जैसे-जैसे होली का जिक्र शुरू होता है वैसे ही होलाष्टक की चर्चा भी होने लगती है। यह होलाष्टक आखिर क्या है और क्या होता है इसका अर्थ। इस दौरान कुछ विशेष कार्य वर्जित माने गए हैं लेकिन ऐसा क्यों? अगर आपके मन में भी इस तरह के सवाल उठ रहे हैं तो चलिए इस ब्लॉग के माध्यम से इन सभी सवालों का जवाब जानने की कोशिश करते हैं लेकिन सबसे पहले जान लेते हैं कि आखिर होलाष्टक शब्द का अर्थ क्या होता है।
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होलाष्टक का अर्थ?
होलाष्टक शब्द असल में दो शब्दों को मिलकर बनाया गया एक शब्द है जिसमें एक होता है होली और दूसरा होता है अष्ट अर्थात 8 दिन। ऐसे में इस शब्द का अर्थ हुआ होली से पहले के 8 दिन। ऐसे में होलाष्टक का यह जो समय होता है यह होली से 8 दिन पहले शुरू हो जाता है। हिंदू धार्मिक मान्यताओं के अनुसार कहा जाता है कि, इन आठ दिनों में कोई भी मांगलिक कार्य जैसे की शादी, विवाह, मुंडन, गृह प्रवेश, आदि नहीं किए जाते हैं।
भारत के उत्तरी भागों में अधिकांश हिंदू समुदायों द्वारा होलाष्टक की अवधि को अशुभ माना जाता है। उत्तर भारत में अपनाए जाने वाले पूर्णिमांत कैलेंडर के अनुसार, होलाष्टक ‘शुक्ल पक्ष’ (चंद्रमा के उज्ज्वल पखवाड़े की अवधि) की ‘अष्टमी’ (8 वें दिन) से शुरू होता है और ‘पूर्णिमा’ (पूर्णिमा दिवस) तक रहता है।
होलाष्टक का आखिरी दिन यानी फाल्गुन पूर्णिमा अधिकांश क्षेत्रों में होलिका दहन का दिन होता है। ग्रेगोरियन कैलेंडर में, होलाष्टक फरवरी के मध्य से मार्च के मध्य के महीनों के दौरान आता है। होलाष्टक हरियाणा, पंजाब, मध्य प्रदेश, बिहार, हिमाचल प्रदेश और उत्तर भारत के अन्य क्षेत्रों में माना जाता है।
आखिर होलाष्टक में मांगलिक कार्य क्यों होते हैं वर्जित? यह जानने के लिए हमारे यह खास ब्लॉग अंत तक अवश्य पढ़ें।
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वर्ष 2024 में कब से है होलाष्टक
होलाष्टक का यह समय फाल्गुन मास की शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि से प्रारंभ हो जाता है। अर्थात इस साल 17 मार्च 2024 से होलाष्टक प्रारंभ हो जाएंगे और यह फाल्गुन पूर्णिमा तक चलते हैं अर्थात 24 मार्च 2024 को इसकी समाप्ति होगी। इसी दिन होलिका दहन भी किया जाएगा फिर 25 मार्च 2024 को रंगो वाली होली खेली जाएगी।
होलिका दहन समय: 23:15:58 से 24:23:27 तक
अवधि: 1 घंटे 7 मिनट
भद्रा पुँछा :18:49:58 से 20:09:46 तक
भद्रा मुखा :20:09:46 से 22:22:46 तक
जानें होलाष्टक का अर्थ
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार माना जाता है कि, होलाष्टक के इन आठ दिनों में वातावरण में नकारात्मक ऊर्जा बढ़ जाती है। यही वजह है कि इस दौरान किसी भी तरह के शुभ और मांगलिक कार्य नहीं किए जाते हैं।
इसके अलावा मान्यता के अनुसार कहा जाता है की अष्टमी तिथि के दिन चंद्रमा, नवमी तिथि के दिन सूर्य, दशमी तिथि के दिन शनि, एकादशी तिथि के दिन शुक्र, द्वादशी तिथि के दिन गुरु, त्रयोदशी तिथि के दिन बुध, चतुर्दशी तिथि के दिन मंगल और पूर्णिमा को राहु उग्र अवस्था में रहते हैं।
ऐसे में इस दौरान अगर कोई भी मांगलिक कार्य किया जाए तो इससे व्यक्ति के जीवन में तमाम तरह की परेशानियां, बाधाएँ, रुकावटें और समस्या आने की आशंका बढ़ जाती है। कई बार ऐसा भी देखा गया है कि अगर इस दौरान मांगलिक कार्य करने का विचार भी किया जाए तो किसी भी कारणवश या तो वो कार्य पूरे नहीं हो पाते हैं या संपन्न नहीं हो पाते हैं।
ज्योतिष के जानकार मानते हैं कि ग्रहों के स्वभाव में उग्रता आने के चलते इस दौरान अगर कोई व्यक्ति शुभ कार्य करता भी है या ऐसा कोई फैसला लेता भी है तो वह शांत मन से नहीं ले पता है और यही वजह है कि उनके द्वारा लिए गए फैसले अक्सर गलत साबित होते हैं या उन्हें नुकसान उठाना पड़ सकता है।
आपकी जानकारी के लिए बता दें कि ज्योतिष के अनुसार माना जाता है कि होलाष्टक की इस समय अवधि में उन जातकों को विशेष रूप से सावधानी बरतनी की सलाह दी जाती है जिनकी कुंडली में चंद्रमा नीच के होते हैं या वृश्चिक राशि वाले जातक या फिर चंद्रमा छठे या आठवें भाव में होते हैं। आपकी कुंडली में चंद्रमा की क्या स्थिति है यह जानने के लिए आप अभी विद्वान ज्योतिषों से परामर्श ले सकते हैं।
होलाष्टक के दौरान किए जाने वाले अनुष्ठान
होलाष्टक की शुरुआत के साथ ही लोग किसी पेड़ की शाखा को रंग-बिरंगे कपड़ों से सजाना शुरू कर देते हैं। प्रत्येक व्यक्ति शाखा पर कपड़े का एक टुकड़ा बांधता है और अंत में उसे जमीन में गाड़ दिया जाता है। कुछ समुदाय होलिका दहन के दौरान कपड़ों के इन टुकड़ों को जला भी देते हैं।
इसके अलावा होलाष्टक की शुरुआत फाल्गुन शुक्ल पक्ष अष्टमी के दिन होलिका दहन के लिए स्थान का चयन किया जाता है। प्रत्येक दिन होलिका दहन के स्थान पर छोटी-छोटी लकड़ियां एकत्र कर रखी जाती हैं।
होली का 9 दिवसीय त्योहार अंततः ‘धुलेटी’ के दिन समाप्त होता है।
होलाष्टक का दिन दान करने या दान देने के लिए उत्तम होता है। इस दौरान व्यक्ति को अपनी आर्थिक स्थिति के अनुसार उदारतापूर्वक कपड़े, अनाज, धन और अन्य आवश्यक वस्तुओं का दान करना चाहिए।
होलाष्टक पूजा: इस पूजा का उद्देश्य आपके जीवन और घर से नकारात्मक ऊर्जा को दूर करना है। होलाष्टक पूजा बुरी नजर और अपशकुन से भी बचाती है।
होलाष्टक 2024 के महत्वपूर्ण समय की जानकारी
सूर्योदय: 17 मार्च, सुबह 6 बजकर 37 मिनट
सूर्यास्त: 17 मार्च, शाम 6 बजकर 33 मिनट
अष्टमी तिथि समय: 16 मार्च, रात 09 बजकर 39 मिनट से 17 मार्च, रात 09 बजकर 53 मिनट
होलाष्टक से जुड़ी यह कथा जानते हैं आप? कहा जाता है कि होलिका दहन से 8 दिन पहले ही भगवान विष्णु के भक्त प्रहलाद को उनके पिता हिरणकश्यप और उनकी बहन होलिका के द्वारा बहुत ज्यादा प्रताड़ित किया गया था। हिरणकश्यप चाहता था कि प्रहलाद उनकी पूजा करे लेकिन प्रहलाद श्री हरि के भक्त थे जिसके चलते हिरणकश्यप ने 7 दिनों तक उन्हें कड़ी यातनाएँ दी थी।
आठवें दिन हिरंणकश्यप ने अपनी बहन होलिका की गोद में प्रहलाद को बिठाकर इन्हें अग्नि में जलकर भस्म करने की कोशिश की थी लेकिन तब श्री हरि ने अपने परम भक्त को बचाकर होलिका की अग्नि में होलिका का ही दहन किया था और तभी से होलिका दहन की परंपरा की शुरुआत हुई।
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इसके अलावा होलाष्टक से जुड़ी एक और किंवदंती के अनुसार कहा जाता है कि, एक बार प्रेम के देवता कामदेव ने भगवान शिव की तपस्या भंग कर दी थी जिससे रुष्ट होकर भगवान शिव ने कामदेव को फाल्गुन मास की अष्टमी तिथि के दिन ही भस्म कर दिया था। हालांकि इसके बाद कामदेव की पत्नी रति ने भगवान शिव की अटूट आराधना की और कामदेव को दोबारा से जीवित करने की प्रार्थना की।
तब महादेव ने रति की प्रार्थना स्वीकार कर ली। महादेव के इस फैसले के बाद हर तरफ हर्षोल्लास मनाया गया और होलाष्टक का अंत होलिका दहन के साथ किया गया। यही वजह है कि इन आठ दिनों में शुभ कार्य नहीं किए जाते हैं। क्या कुछ हैं ये कार्य जिन्हें होलाष्टक के दौरान भूल से भी नहीं करना चाहिए अगर आप इसकी जानकारी जानना चाहते हैं तो चलिए जान लेते हैं यह भी।
होलाष्टक के दौरान भूल से भी ना करें ये काम
- होलाष्टक में विवाह, मुंडन, नामकरण, सगाई, समेत सभी16 संस्कार वर्जित माने गए हैं।
- इस दौरान नए मकान, वाहन, प्लाट या दूसरी प्रॉपर्टी की खरीद से भी जितना हो सके बचें।
- होलाष्टक के समय यज्ञ हवन भी नहीं करना चाहिए। अगर आप चाहें तो होली के बाद या उससे पहले अर्थात जब होलाष्टक समाप्त हो जाए तब आप ऐसा कर सकते हैं।
- अगर आप नौकरी में परिवर्तन करना चाहते हैं तो होलाष्टक के दौरान आपको ऐसा करने से बचने की सलाह दी जाती है। इसके साथ ही नई नौकरी ज्वाइन भी करनी है तो भी होलाष्टक के बाद ही करें।
- इसके अलावा कोई भी नया व्यवसाय शुरू करना है तो होलाष्टक का समय इसके लिए भी अनुकूल नहीं माना गया है। आप होलाष्टक से पहले या होलाष्टक के बाद व्यवसाय शुरू कर सकते हैं।
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होलाष्टक के दौरान क्या करें
यूं तो हिंदू धार्मिक मान्यताओं के अनुसार होलाष्टक के दौरान हर तरह के शुभ मांगलिक कार्य करने पर रोक लगाई जाती है लेकिन अगर आप चाहें तो होलाष्टक के दौरान महामृत्युंजय मंत्र का जाप कर सकते हैं। इससे व्यक्ति को तमाम तरह के रोग और दोषों से छुटकारा मिलता है और सेहत अच्छी बनी रहती है। इसके अलावा इस दौरान अगर आप चाहें तो अपनी यथाशक्ति के अनुसार दान पुण्य भी कर सकते हैं। इससे भी आपके जीवन में विशेष और शुभ फल की प्राप्ति होती है।
इसके अलावा होलाष्टक में भगवान शिव की उपासना का विशेष महत्व बताया गया है। कहा जाता है भगवान शिव की अगर इस दौरान उपासना की जाए तो व्यक्ति तमाम तरह के कष्ट से बच सकता है।
होलाष्टक का यह जो समय होता है इस दौरान मौसम में तेजी से बदलाव हो रहा होता है। ऐसे में इस दौरान अनुशासन और नियमित दिनचर्या भी अपनाने की सलाह दी जाती है। इस दौरान जितना हो सके अपने आसपास के वातावरण में साफ सफाई और अपने खान-पान का उचित ध्यान अवश्य रखें। होलाष्टक में भगवान शिव के साथ-साथ भगवान विष्णु की पूजा का भी विशेष महत्व बताया गया है।
इस अवधि में गंगाजल से घर को साफ करने से नकारात्मक ऊर्जा दूर हो जाती है। होलाष्टक का यह समय ध्यान करने के लिए उत्कृष्ट माना गया है क्योंकि यह इच्छाओं और लक्ष्यों को प्राप्त करने में मदद करता है। अगर आप मनचाहा जीवनसाथी पाना चाहते हैं तो इसके लिए कात्यायनी मंत्र का जाप करें। इसके अलावा अगर किसी का निधन हो जाता है तो अंतिम संस्कार से पहले ‘शांति क्रिया’ की जाती है।
यह जानते हैं आप? होलाष्टक की अवधि तांत्रिकों के लिए बहुत अनुकूल मानी जाती है क्योंकि वे साधना के माध्यम से अपने लक्ष्य को आसानी से प्राप्त कर सकते हैं।
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होलाष्टक के दौरान अवश्य अपनाएं ये उपाय
- अगर आप संतान प्राप्ति की चाह रखते हैं तो आपको होलाष्टक के दौरान लड्डू गोपाल की विधिपूर्वक पूजा करने की सलाह दी जाती है। इस उपाय को करने से आपको जल्द ही संतान प्राप्ति होने की संभावना बढ़ जाती है।
- अगर आपको करियर में सफलता प्राप्त करनी है तो होलाष्टक के दौरान जौ, तिल और शक्कर से हवन करें। इससे आपको सफलता अवश्य मिलेगी।
- अगर आपको जीवन में धन प्राप्ति की चाह है या आप आर्थिक रूप से कमजोर हैं तो होलाष्टक के दौरान कनेर के फूल की गांठ, पीली सरसों और अक्षत से अपने घर में हवन करें। इससे आपको जल्दी लाभ मिलेगा।
- उत्तम स्वास्थ्य के लिए अगर आप कोई उपाय अपनाना चाहते हैं तो होलाष्टक की अवधि में महामृत्युंजय मंत्र का जाप करें। इससे आपका स्वास्थ्य तो उत्तम बना ही रहेगा साथ ही आपके घर में मौजूद सभी का स्वास्थ्य भी शानदार रहेगा।
- अगर आप अपने जीवन सुख में प्राप्त करना चाहते हैं और कलह क्लेश और दुख आदि से छुटकारा पाना चाहते हैं तो होलाष्टक में हनुमान चालीसा और विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करें। इससे आपके जीवन के सभी दुख देखते ही देखते समाप्त हो जाएंगे और जीवन में खुशियां बनी रहेगी।
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क्या होलाष्टक को अशुभ मानने के पीछे कोई वैज्ञानिक कारण है?
वैज्ञानिक सिद्धांतों के अनुसार, फाल्गुन शुक्ल पक्ष की अष्टमी को प्राकृतिक जगत में बुरी ऊर्जा व्याप्त होने लगती है। अत: इस समय कोई भी शुभ कार्य न करना आम बात है।
होलाष्टक के दौरान सोने चांदी की खरीदारी शुभ या अशुभ?
होलाष्टक होली के त्योहार से ठीक पहले आता है। ऐसे में बहुत से लोगों के मन में दुविधा होती है कि हमें नए गहने और वस्त्र खरीदने हैं क्या वो इस दौरान होलाष्टक के दौरान किए जा सकते हैं या नहीं? क्या होलाष्टक में सोने चांदी की खरीद अशुभ साबित होती है? तो चलिए आपके इस सवाल का भी जवाब जान लेते हैं।
ज्योतिष के अनुसार माना जाता है कि होलाष्टक के ये आठ दिन वो दिन होते हैं जब हिरणकश्यप ने अपने पुत्र को 8 दिनों तक कठोर यातनाएँ दी थी। ऐसे में ये कष्ट के दिन होते हैं। यही वजह है कि इस दौरान जो भी चीज खरीदी जाती है माना जाता है कि उससे व्यक्ति के जीवन में कष्ट और दुख ही आएगा।
होलाष्टक में अगर कोई भी व्यक्ति सोना या चांदी खरीदता है तो इससे उनके जीवन में दुख आने लगता है। इसके अलावा अगर कोई महिला इसे धारण करती है तो इससे भी उनके जीवन में दुख मंडराने लगता है। यही वजह है कि होलाष्टक में सोना चांदी की खरीद, नया मकान खरीदना, नई गाड़ी खरीदना या कोई भी शुभ मांगलिक कार्य करना वर्जित होता है।
ज्योतिष के कई जानकार होलाष्टक के इन आठ दिनों की तुलना श्राद्ध के दिनों से भी करते हैं। ऐसे में अगर आप भी कोई नया या शुभ काम करना चाहते हैं तो कुछ दिनों का इंतजार करें और होली की शुरुआत से यानी चैत्र माह के कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा तिथि से आप शुभ कार्य करना शुरू कर सकते हैं। इसमें आपको सुख सफलता दोनों प्राप्त होगी।
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