जानें क्यों दत्तात्रेय को कहा जाता है त्रिदेवों का अंश

भगवान दत्तात्रेय सृष्टि रचयिता विष्णु के अवतार है। पौराणिक कथा के अनुसार 24 अवतारों में से भगवान दत्तात्रेय का अवतार छठे नंबर पर हुआ था। कुछ मान्यताओं के अनुसार भगवान दत्तात्रेय को शिव जी का भी स्वरूप माना जाता है,और ऐसी मान्यता है, कि भगवान दत्तात्रेय में त्रिदेव ब्रह्मा, विष्णु, महेश तीनों की शक्तियां समाहित है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार भगवान दत्तात्रेय में ईश्वर और गुरु दोनों विराजमान है, इसलिए कुछ स्थानों पर भगवान दत्तात्रेय को श्री गुरूदेव दत्त के नाम से भी पूजा जाता है। भगवान दत्तात्रेय का 700 साल पुराना मंदिर इंदौर में स्थित है, जहां दर्शन करने के लिए भक्त दूर-दूर से दर्शन करने के लिए पहुंचते है। भगवान दत्तात्रेय की यदि जातक पूरे विधि-विधान के साथ पूजा करता है, तो भगवान उसपर प्रसन्न होकर उसकी सभी मनोकामना पूरी करते हैं। और जातक पर सदैव ब्रह्मा, विष्णु, महेश की असीम कृपा बनी रहती है। 

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भगवान दत्तात्रेय जन्म की रोचक कथा

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार…एक बार देवलोक में त्रिदेवियों यानि सरस्वती, लक्ष्मी और पार्वती जी को अपने पति व्रत धर्म पर अभिमान हो गया, और उनका यह अभिमान देख भगवान विष्णु के मन में एक ख्याल आया, उन्होंने सोचा क्यों ना सभी देवियों के साथ थोड़ा मस्ती की जाए, अर्थात् विष्णु जी ने अपने मन की बात नारद मुनि को बताई, तभी पूरी सृष्टि का भ्रमण कर लौटे नारद जी ने त्रिदेवियों के सामने माता अनसूया के पतिव्रत का बखान कर दिया, उनके मुंह से किसी और नारी के पतिव्रत की बात सुन तीनों देवियां व्याकुल हो उठी, और अपने पतियों से माता अनसूया के पतिव्रत की परीक्षा लेने की हठ करने लगी। देवियों की हठ के आगे त्रिदेवों की एक ना चली और वो तीनों ब्राह्मण का वेश धारण कर महर्षि आत्रि के आश्रम के बाहर खड़े हो गए। 

आश्रम में महर्षि अत्रि नहीं थे, तो उनकी पत्नी अनसूया ने तीनों ब्रह्माणों को अंदर आमंत्रित किया। परंतु तीनों देव बोले यदि आप हमे अपनी गोद में बैठाकर भोजन कराएगी तभी हम आपका आमंत्रण स्वीकार करेंगे।  ये सुनते ही माता अनसूया संकट में पड़ गई, और सोचने लगी, अब क्या करें। फिर माता अनसूया ने अपने पति का स्मरण करते हुए, कहा यदि उनका पतिव्रता धर्म सत्य है तो यह तीनों ब्राह्मण 6 महीने के बालक बन जाए। माता अनसूया के तपोबल से ब्रह्मा, विष्णु, महेश तीनों 6 माह के शिशु बन गए। तीनों 6 माह के शिशु बनते ही रोने लगे, फिर माता अनसूया ने उन तीनों को अपनी गोद में बैठाकर दूध पिलाया और पालने में सुला दिया। 

कुछ समय तक ऐसा चलता रहा, इधर देवलोक में तीनों देवियां अपने पतियों के वापस ना आने पर परेशान होने लगी, तब जाकर नारद जी ने उन्हें सारी व्यथा सुनाई।  जिस पर तीनों देवियां माता अनसूया के आश्रम पहुंची, और उनसे क्षमा मांगते हुए, अपने पतियों को उसी रुप में लाने का आग्रह करने लगी।

त्रिदेवियों से सारी बात जानने के बाद माता अनसूया ने अपने पतिव्रत धर्म के तपोबल से  तीनों देवों को पूर्व रूप में कर दिया। जिससे प्रसन्न होकर त्रिदोवों ने माता अनसूया से वर मांगने को कहा, तो माता अनसूया बोली…हे नाथ मुझे आप तीनों की ही पुत्र रूप में प्राप्ति हो, त्रिदेव तथास्तु बोल कर अपनी देवियों के साथ वहां से चले गए।  कुछ समय बाद यही तीनों देव माता अनसूया के गर्भ से प्रकट हुए, जिन्हें दत्तात्रेय के नाम से जाना जाता है।

 कल्कि जयंती : जानें भगवान विष्णु को समर्पित इस दिन का महत्व और पूजन विधि

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