पापी ग्रह केतु के नक्षत्र में बृहस्पति का प्रवेश, चमकने वाली है इन राशियों की किस्मत
बृहस्पति ग्रह को देवताओं के गुरु की उपाधि दी गई है। बृहस्पति एक राशि में लगभग एक वर्ष तक रहते हैं और इस तरह उन्हें सभी 12 राशियों में गोचर करने में 12 साल का समय लग जाता है। ऐसे में गुरु का प्रभाव लंबे समय तक रहता है।
इस समय गुरु वृषभ राशि में हैं और ग्रह राशि के साथ-साथ समय-समय पर नक्षत्र में परिवर्तन भी करते रहते हैं। फिलहाल गुरु मृगशिरा नक्षत्र में हैं लेकिन नवंबर में गुरु का नक्षत्र परिवर्तन होगा और इस बार गुरु रोहिणी नक्षत्र में प्रवेश कर जाएंगे। बता दें कि गुरु 28 नवंबर को बृहस्पतिवार के दिन दोपहर 01 बजकर 10 मिनट पर रोहिणी नक्षत्र में गोचर करेंगे।
बृहस्पति के इस नक्षत्र में आने से सभी राशियों के जीवन में उतार-चढ़ाव देखने को मिलेंगे लेकिन कुछ राशियां ऐसी हैं जिन्हें इस समय सबसे अधिक लाभ होने की संभावना है। इस ब्लॉग में आगे इन्हीं राशियों के बारे में विस्तार से बताया गया है।
रोहिणी नक्षत्र के स्वामी केतु ग्रह हैं और ये नक्षत्र बैल गाड़ी या रथ की तरह दिखाई देता है। इस नक्षत्र में जन्म लेने वाले जातक पतले और आकर्षक होते हैं। इनकी आंखें बहुत सुंदर और मनमोहक मुस्कान होती है। इन्हें प्रकृति से बहुत प्यार होता है। ये विनम्र और शिष्ट स्वभाव के होते हैं। दस नक्षत्र में जन्मे जातक सीधे और सरल स्वभाव वाले होते हैं।
बृहत् कुंडली में छिपा है, आपके जीवन का सारा राज, जानें ग्रहों की चाल का पूरा लेखा-जोखा
न राशियों का होगा भाग्योदयइ
वृषभ राशि
वृषभ राशि के स्वामी ग्रह शुक्र देव हैं और बृहस्पति का नक्षत्र परिवर्तन वृषभ राशि के जातकों के लिए सुखदायक रहने वाला है। आपकी आय के नए स्रोत खुलेंगे और आप अपने जीवन के हर क्षेत्र में सफलता प्राप्त करेंगे। आप अपने काम और कड़ी मेहनत से अपनी एक अलग पहचान बनाने में सक्षम होंगे।
आपने पहले जो निवेश किया है, उससे अब आपको अच्छा रिटर्न मिलने की संभावना है। आपको अपने परिवार के साथ अच्छा समय बिताने का मौका मिलेगा। समाज में आपका मान-सम्मान और प्रतिष्ठा बढ़ेगी। लंबे समय से कोई काम अटका हुआ है, तो अब वह पूरा हो सकता है। आपकी वित्तीय स्थिति अच्छी रहने वाली है जिससे आप दान आदि करने में सक्षम रहेंगे। लंबे समय से चली आ रही परेशानियां अब खत्म हो सकती हैं। आपके लिए प्रेम विवाह के योग बन रहे हैं।
बृहस्पति का रोहिणी नक्षत्र में आना कर्क राशि के जातकों के लिए शुभ फल लेकर आएगा। आपको अपने भाग्य का पूरा साथ मिलेगा। अटके हुए काम भी अब बनने लगेंगे। छात्रों की उच्च शिक्षा प्राप्त करने की इच्छा पूरी होगी। आपकी आय में तेजी से बढ़ोतरी देखने को मिलेगी। कार्यक्षेत्र में हर किसी की जुबान पर आपका ही नाम होगा।
नौकरीपेशा जातकों के काम की सराहना होगी। समाज में आपका मान-सम्मान बढ़ेगा और पद-प्रतिष्ठा में वृद्धि होगी। कार्यक्षेत्र में आपके लिए प्रमोशन और वेतन में वृद्धि के योग बन रहे हैं। पति-पत्नी के बीच खूब प्यार बढ़ेगा। आप दोनों के बीच आपसी तालमेल बहुत अच्छा रहने वाला है। आपको अपने स्वास्थ्य को लेकर भी चिंता करने की ज़रूरत नहीं है। आपको अपने भाई-बहनों का सहयोग प्राप्त होगा।
वृश्चिक राशि के लोगों के लिए भी यह समय बहुत फायदेमंद साबित होगा। आपको हर तरफ से लाभ होने की संभावना है। आपके जीवन में जो भी परेशानी चल रही है, अब वह खत्म हो जाएगी। व्यापारियों की समस्याओं का भी अब अंत होगा। आप एक नई दिशा में आगे बढ़ेंगे। आपको अचानक से धन लाभ होने के आसार हैं।
बिज़नेस में खूब तरक्की करेंगे और मुनाफा कमाने के अच्छे अवसर प्राप्त होंगे। आपके साहस और पराक्रम में बढ़ोतरी होगी। कार्यक्षेत्र में आपके पद में इज़ाफा हो सकता है।
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कन्या राशि में बुध- देश-दुनिया में आएगी स्थिरता लेकिन 3 राशियों को रहना होगा सावधान!
बुध गोचर 2024- एस्ट्रोसेज की हमेशा से यही कोशिश रही है कि हम अपने रीडर्स को ज्योतिष की इस रहस्यमई दुनिया की हर एक छोटी बड़ी और नवीनतम घटनाओं के बारे में अवगत कराते रहें। इसी कड़ी में आज हम अपना यह खास ब्लॉग लेकर आए हैं जिसमें हम बुध के कन्या राशि में गोचर के बारे में जानेंगे जो 23 सितंबर को 9:59 पर होने वाला है।
बुध का यह गोचर राशियों को, देश को, विश्वयापी घटनाओं को, शेयर बाजार को, मनोरंजन उद्योग को कैसे प्रभावित करेगा हम इसके बारे में भी जानकारी हासिल करेंगे। आगे बढ़ने से पहले नजर डाल लेते हैं ज्योतिष में बुध ग्रह के बारे में।
वैदिक ज्योतिष में बुध को एक देवता माना जाता है। इसे देवता के समान सम्मान दिया जाता है। परंपरा के अनुसार बुध बृहस्पति की पत्नी तारा और चंद्रमा सोम के पुत्र हैं। एक कथा के अनुसार कहा जाता है कि चंद्रमा को बृहस्पति की पत्नी तारा के प्रति आसक्ति हो गई। उनके रिश्ते से बुध का जन्म हुआ। यह मनभावन स्वभाव के साथ बुधिमत्ता को जोड़ने के लिए जाना जाता है। 32 वर्ष की आयु तक बुध पूर्ण परिपक्वता तक पहुंच जाता है।
पुरानी किंवदंतियों और महाकाव्यों को संरक्षित करने के लिए लिखित अभिलेखों के बजाय मौखिक कविता या संवाद का उपयोग किया जाने लगा। इसके परिणाम स्वरुप बुध की उत्पत्ति की कहानी में कई भिन्नताएं सामने आने लगी। कुछ में बुध को चंद्रमा और रोहिणी के पुत्र के रूप में जाने लगा। रोहिणी दक्ष की पुत्री हैं।
कन्या राशि में बुध भद्र महापुरुष योग का निर्माण करता है जो कुंडली के पहले, चौथे, सातवें और दसवें घर में स्थित होने पर आपको भद्र या कुलीन पद तक पहुंचा सकता है। जब बुध कन्या राशि में होता है तो व्यक्ति अपने घर, वित्त, लोगों और कार्यों को व्यवस्थित करने में बहुत अच्छे होते हैं। बुध की यह स्थिति समाधान केंद्र दृष्टिकोण प्रदान करती है जो इसे बेहद उत्कृष्ट बनाता है।
बुध कन्या राशि में स्थित होता है तो इस बात को सुनिश्चित करता है कि व्यक्ति का करियर सफल हो और आप अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए बुद्धि और विवेक का उचित उपयोग करें। प्रबंधन गणना और विश्लेषण से जुड़े सभी व्यवसायों को आमतौर पर बुध की इस स्थिति का अनुकूल परिणाम प्राप्त होता है। इसमें गणितज्ञ, उद्यमी, डाटा विश्लेषक, प्रबंधक, सीईओ, परामर्शदाता, आहार विशेषज्ञ, सेल्स पर्सन, विपणन आदि शामिल होते हैं।
जब बुध कन्या राशि में होता है तो इससे गंभीर स्वास्थ्य समस्याएं भी हो सकती है। ऐसी स्थिति में पीठ के निचले हिस्से, गुर्दे और नाभि के क्षेत्र प्रभावित नजर आ सकते हैं। इसके अलावा इससे त्वचा, वाणी और मस्तिष्क में भी समस्याएं उत्पन्न होती है। बुध और ग्रहों की उस स्थान पर दृष्टि की डिग्री भी यह निर्धारित करती है कि व्यक्ति के जीवन में इस बीमारी की गंभीरता कितनी रहने वाली है।
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बुध का कन्या राशि में गोचर- इन राशियों पर पड़ेगा सकारात्मक प्रभाव
वृषभ राशि
वृषभ राशि के जातकों के लिए बुध दूसरे घर और पंचम भाव पर शासन करता है और अब शिक्षा, संतान और रोमांस के पांचवे घर में गोचर करेगा। आमतौर पर बुध की यह स्थिति वित्त और समग्र कल्याण के संबंध में अच्छा विकास प्रदान कर सकती है। करियर के मोर्चे पर आप उत्कृष्टता हासिल करेंगे और खुद को सर्वोच्च स्तर पर बढ़ावा देते और अपनी वरिष्ठों से प्रशंसा प्राप्त करने की स्थिति में नजर आएंगे। इस अवधि में आपको नए अवसर मिलने की संभावना प्रबल बन रही है और ऐसे अवसर आपके लिए विकास लेकर आएंगे।
आप अपनी नई नौकरी में अपनी बुद्धि को बढ़ाने की स्थिति में भी रहने वाले हैं। अगर आप व्यापार करते हैं तो इस दौरान आपको अच्छा मुनाफा प्राप्त होगा। अगर आप शेयर का बिजनेस कर रहे हैं तो आपके लिए यह भी फायदेमंद होगा और ऐसे फायदे आपको आगे चलकर नए बिज़नेस में पैर जमाने में मदद करेंगे और आप एक सफल व्यवसाई बन सकेंगे। आप अपने प्रतिस्पर्धियों के लिए चुनौती पूर्ण खतरा पैदा करने में भी इस अवधि में कामयाब रहने वाले हैं। साथ ही व्यवसाय में आरामदायक बढ़त हासिल करेंगे।
मिथुन राशि
मिथुन राशि के जातकों के लिए बुध लग्न और चतुर्थ भाव का स्वामी है और अब 23 सितंबर 2024 को आपके चतुर्थ भाव में आ जाएगा। करियर के मोर्चे पर बात करें तो आप अपनी अमिट छाप छोड़ने और अच्छे ढंग से काम करने में पूर्ण नियंत्रण प्राप्त करने की स्थिति में नजर आएंगे। आपका काम पूर्णता के साथ लोगों को समझ आएगा। आपके पास कुछ पद के अवसर आएंगे और ऐसे पद आपको हमेशा उस कम पर अपना वर्चस्व बनाएं रखने में सफल होंगे जो आप फिलहाल कर रहे हैं।
आप जो भी काम कर रहे हैं उसके लिए आपको पदोन्नति और प्रोत्साहन के रूप में उचित प्रशंसा भी प्राप्त होगी। व्यापार की बात करें तो अगर आप व्यवसाय के क्षेत्र से जुड़े हुए जातक हैं तो इस समय आपके लिए उच्च स्तर का मुनाफा कमाना काफी अनुकूल रहेगा। आप नए व्यावसायिक अवसर भी प्राप्त करेंगे और ऐसी चीज आपके जीवन में आशीर्वाद के रूप में आएंगी। रियल एस्टेट व्यवसाय करने के लिए बुध का कन्या राशि में गोचर आपके लिए शुभ साबित होगा और अगर आप ऐसा कर रहे हैं तो आप उच्च स्तर का लाभ प्राप्त करेंगे और खुद को संतुष्ट करने में कामयाब होंगे। वित्त की बात करें तो आपके जीवन में धन के प्रवाह में वृद्धि आएगी।
सिंह राशि के जातकों के लिए बुध दूसरे और 11वें घर का स्वामी है और यह अब आपके धन, परिवार और वाणी के दूसरे घर में गोचर कर जाएगा। ऐसे में सिंह राशि के जातकों को अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने और एक अच्छा जीवन जीने में मदद मिलेगी। बुध के कन्या राशि में गोचर के दौरान आप अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने में कामयाब होंगे। आप इस अवधि में धन को ज्यादा महत्व दे सकते हैं इसलिए आपका मुख्य लक्ष्य इसके लिए तैयारी करना होगा।
इस दौरान जातकों को लंबी दूरी की यात्रा पर जाना पड़ सकता है जिससे आपको काफी संतुष्ट मिलेगी। यह आपके लिए अपने पेशे में सफल होने और विजय प्राप्त करने का एक अच्छा पल साबित होगा। इस दौरान आप सहजता के साथ कार्य कुशलता और नेतृत्व कौशल दिखाने में कामयाब होंगे। आप फिलहाल जिस भी नौकरी में है यहां से आपको बार-बार यात्रा करने का सुख भी प्राप्त होगा।
कन्या राशि
कन्या राशि के जातकों के लिए बुध पहले और दसवें घर का स्वामी है और इस गोचर के दौरान आपके पहले घर में स्थित रहेगा। इस राशि के जातक उपरोक्त कारकों के चलते अपने भविष्य और सामान भलाई के बारे में चिंतित नजर आएंगे। आपकी दिनचर्या में बार-बार बदलाव नजर आ सकते हैं जो आपके विकास के लिए थोड़ा हानिकारक साबित होने वाला है।
करियर के संबंध में बात करें तुम मुमकिन है की चीज़ें उतनी अच्छी ना चल पाए और आपको अपनी नौकरी से अपेक्षित लाभ न मिल पाए। अगर आपके पर्यवेक्षक आपको अपेक्षित सराहना नहीं देते हैं तो बेहतर अवसर की तलाश में व्यवसाय बदलने का भी आप विचार कर सकते हैं। जब बुध का कन्या राशि में गोचर होगा तो कन्या राशि के कुछ जातक काम की सिलसिले में विदेश यात्रा का सुख नसीब कर सकते हैं।
धनु राशि
धनु राशि के जातकों के लिए बुध सप्तम और दशम भाव का स्वामी है और इस गोचर के दौरान आपके दसवें घर में आ जाएगा। बुध के इस गोचर के परिणाम स्वरूप धनु राशि के जातकों के जीवन में खुशियां लाने के लिए सफलता और कड़ी मेहनत की उम्मीद की जा सकती है। मुमकिन है कि इस राशि के जातक साझा मूल्यों के अनुसार अपने कर्तव्यों का पालन करते नजर आएंगे।
पेशेवर मोर्चे पर बात करें तो बुध के कन्या राशि में गोचर के दौरान रोजगार के नए अवसर खोजने के लिहाज से यह समय अनुकूल साबित होगा। आप काम से संबंधित कारणों से विदेश यात्रा कर सकते हैं। इसके अलावा आप में से कुछ लोग अपना व्यवसाय बदल सकते हैं और यह समय की भी जरूर साबित होगी।
बुध का कन्या राशि में गोचर इन राशियों पर पड़ेगा नकारात्मक प्रभाव
मेष राशि
मेष राशि के जातकों के लिए बुध तीसरे और छठे भाव का स्वामी है और इस गोचर के दौरान आपके छठे भाव में मौजूद रहेगा। उपरोक्त गोचर के दौरान मुमकिन है कि आपको अपने प्रयासों और व्यक्तिगत विकास के लिए कुछ चुनौतियां उठानी पड़े। सफल होने के लिए आपको पहले से बड़े पैमाने परियोजना तैयार करनी होगी और तैयारी के साथ कदम आगे बढ़ना होगा।
बुध का कन्या राशि में गोचर आपको अपने जीवन में अधिक अनुकूल घटनाओं को देखने के लिए आवश्यक स्वभाव नहीं दिला पाएगा। अर्थात इस दौरान खुशियां प्राप्त करने में आपको कुछ चुनौतियां उठानी पड़ सकती है। साथ ही समय के साथ आगे बढ़ने और अधिक सफलता का अनुभव करने के लिए भी आपको धैर्य और दृढ़ता बरतनी होगी। आपके भविष्य में आगे क्या होने वाला है इसके बारे में आप अधिक चिंतित नजर आ सकते हैं।
कर्क राशि
बुध तीसरे घर में स्थित है और कर्क राशि के जातकों के लिए 12वें घर का स्वामी है। आपके लिए बुध का यह गोचर थोड़े लाभ लेकर आ सकता है। आपको अपने विकास में महत्व कुछ बड़ी चुनौतियां नजर आने वाली है। इस गोचर के दौरान आपके बड़े लाभ मिलने में देरी उठानी पड़ सकती है।
अपने करियर के संदर्भ में व्यक्तियों को कार्य स्थल पर औसत परिणाम प्राप्त होंगे। आप पर नौकरी का दबाव ज्यादा नजर आएगा और आपको अपने वरिष्ठों से पर्याप्त मान सम्मान और सराहना नहीं मिलेगी। इस राशि के कुछ जातक अपने अधीनस्थों से उत्पन्न होने वाली परेशानियों से भी जूझते नजर आने वाले हैं।
मीन राशि
मीन राशि के जातकों के लिए बुध चतुर्थ और सप्तम भाव का स्वामी है और इस गोचर के दौरान आपके सप्तम भाव में ही मौजूद रहेगा। उपरोक्त के चलते आप संबंधों के प्रति ज्यादा जागरूक नजर आएंगे और अपने बातचीत में नैतिक सिद्धांतों को बनाए रखेंगे। हालांकि बुध के कन्या राशि में होने पर कुछ चिंताएं और स्वास्थ्य संबंधित समस्याएं आपके जीवन में खड़ी हो सकती है।
आपको रोजगार के मामले में अपने काम में अच्छा प्रदर्शन करने में काफी दबाव उठाना पड़ सकता है। इसके परिणाम स्वरुप काम में गलतियां होने की भी आशंका है। संभव है कि आपको उच्चतम मानकों पर खरा उतरने में कुछ परेशानियां हो या आपको अपनी स्थिति में आगे बढ़ने के लिए लक्ष्य बनाने का अवसर न मिल पाए।
भारत और दुनिया के अन्य प्रमुख क्षेत्र में पत्रकारिता और मीडिया जैसे क्षेत्रों में अवसर और लोकप्रियता में वृद्धि नजर आएगी।
पी आर, पत्रकारिता, मीडिया और अन्य प्रोफाइल को लोकप्रियता हासिल होगी और इन प्रोफाइल में शामिल लोगों को इस दौरान काफी फायदा भी होने वाला है।
बैंकिंग और फ़ाइनेंस
बैंकिंग और वित्त जैसे उद्योगों में पेशेवर जिन्हें बौद्धिक अभिव्यक्ति, संचार और गणित की आवश्यकता होती है उनकी मांग में वृद्धि देखी जा सकती है।
कन्या राशि में बुध के इस गोचर के दौरान बैंकिंग उद्योग में प्रगति नजर आएगी और आपको अधिक सफलता हासिल होगी।
शोधकर्ताओं और गणितज्ञों को भी इस गोचर से लाभ मिलेगा।
ज्योतिष एवं अनुसंधान
यह गोचर उन लोगों के लिए काफी फायदेमंद रहने वाला है जो ज्योतिष, टैरो, अंक ज्योतिष जैसे गुप्त विषयों का अध्ययन करते हैं।
विश्व स्तर पर वैज्ञानिकों और शोधकर्ताओं को इससे बहुत कुछ हासिल होगा।
साथ ही नई खोज करने और नए सिरे से अध्ययन करने में भी आपको सहायता मिलेगी।
बुध का कन्या राशि में गोचर कैसा रहेगा शेयर बाजार का हाल
बुध शेयर बाजार को नियंत्रित करता है क्योंकि यह शेयर व्यापार और धन से जुड़ा ग्रह माना गया है और शेयर बाजार का प्रदर्शन हमेशा से बुध गोचर से प्रभावित होते आया है। चलिए अब आगे बढ़ते हैं और जान लेते हैं 23 सितंबर 2024 को होने वाले बुध के गोचर का शेयर बाजार पर क्या प्रभाव पड़ेगा। अगर आप विस्तार से शेयर बाजार की रिपोर्ट पढ़ना चाहते हैं तो यहां क्लिक कर सकते हैं- शेयर बाज़ार भविष्यवाणी 2024
सितंबर में बुध का कन्या राशि में गोचर फार्मास्यूटिकल, सार्वजनिक बैंकिंग और वित्त, वनस्पति, तेल, डेयरी उत्पाद और अनुच्छेदों के व्यवसायों के लिए बेहद फायदेमंद साबित होगा।
हालांकि पिछले महीना के विपरीत ओएनजीसी, ओसी, चमड़ा उद्योग, कोयला उद्योग, वूलन मिल्स, रिलायंस इंडस्ट्रीज, टाटा पावर, परफ्यूम और कॉस्मेटिक उद्योग के क्षेत्र में मंदी नजर आएगी।
कन्या राशि में बुध का यह गोचर सूचना प्रौद्योगिकी, कंप्यूटर सॉफ्टवेयर, शिपिंग कंपनियों जैसे क्षेत्रों में मददगार साबित होगा।
बुध का कन्या राशि में गोचर आगामी खेल प्रतियोगिता
टूर्नामेंट
/खेल
तारीख
चाइना ओपन
टेनिस
28 सितंबर- 6 अक्टूबर
आईसीसी महिला टी20 क्रिकेट विश्व कप
क्रिकेट
सितंबर-अक्टूबर
शंघाई मास्टर्स
टेनिस
2- 13 अक्टूबर
सितंबर के अंत से लेकर 10 अक्टूबर 2024 तक बुध के तुला राशि में प्रवेश करने तक खेल और खिलाड़ियों के लिए यह बेहद ही अच्छा समय रहने वाला है क्योंकि बुध कन्या राशि में अपनी उच्च स्थिति में रहेगा और एक पेशे के रूप में खिलाड़ियों और खेल का समर्थन करेगा। इस दौरान आयोजित सभी टूर्नामेंट और इस दौरान इसमें भाग लेने वाले खिलाड़ी उम्मीद से बेहतर प्रदर्शन करेंगे।
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अक्सर पूछे जाने वाले सवाल
1: ज्योतिष के अनुसार वह कौन सा स्थान है जहां बुध निवास करता है या उससे संबंधित है?
खेल का मैदान
2: बुध के लिए कौन सा ग्रह शत्रु माना गया है?
मंगल और बुध शत्रु ग्रह माने जाते हैं।
3: बुध ग्रह का क्या महत्व होता है?
बुध ग्रह बुद्धि, वित्त, विश्लेषण आत्मक कौशल, व्यवहारिकता, त्वचा रोग, तांत्रिक संबंधित परेशानियों का प्रतीक माना गया है।
गुरु वक्री होकर बदलेंगे इन पांच राशियों की किस्मत, करियर और बिज़नेस में होगा मोटा मुनाफा
09 अक्टूबर, 2024 को सुबह 10 बजकर 01 मिनट पर बृहस्पति ग्रह वृषभ राशि में वक्री होंगे। गुरु इस स्थिति में 05 फरवरी तक रहने वाले हैं। नवरात्रि के शुभ संयोग में गुरु वक्री हो रहे हैं जिससे कुछ राशियों के लोगों की किस्मत खुलने वाली है।
गुरु के वक्री होने से इन राशियों की आमदनी में अपार वृद्धि देखने को मिलेगी। इन्हें अपने करियर में शानदार अवसर मिलने की संभावना है और इनके जीवन में खुशियों का आगमन होगा। इस ब्लॉग में हम आपको उन्हीं राशियों के बारे में बताने जा रहे हैं जिन्हें बृहस्पति के वक्री होने पर सकारात्मक परिणाम मिलने के संकेत हैं।
मिथुन राशि के लोगों को गुरु के वक्री होने से शुभ परिणाम प्राप्त होने की उम्मीद है। ये अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने में सफल होंगे। इन्हें नए और अच्छे प्रोजेक्ट मिलने की भी संभावना है। आपके जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होगा। नौकरीपेशा जातकों को भी बेहतरीन अवसर मिलने के आसार हैं।
यदि आपका पैसा कहीं अटका हुआ है, तो अब वह आपको मिल सकता है। आप कोई भी निर्णय लेते समय थोड़ा व्यवहारिक होकर चलें। आप इस समय आशावादी रहेंगे लेकिन तुरंत लाभ पाने की लालसा न करें। अपने काम और बिज़नेस पर फोकस करें क्योंकि इस समय आपका ध्यान भटकने की आशंका है।
बृहत् कुंडली में छिपा है, आपके जीवन का सारा राज, जानें ग्रहों की चाल का पूरा लेखा-जोखा
कर्क राशि
बृहस्पति के वक्री होने से कर्क राशि के लोगों की किस्मत बदलने वाली है। आपको अपने भाग्य का साथ मिलेगा और आप खूब तरक्की करेंगे। आपकी आय के स्रोतों के भी बढ़ने के संकेत हैं। नौकरीपेशा जातकों के लिए प्रमोशन और वेतन में वृद्धि के योग बन रहे हैं। आपकी आय के स्रोत भी बढ़ सकते हैं।
इसके अलावा आप पैसों की बचत करने में भी सक्षम होंगे और व्यापार में आपको कई गुना अधिक मुनाफा कमाने का मौका मिलेगा। आपके लिए प्रगति के नए रास्ते खुलेंगे और आपकी रणनीतियां एवं योजनाएं सफल होंगी।
आपको अपने बिज़नेस में मनचाही सफलता मिलने के योग हैं। नौकरीपेशा जातकों के लिए भी तरक्की के योग बन रहे हैं। अटका हुआ पैसा अचानक से मिल सकता है। इससे आप अपने कई रुके हुए काम पूरे कर पाएंगे। आप इस समय जल्दबाज़ी में आकर कोई भी निर्णय न लें। छात्रों को जिस विषय में दिक्कत आ रही है, वे उसमें विशेषज्ञ की सलाह ले सकते हैं।
कड़ी मेहनत से काम करें तभी आपको अधिक फायदा होगा। स्वास्थ्य को लेकर मामूली समस्याएं परेशान कर सकती हैं। इन्हें नज़रअंदाज़ करने की गलती न करें।
वृश्चिक राशि के जातकों को बृहस्पति के वक्री होने पर सभी प्रकार के भौतिक सुखों की प्राप्ति होगी। इन्हें अपने करियर में अपार सफलता मिलने के योग हैं। आपको प्रमोशन मिल सकती है और आपकी सैलरी भी बढ़ सकती है। आप अपने बिज़नेस का विस्तार करने के बारे में सोच सकते हैं। व्यापारियों को मोटा मुनाफा कमाने का मौका मिलेगा।
इस समय आप अधिक बुद्धिमान बनेंगे जिससे आपकी प्रगति के मार्ग प्रशस्त होंगे। आपके अटके हुए सारे काम पूरे होंगे। आपकी संतान को भी प्रगति मिलेगी जिससे आप काफी खुश महसूस करेंगे। हालांकि, आपके खर्चों में बढ़ोतरी होने की आशंका है लेकिन आमदनी अच्छी रहने की वजह से आप इन खर्चों को अच्छे से संभाल पाएंगे।
बृहस्पति का वक्री होना धनु राशि के जातकों के लिए भाग्यशाली साबित होगा। समाज में आपका मान-सम्मान बढ़ेगा और आपको प्रमोशन भी मिल सकता है। आपको इस समय कोई शुभ समाचार मिल सकता है जिससे आपका मन काफी खुश रहने वाला है। व्यापारियों को भी मोटा मुनाफा कमाने का मौका मिलेगा।
आपका अधिक लोगों के साथ मेलजोल रहने वाला है। इससे आपको अपने करियर में काफी मदद मिलेगी। कार्यक्षेत्र में लोग आपके काम की प्रशंसा करेंगे और आपकी लोकप्रितया में भी इज़ाफा देखने को मिलेगा।
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12 महीने बाद शुक्र की मूल त्रिकोण राशि में वापसी- चार राशियों को बनाएगी धनवान
शुक्र को वैदिक ज्योतिष में प्रेम, सुंदरता और धन का ग्रह कहा गया है। जल्द ही यह खूबसूरत ग्रह तुला राशि में प्रवेश करने वाला है। अपने आज के खास ब्लॉग के माध्यम से हम जानेंगे शुक्र के तुला राशि में होने वाले गोचर का सभी 12 राशियों के जीवन पर क्या कुछ प्रभाव पड़ने की संभावना है और साथ ही जानेंगे कि जिनके जीवन पर इसके नकारात्मक प्रभाव पड़ेंगे उन्हें इससे बचने के लिए क्या कुछ उपाय अवश्य करने चाहिए।
जैसे ही शुक्र ग्रह का तुला राशि में गोचर होता है ऐसे में जीवन में रोमांटिक अवसर बढ़ जाते हैं। प्रेम का ग्रह तुला राशि में गोचर करता है तो इस पृथ्वी पर हमारे सामाजिक संबंधों पर अतिरिक्त नियंत्रण प्राप्त होता है। अब जल्द ही शुक्र ग्रह तुला राशि में प्रवेश कर जाएगा।
तुला राशि में शुक्र मसखरे व्यवहार को दर्शाता है क्योंकि वायु राशि को फ्लर्ट करना पसंद होता है। ऐसे में हम अति उत्साही महसूस करते हैं और कई लोगों पर इस अवधि में क्रश शुरू कर सकते हैं। तुला राशि में शुक्र सुख देने वाला माना गया है और बदले में उसे भी वैसा ही चाहिए होता है। शुक्र लंबी अवधि के लिए तुला राशि में मौजूद है इसीलिए धैर्य और शांति जीवन का आवश्यक तरीका हो सकता है। इस ज्योतिषीय गोचर के दौरान धन बचाना कठिन हो सकता है क्योंकि तुला राशि में शुक्र अपनी स्थिति का दिखावा करना पसंद करता है।
वैदिक ज्योतिष के अनुसार शुक्र को स्त्री ग्रह और सुंदरता का सूचक माना जाता है। अब यही शुक्र ग्रह 18 सितंबर 2024 को 13:42 पर तुला राशि में गोचर करने जा रहा है।
इस ज्योतिषीय गोचर के दौरान जीवन में कई जादू और अनोखी चीज होने की संभावना बढ़ जाएगी। व्यक्ति प्यार, पैसा और जो कुछ भी हमारा दिल चाहता है उसमें आशाजनक परिणाम प्राप्त कर सकते हैं। आपके जीवन पर शुक्र के इस गोचर का क्या प्रभाव पड़ेगा यह जानने के लिए पढ़ें हमारा यह खास ब्लॉग साथ ही यहां आपको पता चलेगा कि आप किस प्रकार आध्यात्मिक रूप से खुद को मजबूत कर सकते हैं या जिस चीज की आप इच्छा रखते हैं उसे जीवन में प्राप्त कर सकते हैं, सवाल उठता है कैसे तो इसका जवाब है मेनिफेस्टेशन के माध्यम से।
बृहत् कुंडली में छिपा है, आपके जीवन का सारा राज, जानें ग्रहों की चाल का पूरा लेखा-जोखा
क्या है मेनिफेस्टेशन?
मेनिफेस्टेशन अपनी इच्छाओं को अस्तित्व में लाने की कला है। कुछ आध्यात्मिक वादी प्रतिज्ञा, मोमबत्ती, जादू या दर्पण दर्शन का उपयोग करते हैं जबकि अन्य स्क्रिप्टिंग, विजन बोर्ड, टैरो या ध्यान का उपयोग करके मेनिफेस्ट करते हैं। आपके दृष्टिकोण के बावजूद मेनिफेस्टेशन का लक्ष्य एक ही है अपनी महसूस की गई इच्छाओं को भौतिक, मूर्त वास्तविकता में साकार करना।
आप अपनी इच्छाओं को मेनिफेस्ट करने के लिए ज्योतिष का उपयोग कैसे कर सकते हैं?
किसी भी ग्रह के गोचर के साथ हमारी अभिव्यक्तियों को संरक्षित करने, अधिक तेज, सटीक और धन्य, परम परिणाम प्राप्त किया जा सकते हैं। अब बात हो चाहे जीवन में रोमांस मेनिफेस्ट करने की, फ्रेम मेनिफेस्ट करने की, या कुछ भी। प्रेम का ग्रह शुक्र जब गोचर कर रहा होता है या जब शुक्र उच्च राशि में स्थित होता है तो उत्कृष्ट परिणाम प्रदान करता है तो हमें कम तनाव और अधिक सहजता के साथ रिश्ते का आशीर्वाद देता है।
ज्योतिष के अनुरूप अपनी इच्छाओं को प्रकट करने के लिए या मेनिफेस्ट करने के लिए आपको गोचर पर नजर रखने की आवश्यकता होती है। इसके बाद शुभ समय के दौरान आप मेनिफेस्ट कर सकते हैं। ज्योतिष के जानकार मानते हैं कि शुक्र गोचर की अवधि मेनिफेस्टेशन के लिए शानदार रहती है।
कैसे या क्या मेनिफेस्टो करना चाहिए?
तुला राशि में शुक्र के दौरान अभिव्यक्ति आसानी से होती है। शुक्र इच्छाओं का ग्रह कहा जाता है। ऐसे में हमें बस अपने प्रयासों पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता रहती है। जैसा कि आपने अक्सर सुना होगा कि यदि आपने अभिव्यक्ति पर शोध किया है तो इरादा ही सब कुछ होता है। अर्थात अगर अपने मेनिफेस्ट कर लिया है तो आप की सोच ही उसे पूरा करने में सबसे सहायक साबित होती है।
इसके साथ ही सटीक अनुष्ठान, अभ्यास या विवरण के ऊपर भी नतीजा निर्भर करता है। सबसे महत्वपूर्ण बात यह होती है कि आप भावनाओं को समझें और अपने शरीर में उन भावनाओं का अनुभव करें जो आपको उन इच्छाओं के साथ ऊर्जावान रूप से संरक्षित करने की अनुमति देता है जिन पर आप ध्यान केंद्रित कर रहे हैं।
रिश्ते की सफलता को मेनिफेस्टो करना- जैसे ही शुक्र गोचर करता है तुला राशि रिश्ते की सफलता को मेनिफेस्ट करती है। सिंगल जातक आसानी से आदर्श प्रेमी को मेनिफेस्ट कर सकते हैं या फिर दिल टूटने की अवधि से उबर सकते हैं। वहीं जो लोग किसी से प्यार करते हैं वह अपने रिश्ते को और भी मजबूत करने या अपने जीवन में और अधिक रोमांस लाने के लिए मेनिफेस्टेशन का प्रयोग कर सकते हैं।
हालांकि आपको जान का आश्चर्य होगा कि शुक्र का जादू केवल रोमांटिक रिश्तों तक की सीमित नहीं होता है। मित्रता और समुदाय का मेनिफेस्टेशन करना हो, समग्र रूप से अपने सामाजिक दायरे को मजबूत बनाना हो तो इसके लिए भी शुक्र गोचर अनुकूल रहता है। अपने सपनों को पूरा करने के लिए सही व्यावसायिक साझेदारों, ग्राहकों और नेटवर्किंग कनेक्शन को भी मेनिफेस्ट कर सकते हैं।
जीवन में प्रचुरता या धन मेनिफेस्ट करना- शुक्र को प्रेम का ग्रह कहा जाता है। हालांकि कई बार लोग ये बात भूल जाते हैं कि शुक्र की शक्तियां रोमांस और दोस्तों से भी आगे तक फैली हुई है। आकर्षण ग्रह सभी वांशनीय चीजों पर शासन करता है जिसमें बढ़े हुए संसाधन, संपत्ति और धन शामिल होते हैं। इसीलिए क्योंकि शुक्र तुला राशि में अपने घर में मौजूद होता है यह भौतिक रूप से आप जो भी चाहते हैं उसे और अधिक प्राप्त करने के लिए एक शानदार समय साबित हो सकता है।
नए प्रेम को आकर्षित करें- नए प्यार को आकर्षित करने के लिए भी आप इस समय मेनिफेस्ट कर सकते हैं। शुक्र के तुला राशि में गोचर की अवधि के दौरान मेनिफेस्टेशन अवश्य करें।
टूटे दिल के दर्द से उबरने के लिए मेनिफेस्टेशन- तुला राशि में शुक्र टूटे हुए दिल को ठीक करने का भी एक आदर्श समय साबित हो सकता है। आप अपनी आत्मा में कायाकल्प लेकर आ सकते हैं। आप दृढ़ इरादे के साथ इस ब्रह्मांडिय घटना के तहत वर्तमान में या भविष्य में प्यार को फिर से आने देने के विचार का मेनिफेस्टेशन कर सकते हैं।
अपने रिश्ते को मेनिफेस्टो करने वाले अनुष्ठान अवश्य करें। शुक्र का तुला राशि में गोचर मौजूद रिश्ते को मजबूत करने और अधिक गहरी प्रतिबद्धता और अंतरंगता को बढ़ाने के लिए एक आदर्श समय साबित हो सकता है।
आइये अब आगे बढ़ते है और जान लेते हैं तुला राशि में शुक्र का गोचर सभी 12 राशियों को किस तरह से प्रभावित करेगा साथ ही जानेंगे इसके नकारात्मक प्रभावों से बचने के लिए इस अवधि में क्या कुछ उपाय किए जा सकते हैं।
शुक्र का तुला राशि में गोचर- राशि अनुसार प्रभाव और उपाय
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अक्सर पूछे जाने वाले सवाल
1: शुक्र का तुला राशि में गोचर कब होगा?
वैदिक ज्योतिष के अनुसार शुक्र को स्त्री ग्रह और सुंदरता का सूचक माना जाता है। अब यही शुक्र ग्रह 18 सितंबर 2024 को 13:42 पर तुला राशि में गोचर करने जा रहा है।
2: शुक्र किसका कारक है?
ज्योतिष में शुक्र ग्रह को प्रेम, सुख-सुविधाओं और विलासिता आदि का कारक माना गया है।
3: शुक्र का गोचर तुला राशि के जातकों को किस तरह से प्रभावित करेगा?
शुक्र का तुला राशि में गोचर आपको अधिक धैर्य रखने की आवश्यकता को दर्शायेगा क्योंकि जीवन में शांति और सद्भावना बनाए रखना आपके लिए अति आवश्यक रहने वाला है।
शुक्र बनाएंगे केंद्र त्रिकोण राजयोग, इन राशियों की चमकेगी किस्मत, प्रमोशन के साथ वेतन वृद्धि के योग
वैदिक ज्योतिष के अनुसार ग्रह समय-समय पर राशि परिवर्तन करके अपनी उच्च या स्वराशि में गोचर करते हैं और उनके इस गोचर के दौरान शुभ योग एवं राजयोग का निर्माण होता है। ग्रहों के इन शुभ योगों के निर्माण से मानव जीवन पर गहरा प्रभाव देखने को मिलता है। 18 सितंबर को दोपहर 01 बजकर 42 मिनट पर शुक्र अपनी स्वराशि तुला में गोचर करने जा रहे हैं।
शुक्र के तुला राशि में आने से केंद्र त्रिकोण राजयोग और मालव्य योग बन रहा है। शुक्र के स्वराशि यानी वृषभ और तुला में गोचर करने पर मालव्य योग बनता है। केंद्र त्रिकोण राजयोग बनने से सभी राशियों को फायदा होगा लेकिन तीन राशियां ऐसी हैं जिनकी दुनिया की बदल जाएगी। इन लोगों को खूब धन कमाने का मौका मिलेगा और तरक्की इनके कदम चूमेगी।
तो चलिए आगे बढ़ते हैं और जानते हैं कि शुक्र के तुला राशि में प्रवेश करने पर बन रहे केंद्र त्रिकोण राजयोग से किन तीन राशियों का भाग्योदय होने वाला है।
इस राशि के लग्न भाव में ही शुक्र का गोचर होगा इसलिए मालव्य योग और केंद्र त्रिकोण राजयोग आपके लिए बहुत फलदायी सिद्ध होगा। आपने जो योजनाएं बना रखी हैं, उसमें आपको सफलता मिलेगी। आपके व्यक्तित्व में निखार देखने को मिलेगा। करियर में भी आपको तरक्की मिलने के संकेत हैं।
नौकरीपेशा जातकों को अपने कार्यक्षेत्र में शानदार अवसर प्राप्त होंगे। अटका हुआ पैसा अचानक से वापस मिल सकता है। इससे आपकी आर्थिक स्थिति में सुधार आएगा। वैवाहिक जीवन के लिए भी अनुकूल समय है। पति-पत्नी के बीच प्यार बढ़ेगा और सुख-शांति बनी रहेगी। आपके जीवनसाथी को तरक्की मिलने के आसार हैं। वहीं सिंगल जातकों को अपने सपनों का साथी मिल सकता है।
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मकर राशि
शुक्र ग्रह मकर राशि के करियर और व्यापार के भाव में संचरण कर रहे हैं इसलिए केंद्र त्रिकोण राजयोग और मालव्य योग इस राशि के जातकों के लिए अच्छा रहने वाला है। आपकी आमदनी के स्रोतों में वृद्धि देखने को मिलेगी। इससे आपकी आर्थिक स्थिति में सुधार आएगा। नौकरीपेशा जातकों को तरक्की मिलने की प्रबल संभावना है।
आप पैसों की बचत कर पाने में भी सफल होंगे। विवाहित जातकों का जीवन खुशहाल रहेगा। पति-पत्नी के बीच आपसी तालमेल अच्छा रहने वाला है। व्यापारियों को मोटा मुनाफा कमाने का मौका मिलेगा और आप अपने क्षेत्र में अग्रणी रहेंगे। बेरोज़गार लोगों का मनचाही नौकरी मिल सकती है। नौकरी करने वाले लोगों का मनचाही जगह पर ट्रांसफर हो सकता है।
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कुंभ राशि के नौवें भाव में शुक्र ग्रह संचरण करने जा रहे हैं। यह समय आपके लिए बहुत ही शुभ रहने वाला है। आपको अपने जीवन के हर क्षेत्र में अपने भाग्य का साथ मिलेगा। नौकरीपेशा जातकों के लिए प्रमोशन और तरक्की के योग बन रहे हैं। व्यापारियों को मनचाही सफलता प्राप्त होगी। आपको अचानक से कहीं से अटका हुआ पैसा वापस मिल सकता है। इससे आप अपनी कई ज़रूरतों को पूरा कर पाएंगे।
आपकी आमदनी में वृद्धि देखने को मिलेगी जिससे आप अपनी जरूरतों को पूरा करने में सक्षम हो पाएंगे। आपके भौतिक सुखों में वृद्धि देखने को मिलेगी। करियर में अचानक से सफलता मिलने के संकेत हैं। आपके वेतन में भी बढ़ोतरी हो सकती है। आपको देश या विदेश की यात्रा पर जाने का सुख मिल सकता है। छात्रों को प्रतियोगी परीक्षा में सफलता मिलने के योग हैं।
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पितृ दोष से छुटकारा पाने के लिए भाद्रपद पूर्णिमा पर जरूर करें ये उपाय, सुख-समृद्धि की होगी प्राप्ति!
सनातन धर्म में भाद्रपद माह का विशेष महत्व है। इस माह को भादो के नाम से भी जाना जाता है। हिंदू कैलेंडर का छठा महीना है, जो आमतौर पर अगस्त-सितंबर में पड़ता है। यह विभिन्न धार्मिक अनुष्ठानों और त्योहारों के लिए महत्वपूर्ण है। इस महीने में पितृ पक्ष की शुरुआत भी होती है। इस माह के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को भाद्रपद पूर्णिमा व्रत रखा जाता है और इस दिन स्नान करके दान पुण्य करते हैं। इसके अलावा, व्रत रखकर रात के समय में चंद्र देव की पूजा करके अर्घ्य देते हैं। माना जाता है कि ऐसा करने से कुंडली में चंद्रमा की स्थिति मजबूत होती है और चंद्र दोष से भी छुटकारा पाया जा सकता है। इस दिन लोग सत्यनारायण भगवान की भी पूजा करते हैं और कथा का आयोजन करते हैं। इससे घर में सुख और समृद्धि आती है।
तो चलिए आगे बढ़ते हैं और जानते हैं भाद्रपद पूर्णिमा का व्रत इस साल कब रखा जाएगा, भाद्रपद पूर्णिमा का स्नान और दान किस दिन होगा? भाद्रपद पूर्णिमा की सही तिथि क्या है? आदि के बारे में इस ब्लॉग में चर्चा करेंगे।
भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को भाद्रपद पूर्णिमा व्रत रखा जाता है और यह तिथि इस साल 18 सितंबर 2024 बुधवार के दिन पड़ रही है।
पूर्णिमा तिथि प्रारंभ: 17 सितंबर 2024 की रात 11 बजकर 46 मिनट से
पूर्णिमा तिथि समाप्त: 18 सितंबर 2024 की रात 8 बजकर 06 मिनट तक।
शुभ मुहूर्त:
चंद्रोदय: 18 सितंबर 2024, शाम 7:08 बजे
पूर्णिमा व्रत पारण: 19 सितंबर 2024 की सुबह 6 बजकर 12 मिनट से 8 बजर 06 मिनट तक।
भाद्रपद पूर्णिमा का महत्व
भाद्रपद पूर्णिमा व्रत का सनातन धर्म में बहुत अधिक धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व है। भाद्रपद माह की पूर्णिमा तिथि पर किए जाने वाले इस व्रत को विशेष रूप से पितरों की शांति और उनके उद्धार के लिए बहुत अधिक महत्वपूर्ण माना जाता है। इसे पितृपक्ष की शुरुआत का संकेत भी माना जाता है। भाद्रपद पूर्णिमा के दिन व्रत करने से पितरों का आशीर्वाद प्राप्त होता है, जिससे परिवार में सुख, शांति और समृद्धि बनी रहती है। इस दिन पितरों को जल चढ़ाकर उनका तर्पण किया जाता है, जिसे पितृ तर्पण कहा जाता है। हिंदू धर्म में ऐसी मान्यता है कि इस दिन तर्पण के माध्यम से पितरों की आत्मा को शांति मिलती है और वे संतुष्ट होकर अपने वंशजों को आशीर्वाद प्रदान करते हैं। इस व्रत को करने से व्यक्ति सभी पापों से मुक्ति पाता है और उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है।
इसके अलावा, भाद्रपद पूर्णिमा को चंद्रमा की विशेष पूजा की जाती है। पूर्णिमा का चंद्रमा शांति, समृद्धि और स्थिरता का प्रतीक माना जाता है। इस दिन चंद्रमा को अर्घ्य देकर, उसकी पूजा करने से मानसिक शांति प्राप्त होती है और व्यक्ति की सुख-समृद्धि में वृद्धि होती है। भाद्रपद पूर्णिमा का व्रत न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह व्यक्ति के जीवन में सामाजिक और आध्यात्मिक संतुलन बनाए रखने में भी सहायक होता है। व्रत के माध्यम से व्यक्ति न केवल अपने पितरों को श्रद्धांजलि देता है, बल्कि अपने जीवन में संयम, धैर्य, और पुण्य के मार्ग पर चलने की प्रेरणा भी मिलती है।
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भाद्रपद पूर्णिमा व्रत में इस विधि से करें पूजा
भाद्रपद पूर्णिमा की पूजा विधि बहुत अधिक सरल और महत्वपूर्ण है, जिसे पूरी श्रद्धा और विधि-विधान से करना चाहिए। इस दिन की पूजा विशेष रूप से पितरों की शांति, भगवान विष्णु, और चंद्रदेव को समर्पित होती है। तो आइए जानते हैं पूजा विधि के बारे में…
भाद्रपद पूर्णिमा के दिन पूजा के लिए सबसे पहले प्रातःकाल स्नान करके शुद्ध वस्त्र धारण करें।
इसके बाद घर के पूजा स्थल सफाई करें और उसे अच्छे से सजाएं।
इस दिन भगवान विष्णु और चंद्रदेव की पूजा के लिए पुष्प, धूप, दीप, फल, मिठाई, और जल का प्रबंध करें। तर्पण के लिए तिल, जल, दूध, और कुशा घास लेकर एकत्र करें।
पूजा करने के लिए सबसे पहले भगवान विष्णु की पूजा से शुरुआत करें। उनके चरणों में पुष्प, धूप, दीप, और नैवेद्य अर्पित करें। इसके बाद विष्णु सहस्रनाम या विष्णु स्तोत्र का पाठ करें।
इस दिन पितरों का निमित्त तर्पण अवश्य करें। इसके लिए एक साफ बर्तन में जल, दूध, और तिल मिलाएं और कुशा घास के माध्यम से पितरों को जल अर्पित करें। इस दौरान पितरों का ध्यान करते हुए तर्पण मंत्र का उच्चारण करें। ऐसा करने से पितरों की आत्मा की शांति प्राप्त होती है।
शाम के समय चंद्रदेव की पूजा करें। एक साफ थाली में पुष्प, धूप, दीप, और मिठाई रखें। चंद्रमा को अर्घ्य देने के लिए एक बर्तन में शुद्ध जल लें और उसमें चावल और फूल डालें। इस जल को चंद्रमा की ओर मुख करके अर्घ्य दें। चंद्रदेव से मानसिक शांति और जीवन में स्थिरता की कामना करें।
इस दिन व्रत रखें और केवल फलाहार करें। व्रत के बाद, ब्राह्मणों या जरूरतमंदों को अन्न, वस्त्र, और धन का दान करें।
अंत में विष्णु और चंद्रदेव की आरती करें और प्रसाद का वितरण करें। प्रसाद ग्रहण करने के बाद मुहूर्त पर व्रत पारण करें।
भाद्रपद पूर्णिमा के दिन कई मंत्रों का जाप किया जाता है, जिनमें से कुछ मंत्र इस प्रकार है:
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नमः
ॐ यं श्रीं लक्ष्मीं नमः
ॐ चन्द्राय नमः
ॐ पूर्णमादस्याय नमः
इन मंत्रों के अलावा, आप अपने इष्ट देवता के मंत्रों का भी जाप कर सकते हैं।
भाद्रपद पूर्णिमा व्रत में जरूर पढ़ें ये कथा
भाद्रपद पूर्णिमा व्रत की कथा हिंदू धर्म में अत्यधिक महत्व रखती है। पौराणिक कथा के अनुसार, एक ब्राह्मण और उसकी पत्नी अपने पुत्र के साथ रहते थे। वे धार्मिक और पुण्य कर्मों में विश्वास रखते थे, परंतु उनके घर में हमेशा दरिद्रता का वास रहता था। ब्राह्मण के पुत्र ने जब युवा अवस्था में कदम रखा, तो उसने अपने माता-पिता से पूछा कि उनके घर में दरिद्रता का कारण क्या है।
ब्राह्मण ने बताया कि यह पितरों का श्राप है। उन्होंने बताया कि उनके पूर्वजों ने अपने जीवन में कुछ ऐसे कार्य किए थे, जिससे पितृ दोष उत्पन्न हुआ और उनका आशीर्वाद प्राप्त नहीं हो रहा। पुत्र ने पूछा कि इस दोष से मुक्ति का उपाय क्या है। ब्राह्मण ने कहा कि, भाद्रपद पूर्णिमा के दिन पितरों का तर्पण और पूजा करनी चाहिए। इस व्रत को श्रद्धा और भक्ति के साथ करने से पितृ दोष समाप्त हो जाता है और पितरों की आत्मा को शांति मिलती है। जब पितृ प्रसन्न होते हैं, तो वे अपने वंशजों को आशीर्वाद देते हैं, जिससे जीवन में सुख-समृद्धि का आगमन होता है।
पुत्र ने अपने माता-पिता के कहने पर भाद्रपद पूर्णिमा का व्रत रखा। उसने पूर्ण श्रद्धा और पूरे विधि-विधान से पितरों का तर्पण किया और उनके निमित्त दान-पुण्य भी किया। व्रत के प्रभाव से पितृ प्रसन्न हुए और उन्होंने अपने वंशजों को आशीर्वाद दिया। इसके बाद, ब्राह्मण के घर में दरिद्रता समाप्त हो गई और वहां सुख-शांति और समृद्धि का वास हो गया। इसलिए भाद्रपद पूर्णिमा के व्रत का महत्व तब से बहुत अधिक बढ़ गया। इस व्रत को रखने से पितृ दोष से मुक्ति मिलती है और पितरों का आशीर्वाद प्राप्त होता है। इस व्रत को श्रद्धा और भक्ति से करने पर जीवन के सभी कष्टों का निवारण होता है और घर में सुख-समृद्धि बनी रहती है।
भाद्रपद पूर्णिमा के दिन कुछ विशेष उपाय करने से जीवन में सुख-समृद्धि, शांति और पितरों की कृपा प्राप्त होती है। तो आइए जानते हैं इन उपायों के बारे में…
पितृ दोष से मुक्ति पाने के लिए
भाद्रपद पूर्णिमा के दिन पितरों के लिए तर्पण करना अत्यंत शुभ माना जाता है। एक साफ बर्तन में जल, तिल, और कुशा मिलाकर पितरों को अर्पित करें। पितरों का ध्यान करते हुए उनसे आशीर्वाद प्राप्त करने की प्रार्थना करें। इस उपाय को करने से पितृ दोष से मुक्ति मिलती है और पितरों की आत्मा को शांति प्रदान प्राप्त होती है।
सुख-समृद्धि के लिए
इस दिन दान करने का विशेष महत्व है। किसी ब्राह्मण या जरूरतमंद व्यक्ति को अन्न, वस्त्र, और धन का दान करें। इसके अलावा, गोदान और भूमि का दान भी अत्यधिक फलदायी माना जाता है। दान करने से पितरों की कृपा प्राप्त होती है और जीवन में सुख-समृद्धि का वास होता है।
धन में वृद्धि के लिए
भगवान विष्णु की पूजा करना भी इस दिन अत्यंत लाभकारी होता है। विष्णु सहस्रनाम या विष्णु स्तोत्र का पाठ करें और भगवान विष्णु को पुष्प, धूप, और नैवेद्य अर्पित करें। इससे जीवन में शांति, स्थिरता, और धन की वृद्धि होती है।
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जीवन में उतार-चढ़ाव दूर करने के लिए
भाद्रपद पूर्णिमा के दिन शाम को चंद्र देव की पूजा करें। उन्हें शुद्ध जल से अर्घ्य दें और मिठाई का भोग लगाएं। चंद्रदेव से मानसिक शांति, सुख, और समृद्धि की प्रार्थना करें। इस उपाय से मन को शांति मिलती है और जीवन के उतार-चढ़ाव में स्थिरता आती है।
पुण्य प्राप्ति के लिए
इस दिन उपवास रखने का विशेष महत्व है। यदि संभव हो, तो केवल फलाहार करें और पूरे दिन भगवान का ध्यान करें। व्रत के दौरान संयमित आचरण और विचारों को शुद्ध रखें। यह व्रत पापों का नाश करता है और जीवन में पुण्य की प्राप्ति करता है।
मानसिक शांति प्राप्त करने के लिए
इस दिन विशेष रूप से ध्यान और साधना करें। सुबह-शाम ध्यान करने से मानसिक शांति प्राप्त होती है और आत्मिक उन्नति होती है। साधना के दौरान अपने पितरों का ध्यान करें और उनसे मार्गदर्शन की प्रार्थना करें।
इसी आशा के साथ कि, आपको यह लेख भी पसंद आया होगा एस्ट्रोसेज के साथ बने रहने के लिए हम आपका बहुत-बहुत धन्यवाद करते हैं।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न
1. साल 2024 में कब रखा जाएगा भाद्रपद पूर्णिमा का व्रत?
भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को भाद्रपद पूर्णिमा व्रत रखा जाता है और यह तिथि इस साल 18 सितंबर 2024 बुधवार के दिन पड़ रही है।
2. भाद्रपद पूर्णिमा का क्या महत्व है?
भाद्रपद माह की पूर्णिमा तिथि पर किए जाने वाले इस व्रत को विशेष रूप से पितरों की शांति और उनके उद्धार के लिए बहुत अधिक महत्वपूर्ण माना जाता है।
3. भाद्रपद पूर्णिमा को क्या दान करना चाहिए?
भाद्रपद पूर्णिमा को स्नान के बाद सफेद वस्त्र, शक्कर, चांदी, खीर और सफेद फूल या मोती का दान कर सकते हैं।
4. भाद्रपद पूर्णिमा क्यों मनाई जाती है?
भाद्रपद पूर्णिमा के दिन व्रत करने से पितरों का आशीर्वाद प्राप्त होता है, जिससे परिवार में सुख, शांति और समृद्धि बनी रहती है।
इस दिन से शुरू हो रहा है पितृपक्ष 2024- जानें महत्व और किस तिथि को किया जाएगा किसका श्राद्ध!
पितृपक्ष यानि पितरों को समर्पित एक ऐसी अवधि जब सनातन धर्म में विश्वास करने वाले लोग पितरों की आत्मा की शांति के लिए विशेष पूजा-पाठ, कर्मकांड आदि करते हैं। हिंदू धर्म में श्राद्ध पक्ष का विशेष महत्व बताया गया है। कहा जाता है कि, इस दौरान हमारे पूर्वज धरती पर आते हैं। ऐसे में उनके प्रति अगर नियमित रूप से श्राद्ध और पिंडदान आदि किया जाए तो उनकी आत्मा को शांति मिलती है, उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है और वह हमारे जीवन में सुख सुविधा का आशीर्वाद देकर जाते हैं।
अपने इस विशेष ब्लॉग में आज हम जानेंगे वर्ष 2024 में पितृपक्ष की यह अवधि कब से शुरू होने वाली है, इसका महत्व क्या है, और आपको अपने पितरों के अनुसार किस दिन उनका श्राद्ध करना चाहिए।
सबसे पहले बात करें वर्ष 2024 में पितृपक्ष कब से है तो दरअसल पितृपक्ष की शुरुआत हर साल भाद्रपद माह की पूर्णिमा तिथि से लेकर अमावस्या तक रहती है। इस वर्ष 17 सितंबर 2024 के पितृपक्ष आरंभ हो रहे हैं और 2 अक्टूबर 2024 तक पितृपक्ष रहेंगे। यानी कि इस वर्ष कुल 16 तिथियां पड़ने वाली है।
17 सितंबर 2024, मंगलवार- पूर्णिमा का श्राद्ध
18 सितंबर 2024, बुधवार- प्रतिपदा का श्राद्ध
19 सितंबर 2024, गुरुवार- द्वितीय का श्राद्ध
20 सितंबर 2024, शुक्रवार तृतीया का श्राद्ध-
21 सितंबर 2024, शनिवार- चतुर्थी का श्राद्ध
21 सितंबर 2024, शनिवार महा भरणी श्राद्ध
22 सितंबर 2014, रविवार- पंचमी का श्राद्ध
23 सितंबर 2024, सोमवार- षष्ठी का श्राद्ध
23 सितंबर 2024, सोमवार- सप्तमी का श्राद्ध
24 सितंबर 2024, मंगलवार- अष्टमी का श्राद्ध
25 सितंबर 2024, बुधवार- नवमी का श्राद्ध
26 सितंबर 2024, गुरुवार- दशमी का श्राद्ध
27 सितंबर 2024, शुक्रवार- एकादशी का श्राद्ध
29 सितंबर 2024, रविवार- द्वादशी का श्राद्ध
29 सितंबर 2024, रविवार- माघ श्रद्धा
30 सितंबर 2024, सोमवार- त्रयोदशी श्राद्ध
1 अक्टूबर 2024, मंगलवार- चतुर्दशी का श्राद्ध
2 अक्टूबर 2024, बुधवार- सर्वपितृ अमावस्या
कब और कैसे करें श्राद्ध कर्म?
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार कहा जाता है कि सुबह और शाम के समय देवी देवताओं की पूजा पाठ की जाती है और दोपहर का समय पितरों को समर्पित होता है। ऐसे में दोपहर 12:00 के बाद आप श्राद्ध कर्म करें तो इससे आपको अनुरूप फल प्राप्त होंगे। इसके अलावा दिन में कुतुप और रोहिणी मुहूर्त पूजा या फिर श्राद्ध कर्म के लिए सबसे शुभ मान जाते हैं। इस दौरान सुबह उठने के बाद स्नान आदि करें, फिर अपने पितरों का तर्पण करें। श्राद्ध के दिन का विशेष रूप से कौवों, चीटियों, गायों, देवताओं, कुत्तों और पंचबली को भोग अवश्य लगाएँ और अंत में किसी ब्राह्मण को भोजन कराएं।
पितृपक्ष से जुड़ी कुछ अनोखी परंपराएं और उनके कारण
श्राद्ध कर्म करते समय पितरों का तर्पण जब भी किया जाता है तो उन्हें अंगूठे के माध्यम से जलांजलि दी जाती है। महाभारत और अग्नि पुराण के अनुसार अंगूठे से अपने पितरों को जल देने से उनकी आत्मा को शांति मिलती है। ग्रंथ में बताया गया है की हथेली के जिस हिस्से पर अंगूठा होता है वह हिस्सा पितृ तीर्थ कहलाता है। ऐसे में जब अंगूठे से जल चढ़ाया जाता है तो यह जल सीधे पिंडों तक पहुंच जाता है। पितृ तीर्थ से होता हुआ जल जब अंगूठे के माध्यम से पिंडों तक पहुंचता है तो पितृ पूर्ण रूप से तृप्त हो जाते हैं।
इसके अलावा हिंदू धर्म में कुशा घास को बहुत पवित्र माना गया है। कई सारे पूजा पाठ में इस घास को उपयोग में भी लाया जाता है। कुशा घास को अनामिका उंगली में धारण करने की परंपरा है। कहा जाता है कि कुशा के अग्रभाग में ब्रह्मा, मध्य में विष्णु और मूल भाग में भगवान शंकर रहते हैं। श्राद्ध कर्म में कुश की अंगूठी धारण करने से व्यक्ति पवित्र हो जाता है और अपने पितरों की शांति के लिए श्राद्ध कर्म और पिंडदान करता है जो ज्यादा फलित होते हैं।
यह भी जानने योग्य है: महाभारत के अनुसार जब गरुड़ के स्वर्ग से अमृत कलश लेकर आए थे तो उन्होंने यह कलश थोड़ी देर के लिए ही लेकिन कुश पर रख दिया था। कुशा पर अमृत कलश रखे जाने से कुशा को पवित्र माना जाने लगा है।
श्राद्ध कर्म से जुड़ी तीसरी प्रथा के अनुसार कहा जाता है कि इसमें ब्राह्मण को भोजन अवश्य करवाना होता है। ऐसी मान्यता है कि ब्राह्मणों को भोजन करवाए बिना श्राद्ध कर्म अधूरा होता है। धार्मिक ग्रंथो के अनुसार ब्राह्मण के साथ वायु रूप में पितृ भी भोजन करते हैं और यही वजह है कि इस दौरान पितरों को भोजन करवाया जाता है क्योंकि ऐसा मानते हैं कि यह भोजन फिर सीधे पितरों तक पहुंचता है। विद्वान ब्राह्मण को पूरे सम्मान और श्रद्धा के साथ भोजन करने से पितृ भी तृप्त होकर सुख समृद्धि का आशीर्वाद देते हैं।
इस बात का भी रखें ध्यान: भोजन करवाने के बाद ब्राह्मणों को घर के द्वारा तक पूरे सम्मान के साथ विदा किया जाता है क्योंकि ऐसा माना जाता है कि ब्राह्मणों के साथ ही पितृ भी चले जाते हैं।
चौथी परंपरा के अनुसार कौवों का इस दिन पर विशेष महत्व होता है। कौवें इस बात का प्रतीक है जो दिशाओं का फलित बताता है इसीलिए श्राद्ध का एक अंशु को भी दिया जाता है। मान्यता है कि कौवों को पितरों का स्वरूप माना गया है। ऐसे में श्राद्ध का भजन कौवों को खिलाया जाए तो पितृ देव प्रसन्न होते हैं और श्राद्ध करने वाले को आशीर्वाद देते हैं।
श्राद्ध के भोजन का एक अंश गाय को भी दिया जाता है क्योंकि धार्मिक ग्रंथो में गाय को वैतरणी से पार लगाने वाले कहा गया है। गाय में सभी देवी देवताओं का भी निवास होता है। गाय को भोजन देने से सभी देवता तृप्त होते हैं इसलिए श्राद्ध का भोजन गाय को भी अवश्य देना चाहिए।
इसके अलावा कुत्ता यम का पशु माना गया है। ऐसे में श्राद्ध का एक अंश जब कुत्ते को डाला जाता है तो इससे यमराज प्रसन्न होते हैं।
बृहत् कुंडली में छिपा है, आपके जीवन का सारा राज, जानें ग्रहों की चाल का पूरा लेखा-जोखा
घर पर कैसे करें श्राद्ध
श्राद्ध तिथि पर सूर्योदय से दिन के 12:24 की अवधि के बीच श्राद्ध करें।
इसके लिए सुबह उठकर स्नान कर लें, घर की साफ-सफाई करें, घर में गंगाजल और गोमूत्र छिड़कें।
दक्षिण दिशा में मुंह रखकर बाएँ पैर को मोड़कर बाएँ घुटनों को जमीन पर टिका कर बैठ जाएँ।
इसके बाद तांबे के चौड़े बर्तन में काले तिल, गाय का कच्चा दूध, गंगाजल पानी डाल दें।
उस जल को दोनों हाथों में भरकर सीधे हाथ के अंगूठे से उसी बर्तन में गिराएँ। इस तरह 11 बार करते हुए अपने पितरों का तर्पण करनें।
घर में रंगोली बनाएं।
महिलाएं शुद्ध होकर पितरों के लिए भोजन तैयार करें।
श्राद्ध करने वाले व्यक्ति इस बात का विशेष ध्यान रखें कि इस दिन आप श्रेष्ठ ब्राह्मण को घर पर अवश्य बुलाएँ, ब्राह्मण को भोजन कराएं और ब्राह्मण के पैर धोएँ। ऐसा करते समय पत्नी को दाहिनी तरफ होना चाहिए।
पितरों के निमित्त अग्नि में गाय के दूध से बनी खीर अवश्य अर्पित करें।
ब्राह्मण को भोजन करने से पहले पंचबली यानी गाय, कुत्ते, कौवे, देवता और चींटी के लिए भोजन अवश्य निकालें।
दक्षिण दिशा में मुंह रखकर कुश, जौ, तिल, चावल और जल लेकर संकल्प करें और फिर एक या तीन ब्राह्मणों को भोजन कराएं।
भोजन के बाद उन्हें भूमि, तिल, स्वर्ण, घी, वस्त्र, अनाज, गुड, चांदी या फिर नमक का दान करें।
ब्राह्मणों का आशीर्वाद लें।
इस बात का विशेष ध्यान रखें कि श्राद्ध में हमेशा सफेद फूलों का ही उपयोग करें।
श्राद्ध करने के लिए दूध, गंगाजल, शहद, सफेद कपड़े, अभिजीत मुहूर्त और तिल मुख्य रूप से जरूरी माने गए हैं।
क्या यह जानते हैं आप? मान्यताओं के अनुसार कहा जाता है कि जो लोग पितृपक्ष में अपने पितरों का तर्पण नहीं करते हैं उन्हें पितृ दोष जैसे जटिल दोष का सामना करना पड़ सकता है। ऐसा कई बार देखा गया है कि लोगों के जीवन में पितृ दोष मौजूद होता है हालांकि जानकारी न होने की वजह से लोग इसे नजरअंदाज करते रहते हैं जिससे इस दोष का प्रकोप बढ़ता रहता है। आपकी कुंडली में भी कहीं यह दोष तो नहीं यह जानने के लिए अभी विद्वान ज्योतिषियों से संपर्क करें। बात करें पितृपक्ष में किए जाने वाले श्राद्ध कर्म की तो जिस तिथि को आपके पितृ स्वर्ग को गए हों उस दिन उनके नाम से श्रद्धा अनुसार और अपनी क्षमता अनुसार ब्राह्मण को भोजन अवश्य करवाएँ और तर्पण करें।
क्या होता है तर्पण?
दरअसल भोजन करने के उपरांत जिस तरह से पानी अवश्य पिया जाता है उसी तरह पितरों को पानी पिलाने की प्रक्रिया को तर्पण कहते हैं। तर्पण के लिए अक्सर लोग गया, पुष्कर, प्रयागराज या हरिद्वार जैसे तीर्थ जाते हैं। हालांकि आप अपने गांव, शहर में ही कहीं कोई पवित्र नदी या सरोवर के पास भी तर्पण कर सकते हैं। अगर यह भी ना मौजूद हो तो आप अपने घर पर भी तर्पण विधि संपन्न कर सकते हैं।
कैसे करें तर्पण?
तर्पण करने के लिए आप एक पीतल या फिर स्टील की परात ले लें।
इसमें शुद्ध जल डालें फिर थोड़े काले तिल और दूध डालें।
यह परात अपने सामने रखें और एक अन्य खाली पात्र पास में रखें।
अब अपने दोनों हाथों के अंगूठे और तर्जनी के मध्य में दूर्वा यानी कुश लेकर अंजलि बना लें। यानी दोनों हाथों को मिलाकर उसमें जल भर लें।
अब अंजलि में भरा हुआ जल दूसरे खाली पात्र में डाल लें।
खाली पात्र में जल डालते समय अपने प्रत्येक पितृ के लिए कम से कम तीन बार अंजलि से तर्पण करें।
माना जाता है कि पितृ पक्ष में श्राद्ध की शुरुआत महाभारत काल से चली आ रही है। श्राद्ध कर्म की जानकारी स्वयं भीष्म पितामह ने युधिष्ठिर को दी थी। दरअसल गरुड़ पुराण में बताया गया है कि पितामह ने युधिष्ठिर को पितृपक्ष में श्राद्ध और उसके महत्व के बारे में जानकारी दी थी। भीष्म पितामह ने बताया था कि अत्रि मुनि ने सबसे पहले श्राद्ध के बारे में महर्षि निमि को ज्ञान दिया था।
अपने पुत्र की आकस्मिक मृत्यु से दुखी होकर निमि ऋषि ने अपने पूर्वजों का आवाहन शुरू किया। इसके बाद पूर्वज उनके सामने प्रकट हुए और कहा निमि आपका पुत्र पहले ही पितृ देवों के बीच स्थान ले चुका है क्योंकि आपने अपने दिवंगत पुत्र की आत्मा को खिलाने और पूजा करने का कार्य किया है यह पितृ यज्ञ जैसा है। बताया जाता है कि इसी समय से श्राद्ध को सनातन धर्म में महत्वपूर्ण अनुष्ठान माना जाने लगा।
इसके बाद से महर्षि निमि ने भी श्राद्ध कर्म शुरू किया और उसके बाद धीरे-धीरे सारे ऋषि मुनियों ने श्राद्ध करना शुरू कर दिया और कुछ मान्यताओं के अनुसार कहा जाता है कि युधिष्ठिर ने कौरवों और पांडवों की ओर से युद्ध में मारे गए सैनिकों के अंतिम संस्कार के बाद उनका भी श्राद्ध किया गया था।
क्या यह जानते हैं आप? अग्नि देव से भी है श्राद्ध पक्ष का संबंध? जब सभी ऋषि मुनि देवताओं और पितरों को भोजन करा कर साथ में अधिक भोजन करने लगे तो उन्हें अजीर्ण हो गया और वे सभी ब्रह्मा जी के पास पहुंचे। इसके बाद ब्रह्मा जी ने इसमें अग्नि देव की मदद लेने की सलाह दी। अग्नि देव ने कहा कि श्राद्ध में मैं भी आप लोगों के साथ मिलकर भोजन करूंगा। इससे आपकी समस्या का समाधान हो जाएगा। ऐसे में हमेशा पितरों को भोजन करने के लिए श्राद्ध का भोजन कौवों और अग्नि को अवश्य चढ़ाया जाता है।
इंद्र से भी जुड़ी है कथा
एक और मान्यता के अनुसार कहा जाता है कि दानवीर कर्ण जो अपने दान के लिए जाने जाते थे मृत्यु के बाद स्वर्ग पहुंचे। वहां उनकी आत्मा को खाने के लिए सोना दिया जाने लगा। इस पर उन्होंने देवताओं के राजा इंद्र से पूछा कि उन्हें खाने में सोना क्यों दिया जा रहा है। तब उन्हें बताया गया कि क्योंकि उन्होने अपने जीवनकाल में हमेशा सोने-चांदी का ही दान किया है उन्हें वही वापिस मिल रहा है। तब कर्ण को अपनी गलती का अहसास हुआ और अपनी भूल को सही करने के लिए उन्हें वापस धरती पर भेजा गया। पितृपक्ष के इन 16 दिनों में कर्ण ने श्राद्ध पिंडदान और तर्पण किया और उसके बाद उनके पूर्वज भी खुश हुए और वह वापस स्वर्ग आ गए।
क्यों किया जाता है श्राद्ध और श्राद्ध नहीं किया तो क्या मिलेगा परिणाम?
मृत्यु के बाद अतृप्त पूर्वज तीन कारणों से धरती लोक पर आते हैं। वो जाकर यह देखते हैं कि हमारी संतान या हमारे वंश कैसे हैं? वह देखते हैं कि क्या हमें अन्न जल प्राप्त होगा? इसके अलावा तीसरा कारण यह माना जाता है कि पितृ देखते हैं कि हमारी मुक्ति के लिए कोई कर्म आदि किया जा रहा है या नहीं?
गीता विज्ञान में इसे लेकर कहा गया है कि अन्न से शरीर तृप्त होता है। अग्नि को दान किए गए अन्न से सूक्ष्म से शरीर यानी आत्मा का शरीर और मंत्र होता है। इस अग्नि आहुति से आकाश मंडल के समस्त पक्षी भी तृप्त होते हैं। तर्पण, पिंडदान और धूप देने से आत्मा की तृप्ति होती है और तृप्ति आत्माओं को प्रेत बनकर भटकना नहीं पड़ता है।
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माना जाता है कि यह एक कर्तव्य की तरह है जिसका पालन करना अनिवार्य होता है। जो लोग पितरों का श्राद्ध नहीं करते उन्हें पितृ दोष से पीड़ित होना पड़ता है।
श्रद्धा न करने पर पितृ दोष लगता है लेकिन कैसे?
मान्यता के अनुसार जब पूर्वजों की आत्मा तृप्त नहीं होती है तो इससे जो दोष उत्पन्न होता है उसे पितृ दोष कहते हैं। पितृ दोष दो तरह से बनता है पहले इस जन्म के कर्म से और दूसरा पूर्व में किए गए कर्मों से। पूर्व जन्मों के कर्म भी कुंडली में अपने आप आ जाते हैं। अगर किसी की जन्म कुंडली में गुरु दसवें भाव में मौजूद हो तो इसे पूर्ण पितृ दोष माना जाता है। वहीं अगर गुरु सप्तम भाव में हो तो इस आंशिक पितृ दोष कहते हैं। अपनी कुंडली विद्वान ज्योतिषियों से दिखाने के लिए अभी जुड़े।
पितृ दोष के कर्म में क्या आता है? इसकी बात करें तो जीते जी दादा-दादी, नाना-नानी, माता-पिता को परेशान करना, श्राद्ध कर्म न करना, पितृ धर्म को नहीं मानना, संतान को परेशान करना, पीपल का वृक्ष काटना, गाय माता को सताना या गौ हत्या करना और धर्म विरोधी होना पितृ दोष का कारण बनता है।
बात करें पितृदोष होने के लक्षण की तो, अगर किसी व्यक्ति का विवाह नहीं हो पा रहा है, पति-पत्नी में बेवजह की अनबन चल रही है, गर्भधारण में दिक्कत आ रही है, गर्भधारण हो जाता है तो गर्भपात की समस्या आ जाती है, समय से पूर्व संतान का जन्म हो जाता है या फिर विकलांग संतान का जन्म होता है, दरिद्रता जीवन में बनी रहती है, रोग पीछा नहीं छोड़ते हैं तो यह पितृ दोष के लक्षण हैं।
पितृ दोष से बचने के उपाय
कुंडली में पितृ दोष होने पर घर की दक्षिण दिशा की दीवार पर अपने पितरों की फोटो लगाएँ। फूल माला चढ़ाकर नियमित रूप से उनकी पूजा करें, उनके आशीर्वाद से पितृ दोष से मुक्ति मिल जाती है।
स्वर्गीय प्रिय जनों की मृत्यु तिथि यानी पुण्यतिथि पर गरीबों में वस्तुओं का दान करें और ब्राह्मणों को भोजन कराएं। भोजन में कुछ ऐसे व्यंजन जरूर शामिल करें जो स्वर्गीय परिजनों को पसंद हों।
पीपल वृक्ष में दोपहर के समय जल, फूल, अक्षत, दूध, गंगाजल, काला तिल, पितरों को स्मरण करते हुए चढ़ाएँ।
पितृ पक्ष में अपने पितरों की मृत्यु तिथि के अनुसार उनका श्राद्ध कर्म अवश्य करें।
जिन लोगों के घर वाले लोग अक्सर जवानी में ही मृत्यु को प्राप्त होते हैं और श्राद्ध करता को भी लड़ाई झगड़ों में शामिल होने का खतरा बढ़ जाता है ऐसे में इस दिन केवल उन्हीं लोगों को श्राद्ध करना चाहिए जिनकी अकाल मृत्यु हुई हो। अकाल मृत्यु का अर्थ होता है कि अगर किसी की मृत्यु हत्या, आत्महत्या, दुर्घटना आदि कर्म से हुई हो तो ही चतुर्दशी तिथि के दिन उनका श्राद्ध करें। जिन लोगों की सामान्य रूप से मृत्यु हुई हो उनका श्राद्ध सर्व पितृ मोक्ष अमावस्या के दिन करना सबसे अधिक उचित रहता है।
किस तिथि को करें किसका श्राद्ध?
श्राद्ध करने के लिए इस बात का ज्ञान होना भी बेहद आवश्यक है कि किसका श्राद्ध किस दिन किया जाना चाहिए। इसके बारे में बात करें तो किसी भी माह की जिस तिथि में परिजन की मृत्यु हुई हो श्राद्ध पक्ष में उसी से संबंधित तिथि पर श्राद्ध करना उत्तम कहलाता है। हालांकि इसके अलावा भी कुछ खास तिथियां होती हैं जब किसी भी प्रकार से मृत्यु हुई परिजनों का श्राद्ध किया जा सकता है। जैसे,
सौभाग्यवती स्त्री का श्राद्ध करना हो अर्थात किसी ऐसी पत्नी का श्राद्ध करना हो जिसका पति जीवित हो तो उनका श्राद्ध नवमी तिथि को किया जाता है।
अगर किसी स्त्री का श्राद्ध करना हो जिनकी मृत्यु की तिथि का ज्ञात न हो तो उनका भी श्राद्ध मातृ नवमी के दिन किया जा सकता है।
सभी वैष्णव संन्यासियों का श्राद्ध एकादशी में किया जाता है। जबकि शस्त्रघात, आत्म हत्या, विष, और दुर्घटना आदि से मृत लोंगों का श्राद्ध चतुर्दशी को किया जाता है। सर्पदंश, ब्राह्मण श्राप, वज्रघात, अग्नि से जले हुए, दंतप्रहार से, हिंसक पशु के आक्रमण से, फांसी लगाकर मृत्य, कोरोना जैसी महामारी, क्षय रोग, हैजा आदि किसी भी तरह की महामारी से, डाकुओं के मारे जाने से हुई मृत्यु वाले प्राणी श्राद्ध पितृपक्ष की चतुर्दशी और अमावस्या के दिन करना चाहिये। जिनका मरने पर संस्कार नहीं हुआ हो उनका भी अमावस्या को ही करना चाहिए।
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अक्सर पूछे जाने वाले सवाल
1: वर्ष 2024 में पितृ पक्ष कब से प्रारंभ होगा?
इस वर्ष 17 सितंबर 2024 के पितृपक्ष आरंभ हो रहे हैं और 2 अक्टूबर 2024 तक पितृपक्ष रहेंगे।
2: श्राद्ध का क्या अर्थ होता है?
पितृपक्ष में घर के पूर्वजों को याद किया जाता है और इसे ही श्राद्ध कहते हैं।
3: पिंडदान का क्या अर्थ होता है?
पिंडदान का अर्थ होता है कि हम अपने पितरों को खाना खिला रहे हैं।
4: तर्पण का क्या अर्थ होता है?
तर्पण घास की कुश से दिया जाता है जिसका मतलब होता है कि हम अपने पूर्वजों को जल पिला रहे हैं।
पूरे एक साल बाद तुला राशि में बना लक्ष्मी नारायण राजयोग, तीन राशियों को मिलेगी अपार सफलता
सौरमंडल के सभी ग्रह एक तय समयावधि के बाद एक राशि से दूसरी राशि में संचरण करते हैं। गोचर करने के दौरान ग्रहों की एक-दूसरे के साथ युति भी होती है और इस युति से कुछ शुभ योगों का निर्माण होता है। इस बार अक्टूबर के महीने में भी कुछ ऐसा ही होने जा रहा है।
बता दें कि 18 सितंबर को दोपहर 01 बजकर 42 मिनट पर शुक्र स्वराशि तुला में प्रवेश कर चुके हैं और 10 अक्टूबर को सुबह 11 बजकर 09 मिनट पर बुध ग्रह भी इसी राशि में आने वाले हैं। इस तरह 10 अक्टूबर को तुला राशि में बुध और शुक्र की युति हो रही है। यह युति ज्यादा दिन के लिए नहीं होगी क्योंकि 13 अक्टूबर को शुक्र वृश्चिक राशि में प्रवेश कर जाएंगे।
तुला राशि में बुध और शुक्र की युति से लक्ष्मी नारायण राजयोग का निर्माण हो रहा है। यह योग सभी राशियों के जातकों के जीवन को प्रभावित करेगा लेकिन कुछ राशियां ऐसी हैं जिन्हें इस दौरान सबसे अधिक लाभ होने की संभावना है।
तो चलिए जानते हैं कि तुला राशि में बुध और शुक्र की युति होने से बन रहे लक्ष्मी नारायण योग से किन राशियों के लोगों की किस्मत चमकने वाली है।
बृहत् कुंडली में छिपा है, आपके जीवन का सारा राज, जानें ग्रहों की चाल का पूरा लेखा-जोखा
इन राशियों के लिए रहेगा शुभ
तुला राशि
तुला राशि के लग्न भाव में यह योग बनने जा रहा है। यह समय आपके लिए बहुत अनुकूल साबित होगा। इस दौरान आपके व्यक्तित्व में निखार आएगा। विवाहित जातकों के जीवन में सुख-शांति बनी रहेगी। आपके और आपके जीवनसाथी के बीच आपसी समझ अच्छी होने की वजह से सब कुछ ठीक रहने वाला है।
धन के मामले में भी आपको कोई परेशानी नहीं होगी। नौकरीपेशा जातकों को अपनी मेहनत का फल प्राप्त होगा। इन्हें कार्यक्षेत्र में पदोन्नति के साथ वेतन में वृद्धि मिलने के संकेत हैं। इस समय आपकी लोकप्रियता में भी इज़ाफा देखने को मिलेगा। समाज में आपका मान-सम्मान बढ़ेगा।
मकर राशि के कर्म भाव में इस योग का निर्माण होगा। यह समय आपके लिए बहुत भाग्यशाली रहने वाला है। इस समय आपको अपने जीवन के हर क्षेत्र में अनुकुल परिणाम प्राप्त होंगे। नौकरी करने वाले लोगों को खूब तरक्की मिलेगी। वहीं व्यापारियों के लिए भी धन कमाने का समय है। इन्हें अपने क्षेत्र में मोटा मुनाफा कमाने का मौका मिलेगा।
नोकरीपेशा जातकों को अपने कार्यस्थल में कोई ऊंचा पद मिलने की उम्मीद है। आपके बॉस आपसे खुश नज़र आएंगे। आपको नौकरी के दूसरे अच्छे ऑफर भी मिल सकते हैं। आप अपने बिज़नेस का विस्तार करने के बारे में सोच सकते हैं।
लक्ष्मी नारायण योग आपकी राशि से नौवें भाव में बनने जा रहा है इसलिए यह समय आपके लिए लाभकारी सिद्ध होगा। आपको इस दौरान अपनी किस्मत का साथ मिलेगा। करियर के क्षेत्र में भी आप खूब तरक्की करने वाले हैं। इस समय आपको ऐसे अवसर मिल सकते हैं, जो आपको करियर में आगे बढ़ाने का काम करेंगे।
करियर के मामले में आप लंबे समय से जिस चीज़ का इंतज़ार कर रहे थे, अब वो पूरा हो सकता है। आप देश-विदेश की यात्रा पर जा सकते हैं। इसके अलावा आपको किसी धार्मिक या मांगलिक कार्यक्रम में शामिल होने का अवसर प्राप्त होगा।
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सूर्य का कन्या राशि में प्रवेश- मेष राशि से मीन राशि तक का कैसा रहेगा हाल, जानें अभी!
कन्या राशि में सूर्य का गोचर व्यक्तित्व, दक्षता और सटीकता की भावना को बढ़ाने वाला साबित हो सकता है। इस दौरान जातक अधिक मेहनती, व्यवस्थित और विस्तार उन्मुख बनेंगे। आप व्यक्तिगत विकास के लिए शारीरिक और मानसिक कल्याण, आत्म उपचार और सुधार का अनुभव करेंगे। अपने इस खास ब्लॉग के माध्यम से हम आपको विस्तार से बताएंगे कि सभी 12 राशियों के जातकों के जीवन पर सूर्य के गोचर का क्या प्रभाव नजर आने वाला है।
सूर्य का कन्या राशि में गोचर 2024
जैसे-जैसे आकाशीय पिंड अपना परिवर्तन जारी रखते हुए राशियों के माध्यम से गुजरते हैं उनके इस परिवर्तन का हमारे जीवन पर प्रभाव अवश्य पड़ता है। अपने इस खास ब्लॉग में हम बात करने वाले हैं सूर्य के गोचर की और उससे होने वाले परिवर्तनों की। सूर्य की गति हमारे जीवन में विभिन्न ऊर्जा और प्रभाव लेकर आने के लिए जानी जाती है।
वर्ष 2024 में सूर्य कन्या राशि में गोचर करेगा जो कि संगठन, विस्तार पर ध्यान देने और व्यावहारिक समस्या के समाधान की अवधि की शुरुआत कही जा सकती है। सूर्य गोचर की यह ब्रह्मांडीय घटना हमारे दैनिक दिनचर्या को परिष्कृत करने, व्यक्तिगत विकास पर ध्यान केंद्रित करने और हमारे जीवन के विभिन्न पहलुओं में व्यवस्था लाने का एक अनूठा अवसर प्रदान करती है।
सूर्य गोचर- एक नजर
सूर्य गोचर विभिन्न राशियों के माध्यम से सूर्य की गति को संदर्भित करता है। अर्थात जब सूर्य मेष से लेकर मीन राशि में प्रवेश करते हैं तो इसे सूर्य गोचर के नाम से जाना जाता है। सूर्य गोचर की एक और दिलचस्प बात यह होती है कि सूर्य जिस भी राशि में अपना प्रवेश करते है उस गोचर को उसी राशि के नाम से जाना जाता है।
उदाहरण के तौर पर जैसे कि अब सूर्य कन्या राशि में गोचर करेंगे तो इसे कन्या संक्रांति के नाम से जाना जाएगा। कन्या राशि में सूर्य का यह गोचर हमारे व्यक्तिगत और सामूहिक अनुभवों को प्रभावित करता है। सूर्य को हमारे मूल सार और जीवन शक्ति का प्रतिनिधित्व करने वाला ग्रह माना गया है। सूर्य को प्रत्येक राशि में तकरीबन एक महीने का समय लगता है और इसके बाद वह दूसरी राशि में प्रवेश कर जाता है।
सूर्य का कन्या राशि में गोचर- क्या रहेगा समय?
सूर्य जब कन्या राशि में प्रवेश करता है तो क्योंकि यह एक पृथ्वी राशि है तो इसके व्यावहारिक विश्लेषण आत्मक और सेवा उन्मुख गुणों को सामने लेकर आने के लिए यह समय सबसे अनुकूल साबित होता है। बुद्ध द्वारा शासित कन्या राशि का संबंध कुछ विशेष चीजों से भी है जैसे सूर्य का यह गोचर स्वास्थ्य और कल्याण महत्वपूर्ण सोच, व्यवहारिकता और दक्षता हमारे जीवन में लेकर आता है। इस दौरान हमें अपने जीवन को व्यवस्थित करने, बारीक से बारीक चीजों पर ध्यान देने और अपनी दैनिक दिनचर्या में सुधार करने की तीव्र इच्छा महसूस हो सकती है।
सूर्य का कन्या राशि में गोचर- समय और प्रभाव
कन्या राशि में सूर्य के इस गोचर की बात करें तो यह गोचर, सूर्य का कन्या राशि में गोचर 16 दिसंबर 2024 को 19:29 पर होने जा रहा है। इस अवधि के दौरान सूर्य की ऊर्जा कन्या राशि की विशेषताओं के साथ सुसंगत नजर आएगी जो हमारे विचारों, कार्य और अनुभव को प्रभावित अवश्य करेगी। कन्या राशि में सूर्य का गोचर हमारे जीवन में कई तरह की प्रभाव लेकर आ सकता है। जैसे की,
संगठन पर बढ़ा हुआ फोकस- इस दौरान जातक अपने स्थान को व्यवस्थित करने, अपने कार्य को व्यवस्थित करने और अपने जीवन में अधिक कुशल सिस्टम बनाने की तीव्र इच्छा महसूस कर सकते हैं।
स्वास्थ्य और कल्याण पर ध्यान- सूर्य का यह गोचर स्वास्थ्य मामलों में नए सिरे से रुचि लेकर आएगा। नई स्वास्थ्य दिनचर्या शुरू करने या मौजूदा दिनचर्या को वापस सही करने के लिए यह उत्कृष्ट समय साबित होगा।
विश्लेषणात्मक सोच- इस अवधि के दौरान स्थितियों का विश्लेषण करने और समस्याओं को हल करने की आपकी क्षमता में वृद्धि नजर आएगी।
उत्पादकता में वृद्धि- कन्या राशि का प्रभाव आपके काम और व्यक्तिगत परियोजनाओं में उत्पादकता और दक्षता बढ़ाने में मददगार साबित होगा।
सेवा उन्मुख मानसिकता- इस गोचर के दौरान आप दूसरों की मदद करने या स्वयंसेवी कार्यों में संलग्न होने के प्रति ज्यादा इच्छुक महसूस कर सकते हैं।
सूर्य का कन्या राशि में गोचर का लाभ उठाना है तो इन बातों का रखें विशेष ख्याल
इस गोचर से लाभ उठाने के लिए आपको हम नीचे कुछ सटीक सुझावों के बारे में जानकारी प्रदान कर रहे हैं।
अपना स्थान व्यवस्थित करें। इस गोचर के दौरान अपने घर या कार्य स्थल को व्यवस्थित करने और सभी चीजों को सही करने के लिए समय अवश्य निकालें।
अपने दिनचर्या की समीक्षा करें। अपनी दैनिक दिनचर्या का विश्लेषण करें और उन्हें अधिक कुशल बनने के तरीकों की तलाश करें।
अपने स्वास्थ्य पर ध्यान दें। जरूरत लगे तो किसी नए व्यायाम दिनचर्या को शुरू करें या फिर अपने आहार पर ध्यान दें।
कोई नया कौशल सीखें। कन्या राशि ऊर्जा सीखने और कौशल विकास का समर्थन करती है। ऐसे में कोई नई चीज़ सीखने, कोई क्लास अटेंड करने या नए अध्ययन शुरू करने के लिए यह अवधि अनुकूल रहेगी।
संचेतना का अभ्यास करें। अपने दैनिक जीवन के विवरणों पर ध्यान दें।
अपनी सेवाएं प्रदान करें। स्वयं सेवी कार्य में संलग्न हो या फिर किसी जरूरतमंद की मदद करें।
व्यवहारिक लक्ष्य निर्धारित करें। सूर्य गोचर का यह समय का सदुपयोग अपने लिए प्राप्त करने योग्य व्यावहारिक लक्ष्य निर्धारित करने में करें।
निष्कर्ष: कन्या राशि में सूर्य का गोचर 2024 हमारे जीवन के विभिन्न पहलुओं में व्यवस्था, दक्षता और सुधार लेकर आने के लिए एक मूल्यवान अवसर प्रदान करेगा। इस ब्रह्मणीय प्रभाव को समझ कर और इसके साथ काम करके हम अपने व्यक्तिगत और व्यावसायिक जीवन में महत्वपूर्ण प्रगति हासिल कर सकते हैं। इस सूर्य गोचर को आत्म चिंतन और विकास के लिए एक उपकरण के रूप में प्रयोग करें और आप खुद देखेंगे कि इस ब्रह्मांड में यात्रा के अंत तक आप खुद को बेहतर, संगठित और अधिक कुशल पाएंगे।
अब आगे बढ़ते हैं और बात करते हैं सूर्य के इस गोचर का सभी 12 राशियों के जातकों के जीवन पर क्या कुछ प्रभाव पड़ने की संभावना है तो इससे संबंधित महत्वपूर्ण राशिफल हम आपको नीचे प्रदान कर रहे हैं।
सूर्य का कन्या राशि में गोचर- राशि अनुसार प्रभाव और उपाय
सूर्य का कन्या राशि में गोचर 16 सितंबर को होने वाला है। इसके बाद 17 अक्टूबर 2024 तक सूर्य यहीं मौजूद रहेंगे। इसके अलावा समय की बात करें तो सूर्य का कन्या राशि में गोचर 16 दिसंबर 2024 को 19:29 पर होने जा रहा है।
2: ज्योतिष में कन्या राशि में सूर्य का अर्थ क्या है?
ज्योतिष में कन्या राशि में सूर्य व्यवहारिकता, विस्तार पर ध्यान और स्वास्थ्य और दूसरों की सेवा पर ध्यान देने का समय का प्रतिनिधित्व करता है।
3: सूर्य के कन्या राशि में गोचर के दौरान जीवन के किन तीन क्षेत्रों पर प्रकाश डाला जा सकता है?
सूर्य का यह गोचर कार्य, स्वास्थ्य, दैनिक दिनचर्या और व्यक्तिगत संगठन जैसे क्षेत्रों पर प्रकाश डालने के लिए जाना जाता है।
अनंत चतुर्दशी 2024: सुख, समृद्धि और सौभाग्य की कामना के लिए जरूर करें ये एक उपाय!
सनातन धर्म में अनंत चतुर्दशी का विशेष महत्व है। हर वर्ष भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को अनंत चतुर्दशी मनाई जाती है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, अनंत चतुर्दशी का दिन भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना का लिए समर्पित है और इस चतुर्दशी को चौदस के रूप में भी जाना जाता है। साथ ही, यह भी माना जाता है कि अनन्त चतुर्दशी के दिन भगवान विष्णु की विधि-विधान के साथ पूजा और व्रत करने से साधक को बैकुंठ धाम की प्राप्ति होती है।
इसके अलावा, अनंत चतुर्दशी के दिन भगवान विष्णु के अनंत रूपों की पूजा की जाती है। साथ ही इस दिन एक कच्ची डोरी में 14 गांठ लगाकर भगवान विष्णु को अर्पित करने का विशेष महत्व है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, ये 14 गांठ 14 लोकों का प्रतीक हैं, ये 14 लोक इस प्रकार हैं – भूर्लोक, भुवर्लोक, स्वर्लोक, महर्लोक, जनलोक, तपोलोक, ब्रह्मलोक, अतल, वितल, सुतल, रसातल, तलातल, महातल और पाताल लोक।
तो चलिए आगे बढ़ते हैं और जानते हैं अनंत चतुर्दशी का व्रत इस साल कब रखा जाएगा, अनंत चतुर्दशी की सही तिथि क्या है? आदि के बारे में इस ब्लॉग में चर्चा करेंगे।
हिंदू पंचांग के अनुसार, भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को अनंत चतुर्दशी मनाई जाती है। इस साल यह तिथि 17 सितंबर 2024 मंगलवार को पड़ रही है।
अनंत चतुर्दशी की शुरुआत: यह तिथि 16 सितंबर की दोपहर 3 बजकर 12 मिनट से शुरू होकर
अनंत चतुर्दशी समाप्त: 17 सितंबर 2024 की रात 11 बजकर 46 बजे तक रहेगी।
अनंत चतुर्दशी पूजा मुहूर्त
अनंत चतुर्दशी पूजा मुहूर्त : 17 सितंबर 2024 की सुबह 06 बजकर 07 मिनट से 11 बजकर 46 मिनट तक।
अवधि : 5 घंटे 39 मिनट
अनंत चतुर्दशी का महत्व
अनंत चतुर्दशी हिंदू धर्म में एक महत्वपूर्ण पर्व है, जो भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मनाया जाता है। इस दिन भगवान विष्णु की विशेष पूजा की जाती है। बता दें कि भगवान विष्णु को “अनंत” कहा जाता है, जिसका अर्थ है “असीम” या “अखंड”। यह पर्व विशेष रूप से भगवान विष्णु से अनंत सुख, शांति, और समृद्धि की कामना करने के लिए मनाया जाता है। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा करने से सभी कष्टों का निवारण होता है और व्यक्ति को जीवन में अनंत सुख और शांति की प्राप्ति होती है।
अनंत चतुर्दशी के दिन भक्त व्रत रखते हैं और भगवान विष्णु की पूजा करते हैं। पूजा के दौरान भगवान विष्णु को पुष्प, फल, पान, सुपारी, नारियल और विशेष रूप से अनंतसूत्र अर्पित किया जाता है। जैसा कि ऊपर बताया जा चुका है कि अनंतसूत्र एक धागा होता है, जिसमें चौदह गांठ लगी होती हैं, जो चौदह लोकों का प्रतीक मानी जाती हैं। इसे पूजा के बाद दाहिने हाथ में धारण किया जाता है, ताकि व्यक्ति को भगवान विष्णु की कृपा और सुरक्षा प्राप्त हो। बता दें कि महाराष्ट्र और अन्य स्थानों में अनंत चतुर्दशी का दिन गणेशोत्सव का अंतिम दिन होता है, जब गणपति बप्पा का विसर्जन किया जाता है। भक्त इस दिन भगवान गणेश की प्रतिमा को जल में विसर्जित करते हैं और उनसे अगले वर्ष पुनः आगमन की प्रार्थना करते हैं। इस दिन भगवान गणेश के साथ-साथ भगवान विष्णु की भी पूजा करने का विधान है।
बृहत् कुंडलीमें छिपा है, आपके जीवन का सारा राज, जानें ग्रहों की चाल का पूरालेखा-जोखा
अनंत चतुर्दशी व्रत में इस विधि से करें पूजा
अनंत चतुर्दशी व्रत का पालन करते समय पूजा विधि का विशेष ध्यान रखना चाहिए, तभी भगवान विष्णु की कृपा और अनंत सुख की प्राप्ति होती है। आइए जानते हैं अनंत चतुर्दशी की पूजा विधि के बारे।
अनंत चतुर्दशी के दिन सुबह सूर्योदय से पहले उठकर घर के सभी कार्यों को पूरा करके स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
पूजा स्थल की सफाई करें और उसे गंगाजल से पवित्र करें।
पूजा के लिए पूर्व या उत्तर दिशा की तरफ मुंह करके बैठें।
हाथ में जल, अक्षत (चावल), और पुष्प लेकर व्रत का संकल्प करें।
भगवान विष्णु का ध्यान करते हुए उनसे व्रत की सफलता और जीवन में सुख-शांति की कामना करें।
इसके बाद पूजा स्थल पर भगवान विष्णु की मूर्ति या चित्र स्थापित करें।
भगवान विष्णु के सामने दीपक जलाएं और धूप अर्पित करें।
उन्हें पीले पुष्प, फल, पान, सुपारी, और मिठाई अर्पित करें।
अनंत सूत्र की पूजा के लिए अनंतसूत्र लें (एक धागा जिसमें 14 गांठें बंधी होती हैं) को भगवान विष्णु के चरणों में रखें।
अनंतसूत्र में केसर, हल्दी, और चंदन से लगाएं।
पूजा के बाद अनंतसूत्र को अपने दाहिने हाथ में धारण करें। महिलाएं इसे बाएं हाथ में बांध सकती हैं।
पूजा के दौरान अनंत चतुर्दशी व्रत कथा का श्रवण या पाठ करें। ऐसा करने से भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त होती है।
इस दिन दान-पुण्य का विशेष महत्व है। गरीबों और ब्राह्मणों को अन्न, वस्त्र, और धन का दान करें।
दान करने से व्रत का पूर्ण फल प्राप्त होता है और भगवान विष्णु की कृपा बनी रहती है।
अनंत चतुर्दशी के दिन भगवान विष्णु की विशेष पूजा और मंत्र जाप का बहुत महत्व है। इस दिन कुछ विशेष मंत्रों का जाप करने से भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त होती है और जीवन में सुख-समृद्धि और शांति का वास होता है। आइए जानते हैं इन मंत्रों के बारे में।
ॐ अनंताय नमः
यह मंत्र भगवान विष्णु के अनंत स्वरूप को समर्पित है। इसका जाप करने से जीवन के सभी कष्ट दूर होते हैं।
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
यह मंत्र भगवान विष्णु के 12 अक्षरों का महामंत्र है, जिसे विष्णु द्वादशाक्षर मंत्र भी कहा जाता है। इस मंत्र का जाप करने से सभी इच्छाएं पूर्ण होती हैं।
ॐ विष्णवे नमः
इस मंत्र का जाप भगवान विष्णु की आराधना के लिए किया जाता है। यह मंत्र व्यक्ति के जीवन में शांति, सुरक्षा, और समृद्धि प्रदान करता है।
ॐ अनन्त रूपाय नमः
इस मंत्र का जाप भगवान विष्णु के अनंत रूप की आराधना के लिए किया जाता है। यह मंत्र व्यक्ति के जीवन में अनंत खुशियों और अनंत आशीर्वाद की प्राप्ति करता है।
श्री विष्णु सहस्रनाम स्तोत्र
अनंत चतुर्दशी के दिन श्री विष्णु सहस्रनाम स्तोत्र का पाठ अत्यंत शुभ माना जाता है। इसमें भगवान विष्णु के हजार नामों का वर्णन है।
अनंत चतुर्दशी की कथा
अनंत चतुर्दशी व्रत के बारे में सबसे पहले भगवान श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर को बताया था। यह बात तब की है जब कौरवों और पांडवों के बीच महाभारत का युद्ध समाप्त हो चुका था। पांडव युद्ध में विजय प्राप्त कर चुके थे, लेकिन उनकी कई समस्याएं और दुख खत्म नहीं हुए थे। युधिष्ठिर, जो पांडवों में सबसे बड़े थे, इस बात से चिंतित थे कि इतने बड़े युद्ध के बाद भी उनके जीवन में शांति क्यों नहीं आ रही है। एक दिन युधिष्ठिर ने भगवान श्रीकृष्ण से इस बारे में सलाह मांगी। श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर को बताया कि वह अनंत चतुर्दशी का व्रत करें और अनंत भगवान की पूजा करें। इस व्रत को करने से उन्हें सभी कष्टों से मुक्ति मिलेगी और जीवन में सुख-समृद्धि का आगमन होगा।
अनंत चतुर्दशी की कथा की कथा की बात करें तो, पौराणिक कथा के अनुसार, एक समय की बात है कौंड़िन्य नामक एक ब्राह्मण था, जो अपनी पत्नी सुशीला के साथ शांति व सुख से जीवन व्यतीत कर रहा था। एक दिन कौंड़िन्य और सुशीला दोनों ने एक व्रत का पालन करने का निश्चय किया। सुशीला ने पूरे विधि-विधान के साथ अनंत चतुर्दशी का व्रत रखा और अनंत भगवान की पूजा की। उन्होंने पूजा के बाद अनंतसूत्र को अपने हाथ में बांध लिया। अनंत सूत्र बांधते ही उनका जीवन सुख-समृद्धि से भर गया।
कौंड़िन्य को जब इस अनंतसूत्र के बारे में पता चला, तो उन्होंने इसे मात्र एक साधारण धागा समझकर अपमानित कर दिया और इसे अपनी पत्नी के हाथ से उतार दिया। इसके परिणामस्वरूप उनके जीवन में सभी सुख और समृद्धि समाप्त हो गई, और वे दरिद्रता में आ गए। इसके बाद कौंड़िन्य को अपनी गलती का एहसास हुआ और उन्होंने अपने किए पर पछतावा किया। उन्होंने भगवान विष्णु से क्षमा याचना की और पुनः अनंत चतुर्दशी का व्रत किया। भगवान विष्णु ने उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर उन्हें आशीर्वाद दिया और उनके जीवन में फिर से सुख-समृद्धि का वास हुआ।
बता दें कि युधिष्ठिर ने इस कथा को सुनकर ही अनंत चतुर्दशी का व्रत रखा और भगवान विष्णु की कृपा से पांडवों के जीवन में सुख-समृद्धि का वास हुआ।
अनंत चतुर्दशी का दिन भगवान विष्णु की विशेष कृपा प्राप्त करने के लिए अत्यंत शुभ माना जाता है। इस दिन कुछ विशेष उपाय करने से जीवन में सुख-समृद्धि और शांति बनी रहती है। एक नज़र डालते हैं इन उपायों के बारे में…
अनंत सूत्र धारण करें
अनंत चतुर्दशी के दिन अनंत सूत्र धारण करना अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह एक धागा होता है जिसमें 14 गांठ बंधी होती हैं। इसे भगवान विष्णु की पूजा के बाद दाहिने हाथ में बांधें। महिलाएं इसे बाएं हाथ में भी बांध सकती हैं। अनंत सूत्र धारण करने से जीवन में सुरक्षा, शांति और समृद्धि बनी रहती है।
भगवान विष्णु की पूजा करें
इस दिन भगवान विष्णु की पूजा अवश्य करें। विष्णु सहस्रनाम का पाठ करें या भगवान विष्णु के मंत्रों का जाप करें। पूजा के दौरान भगवान विष्णु को पीले पुष्प, फल, पान, सुपारी, और मिठाई अर्पित करें। इससे भगवान विष्णु की असीम कृपा प्राप्त होती है।
दान-पुण्य करें
अनंत चतुर्दशी के दिन दान-पुण्य का विशेष महत्व है। किसी गरीब या जरूरतमंद को अन्न, वस्त्र, और धन का दान करें। गोदान (गाय का दान) और भूमि का दान भी अत्यंत शुभ माना जाता है। दान करने से पापों का नाश होता है और पुण्य की प्राप्ति होती है।
गणेश विसर्जन में भाग लें
यदि आपने गणेशोत्सव के दौरान गणपति की स्थापना की है, तो अनंत चतुर्दशी के दिन उनका विसर्जन करना न भूलें। भगवान गणेश का विसर्जन करते समय उनसे अगले वर्ष पुनः आने की प्रार्थना करें।
चावल का प्रयोग
अनंत चतुर्दशी के दिन पूजा में चावल का प्रयोग शुभ माना जाता है। भगवान विष्णु को चावल अर्पित करें और इसके बाद घर के चारों कोनों में चावल की थोड़ी मात्रा छिड़कें। इससे घर में समृद्धि और शांति बनी रहती है।
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पवित्र जल से स्नान
इस दिन सुबह पवित्र नदियों या तीर्थ स्थलों पर स्नान करने का विशेष महत्व है। यदि संभव हो तो गंगा, यमुना या किसी अन्य पवित्र नदी में स्नान करें। यदि यह संभव नहीं है, तो घर पर ही स्नान के पानी में गंगाजल मिलाकर स्नान करें। इससे शरीर और मन की शुद्धि होती है और भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त होती है।
श्री विष्णु सहस्रनाम का पाठ
अनंत चतुर्दशी के दिन श्री विष्णु सहस्रनाम का पाठ करना अत्यंत फलदायी माना जाता है। इसका पाठ करने से सभी प्रकार के कष्ट दूर होते हैं और जीवन में सुख-समृद्धि आती है।
उपवास रखें
अनंत चतुर्दशी के दिन व्रत रखने से विशेष फल की प्राप्ति होती है। इस दिन निराहार या फलाहार व्रत रखें और भगवान विष्णु का ध्यान करें।
इसी आशा के साथ कि, आपको यह लेख भी पसंद आया होगा एस्ट्रोसेज के साथ बने रहने के लिए हम आपका बहुत-बहुत धन्यवाद करते हैं।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न
1. साल 2024 में कब रखा जाएगा अनंत चतुर्दशी का व्रत?
हिंदू पंचांग के अनुसार, भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को अनंत चतुर्दशी मनाई जाती है। इस साल यह तिथि 17 सितंबर 2024 मंगलवार को पड़ रही है।
2. अनंत चतुर्दशी का क्या महत्व है?
यह पर्व विशेष रूप से भगवान विष्णु से अनंत सुख, शांति, और समृद्धि की कामना करने के लिए मनाया जाता है। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा करने से सभी कष्टों का निवारण होता है।
3. अनंत चतुर्दशी को क्या दान करना चाहिए?
अनंत चतुर्दशी के दिन अनाज का दान करें।
4. अनंत चतुर्दशी क्यों मनाई जाती है?
अनंत चतुर्दशी के दिन भगवान विष्णु की पूजा करने से जीवन के कष्टों का अंत होता है और प्रत्येक व्यक्ति को अनंत सुख मिलता है।