कुंभ मेले का मुख्य आकर्षण होता है शाही स्नान और ऐसे में शाही स्नान का आखिरकार आगाज होने जा रहा है। कुंभ 2021 का पहला शाही स्नान 11 मार्च यानी महाशिवरात्रि के दिन किया जाएगा। कोरोना के बीच हो रहे महाकुंभ और शाही स्नान में सभी उचित नियमों का कड़े तौर पर पालन किया जाएगा। हरिद्वार कुंभ के शाही स्नान में सभी अखाड़ों के साधु संत भी स्नान करने के लिए पहुंचने वाले हैं जो यहाँ पर पवित्र नदी में डुबकी लगाएंगे।
तो आइए जानते हैं इस वर्ष हरिद्वार कुंभ मेले में शाही स्नान कब कब किए जाएंगे और शाही स्नान का क्या महत्व होता है?
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हरिद्वार कुंभ शाही स्नान कब-कब?
हरिद्वार कुंभ का पहला शाही स्नान 11 मार्च महाशिवरात्रि के दिन किया जाएगा। इसके बाद तीन और शाही स्नान होने हैं। जिसमें दूसरा शाही स्नान सोमवती अमावस्या 11 अप्रैल को किया जाएगा। तीसरा शाही स्नान वैशाखी के दिन यानी 14 अप्रैल को किया जाएगा और हरिद्वार कुंभ मेले का आखिरी शाही स्नान 27 अप्रैल चैत्र पूर्णिमा के दिन किया जाएगा।
वहीं बात करें मुहूर्त की तो शाही स्नान का शुभ मुहूर्त सुबह चार बजे से ही शुरू हो जायेगा। कहा जाता है शाही स्नान अगर शुभ मुहूर्त में किया जाये तो ज़्यादा फलदायी और शुभ होता है।
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शाही स्नान से मिलने वाला पुण्य/फल
हिंदू धर्म में कुंभ मेले में किया जाने वाले इन शाही स्नान का विशेष महत्व बताया जाता है। इसके बारे में ऐसी मान्यता है कि, जो कोई भी व्यक्ति कुंभ मेले में शाही स्नान में भाग लेता है उसे इस जन्म के साथ-साथ पूर्व जन्म के भी पापों से छुटकारा मिलता है और मृत्यु के बाद मोक्ष की प्राप्ति होती है।
सिर्फ इतना ही नहीं शाही स्नान को लेकर ऐसी भी मान्यता है कि, कुंभ के शाही स्नान में पितरों की शांति के लिए किया जाने वाला आयोजन भी सफल होता है और इससे पितरों की आत्मा को शांति मिलती है और उनका हमारे जीवन में आशीर्वाद हमेशा हमेशा के लिए बना रहता है।
यूं तो कुंभ मेले के दौरान किसी भी दिन स्नान करने से व्यक्ति को विशेष फल की प्राप्ति होती है लेकिन जो लोग शाही स्नान में भाग लेते हैं कहा जाता है कि, उन्हें अमरत्व हासिल होता है। हालांकि कुंभ मेले के शाही स्नान का यह नियम होता है कि, इसमें पहले अखाड़ों के साधु संत स्नान करते हैं और उसके बाद ही आम जनता को स्नान करने का मौका मिलता है ।
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कुंभ में स्नान शाही स्नान का महत्व
सहस्त्र कार्तिके स्नानं माघे स्नान शतानि च।
वैशाखे नर्मदाकोटिः कुंभस्नानेन तत्फलम्।।
अश्वमेघ सहस्त्राणि वाजवेयशतानि च।
लक्षं प्रदक्षिणा भूम्याः कुंभस्नानेन तत्फलम्।
ऊपर दिए गए श्लोक का अर्थ है कि, कुंभ में किए जाने वाले स्नान से कार्तिक मास में किए जाने वाले हजारों स्नान, माघ मास में किए जाने वाले सौ स्नान और वैशाख माह में नर्मदा में किए जाने वाले करोड़ों स्नान के बराबर पुण्य प्राप्त होता है। इसके अलावा हज़ारों अश्वमेध, 100 वाजपेय यज्ञ और पृथ्वी की पूरी परिक्रमा करने से जितना पुण्य प्राप्त होता है उतना कुंभ के एक स्नान से फल प्राप्त होता है।
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इस वर्ष 11 वर्षों बाद ही क्यों किया जा रहा है?
इस वर्ष किये जा रहे शाही स्नान में एक अन्य जो बात गौर करने वाली है वो यह कि, इस वर्ष 12 साल की जगह 11 साल में ही कुंभ मेले का आयोजन किया जा रहा है। तो दरअसल इसके पीछे की वजह यह बताई जा रही है कि, अगले वर्ष यानी 2022 में गुरु कुंभ राशि में नहीं होंगे और इसी के चलते इस वर्ष का कुंभ मेला 1 साल पहले ही किया जा रहा है। जानकारी के लिए बता दें कि, 82 साल बाद हरिद्वार में कुंभ मेला 11 वर्षों बाद किया जा रहा है। इससे पहले वर्ष 1938 में ऐसा हुआ था जब 12 की जगह 11 वर्षों बाद कुम्भ मेला किया गया था।
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