दुर्गा विसर्जन 2025: नवरात्रि के पावन नौ दिनों तक मां दुर्गा की भक्ति और आराधना का पर्व पूरे उल्लास और श्रद्धा के साथ मनाया जाता है। ढोल-नगाड़ों की गूंज, देवी के जयकारों और भक्तिमय वातावरण से पूरा माहौल शक्ति और उत्साह से भर उठता है। लेकिन जब ये नौ दिन पूरे होते हैं, तब आता है वह भावुक पल, जब मां दुर्गा की प्रतिमाओं का विसर्जन किया जाता है।

माना जाता है कि इस दिन देवी अपने मायके से विदा होकर कैलाश पर्वत लौट जाती हैं। इसी कारण दुर्गा विसर्जन का दिन भक्तों के लिए आस्था, भक्ति और भावनाओं का संगम होता है। शुभ मुहूर्त में किए गए विसर्जन से जीवन में सुख-समृद्धि, शांति और सौभाग्य का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
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आज के हमारे इस विशेष ब्लॉग के माध्यम से हम जानेंगे कि वर्ष 2025 में दुर्गा विसर्जन किस दिन किया जाएगा, इसका शुभ मुहूर्त क्या रहने वाला है और इस दौरान आपको किन बातों के प्रति विशेष रूप से सावधानी बरतने की आवश्यकता रहेगा। तो चलिए आगे बढ़ने से पहले सबसे पहले जान लेते हैं 2025 में दुर्गा विसर्जन कब किया जाएगा।
दुर्गा विसर्जन 2025 की तारीख और मुहूर्त
2025 में दुर्गा विसर्जन 02 अक्टूबर 2024 गुरुवार के दिन किया जाएगा। बात करें इसके विसर्जन मुहूर्त की तो,
दुर्गा विसर्जन समय : सुबह 06 बजकर 14 मिनट से सुबह 08 बजकर 36 मिनट तक
अवधि : 2 घंटे 22 मिनट
दुर्गा विसर्जन का महत्व केवल धार्मिक दृष्टि से ही नहीं बल्कि परंपरा और आस्था से भी गहराई से जुड़ा हुआ है। शास्त्रों के अनुसार, विसर्जन का मुहूर्त तभी मान्य होता है, जब विजयादशमी तिथि प्रातःकाल या अपराह्न काल में व्याप्त हो।
ऐसे समय में मां दुर्गा की प्रतिमा का विसर्जन करने से विशेष पुण्य और आशीर्वाद की प्राप्ति होती है। खासकर यदि दशमी तिथि और श्रवण नक्षत्र दोनों एक साथ अपराह्न काल में हों, तो यह समय दुर्गा विसर्जन के लिए सबसे उत्तम माना जाता है।
मान्यता है कि अधिकांश भक्त दुर्गा विसर्जन के बाद ही अपने नवरात्रि व्रत की पारण करते हैं, यानी नौ दिनों के उपवास को पूर्ण करते हैं। इसके बाद ही विजयदशमी का पर्व धूमधाम से मनाया जाता है।
यही दिन धर्म और अधर्म के बीच विजय का प्रतीक माना जाता है क्योंकि इसी तिथि को भगवान श्री राम ने रावण का वध किया था और मां दुर्गा ने महिषासुर नामक असुर का संहार किया था।
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दुर्गा विसर्जन 2025 का महत्व
दुर्गा विसर्जन नवरात्रि उत्सव का सबसे भावुक और महत्वपूर्ण चरण माना जाता है। नौ दिनों तक मां दुर्गा की आराधना और भक्ति करने के बाद भक्त उन्हें विदा करते हैं और प्रतिमा का विसर्जन जल में करते हैं। यह परंपरा इस बात का प्रतीक है कि देवी अपने भक्तों के घर से विदा होकर कैलाश पर्वत लौट जाती हैं। विसर्जन का धार्मिक महत्व भी बहुत गहरा है।
माना जाता है कि शुभ मुहूर्त में किए गए विसर्जन से परिवार में सुख-समृद्धि, शांति और सौभाग्य का आशीर्वाद प्राप्त होता है। दुर्गा विसर्जन अच्छाई की बुराई पर विजय का संदेश देता है। इस दिन भगवान श्रीराम ने रावण का वध किया था और मां दुर्गा ने महिषासुर का अंत किया था। इसलिए यह दिन शक्ति और धर्म की जीत का प्रतीक माना जाता है। अधिकांश भक्त विसर्जन के बाद ही अपने नवरात्रि व्रत पारण करते हैं यानी नौ दिनों के उपवास को पूर्ण करते हैं।
इसके साथ ही विसर्जन का एक दार्शनिक महत्व भी है। मिट्टी की प्रतिमा का जल में विलीन हो जाना यह सिखाता है कि जीवन अस्थायी है और हर अंत एक नए आरंभ का मार्ग बनाता है। यही कारण है कि दुर्गा विसर्जन को न केवल धार्मिक दृष्टि से बल्कि जीवन दर्शन और आस्था के प्रतीक के रूप में भी विशेष महत्व दिया गया है।
दुर्गा विसर्जन 2025 : पूजा विधि
- सबसे पहले स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें और विसर्जन का संकल्प लें।
- देवी की प्रतिमा को फूल, चंदन, सिंदूर, धूप-दीप और नैवेद्य अर्पित करें।
- विसर्जन से पहले अपराजिता देवी की पूजा करने का विधान है। इसे शुभ माना जाता है।
- देवी को नारियल, पान, सुपारी, वस्त्र और दक्षिणा अर्पित कर उन्हें विदाई दी जाती है।
- मां की विदाई से पहले आरती की जाती है और भक्त जयकारे लगाते हैं।
- शुभ मुहूर्त में प्रतिमा को जल में विसर्जित किया जाता है। इस समय भक्त “मां अगले वर्ष फिर आना” का जयकारा लगाते हैं।
- प्रतिमा विसर्जन के बाद भक्त अपने नौ दिनों के व्रत को तोड़ते हैं और विजयदशमी का पर्व मनाते हैं।

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दुर्गा विसर्जन करते समय इन बातों का रखें ध्यान
- दुर्गा विसर्जन के लिए किसी पवित्र नदी, तालाब या जलाशय को सबसे शुभ माना जाता है।
- मां की प्रतिमा, कलश या जवारे का विसर्जन हमेशा पूरे श्रद्धा और आस्था के साथ करना चाहिए।
- विसर्जन के लिए जाते समय देवी की प्रतिमा का उतना ही ध्यान रखें, जितना आपने उन्हें घर लाते समय रखा था।
- इस दौरान यह विशेष ध्यान रखें कि प्रतिमा को कोई नुकसान न पहुंचे विसर्जन से पहले मां दुर्गा की विधिवत पूजा और आरती अवश्य करें।
- आरती की पवित्र ज्योति को मां के आशीर्वाद और प्रसाद स्वरूप ग्रहण करें।
- पूजा में प्रयुक्त सामग्री को भी सम्मानपूर्वक पवित्र जल में विसर्जित किया जा सकता है।
- विसर्जन के बाद किसी ब्राह्मण को नारियल, वस्त्र और दक्षिणा का दान करना अत्यंत शुभ फलदायी माना गया है।
दुर्गा विसर्जन करते समय इन मंत्रों का करें जप
दुर्गा विसर्जन 2025 का विदाई मंत्र
“पुनरागमनाय च विद्यमानाय च नमः।”
(हे मां! अगले वर्ष फिर से पधारने की प्रार्थना के साथ आपको नमन है।)
पूजन मंत्र
“ॐ सर्वमंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके।
शरण्ये त्र्यंबके गौरि नारायणि नमोऽस्तुते॥”
दुर्गा विसर्जन 2025 का अभय मंत्र
“या देवी सर्वभूतेषु शक्ति-रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै, नमस्तस्यै, नमस्तस्यै, नमो नमः॥”
दुर्गा विसर्जन 2025 का विसर्जन मंत्र
“गच्छ गच्छ सुरश्रेष्ठे स्वस्थानं परमं पदम्।
पूजामादाय मे देवि पुनरागमनाय च॥”
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दुर्गा विसर्जन 2025 के नियम वरना निष्फल हो सकता है व्रत
- दुर्गा विसर्जन से पहले मां दुर्गा के समक्ष हवन करना शुभ माना जाता है।
- इसके बाद देवी को पान के पत्ते पर सिंदूर अर्पित करें और विवाहित महिलाओं को भी सिंदूर लगाएं। दुर्गा पूजा में सिंदूर का महत्व बहुत अधिक है।
- मान्यता है कि ऐसा करने से सौभाग्य और मंगल की वृद्धि होती है।
- नवरात्रि के प्रथम दिन स्थापित किए गए कलश का जल विसर्जन से पहले आम के पत्तों द्वारा पूरे घर में छिड़क दें। इससे नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है और वातावरण शुद्ध होता है।
- नौ दिनों की पूजा अर्चना के दौरान देवी को अर्पित की गई सामग्री, कलश का जल और अन्य पूजन सामग्री प्रतिमा के साथ पवित्र नदी या तालाब में विसर्जित करें।
- घट स्थापना का नारियल और नवरात्रि के पहले दिन बोए गए ज्वारे भी प्रतिमा के साथ विसर्जित कर दिए जाते हैं। कुछ लोग इन ज्वारों को घर में धन-स्थान पर भी रखते हैं, जिससे घर में सुख-समृद्धि और बरकत बनी रहती है।
सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि मां दुर्गा की प्रतिमा को पूरे सम्मान और श्रद्धा के साथ जल में विसर्जित करें, क्योंकि अनादर के साथ किया गया विसर्जन नौ दिनों की पूजा को निष्फल कर सकता है।
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दुर्गा विसर्जन 2025 के दौरान सिंदूर का महत्व
दुर्गा विसर्जन 2025 के समय सिंदूर का विशेष महत्व होता है। नवरात्रि के अंतिम दिन प्रतिमा विसर्जन से पहले देवी दुर्गा को सिंदूर चढ़ाने और विवाहित स्त्रियों को सिंदूर अर्पित करने की परंपरा होती है। इसे सिंदूर खेला भी कहा जाता है।
माना जाता है कि यह परंपरा सौभाग्य, समृद्धि और दांपत्य सुख का प्रतीक है। विवाहित स्त्रियां देवी दुर्गा को सिंदूर अर्पित कर अपने और अपने परिवार के सुख-शांति, पति की लंबी आयु और वैवाहिक जीवन की मंगलकामना करती हैं। एक-दूसरे को सिंदूर लगाना आपसी भाईचारे, प्रेम और शुभता का द्योतक है।
धार्मिक मान्यता है कि दुर्गा मां को सिंदूर चढ़ाने से भक्तों के जीवन में सौभाग्य की वृद्धि होती है और देवी का आशीर्वाद घर-परिवार पर सदैव बना रहता है। सिंदूर का रंग शक्ति और ऊर्जा का प्रतीक है, जो देवी दुर्गा की शक्ति स्वरूप छवि को दर्शाता है।
विसर्जन के समय सिंदूर अर्पित करना इस बात का संकेत है कि देवी का आशीर्वाद हमारे जीवन में शक्ति, सौंदर्य, मंगल और सम्पन्नता के रूप में सदैव बना रहेगा।
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अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न
दुर्गा विसर्जन नवरात्रि के अंतिम दिन यानी विजयादशमी को किया जाता है। यह कार्य प्रातःकाल या अपराह्न काल में विजय दशमी तिथि में करना शुभ माना जाता है।
पारंपरिक रूप से प्रतिमा का विसर्जन किसी पवित्र नदी, तालाब या जलाशय में किया जाता है। आजकल पर्यावरण को ध्यान में रखते हुए कृत्रिम तालाबों का भी उपयोग किया जाता है।
विसर्जन से पहले मां दुर्गा की विधिवत पूजा, आरती और हवन किया जाता है। देवी को पान, सिंदूर, नारियल, फल और दक्षिणा अर्पित की जाती है।