात 08 बजकर 35 मिनट पर होगा जबकि इसका समापन 17 जुलाई 2024 की रात 09 बजकर 04 मिनट पर होगा। उदया तिथि के अनुसार, देवशयनी एकादशी का व्रत 17 जुलाई 2024 को किया जाएगा।
कर्क संक्रांति पर कैसे करें सूर्य देव की पूजा
कर्क संक्रांति के दिन स्नान और दान का अत्यधिक महत्व है इसलिए भक्त प्रातःकाल उठकर गंगा नदी में स्नान करें।
अगर गंगा नदी या किसी पवित्र नदी में स्नान करना संभव न हो, तो आप घर पर ही स्नान के जल में थोड़ा सा गंगाजल मिलाकर स्नान करें।
स्नान से निवृत होने के बाद, उगते हुए सूर्य देव को जल में गंगा जल मिलाकर चढ़ाएं। सूर्य देव को अर्घ्य देते हुए लगातार सूर्य मंत्रों का जाप करते रहें।
इस अवधि में भगवान विष्णु निद्रा में होंगे इसलिए भगवान विष्णु की भी पूजा-अर्चना करें। साथ ही, श्रीहरि के मंत्रों का जाप करें।
इसके अलावा, विष्णु कवच और विष्णु सहस्रनाम का पाठ करें।
मान्यताओं के अनुसार, कर्क संक्रांति पर दान करना शुभ होता है इसलिए इस तिथि पर गरीबों, ब्राह्मणों और जरूरतमंदों को वस्त्र, अन्न, तेल और अन्य जरूरत की चीजें दान करना श्रेष्ठ रहता है।
इस तिथि पर पशु-पक्षियों को भी भोजन खिलाएं जैसे आप रोटी दे सकते हैं या गौशाला में चारा दान किया जा सकता है।
कर्क संक्रांति का पुण्य पाने के लिए सूर्य देव के मंत्रों या गायत्री मंत्र का जाप करना फलदायी सिद्ध होता है।
सूर्य देव को प्रसन्न करने के लिए राशि अनुसार करें ये उपाय
मेष राशि: कर्क संक्रांति पर भक्तजन तुलसी के पौधों की पूजा करें। साथ ही, गेंदे के फूल लगाएं आदि कार्य करना शुभ रहेगा।
वृषभ राशि: इस अवसर पर भगवान विष्णु और श्रीकृष्ण का पंचामृत से स्नान कराएं तथा “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नमः” मंत्र का जाप करें।
मिथुन राशि: मिथुन राशि वालों को कर्क संक्रांति पर अपने जीवन से प्रेम संबंधित समस्याओं के निवारण के लिए भगवान विष्णु को पीले रंग के वस्त्र और पीले फूल अर्पित करने चाहिए।
कर्क राशि: इस राशि के जातकविष्णु सहस्रनाम का पाठ करें और विष्णु जी को मिठाई का प्रसाद रूप में भोग लगाएं।
सिंह राशि: सिंह राशि वालों के लिए कर्क संक्रांति पर सूर्य को अर्घ्य देने के साथ-साथ सूर्य मंत्र का जाप करना श्रेष्ठ रहेगा। आपको भगवान विष्णु की पूजा करने की भी सलाह दी जाती है।
कन्या राशि: कन्या राशि वालों के लिए “ॐ नमो नारायणाय नमः” का जाप करना शुभ रहेगा।
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तुला राशि: तुला राशि के जातक कर्क संक्रांति पर भगवान विष्णु की पूजा करें। साथ ही, गरीबों को मिठाई का दान करें।
वृश्चिक राशि: वृश्चिक राशि के जातक इस दिन भगवान विष्णु और सूर्य देव की आराधना करें। इसके अलावा, जल में 5 लाल गुलाब की पंखुड़ियां मिलाकर सूर्य देव को अर्घ्य दें।
धनु राशि: धनु राशि वाले गरीबों को पीले कपड़े दान करें और बुजुर्गों की सेवा करें।
मकर राशि: मकर राशि के जातक कर्क संक्रांति पर वृद्धाश्रम में भोजन दान करें और सुबह स्नान करने के बाद विष्णु मंत्र का जाप करें।
कुंभ राशि: कुंभ राशि के लिए इस दिन भगवान विष्णु को तुलसी चढ़ाना शुभ रहेगा। इसके अलावा, माता लक्ष्मी की पूजा करते हुए उन्हें लाल रंग के फूल अर्पित करें।
मीन राशि: मीन राशि के जातकों के लिए तुलसी की पूजा करना सर्वश्रेष्ठ रहेगा। साथ ही, विष्णु जी के लिए उपवास करें। पीले रंग की मिठाई का प्रसाद बनाकर परिवार को दें तथा गरीबों को भी बांटे।
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अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न
प्रश्न 1. 2024 में कर्क संक्रांति कब है?
उत्तर 1. इस साल कर्क संक्रांति 16 जुलाई 2024,मंगलवार के दिन है।
प्रश्न 2. कर्क संक्रांति 2024 पर क्या करें?
उत्तर 2. कर्क संक्रांति के दिन सूर्य देव की पूजा और स्नान-दान करना शुभ होता है।
प्रश्न 3. संक्रांति पर क्या होता है?
उत्तर 3. संक्रांति के दिन सूर्य देव एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश करते हैं।
सूर्य देव का कर्क में प्रवेश- इन राशियों की चमकेगी किस्मत, नई नौकरी के साथ धन लाभ के योग!
16 जुलाई 2024 को सूर्य ग्रह का कर्क राशि में गोचर हो जाएगा। ज्योतिष शास्त्र में जहां एक तरफ सूर्य ग्रह को मान-सम्मान, प्रतिष्ठा, आत्मविश्वास और सरकारी नौकरी, पिता आदि का कारक माना जाता है वहीं कर्क राशि की बात करें तो इस पर चंद्र ग्रह का आधिपत्य होता है और सूर्य और चंद्रमा के बीच मित्रता का भाव होता है।
ऐसे में कहना गलत नहीं होगा कि सूर्य देव अपने मित्र चंद्र की राशि में प्रवेश करने जा रहे हैं। जहां कुछ राशियों को इस गोचर के अनुकूल परिणाम प्राप्त होंगे वहीं कुछ राशियों को उसके प्रतिकूल परिणाम भी झेलने को मिलेंगे। कौन सी हैं ये राशियाँ जानेंगे इस ब्लॉग के माध्यम से लेकिन सबसे पहले जान लेते हैं क्या रहेगा सूर्य के कर्क राशि में गोचर का समय।
सबसे पहले बात करें कर्क राशि में होने वाले सूर्य की इस गोचर के समय की तो, सूर्य का ये गोचर 16 जुलाई को 11 बजकर 08 मिनट पर हो जाएगा। इसके बाद 16 अगस्त तक सूर्य इसी राशि में रहने वाले हैं और फिर सिंह राशि में गोचर कर जाएंगे।
यहाँ ये देखना दिलचस्प रहेगा कि कर्क राशि में होने वाले सूर्य के इस गोचर की अवधि में तीन ग्रहों की महत्वपूर्ण युति होने वाली है। दरअसल 29 जून को बुध का राशि में गोचर हुआ था इसके बाद 7 जुलाई को शुक्र का कर्क राशि में गोचर हुआ और 11 जुलाई को शुक्र कर्क राशि में ही उदित भी हो गए और अब 16 जुलाई को जब सूर्य कर्क राशि में प्रवेश करेंगे तो इस दौरान कर्क राशि में बुध, शुक्र और सूर्य की युति होने वाली है जिसका निश्चित तौर पर सभी 12 राशियों के जातकों के जीवन पर प्रभाव अवश्य पड़ेगा।
आपकी राशि को तीन शुभ महत्वपूर्ण ग्रहों की ये युति किस तरह से प्रभावित करेगी यह जानने के लिए आप अभी विद्वान ज्योतिषियों से परामर्श ले सकते हैं।
सूर्य का कर्क राशि में गोचर- प्रभाव
जैसा कि हमने पहले भी बताया कि कर्क राशि में सूर्य, बुध और शुक्र की युति होने वाली है। ऐसे में बात करें इस युति के अर्थ और प्रभाव की तो जहां एक तरफ सूर्य ग्रह को आत्मा, अहंकार, आत्म सम्मान, पिता का कारक ग्रह माना जाता है वहीं बुध ग्रह संचार, कौशल, निर्णय लेने की क्षमता, तार्किक सोच का प्रतिनिधित्व करता है और तीसरा ग्रह अर्थात शुक्र ग्रह प्रेम, विलासिता और विवाह का प्रतिनिधित्व करता है। साथ ही पुरुषों के लिए शुक्र पत्नी भी दर्शाता है।
जब किसी व्यक्ति की कुंडली में इन तीनों ग्रहों की युति होती है तो ऐसे व्यक्ति एक आकर्षक स्वभाव के मिलनसार व्यक्तित्व वाले होते हैं जो किसी भी प्रकार के संचार में शामिल होना पसंद करते हैं। ऐसे व्यक्ति को अपनी रचनात्मकता वाले कार्यों में काम करना अच्छा लगता है। ऐसे व्यक्तियों की रचनात्मकता उन्हें जीवन में अधिकार और आत्मविश्वास प्रदान करती है।
जब सूर्य सूर्य, बुध, शुक्र युति में सबसे कम डिग्री पर हो तो ऐसे लोग सबसे अधिक अभिव्यक्ति शील होते हैं।
अगर सूर्य, बुध, शुक्र की युति में बुध सबसे कम डिग्री पर हो तो इससे संचार, बुद्धि का तत्व महत्वपूर्ण हो जाता है।
अगर इन तीनों ग्रहों की युति में शुक्र सबसे नीचे डिग्री पर हो तो ऐसे व्यक्ति के अंदर सौंदर्य कला और रचनात्मक की अधिक तलाश रहती है।
इसके अलावा अगर युति में बुध और शुक्र दोनों सूर्य के करीब हों और अस्त हो तो भाई बहनों, मित्र या जीवनसाथी के साथ रिश्ते अच्छे नहीं होते हैं।
बात करें सूर्य के गोचर की तो सूर्य का एक गोचर अर्थात एक राशि में उनका रहना तकरीबन 1 महीने की अवधि के लिए होता है और इसके बाद सूर्य दूसरी राशि में प्रवेश कर जाता है। सूर्य के गोचर को संक्रांति के नाम से जानते हैं। ऐसे में सूर्य जब कर्क राशि में गोचर करेगा तो इसे कर्क संक्रांति के नाम से जाना जाएगा।
सूर्य ग्रह और कर्क राशि
कर्क राशि में सूर्य के होने के प्रभाव की बात करें तो ऐसे में व्यक्ति का मन निर्णय लेने में स्थिर नहीं होता है। ऐसे व्यक्ति सदाचारी होते हैं और नियमों और विनियमों का पालन करते हैं, ऐसे लोग सामान्य होते हैं और उनके अंदर राजसी गुण देखने को मिलते हैं, जीवन साथी और अपने पैतृक परिवार के सदस्यों के साथ उनके रिश्ते सामंजस्य पूर्ण नहीं होते हैं।
ऐसे जातकों को कफ और पित्त से संबंधित परेशानियां हो सकती है। कर्क राशि में सूर्य के प्रभाव से व्यक्ति के आसपास के लोगों के मन और भावनाओं से प्रेरित होते हैं क्योंकि आप भावनात्मक रूप से उनसे जुड़ा हुआ महसूस करते हैं। आपको अपनी मानसिक शक्ति बढ़ाने में परेशानी हो सकती है और आप बेहद ही नवीन और रचनात्मक स्वभाव के होते हैं।
स्वाभाविक है कि सूर्य ग्रह का ज्योतिष में विशेष महत्व होता है। यही वजह है कि जब किसी व्यक्ति की कुंडली में सूर्य मजबूत स्थिति में नहीं होता है तो ज्योतिष के जानकारी उन्हें सूर्य से संबंध कुछ उपाय करने की सलाह देते हैं। क्या कुछ हैं ये उपाय आइये जान लेते हैं।
नोट: यहां हम जो भी उपाय प्रदान कर रहे हैं वो लाल किताब पर आधारित हैं।
सूर्य को मजबूत करने के लिए गेहूं, गुड़ और तांबे का दान करें और गुड़ का सेवन न करें।
अगर आपकी कुंडली में सूर्य दोष मौजूद है तो नियमित रूप से प्रातः काल उठकर आदित्य हृदय स्त्रोत का पाठ करें। कुंडली में सूर्य की स्थिति जानने के लिए आप अभी विद्वान ज्योतिषियों से प्रश्न कर सकते हैं।
अगर आपकी कुंडली में सूर्य दोष है तो रोज उगते हुए सूर्य को तांबे के लोटे से जल दें।
अगर आपकी कुंडली में सूर्य नीच का है तो रविवार के दिन मछलियों को आटे की गोली बनाकर खिलाएं। ऐसा करने से सूर्य के अशुभ प्रभाव तो कम होंगे ही साथ ही धन वृद्धि के योग भी बनने लगेंगे।
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अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न
प्रश्न 1: सूर्य का कर्क राशि में गोचर कब होगा?
उत्तर: सूर्य 16 जुलाई को 11:08 पर अपने मित्र की राशि कर्क में गोचर कर जाएंगे।
प्रश्न 2: सूर्य के इस गोचर से किन ग्रहों की युति होगी?
उत्तर: सूर्य के कर्क राशि में गोचर से बुध, शुक्र और सूर्य की युति होने जा रही है।
प्रश्न 3: सूर्य ग्रह को ज्योतिष में किसका कारक माना गया है?
उत्तर: वैदिक ज्योतिष में सूर्य को मान-सम्मान, प्रतिष्ठा, आत्मविश्वास और सरकारी नौकरी का कारक माना जाता है।
प्रश्न 4: कर्क राशि पर किस ग्रह का आधिपत्य होता है?
उत्तर: कर्क राशि पर चंद्रमा का आधिपत्य होता है।
भगवान शिव संग विष्णु जी की कृपा से चातुर्मास इन राशियों के लिए रहेगा शुभ
हिंदू धर्म में चातुर्मास का आरंभ देवशयनी एकादशी से हो जाता है। मान्यता है कि चातुर्मास से भगवान विष्णु 4 माह के लिए योग निद्रा में चले जाते हैं। ऐसे में, सभी प्रकार के शुभ एवं मांगलिक कार्यों पर रोक लग जाती है। जिस समय विष्णु जी निद्रा में होते हैं, उस समय को शुभ नहीं माना जाता है इसलिए इस दौरान शुभ कार्यों को करना वर्जित होता है। एस्ट्रोसेज का यह विशेष ब्लॉग आपको चातुर्मास 2024 से जुड़ी समस्त जानकारी प्रदान करेगा। साथ ही, चातुर्मास के चार महीने राशि चक्र की कुछ राशियों के लिए बहुत भाग्यशाली साबित होंगे और इन्हें अपने जीवन में सफलता से लेकर हर तरह का सुख प्राप्त होगा। चलिए अब हम आगे बढ़ते हैं और जानते हैं कि चातुर्मास किन राशियों के लिए सौभाग्य लेकर आएगा।
पंचांग के अनुसार, आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि से चातुर्मास की अवधि शुरू होती है और इसका समापन कार्तिक माह की एकादशी तिथि को हो जाता है। चातुर्मास को चौमास भी कहा जाता है और इस दौरान शुभ काम निषेध होते हैं।
जैसे कि हम आपको बता चुके हैं कि चातुर्मास की अवधि चार महीनों की होती है जिसके अंतर्गत श्रावण माह, भाद्रपद माह, आश्विन माह और कार्तिक का महीना आता है। इन चार महीनों के दौरान जहां एक तरफ मांगलिक एवं शुभ कार्य नहीं किए जाते हैं। दूसरी तरफ, अगर कोई व्यक्ति चातुर्मास के चार महीनों में सच्चे मन से पूजा-अर्चना, तप, दान एवं पुण्य करता है, तो इससे जातक को शुभ फलों की प्राप्ति होती है। इस बार के चातुर्मास को देखें, तो वर्ष 2024 में चातुर्मास का प्रारंभ 17 जुलाई से हो रहा है जबकि इसका अंत 12 नवंबर 2024 को हो जाएगा।
बृहत् कुंडली में छिपा है, आपके जीवन का सारा राज, जानें ग्रहों की चाल का पूरा लेखा-जोखा
शायद ही आप जानते होंगे कि साल 2024 का चातुर्मास बेहद खास होने वाला है क्योंकि यह चार महीने चार राशियों के लिए बेहद भाग्यशाली साबित होंगे। आइए अब हम नज़र डालते हैं उन शुभ राशियों पर।
चातुर्मास में शिव जी और भगवान विष्णु इन राशियों पर रहेंगे मेहरबान
मिथुन राशि
राशि चक्र की तीसरी राशि मिथुन का नाम उन भाग्यशाली राशियों में शामिल है जिनके लिए इस बार का चातुर्मास बेहद फलदायी रहने वाला है। चातुर्मास के चार महीने आपकी राशि के लिए शानदार रहेंगे और आपको जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में सकारात्मक परिणाम प्राप्त होंगे। इस अवधि में इन जातकों की आर्थिक स्थिति पहले की तुलना में मज़बूत होगी। आपके घर-परिवार में मांगलिक कार्य होने के योग बनेंगे। मिथुन राशि वालों का प्रेम जीवन प्यार से भरा रहेगा और ऐसे में, आपके रिश्ते में मिठास बनी रहेगी। छात्रों के लिए यह अवधि उत्तम रहेगी और ऐसे में, आपको करियर के क्षेत्र में लाभ की प्राप्ति होगी।
कर्क राशि
चंद्र देव की राशि कर्क के लिए चातुर्मास के चार महीने अत्यंत शुभ साबित होंगे। चातुर्मास की अवधि आपके लिए अच्छी कही जाएगी क्योंकि इस दौरान कर्क राशि के जातकों का जीवन खुशियों से भरा रहेगा। ऐसे में, आप प्रसन्न नज़र आएंगे। जिन जातकों का विवाह हो चुका है, उनका वैवाहिक जीवन सुख-शांति एवं प्रेम से पूर्ण रहेगा। अगर आप एक लंबे समय से किसी काम को पूरा करने की योजना बना रहे है, तो अब आपको उसमें सफलता की प्राप्ति होगी। इन जातकों की आय में भी बढ़ोतरी देखने को मिलेगी।
साल 2024 का चातुर्मास कन्या राशि वालों के लिए भी उत्तम परिणाम लेकर आएगा। यह चार महीने आपके लिए अनुकूल कहे जाएंगे। कन्या राशि वालों के जातकों का जीवन सुख-शांति से भरा रहेगा और साथ ही, इस दौरान आपको अनेक स्रोतों से धन की प्राप्ति होगी जिससे धन का प्रवाह अच्छा बने रहने की संभावना है। इन जातकों को पैतृक संपत्ति के माध्यम से भी लाभ प्राप्त होने के योग बनेंगे और नौकरीपेशा जातकों को नौकरी के बेहतरीन अवसर मिलेंगे।
कुंभ राशि
शनि देव के स्वामित्व वाली राशि कुंभ का नाम उन राशियों में आता है जिन्हें चातुर्मास 2024 के दौरान शुभ परिणामों की प्राप्ति होगी। इस राशि के जातकों को किसी पुराने निवेश के माध्यम से लाभ मिलने की प्रबल संभावना है। जिन लोगों को अपनी नौकरी में समस्याओं का सामना करना पड़ रहा था, अब आपको उन सभी परेशानियों से छुटकारा मिल जाएगा। अगर आपको तनाव की समस्या तंग कर रही थी, तो यह समय आपको उससे राहत दिलाएगा। जो जातक खुद का व्यापार करते हैं, उनके बिज़नेस का विस्तार होगा।
इस दौरान प्याज़, लहसुन, मछली, मांस आदि तामसिक वस्तुओं से दूरी बनाकर रखनी चाहिए।
चातुर्मास के चार महीनों के दौरान जातक द्वारा ब्रह्मचर्य का पालन करना उत्तम रहता है, अन्यथा तामसिक प्रवृत्तियां व्यक्ति को गलत मार्ग पर ले जाने का प्रयास करती हैं।