जानें क्यों प्रसिद्ध है खाटू श्याम का मंदिर और क्या है इसकी प्रमुख विशेषता !

हिन्दू धार्मिक मान्यता के अनुसार खाटू श्याम को विशेष रूप से भगवान् श्री कृष्ण का अवतार माना जाता है। खाटू श्याम का प्रसिद्ध मंदिर राजस्थान के सीकर में स्थित है जहाँ देश भर से भक्त उनके दर्शन के लिए विशेष रूप से आते हैं। इस मंदिर को मुख्य रूप से काफी महत्वपूर्ण माना जाता है क्योंकि यहाँ आने वाले भक्तों के सभी मुरादों को बाबा खाटू पूरी जरूर करते हैं। आज हम आपको सीकर स्थित खाटू श्याम मंदिर और उनकी महिमा के बारे में विशेष रूप से बताने जा रहे हैं। तो आइये जानते हैं खाटू श्याम मंदिर से जुड़े बेहद महत्वपूर्ण तथ्यों को।

खाटू श्याम मंदिर का महत्व 

राजस्थान के सीकर स्थित खाटू श्याम मंदिर को विशेष रूप से प्रदेश का मुख्य मंदिर माना जाता है। होली के दौरान यहाँ हज़ारों की संख्या में भक्त एकत्रित होते हैं। इस मंदिर को लेकर मान्यता है कि इसका निर्माण खाटू क्षेत्र के राजा ने करवाया था। कहते हैं कि उस राजा को ऐसा स्वप्न आया था कि खाटू से सटे रूपवती नाम की नदी में श्याम बाबा का सिर है। राजा अपने स्वप्न से अचंभित होकर जब नदी के पास पहुंचें तो वास्तव में उन्हें एक सिर मिला। ठीक इस घटना के दसवें दिन उनके नाम से इस मंदिर की स्थापना की गयी। हालाँकि बाद में 1720 ईस्वीं में दीवान अभयसिंह ने खाटू श्याम के मंदिर का फिर से निर्माण करवाया। इस मंदिर के साथ एक श्याम कुंड भी है जहाँ आकर स्नान करने की भी ख़ास महत्ता है। ऐसी मान्यता है कि इस कुंड में स्नान करने वालों की सभी मनोकामनाओं की पूर्ति जल्द हो जाती है। खाटू श्याम की पूजा अर्चना मारवाड़ी समुदाय में खासतौर से की जाती है। इसके साथ ही साथ यहाँ अन्य धर्म और प्रजाति के लोग भी बाबा के दर्शन के लिए विशेष रूप से आते हैं। 

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खाटू श्याम मंदिर से जुड़ी पौराणिक कथा 

बाबा खाटू श्याम का अस्तित्व असल में महाभारत काल से जुड़ा है। खाटू श्याम का वास्तविक नाम असल में बर्बरीक था, वो घटोत्कच के पुत्र थे। बचपन से ही वीर और पराक्रमी बर्बरीक ने अपने बल और धनुष विद्या के बल पर अग्नि देव से वरदान के स्वरुप तीन बाण प्राप्त किये थे जिसके प्रयोग से वो किसी भी युद्ध को जीतने में पूरी तरह समर्थ थे। किशोरावस्था से ही बर्बरीक को तीन बाण धारी के नाम से भी पुकारा जाने लगा था। जब महाभारत का युद्ध आरंभ हुआ तो उन्हीं भी युद्ध में हिस्सा लेने का विचार आया। बर्बरीक ने अपनी माँ के कहने पर ये निश्चय किया की वो युद्ध में उसी पक्ष का साथ देंगें जो कमजोर होगा। जब ये बात कृष्ण जी को पता चली तो उन्होनें बर्बरीक की परीक्षा लेने की सोची। श्री कृष्ण ब्राह्मण के वेश में उससे मिलें और उनकी बाणों की विशेषता पूछी। बर्बरीक ने जब अपने बाणों की ख़ासियत बतायी तो कृष जी इस बात से चिंतित हो उठे की कहीं वो कौरवों का साथ ना दें। 

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माना जाता है कि इसी भय से कृष्ण जी ने बर्बरीक को दान स्वरुप अपना सिर देने की मांग की। बर्बरीक ये जान चुके थे कि ये ब्राह्मण के वेश में श्री कृष्ण है लिहाजा इसके बाद भी उन्होनें सहर्ष अपना सिर कृष्ण जी को अर्पित कर दिया। श्री कृष्ण ने उनेक इस त्याग को देखकर बर्बरीक को आशीर्वाद दिया की संपूर्ण संसार में लोग उसे उनके अन्य नाम “श्याम” से जानेंगे। कृष्ण जी ने बर्बरीक के सर को युद्ध समाप्त होने के बाद रूपवती नदी में समर्पित कर दिया। जो बाद में जाकर खाटू के राजा को मिला और उन्होनें सीकर में खाटू श्याम मंदिर की स्थापना करवाई।

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