देवों के देव महादेव का वो मंदिर जिसे लोग शापित मानते हैं

सनातन धर्म में जो थोड़ी सी भी आस्था रखता है उनमें से भला कौन ऐसा होगा जो देवों के देव महादेव को नहीं पूजता होगा? भला कौन है जो महादेव को नमन नहीं करता होगा? लेकिन अगर हम आपसे कहें कि उत्तराखंड में एक ऐसी जगह है जहां भगवान शिव के एक मंदिर में लोग दर्शन तो करते हैं लेकिन भगवान शिव को नमन नहीं करते तो आप क्या कहेंगे? जाहिर है कि आप सब को इस बात का बहुत ही आश्चर्य होगा लेकिन यह बात है सौ टका सच। ऐसा नहीं है कि इस मंदिर में भगवान शिव का शिवलिंग नहीं मौजूद है या फिर यह मंदिर जीर्ण अवस्था में है। बल्कि मंदिर तो इतना खूबसूरत है कि दूर दराज से लोग इसे देखने आते हैं। तो फिर क्या वजह है?

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वजह के साथ-साथ एक कथा भी है जो इस मंदिर से जुड़ी है और आज इस लेख में हम आपको उसी मंदिर के बारे में बताने वाले हैं जहां महादेव भी हैं और उनके भक्त भी लेकिन कोई भी उनकी पूजा नहीं करता।

कहाँ है यह अनोखा शिव मंदिर?

भारत का एक राज्य उत्तराखंड। उत्तराखंड को देवों की भूमि कहा जाता है। इसी देवभूमि की राजधानी देहरादून से लगभग 70 किलोमीटर दूर थल नामक एक कस्बा है जिस से मात्र 6 किलोमीटर की दूरी पर एक गांव है, सभा बल्तिर।

यहाँ मौजूद है भगवान शिव का यह अनोखा मंदिर जिसकी कलाकृति इतनी खूबसूरत है की इसे देखने के लिए दूरदराज से लोग खींचे चले आते हैं और यहाँ काफी भीड़ भी होती है। लेकिन इतने सारे लोगों के बीच किसी की भी ये हिम्मत नहीं होती कि वह मंदिर में भगवान शिव की पूजा करे या फिर इस मंदिर के चौखट को लांघे। आलम यह है कि भगवान शिव के भक्त यहां मन्नत तो मांगते हैं लेकिन बाबा भोले पर ना पुष्प चढ़ाते हैं और ना ही जल। दरअसल यहां के लोगों की मान्यता है कि यह शिव मंदिर शापित है। मान्यता यह भी है कि इस मंदिर का निर्माण मात्र एक चट्टान और एक ही हाथ से किया गया है। एक हाथ से इस मंदिर के निर्माण की वजह से इसका नाम हथिया देवल मंदिर भी है।

हथिया देवल शिव मंदिर की कहानी?

कहा जाता है कि बहुत पहले यहां पर एक कत्यूरी नामक राजा का राज हुआ करता था। राजा कत्यूरी को कलाकृतियों का बड़ा शौक था और वह इसके लिए लगातार अपने राज्य में काम किया करता था। इस क्रम में राजा की कोशिश यह भी रहती थी कि वह दूसरे राज्यों से कलाकृति के मामले में हमेशा आगे रहे। इसी संदर्भ में राजा के मन में एक बार एक शिव मंदिर बनवाने का खयाल आया। तब राजा ने राज्य के सबसे बेहतरीन कारीगर को इस काम का जिम्मा सौंपते हुए यह आदेश दिया कि वह रातों रात यहाँ पर एक शिव मंदिर का निर्माण करे। कारीगर तैयार हो गया। उसने रातों रात यहाँ एक ही हाथ से बेहद खूबसूरत मंदिर का निर्माण कर दिया।

कहते हैं कि जब राजा ने यह मंदिर देखा तो वह इस मंदिर को देखता ही रह गया। उसके मन में इस बात का लालच आया कि कोई दूसरा राज्य इस मंदिर को दोबारा न बना सके इसलिए उसने उस कारीगर के हाथ कटवा दिये थे। उसके बाद वह कारीगर वहाँ से चला गया और कभी भी वापस नहीं आया।

इस वजह से नहीं होती है पूजा

कहते हैं कि बाद में जब मंदिर के अंदर पुजारियों ने भगवान शिव की पूजा करने के लिए प्रवेश किया तो वो चौंक गए। दरअसल मंदिर में मौजूद शिवलिंग का अरघा उल्टी दिशा में बना हुआ था। उन्होंने यह बात राजा को बताई कि गलत दिशा के शिवलिंग की पूजा नहीं की जा सकती। राजा ने तमाम कोशिश कर लिए लेकिन मंदिर का अरघा सीधा नहीं हुआ जिसके बाद इस मंदिर में पूजा पर पाबंदी लग गयी। मान्यता है कि जो भी इस मंदिर में पूजा करेगा उसे अशुभ फल प्राप्त होगा।

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मंदिर को देखने के लिए उमरती है भीड़

हथिया देवाल मंदिर की कलाकृति बड़ी सुंदर है। इसे लैटिन पद्धति से बनाया गया है। मंदिर का मंडप लगभग 1.85 मीटर ऊंचा है जबकि मंदिर की चौड़ाई 3.15 मीटर है। इसका प्रवेश द्वार पश्चिम की तरफ है। मंदिर के पास में ही एक जल सरोवर है जिसे स्थानीय लोग नौला बुलाते हैं। इस जल सरोवर पर मुंडन इत्यादि का काम होता है लेकिन मंदिर में किसी भी प्रकार की पूजा नहीं होती है।

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