हनुमान जी यानी कि महाभारत के सबसे मुख्य किरदारों में से एक, भगवान राम के सबसे बड़े भक्त, भगवान महादेव के ग्यारहवें रुद्र अवतार और संकटमोचक भगवान। ये सारे विशेषण हनुमान जी के साथ जोड़े जाते रहे हैं लेकिन ऐसे कई और भी विशेषण हैं जिंका भगवान हनुमान के लिए उपयोग किया जाता है। ऐसे ही एक विशेषण है बाल ब्रह्मचारी का।
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मान्यता है कि राम भक्त हनुमान जी बाल ब्रह्मचारी थे। यही वजह है कि हनुमान जी की प्रतिमा का औरतों द्वारा स्पर्श किया जाना वर्जित माना जाता है। लेकिन अगर हम आज आपको यह कहें कि देश में एक ऐसा मंदिर भी है जहां भगवान हनुमान स्त्री के रूप में स्थापित हैं, तब आप क्या कहेंगे? अब आप जो भी कहें लेकिन जानकारी है सौ टका सच। न सिर्फ यहाँ मौजूद हनुमान जी का रूप बल्कि इस मंदिर के स्थापना की कहानी भी बहुत रोचक है और आज इस लेख में बात इसी मंदिर की।
गिरजाबांध हनुमान मंदिर
भारत के एक छोटे से राज्य छतीसगढ़ के बिलासपुर से लगभग 25 किलोमीटर दूर रतनपुर के गिरजाबांध में मौजूद है गिरजाबांध हनुमान मंदिर। मंदिर की सबसे खास बात यह है कि यहां भगवान हनुमान देवी रूप में मौजूद हैं। मंदिर में मौजूद मूर्ति भी काफी अलग दिखती है। मान्यता है कि यहां मौजूद हनुमान प्रतिमा करीब दस हजार साल पुरानी है।
यहां मौजूद हनुमान जी की प्रतिमा का मुख दक्षिण की तरफ है और उनके सर पर एक मुकुट विराजमान है। मूर्ति पर पाताल लोक का चित्र भी बना हुआ है। वहीं मंदिर में मौजूद मूर्ति के बाएं कंधे पर भगवान श्री राम बैठे हुए नजर आते हैं तो वहीं दाएं कंधे पर श्री लक्ष्मण। जबकि मूर्ति के दोनों पैरों के नीचे दो दैत्य दबे हुए नजर आते हैं। हनुमान जी के बाएं पैर के नीचे अहीरावन है जबकि दाएं पैर के नीचे कसाई दबा हुआ है।
कैसे स्थापित हुआ गिरजाबांध हनुमान मंदिर?
गिरजाबांध मंदिर के स्थापना की कहानी बड़ी रोचक है। किंवदंती है कि बहुत पहले रतनपुर पर एक राजा का राज हुआ करता था। नाम था पृथ्वी देवजू। राजा पृथ्वी देवजू हनुमान जी के बहुत बड़े भक्त थे। लेकिन राजा देवजू के साथ एक समस्या थी। राजा को कुष्ठ रोग था। ऐसे में राजा अपने शरीर को लेकर लाचार रहता था और अत्यंत पीड़ा में जीवन व्यतीत करता था। एक दिन उसने भगवान हनुमान से याचना करते हुए मदद मांगी और अपनी तकलीफ बताते-बताते सो गया।
उसी रात भगवान हनुमान उसके सपने में आए। लेकिन राजा उनके रूप को देख कर आश्चर्य में पड़ गया। भगवान हनुमान का वेश किसी देवी के जैसा था लेकिन वो देवी नहीं थे। शरीर लंगूर का था लेकिन उनकी पूंछ नहीं थी। दोनों कानों में कुंडल थे और भगवान हनुमान ने अष्ट श्रृंगार किया हुआ था। हनुमान जी ने राजा देवजू से कहा कि वे राज की भक्ति से बेहद प्रसन्न हैं। ऐसे में राजा उनके लिए एक भव्य मंदिर का निर्माण करे जिसके पीछे के हिस्से में एक तालाब हो। हनुमान जी ने उस राजा से यह भी कहा कि उस मंदिर में पूजा से पहले सरोवर में स्नान करने के बाद राजा नियमित व विधिवत रूप से उस मंदिर में पूजा करेगा तो उसकी यह बीमारी भी दूर हो जाएगी।
राज की जब नींद खुली तो उसने अपने अन्य दरबारियों के साथ इस स्वप्न की चर्चा की। सबने एक स्वर में राजा को इस मंगल कार्य को यथाशीघ्र शुरू करने को कहा। तब राजा ने गिरजाबांध में एक जमीन पर हनुमान जी का मंदिर बनवाया। लेकिन फिर एक समस्या आई कि मंदिर के लिए मूर्ति कहाँ से और कैसी लायी जाये क्योंकि राजा ने स्वप्न में भगवान का जो रूप देखा था, वैसी मूर्ति बनाना या बनवाना किसी के लिए भी आसान नहीं था।
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ऐसे में राजा परेशान हो उठा। उसे लगने लगा कि शायद अब वह ठीक नहीं हो पाएगा। लेकिन भगवान हनुमान उसके स्वप्न में दोबारा आए और राजा को मूर्ति का पता बताया। राजा जब उस जगह गए तो उन्हें वहां हनुमान जी की मूर्ति उसी रूप में मिली जिस रूप में उन्होंने राजा को दर्शन दिए थे। राजा यह देख कर बड़ा प्रसन्न हुआ और उसने वह मूर्ति लाकर मंदिर में स्थापित कर दी व नियमित हनुमान जी के आदेशानुसार उसकी पूजा करने लगा। राजा की बीमारी ठीक हो गयी और वह पहले जैसा स्वस्थ हो गया। मान्यता है कि आज भी इस मंदिर में जो सच्ची श्रद्धा और आस्था के साथ भगवान हनुमान से कुछ भी मांगता है तो भगवान हनुमान उसकी सारी मनोकामना पूरी करते हैं। ऐसे में आपको कभी भी मौका मिले तो इस मंदिर में भगवान हनुमान के इस दिव्य रूप के दर्शन जरूर करें।
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