सनातन धर्म में भगवान भोलेनाथ को देवों का देव कहा गया है। यानी कि भगवान शिव सभी देवताओं में श्रेष्ठ हैं। यही वजह है कि अगर एक बार भगवान शिव की आपके ऊपर कृपा हो गयी तो फिर आपके सारे कष्ट दूर हो जाते हैं। भगवान शिव के भक्त ऐसे में कोई भी मौका नहीं छोड़ते जिसके जरिये वो अपने आराध्य को प्रसन्न कर सकें। ऐसे में मासिक शिवरात्रि का महत्व उनके लिए काफी बढ़ जाता है। मान्यता है कि इस दिन ही भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह हुआ था। आपको बता दें कि हिन्दू कैलेण्डर के अनुसार हर महीने के कृष्ण पक्ष के चौदहवें दिन को मासिक शिवरात्रि मनाई जाती है। माना जाता है कि मासिक शिवरात्रि करने से भक्तों का ख़ुद की इन्द्रियों पर नियंत्रण रहता है और क्रोध, ईर्ष्या, अभिमान, अहंकार और लालच जैसे अवगुणों का नाश होता है। भोलेनाथ की कृपा से भक्तों के सारे कष्ट भी दूर हो जाते हैं। ऐसे में हम आज आपको इस लेख में मासिक शिवरात्रि की तिथि, शुभ मुहूर्त और पूजा विधि बताएंगे।
कब है चैत्र मासिक शिवरात्रि?
इस साल चैत्र मास में मासिक शिवरात्रि 10 अप्रैल को शनिवार के दिन पड़ रही है। 10 अप्रैल को प्रातः 04 बजकर 27 मिनट से मासिक शिवरात्रि की शुरुआत हो जाएगी और अगले दिन यानी कि 11 अप्रैल को रविवार के दिन सुबह 06 बजकर 03 मिनट पर इसका समापन होगा। चूँकि शिवरात्रि की पूजा मध्य रात्रि में होती है इसलिए सभी भक्त 10 अप्रैल को ही व्रत रखेंगे।
चैत्र मासिक शिवरात्रि का पूजा मुहूर्त
चैत्र मासिक शिवरात्रि की पूजा 10 अप्रैल की रात 11 बजकर 59 मिनट से शुरू होगी और 12 बजकर 45 मिनट पर इसका समापन होगा। ऐसे में भगवान भोलेनाथ के उपासकों को उनकी पूजा के लिए 45 मिनट का समय मिलेगा।
पूजा विधि
- इस दिन उपासक सूर्योदय से पहले उठ जाएँ और स्नान कर के स्वच्छ कपड़े धारण करें।
- फिर मंदिर जाकर भगवान शिव और उनके पूरे परिवार की पूजा-अर्चना करें।
- मंदिर में मौजूद शिवलिंग का गंगाजल, घी, दूध या शक्कर इत्यादि से रुद्राभिषेक करें। भगवान भोलेनाथ को अभिषेक बेहद प्रिय है।
- अभिषेक के बाद भगवान भोलेनाथ को बेलपत्र, धतूरा और श्रीफल अर्पित करें।
- इसके बाद भोलेनाथ को धुप, दीप, फल और फूल अर्पित कर उनकी पूजा करें।
- पूजा के दौरान आप शिव पुराण, शिव स्तुति, शिव अष्टक, शिव चालीसा और शिव श्लोक का पाठ करें।
- उपासक संध्या में फलाहार कर सकते हैं। इस दिन भक्तों को अन्न ग्रहण नहीं चाहिए।
- अगले दिन भगवान शिव की पूजा कर लें और दान दक्षिणा करने के बाद भक्त अपना व्रत खोल सकते हैं।
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