शनिदेव की आराधना के लिए शुभ माना जाता है ज्येष्ठ अमावस्या का दिन, ये उपाय करने से मिलेगा लाभ!

एस्ट्रोसेज के इस विशेष ब्लॉग में हम आपको ज्येष्ठ अमावस्या 2024 के बारे में बताएंगे और साथ ही इस बारे में भी चर्चा करेंगे कि इस दिन राशि के अनुसार किस प्रकार के उपाय करने चाहिए ताकि आप इन उपायों को अपनाकर भगवान विष्णु की विशेष कृपा प्राप्त कर सके। तो आइए बिना देरी किए आगे बढ़ते हैं और जानते हैं कि विस्तार से ज्येष्ठ अमावस्या के पर्व के बारे में।

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ज्येष्ठ माह के कृष्ण पक्ष में आने वाली अमावस्या को ज्येष्ठ अमावस्या कहते हैं। धार्मिक शास्त्रों में ज्येष्ठ अमावस्या तिथि का बड़ा महत्व बताया गया है। इस दिन पवित्र ​नदियों में स्नान करने के बाद दान देने की परंपरा है। माना जाता है कि ऐसा करने से व्यक्ति को सभी पापों से मुक्ति मिलती है और पुण्य फल की प्राप्ति होती है। इस दिन स्नान और दान से ​पितर प्रसन्न होते हैं और उनका विशेष आशीर्वाद प्राप्त होता है। इसके अलावा, इस अमावस्या पर पितरों की शांति के लिए पिंडदान, तर्पण और भोजन करवाना भी बेहद शुभ माना गया है। इस अमावस्या पर भगवान विष्णु की पूजा करने का विधान है। बता दें कि ज्येष्ठ अमावस्या पर न्याय के देवता शनि देव का जन्म हुआ था इसलिए इस दिन शनि जयंती मनाई जाती है। शनि के कारण ज्येष्ठ अमावस्या को शनि अमावस्या भी कहते हैं। इस दिन शनि देव की पूजा करने का विशेष महत्व है। आइए सबसे पहले जानते हैं ज्येष्ठ अमावस्या की तिथि व मुहूर्त के बारे में।

ज्येष्ठ अमावस्या 2024: तिथि व समय

ज्येष्ठ मास के कृष्ण पक्ष में में पड़ने वाली अमावस्या को ज्येष्ठ अमावस्या कहा जाता है। साल 2024 में यह तिथि को 06 जून 2024 गुरुवार के दिन पड़ रही है।
अमावस्या आरम्भ: जून 5 2024 की शाम 07 बजकर 57 मिनट से शुरू होगी 

अमावस्या समाप्त: जून 6 2024 को की शाम 06 बजकर 09 मिनट पर समाप्त होगी।

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ज्येष्ठ अमावस्या का महत्व

शास्त्रों के अनुसार, ज्येष्ठ मास में स्नान-दान का विशेष महत्व है। इस विशेष दिन पर पितरों को तर्पण प्रदान करने से उनकी आत्मा तृप्त हो जाती है। साथ ही इस दिन जल का दान करने से व्यक्ति को पुण्य फल की प्राप्ति होती है। इस अमावस्या का धार्मिक दृष्टि से खास महत्व है क्योंकि इस दिन पवित्र नदियों में स्नान करने से सात जन्मों के पाप और पितृ दोष से मुक्ति मिल जाती है। ज्योतिष के मुताबिक अमावस्या तिथि के स्वामी पितर है इसलिए इस तिथि पर व्रत पूजन करके पितरों को तर्पण व पिंडदान करना शुभ माना जाता है। वहीं इस दिन शनि देव का जन्म हुआ था और ऐसे में, इस दिन शनिदेव की उपासना करने से शनि की साढ़ेसाती, ढैय्या व महादशा से मुक्ति मिल सकती है। उत्तर भारत में ज्येष्ठ अमावस्या को बहुत पवित्र, पुण्य फल देने वाली तिथि माना गया है।

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ज्येष्ठ अमावस्या की पूजा विधि

  • ज्येष्ठ अमावस्या के पवित्र दिन सूर्योदय से पहले उठकर घर के सभी कामों से मुक्त हो जाए। इसके बाद पवित्र नदी में स्नान करें। यदि ऐसा संभव न हो तो घर पर ही पानी में गंगाजल मिलाकर स्नान करें और फिर सूर्य देव को अर्घ्य दें।
  • इस दिन पितरों की शांति के लिए पिंडदान व तर्पण कर ब्राह्मण भोजन करवा सकते हैं।
  • यदि संभव हो तो ज्येष्ठ अमावस्या पर तीर्थ स्नान व दान जरूर करें। ऐसा करने से अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है और पितृ दोष भी दूर होता है।
  • इसके बाद पीपल के पेड़ पर जल, अक्षत, सिंदूर आदि चीजें अर्पित करें और कम से कम 11 या 07 बार परिक्रमा अवश्य करें।
  • ज्येष्ठ अमावस्या पर शनि जयंती भी मनाई जाती है इसलिए इस दिन शनि मंदिर जाकर शनिदेव की पूजा भी करें। इसके अलावा, शनिदेव को सरसों का तेल, काले तिल, काला कपड़ा और नीले फूल अर्पित करें। इसके बाद शनि मंत्र का जाप करें व शनि चालीसा का पाठ करें।

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ज्येष्ठ अमावस्या पर करें इन चीजों का दान

ज्येष्ठ अमावस्या के दिन पितरों का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए और कुंडली में ग्रहों की स्थिति में सुधार करने के लिए व्यक्ति को इन सात प्रकार की चीजों का दान अवश्य करना चाहिए, जो इस प्रकार है-

  • चावल
  • गेहूं
  • जौ
  • कंगनी
  • चना
  • मूंग दाल
  • तिल

ये सभी चीजें अन्न की श्रेणी में आती हैं और अमावस्या पर इस सात प्रकार के अनाज का दान करने से सात ग्रहों के दुष्प्रभाव से बचा जा सकता है। वहीं शनि और सूर्य ग्रह को मजबूत करने के लिए गेहूं, काले चने व काले तिल का दान करना शुभ होता है। वहीं सफेद तिल के दान से शुक्र ग्रह मजबूत होते हैं। मूंग दाल के दान से बुध ग्रह की स्थिति प्रबल होती है। वहीं चंद्र ग्रह की कृपा प्राप्त करने के लिए चावल का दान करना शुभ होता है। इसके अलावा, जौ और मसूर की दाल का दान करने से देव गुरु बृहस्पति व मंगल देव की स्थिति को मजबूत किया जा सकता है।

ज्येष्ठ अमावस्या के दिन क्या करें और क्या ना करें

  • ज्येष्ठ अमावस्या की तिथि पर सूर्योदय से पहले उठकर पवित्र नदी में स्नान करें।
  • घर में झाड़ू पोछा लगाने के बाद गंगाजल या गोमूत्र से पूरे घर पर छिड़काव करें।
  • पितरों के नाम लेकर और घर की दक्षिण दिशा में देसी घी का दीपक जलाएं।
  • ज्येष्ठ अमावस्या का व्रत करें और पीपल के पेड़ के आगे दीपक जलाते हुए, 11 या 07 बार परिक्रमा करें।
  • लहसुन-प्याज व शराब मदिरा जैसे तामसिक चीज़ों से दूर रहें और इस पूरे दिन ब्रह्मचर्य का पालन करें।
  • गरीब व जरूरतमंद व्यक्ति का गलती से भी अपमान न करें और हो सके तो उनकी मदद करें।

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ज्येष्ठ अमावस्या पर पढ़ें शनि की जन्म की कथा

अलग-अलग धार्मिक ग्रंथों में शनिदेव की जन्म कथा का वर्णन अलग-अलग तरीके से किया गया है। कुछ ग्रंथों में शनिदेव का जन्म ज्येष्ठ माह की अमावस्या के दिन तो कुछ ग्रंथों में शनिदेव का जन्म भाद्रपद शनि अमावस्या के दिन बताया गया है।

एक पौराणिक कथा के अनुसार, शनि देव का जन्म ऋषि कश्यप के यज्ञ से हुआ था, लेकिन स्कंद पुराण में शनि देव के पिता का नाम सूर्य और माता का नाम छाया बताया गया है। आइए जानते हैं इस कथा के बारे में। कथा के मुताबिक, राजा दक्ष की कन्या संज्ञा का विवाह सूर्य देव के साथ संपन्न हुआ था। विवाह के बाद संज्ञा सूर्य देव  के तेज से काफी परेशान रहती थीं और वह उस तेद से निकलने का रास्ता ढूंढ रही थीं। धीरे-धीरे समय बीत रहा था। इस बीच संज्ञा ने वैवस्वत मनु, यमराज और यमुना नाम की तीन संतानों को जन्म दिया। इसके बाद संज्ञा ने निर्णय लिया है वे कठोर तपस्या करेंगी और सूर्यदेव के तेज को सहने में सक्षम बनेंगी, लेकिन उन्हें बच्चों के पालन पोषण की चिंता हो रही थी। ऐसे में, बच्चों के पालन में कोई दिक्कत न आए और सूर्यदेव को उनके फैसले के बारे में पता न चले इसके लिए संज्ञा ने अपने तप से अपनी ही तरह की एक महिला को पैदा किया और उसका नाम संवर्णा रखा। यह उनकी ही छाया थी। संज्ञा संवर्णा को बच्चों और सूर्यदेव की जिम्मेदारी देकर तप के लिए चली गईं और इस बारे में किसी को पता नहीं चला।

संवर्णा सूर्यदेव के तेज से परेशानी नहीं होती थी। इस बीच संवर्णा ने भी सूर्यदेव की तीन संतानों मनु, शनि देव और भद्रा को जन्म दिया। कहा जाता है जब शनिदेव संवर्णा के गर्भ में थे तो संवर्णा भगवान शिव का कठोर तप कर रहीं थीं। भूख-प्यास, धूप-गर्मी सहने के कारण इसका सारा प्रभाव उनकी संतान यानी शनिदेव पर पड़ा। इसके कारण शनिदेव का जन्म हुआ तो उनका रंग काला था। यह रंग देखकर सूर्यदेव को शक हुआ कि यह पुत्र उनका नहीं हैं। उन्होंने छाया पर संदेह करते हुए उन्हें अपमानित किया।

माता के तप की शक्ति शनिदेव में भी आ गई थी। मां का अपमान देखकर उन्होंने क्रोधित होकर पिता सूर्यदेव को देखा तो सूर्यदेव काले पड़ गए और उनको कुष्ठ रोग हो गया। अपनी यह दशा देखकर घबराए हुए सूर्यदेव भगवान शिव की शरण में पहुंचे, तब भगवान शिव ने सूर्यदेव को उनकी गलती का अहसास कराया। सूर्यदेव को अपने किए का पश्चाताप हुआ, उन्होंने क्षमा मांगी और फिर उन्हें अपना असली रूप मिला लेकिन इसके बाद पिता पुत्र के संबंध खराब हो गए।

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ज्येष्ठ अमावस्या पर करें ये आसान उपाय

यदि आप भी न्याय के देवता शनि देव की कृपा पाना चाहते हैं, तो ज्येष्ठ अमावस्या के दिन के ख़ास उपाय जरूर करें। आइए जानते हैं इन उपायों के बारे में

शनि के दुष्प्रभाव से बचने के लिए

शनि देव की कृपा पाने के लिए ज्येष्ठ अमावस्या के दिन स्नान-ध्यान करने के बाद काले रंग के कपड़े धारण करें। इसके बाद शनि मंदिर जाकर शनिदेव को नीले रंग का पुष्प, सरसों का तेल, काले तिल आदि चीजें अर्पित करें। ऐसा करने से शनि के दुष्प्रभाव से बचा जा सकता है।

शनि देव की कृपा प्राप्ति के लिए

ज्येष्ठ अमावस्या के दिन इन चीज़ों का दान अवश्य करें- काले कपड़े, सरसों का तेल, लोहे, उड़द दाल आदि। साथ ही, गरीबों व जरूरतमंदों को अपनी सामर्थ्य से खाना खिलाएं। ऐसा करने से न्याय के देवता शनिदेव प्रसन्न और अपनी विशेष कृपा प्रदान करते हैं। 

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साढ़े साती से बचने के लिए

ज्येष्ठ अमावस्या के दिन किसी भी असहाय व निर्धन व्यक्ति को न सताए और अगर हो सके तो उसकी मदद करें। ऐसा करने से शनि के साढ़े साती के प्रभाव से बचा जा सकता है और आपको जीवन में खूब सफलता भी प्राप्त होगी।

आर्थिक समस्याओं से छुटकारा पाने के लिए

ज्येष्ठ अमावस्या पर शनि जयंती भी पड़ रही है। ऐसे में, इस दिन पीपल वृक्ष पर जल चढ़ाएं। इसके बाद, तिल के तेल का दीपक जलाएं और शनि स्तुति करें। ऐसा करने से शनि के अशुभ प्रभाव से बचा जा सकता है और यदि आप आर्थिक समस्याओं से जूझ रहे हैं तो आपको इससे राहत मिलेगी।

पितृ दोष से छुटकारा पाने के लिए 

ज्येष्ठ अमावस्या तिथि पर केसर डालकर खीर बनाए और माता लक्ष्मी व भगवान विष्णु को इसका भोग लगाएं और इसके बाद प्रसाद के रूप में सबको बांटे। साथ ही, इस दिन पितरों के नाम का ब्राह्मणों को भोजन कराएं। ऐसा करने से माता लक्ष्मी की विशेष कृपा बनी रहेगी और यदि आप पितृ दोष से पीड़ित हैं तो उससे भी छुटकारा मिल जाता है। साथ ही, धन-धान्य की कभी भी कमी नहीं होती है।

 कालसर्प दोष दूर करने के लिए

ज्योतिष के अनुसार ज्येष्ठ मास की अमावस्या के दिन बहते हुए पानी में नारियल बहाना चाहिए। माना जाता है कि ऐसा करने से कालसर्प दोष दूर होता है और व्यक्ति के हर काम आसानी से बनने लगते हैं।

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अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न

प्रश्न 1. ज्येष्ठ मास की अमावस्या कब है?

उत्तर 1. साल 2024 में ज्येष्ठ माह की अमावस्या 06 जून 2024 गुरुवार के दिन पड़ रही है।

प्रश्न 2. अमावस्या के दिन घर में क्या करना चाहिए?

उत्तर 2. माता लक्ष्मी की कृपा पाने के लिए सुबह पीपल के पेड़ में जल अर्पित करें।

प्रश्न 3. अमावस्या के दिन पितरों को कैसे खुश करें?

उत्तर 3. अमावस्या के दिन प्रात: काल स्नान के बाद पितरों का स्मरण करें और उनका तर्पण करने से पितृ प्रसन्न होते हैं।

प्रश्न 4. पितरों के लिए कौन सा दीपक लगाना चाहिए?

उत्तर 4. अमावस्या पर पितरों के लिए घी का दीपक जलाना चाहिए।

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