कनकधारा स्तोत्र का सच्चे मन से करेंगे पाठ तो कभी नहीं होगी धन की कमी

कनकधारा स्तोत्र का पाठ व्यक्ति की सभी आर्थिक परेशानियों को दूर करता है। वर्तमान दौर में धन की आवश्यकता हर किसी को है, ऐसे में यदि व्यक्ति श्राद्धापूर्वक कनकधारा स्तोत्र का पाठ करता है तो उसे शुभ फल अवश्य प्राप्त होते हैं। आज अपने इस लेख में हम इसी स्तोत्र के बारे में चर्चा करेंगे और इसकी पूजन विधि के बारे में जानकारी देंगे। 

कनकधारा स्तोत्र 

अंगहरे पुलकभूषण माश्रयन्ती भृगांगनैव मुकुलाभरणं तमालम।

अंगीकृताखिल विभूतिरपांगलीला मांगल्यदास्तु मम मंगलदेवताया:।1।

मुग्ध्या मुहुर्विदधती वदनै मुरारै: प्रेमत्रपाप्रणिहितानि गतागतानि।

माला दृशोर्मधुकर विमहोत्पले या सा मै श्रियं दिशतु सागर सम्भवाया:।2।

विश्वामरेन्द्रपदविभ्रमदानदक्षमानन्द हेतु रधिकं मधुविद्विषोपि।

ईषन्निषीदतु मयि क्षणमीक्षणार्द्धमिन्दोवरोदर सहोदरमिन्दिराय:।3।

आमीलिताक्षमधिगम्य मुदा मुकुन्दमानन्दकन्दम निमेषमनंगतन्त्रम्।

आकेकर स्थित कनी निकपक्ष्म नेत्रं भूत्यै भवेन्मम भुजंगरायांगनाया:।4।

बाह्यन्तरे मधुजित: श्रितकौस्तुभै या हारावलीव हरि‍नीलमयी विभाति।

कामप्रदा भगवतो पि कटाक्षमाला कल्याण भावहतु मे कमलालयाया:।5।

कालाम्बुदालिललितोरसि कैटभारेर्धाराधरे स्फुरति या तडिदंगनेव्।

मातु: समस्त जगतां महनीय मूर्तिभद्राणि मे दिशतु भार्गवनन्दनाया:।6।

प्राप्तं पदं प्रथमत: किल यत्प्रभावान्मांगल्य भाजि: मधुमायनि मन्मथेन।

मध्यापतेत दिह मन्थर मीक्षणार्द्ध मन्दालसं च मकरालयकन्यकाया:।7।

दद्याद दयानुपवनो द्रविणाम्बुधाराम स्मिभकिंचन विहंग शिशौ विषण्ण।

दुष्कर्मधर्ममपनीय चिराय दूरं नारायण प्रणयिनी नयनाम्बुवाह:।8।

इष्टा विशिष्टमतयो पि यथा ययार्द्रदृष्टया त्रिविष्टपपदं सुलभं लभंते।

दृष्टि: प्रहूष्टकमलोदर दीप्ति रिष्टां पुष्टि कृषीष्ट मम पुष्कर विष्टराया:।9।

गीर्देवतैति गरुड़ध्वज भामिनीति शाकम्भरीति शशिशेखर वल्लभेति।

सृष्टि स्थिति प्रलय केलिषु संस्थितायै तस्यै ‍नमस्त्रि भुवनैक गुरोस्तरूण्यै ।10।

श्रुत्यै नमोस्तु शुभकर्मफल प्रसूत्यै रत्यै नमोस्तु रमणीय गुणार्णवायै।

शक्तयै नमोस्तु शतपात्र निकेतानायै पुष्टयै नमोस्तु पुरूषोत्तम वल्लभायै।11।

नमोस्तु नालीक निभाननायै नमोस्तु दुग्धौदधि जन्म भूत्यै ।

नमोस्तु सोमामृत सोदरायै नमोस्तु नारायण वल्लभायै।12।

सम्पतकराणि सकलेन्द्रिय नन्दानि साम्राज्यदान विभवानि सरोरूहाक्षि।

त्व द्वंदनानि दुरिता हरणाद्यतानि मामेव मातर निशं कलयन्तु नान्यम्।13।

यत्कटाक्षसमुपासना विधि: सेवकस्य कलार्थ सम्पद:।

संतनोति वचनांगमानसंसत्वां मुरारिहृदयेश्वरीं भजे।14।

सरसिजनिलये सरोज हस्ते धवलमांशुकगन्धमाल्यशोभे।

भगवति हरिवल्लभे मनोज्ञे त्रिभुवनभूतिकरि प्रसीद मह्यम्।15।

दग्धिस्तिमि: कनकुंभमुखा व सृष्टिस्वर्वाहिनी विमलचारू जल प्लुतांगीम।

प्रातर्नमामि जगतां जननीमशेष लोकाधिनाथ गृहिणी ममृताब्धिपुत्रीम्।16।

कमले कमलाक्षवल्लभे त्वं करुणापूरतरां गतैरपाड़ंगै:।

अवलोकय माम किंचनानां प्रथमं पात्रमकृत्रिमं दयाया : ।17।

स्तुवन्ति ये स्तुतिभिर भूमिरन्वहं त्रयीमयीं त्रिभुवनमातरं रमाम्।

गुणाधिका गुरुतरभाग्यभागिनो भवन्ति ते बुधभाविताया:।18।

कनक धारा स्तोत्र के पाठ की विधि 

इस स्तोत्र का पाठ करने से व्यक्ति को सभी आर्थिक समस्याओं से मुक्ति मिलती है और घर परिवार में सुख-समृद्धि बनी रहती है। इसका पाठ कैसे करना चाहिए आइए जानते हैं। 

  • इस स्तोत्र का पाठ शुक्रवार के दिन करना शुभ माना जाता है। यह वार शुक्र देव को समर्पित है जो वैभव, सांसारिक सुख सुविधाओं के कारक ग्रह माने जाते हैं। 
  • कनक धारा स्तोत्र का पाठ करने से पहले घर में कनकधारा यंत्र की स्थापना कर लेनी चाहिए। 
  • शुक्रवार के दिन से गंगाजल से शुद्ध करने के बाद इस यंत्र को अपने पूजा स्थल में स्थापित करना चाहिए। 
  • इसके बाद शुद्ध मन से इस स्तोत्र का पाठ करना चाहिए। 
  • पाठ करने के उपरांत माता लक्ष्मी का ध्यान करना चाहिए और उनसे मनोकामना कहनी चाहिए। 

कनकधारा स्तोत्र से जुड़ी पौराणिक कथा

इस स्तोत्र से जुड़ी पौराणिक कथा आदि शंकराचार्य से संबंधित है। कथा के अनुसार एक बार आदि गुरु भोजन की तलाश में थे और लोगों से भिक्षा मांग रहे थे। लेकिन किसी ने भी उनको भिक्षा नहीं दी, अंत में थक हारकर वह एक ब्राह्मण की कुटिया में पहुंचे और उससे भी भिक्षा मांगी। ब्राह्मण भीक्षा देना तो चाहता था लेकिन उसके पास देने को कुछ नहीं था, उसने केवल एक आंवला भीक्षा में आदि शंकराचार्य जी को दे दिया। ब्राह्मण की अवस्था को देखकर शंकराचार्य जी को दया आयी और उन्होंने उसकी दरिद्रता को खत्म करने के लिए माता लक्ष्मी के मंत्रों का जाप शुरू कर दिया, माना जाता है कि इसके बाद ब्राह्मण के आंगन में स्वर्ण के आंवलों की वर्षा होने लगी। आदि शंकराचार्य जी ने माता लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए जिन मंत्रों का जाप किया था उन्हीं से कनकधारा स्तोत्र की उत्पति मानी जाती है। 

कनक धारा स्तोत्र का संक्षिप्त अर्थ

इस स्तोत्र में सभी मंगल कार्यों की अधिष्ठात्री देवी माता महालक्ष्मी की स्तुति की जाती है। इस स्तोत्र का पाठ करके व्यक्ति महालक्ष्मी की कृपा पाने की कामना करता है। जो देवी इंद्र आदि देवताओं को भी वैभव देती हैं उनकी दृष्टि इस स्तोत्र का जाप करने वाले पर भी हो यह कामना की जाती है। भगवान विष्णु की अर्धांगिनि माता लक्ष्मी की कृपा हो और वह हमारे जीवन के विषादों को दूर करें। शुभ कर्मों का फल देने वाली माता हम पर भी अपनी कृपा बरसाएं इसकी कामना कनकधारा स्तोत्र के जाप में की जाती है। इस स्तोत्र का पाठ जो भी करता है वह लक्ष्मी माता का आशीर्वाद पाता है और अत्यंत सौभाग्यशील और विद्वान हो जाता है। 

धन वैभव की प्राप्ति के लिए करें कनक धारा स्तोत्र का पाठ

माता लक्ष्मी को प्रसन्न करने और जीवन में धन-संपदा और वैभव प्राप्त करने के लिए कनक धारा स्तोत्र का पाठ करना अति शुभ माना गया है। इस स्तोत्र के पाठ करने से दरिद्रता दूर होती है और व्यक्ति को समाज में सम्मान की प्राप्ति होती है। जिस तरह आदि गुरु शंकराचार्य ने इस स्तोत्र का पाठ करके निर्धन ब्राह्मण को धनवान बना दिया था उसी तरह आज के दौर में भी यदि इस स्तोत्र का पाठ किया जाए तो जीवन की कई समस्याएं दूर की जा सकती हैं। इस स्तोत्र का पाठ शुक्रवार के दिन करना सबसे शुभ माना गया है। कुछ वक्त तक इसका पाठ करने से धीरे-धीरे धन से जुड़ी समस्याएं दूर होने लगती हैं। 

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