कल्कि जयंती : जानें भगवान विष्णु को समर्पित इस दिन का महत्व और पूजन विधि

भगवान विष्णु के नौ-अवतार अब तक अवतरित हो चुके हैं, अब बाकी है उनका आखिरी और दसवें अवतार के होने की। हिन्दू पुराणों के अनुसार, विष्णु भगवान के दसवें अवतार का जन्म सावन माह में शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को होगा। यही वजह है जिसके चलते सावन माह में शुक्ल पक्ष षष्ठी को कल्कि जयंती का पर्व मनाया जाता है। इस वर्ष कल्कि जयंती 25-जुलाई 2020, शनिवार के दिन मनाई जाएगी। 

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आपने शायद ही ऐसा सुना हो कि हम एक ऐसे भगवान की पूजा करते हैं जिनका अभी तक अवतरण भी नहीं हुआ है। लेकिन कल्कि जयंती एक ऐसा पर्व है जहाँ हम भगवान विष्णु के एक ऐसे अवतार की पूजा करते हैं जिनका अवतरण अभी हुआ नहीं है।पुराणों में बताया गया है कि, कलियुग के अंत में भगवान कल्कि अवतरित होंगे। वो एक सफेद घोड़े पर बैठ कर आएंगे और राक्षसों का नाश कर देंगे। 

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पौराणिक मान्यता के अनुसार कलियुग 432000 वर्ष का है जिसका अभी प्रथम चरण ही चल रहा है। कलियुग की शुरुआत हुई 3102 ईसा पूर्व से, जब पांच ग्रह; मंगल, बुध, शुक्र, बृहस्‍पति और शनि, मेष राशि पर 0 डिग्री पर हो गए थे। इसका मतलब 3102+2019= 5121 वर्ष कलियुग के बीत चुके हैं और 426879 वर्ष अभी बाकी है और अभी से ही कल्कि की पूजा, आरती और प्रार्थन शुरू हो गई है। माफ करना अभी से नहीं करीब पौने तीन सौ साल से उनकी पूजा जारी है। 

भगवान विष्णु का यह अवतार भविष्य में होगा या नहीं यह अभी अनिश्चित है, लेकिन लोगों को पूजा करने से भला कौन रोक सकता है । करने वाले तो अभिताभ और रजनीकांत की पूजा भी करते ही हैं।

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कल्की पुराण के अनुसार कलयुग में भगवान विष्णु कल्कि रूप में अवतार लेंगे। कल्कि अवतार कलियुग और सतयुग के संधिकाल में होगा। यह अवतार 64 कलाओं से युक्त होगा। पुराणों के अनुसार उत्तरप्रदेश के मुरादाबाद जिले के शंभल नामक स्थान पर विष्णुयशा नामक तपस्वी ब्राह्मण के घर भगवान कल्कि पुत्र रूप में जन्म लेंगे। कल्कि देवदत्त नामक घोड़े पर सवार होकर संसार से पापियों का विनाश करेंगे और धर्म की पुन:स्थापना करेंगे।

आज अगर हम अपने चारों तरफ नजर डालें तो हम देखेंगे कि, शास्त्रों में कलियुग के चौथे चरण के जो लक्षण बताए गए हैं, वे सब इस प्रथम चरण में ही पूरे होने के करीब आ गए हैं। जहाँ एक तरफ़ धर्म, सत्य, दया, क्षमा, पवित्रता, आयु का लोप हो गया है, वहीं दूसरी तरफ धनी और पाखंडी ही समाज के श्रेष्ठ हो गए हैं।

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प्रकृति असंतुलित हो गई है, कहीं अतिवृष्टि, तो कहीं अनावृष्टि, चारों तरफ असुरी शक्तियों के प्रहार से हाहाकार मचा हुआ है, हर आदमी किसी न किसी रोग से ग्रस्त है, वर्ण व्यवस्था समाप्त हो रही है, धन के लिए पुत्र, पिता के और भाई, भाई के प्राण ले रहा है, स्त्रियों में शालीनता और लज्जा का लोप होता जा रहा है। 

कैसे करें भगवान के कल्कि स्वरुप की प्रार्थना 

ये परिस्थितियां इस सत्य की तरफ इशारा कर रही हैं कि युगावतार भगवान श्री कल्कि के प्रकट होने का समय नजदीक आ रहा है। संगठन मानता है कि, प्रत्यक्ष को प्रमाण की आवश्यकता नहीं होती। आप कल्किजी की लीला का अनुभव करना चाहते हैं तो उनके महामंत्र- ‘जय कल्कि जय जगत्पते पद्मापति जय रमापते’ और उनके बीजमंत्र ‘ॐ कोंग कल्कि देवाय नमः’ की एक-एक माला का जाप कीजिए।

इसके अलावा प्रार्थना के साथ फल समर्पण कीजिए और आप खुद ही देखेंगे और प्रत्यक्ष, स्वप्न, जाग्रत और वाणी अनुभवों द्वारा महसूस करेंगे कि, श्री कल्किजी आपके मानस में प्रकट होकर आपको परेशानियों से निकालने का रास्ता दे रहे हैं, इसके अलावा वो आपकी और आपके परिवार की रक्षा कर रहे हैं।

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देश में मौजूद हैं कल्कि भगवान के कई मंदिर 

बता दें कि यूँ तो अभी तक भगवान विष्णु के कल्कि अवतार का जन्म नहीं हुआ है लेकिन, फिर भी हमारे देश में भगवान विष्णु के कल्कि अवतार के कई मंदिर मौजूद हैं। कहा जाता है कि भगवान श्री कल्कि का यह अवतार निष्कलंक भगवान के नाम से जाना जाएगा। पौराणिक कथाओं में भगवान के इस रूप के बारे में कहा जाता है कि जब कलियुग में जब पाप की सीमा हद से बढ़ जाएगी तब दुष्टों का संहार करने के लिए भगवान कल्कि अवतार लेकर धरती पर अवतरित होंगे।

तभी से सतयुग की शुरुआत भी होगी। कल्कि भगवान शिव के भक्त होंगे और परशुराम उनके गुरु होंगे।

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देश में इन जगहों पर है कल्कि मंदिर 

  • उत्तर प्रदेश में संभल नामक स्थान पर भगवान कल्कि का मंदिर है। इस मंदिर में प्रतिवर्ष अक्टूबर से नवंबर के महीने के दौरान कल्कि महोत्सव मनाया जाता है। 
  • इसके अलावा जयपुर के मशहूर  हवा महल के पास भी भगवान कल्कि का एक प्राचीन मंदिर है। 
  • मथुरा में गोवर्धन स्थित श्री गिरिराज मंदिर परिसर में भी कल्कि भगवान का एक मंदिर मौजूद  है। 
  • इसके अलावा वाराणसी में दुर्गाकुंड स्थित दुर्गा मंदिर परिसर में भी भगवान कल्कि का एक मंदिर स्थापित है।

इन जगहों के अलावा दिल्ली, नैमिषारण्य, कोलकाता, गया धाम, बृज घाट गढ़मुक्तेश्वर, वैष्णो देवी कटरा, मानेसर आदि जगहों पर भी आपको कल्कि अवतार की मूर्तियाँ स्थापित नज़र आ जाएँगी। इसके अलावा नेपाल में भी भगवान कल्कि की मूर्ति स्थापित है।

श्रीमद्भागवत-महापुराण के बारहवें स्कन्द में दिया गया श्लोक-

सम्भलग्राममुख्यस्य ब्राह्मणस्य महात्मनः।

भवने विष्णुयशसः कल्किः प्रादुर्भविष्यति।।

इस श्लोक का सरल शब्दों में अर्थ समझाएं तो, “शम्भल-ग्राम में विष्णुयश नाम के एक ब्राह्मण होंगे। उनका ह्रदय बड़ा उदार और भगवतभक्ति पूर्ण होगा। उन्हीं के घर कल्कि भगवान अवतार ग्रहण करेंगे।”

जानकारी के लिए बता दें कि, श्रीमद्भागवत महापुराण में बताई गई जगह शम्भल/संभल उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद जिले में मौजूद है। माना जाता है कि यहीं पर भगवान विष्णु अपना कल्कि अवतार लेंगे। 

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इस महीने का अगला व्रत/त्यौहार है, तुलसीदास जयंती जो 27-जुलाई 2020, सोमवार के दिन मनाई जाएगी। तुलसीदास जयंती के बारे में सम्पूर्ण जानकारी जानने के लिए हमारे साथ जुड़े रहे।

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हम आशा करते हैं कि कल्कि जयंती पर लिखा हमारा यह लेख आपके लिए सहायक साबित होगा। एस्ट्रोसेज के साथ बने रहने के लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद।

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