जानें 12 साल बाद ही क्यों होता है कुंभ का आयोजन

साल 2021 में मकर संक्रांति के पर्व के साथ ही 14 जनवरी यानि आज से कुंभ के मेले का आयोजन शुरू हो गया। 14 जनवरी को सुबह 8 बजकर 4 मिनट पर सूर्य देव मकर राशि में गोचर करेंगे, और उसी के साथ आस्था और विश्वास के इस महाकुंभ की शुरुआत हो जाएगी। कुंभ में हिस्सा लेने के लिए देश-विदेश से लाखों श्रद्धालु कुंभ मेले में आते हैं और आस्था की डुबकी लगाते है। कुंभ विश्वास, सौहार्द और आस्था के साथ-साथ हर तरह की संस्कृतियों के मिलन का एक महापर्व है। कुंभ का आयोजन सदियों से होता रहा है।

इतिहास के पन्नों को पलट कर देखें तो मालूम चलेगा, कि कुंभ मेले का आयोजन 850 साल से भी ज्यादा पुराना है। पौराणिक कथाओं के अनुसार आदि शंकराचार्य से इसकी शुरुआत हुई थी, तो वहीं कुछ कथाओं के अनुसार कुंभ का आयोजन समुद्र मंथन में आदि काल से हुआ था, जबकि कुछ विद्वान गुप्त काल से भी इसकी शुरुआत की बात कहते हैं, लेकिन सही मायनों में सम्राट हर्षवर्धन के वक्त से कुंभ मेले के प्रमाण देखने को मिले हैं ।

हर साल क्यों नहीं लगता कुंभ का मेला

ज्योतिषीय मान्यताओं के अनुसार गुरु एक राशि में करीब 1 साल तक विराजमान होते हैं, जिसके बाद वो राशि परिवर्तन करते हैं और सभी राशियों में गोचर के दौरान उन्हें 12 साल का वक्त लगता है। इसलिए हर 12वें साल कुंभ का आयोजन होता है। वहीं शास्त्रों की मानें तो पृथ्वी का एक साल देवताओं के लिए एक दिन के बराबर होता है। और इस तरह पृथ्वी की गणना के अनुसार देवता और असुरों के बीच युद्ध 12 साल तक चलता रहा। इस युद्ध की अवधि 12 साल थी, और यही वजह है कि 12 साल के बाद कुंभ का आयोजन होता है। क्योंकि देवताओं के 12 साल पृथ्वी के 144 साल के बराबर माने जाते हैं। इसलिए यह मान्यता है कि 144 साल बाद स्वर्ग में कुंभ मेले का आयोजन होता है और तभी पृथ्वी पर हर 12वें साल महाकुंभ का आयोजन किया जाता है।

वृंदावन में भी लगता है कुंभ का मेला? जानिए उससे जुड़ी महत्वपूर्ण बातें

कुंभ का प्रमुख स्नान

साल 2021 में कुंभ मेले में 6 प्रमुख स्नान हैं। मकर संक्रांति के साथ ही कुंभ के पहले स्नान का शुभारंभ होगा, उसके बाद 11 फरवरी को मौनी अमावस्या के दिन कुंभ का दूसरा स्नान होगा, 16 फरवरी को बसंत पंचमी के दिन कुंभ का तीसरा स्नान होगा, 27 फरवरी को माघ पूर्णिमा की तिथि पर कुंभ का चौथा स्नान होगा, इसके बाद अप्रैल में चैत्र शुक्ल प्रतिपदा पर पांचवा स्नान और अप्रैल माह में ही छटा प्रमुख स्नान 21 अप्रैल को रामनवमी पर होगा ।

स्नान का महत्व

हिंदू मान्यताओं के अनुसार कुंभ में स्नान करने से व्यक्ति के जीवन में आने वाली हर परेशानी से उसे मुक्ति मिल जाती है । मकर संक्रांति के दिन से कुंभ के पहले स्नान की शुरूआत होती है। इस साल सूर्य देव के मकर में प्रवेश करने से एक साथ चार ग्रहों  शनि, बुध, बृहस्पति और चंद्रमा के साथ उनकी युति होगी। पांचग्रहों का योग होने से यह स्नान और भी महत्वपूर्ण हो जाता है, यदि आप इस दिन गंगा स्नान करके सूर्य देव को अर्घ्य देंगे, तो आपको मनोवांछित फलों की प्राप्ति होगी ।

इन चार स्थानों पर होता है कुंभ का आयोजन

पौराणिक कथा के अनुसार देवताओं और असुरों ने मिलकर समुंद्र मंथन किया था और समुद्र मंथन के दौरान रत्न अप्सराएं विश-अमृत जानवर आदि निकले, जिसके बाद अमृत को लेकर देवताओं और असुरों के बीच जंग छिड़ गई। देवता और असुरों के बीच हुए संघर्ष के दौरान अमृत की कुछ बूंदें पृथ्वी पर भी गिरी, कहते हैं कि अमृत की बूंदें जिन-जिन जगहों पर जाकर गिरी, वहां-वहां पर कुंभ का आयोजन किया जाता है। अमृत की बूंदें प्रयागराज हरिद्वार उज्जैन और नासिक में गिरी थीं इसलिए इन जगहों पर कुंभ का आयोजन किया जाता है । 

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