इस मंदिर में साक्षात वास करते हैं भगवान शिव

हिन्दू धर्म में मंदिरों का बहुत महत्व बताया गया है।  मंदिर वैसे तो अपने आप में बहुत पावन और पवित्र होते हैं लेकिन उनकी महत्वता तब और बढ़ जाती है जब उन मंदिरों से जुड़ी कोई बेहद ख़ास बात लोगों को पता चलती है। देश के कुछ मंदिरों के बारे में तो यहाँ तक कहा जाता है कि उनमें साक्षात भगवान का वास होता है। आज एक और ऐसे ही मंदिर के बारे में हम आपको बताने जा रहे हैं जिसके बारे में कहा जाता है कि यहाँ स्वयं भगवान शिव जी साक्षात वास करते हैं।

कहाँ स्थित है ये मंदिर

झारखंड के गुमला जिले में भगवान परशुराम का तप स्थल मौजूद है. यह जगह रांची से तकरीबन 150 किमी की दूरी पर स्थित है. पौराणिक कथाओं के अनुसार ऐसा बताया जाता है कि यहाँ भगवान परशुराम ने भगवान शिव की घोर उपासना की थी और यही वो स्थान है जहाँ उन्होंने अपने परशु यानी की फरसे को जमीन में गाड़ दिया था. इस फरसे के ऊपर की आकृति कुछ-कुछ त्रिशूल से मिलती-जुलती है. यही वजह है कि यहां श्रद्धालु इस फरसे की पूजा के लिए आते हैं।

वहीं भगवान शिव शंकर के इस मंदिर को टांगीनाथ धाम के नाम से भी जाना जाता है. कहा जाता है कि टांगीनाथ धाम में साक्षात भगवान शिव निवास करते हैं। इस मंदिर के बारे में कहा जाता है कि ये जंगल में स्थ‍ित है। झारखंड के इस बियावान और जंगली इलाके में शिवरात्रि के मौके पर ही श्रद्धालु टांगीनाथ के दर्शन के लिए आते हैं. बताया जाता है कि यहां स्थ‍ित एक मंदिर में भगवान शिव शाश्वत रूप में मौजूद हैं. इस मंदिर के पुजारी स्थानीय आदिवासी ही हैं और ये लोग ऐसा मानते और बताते हैं कि ये मंदिर बेहद ही प्राचीन है।

आश्चर्यजनक है ये त्रिशूल

यहाँ जिस परशु की उपासना की जाती है उसे भी बड़ा चमत्कारी और आश्चर्यजनक माना जाता है। इसकी वजह यह है कि इस त्रिशूल या परशु में कभी भी जंग नहीं लगता है। ये बात हैरान कर देने वाली इसलिए भी है क्योंकि ये त्रिशूल खुले आसमान के नीचे धूप, छांव, बरसात हर मौसम में यूँ ही पड़ा रहता है लेकिन बावजूद इसके इसमें कभी जंग नहीं लगता है। आदिवासी बाहुल्य वाला ये इलाक़ा पूरी तरह से उग्रवाद से प्रभावित है. ऐसे में यहां अधिकतर सावन और महाशिवरात्रि के दिन ही शिवभक्तों की भीड़ उमड़ती है.

इस मंदिर के बारे में प्रचलित कथा के अनुसार बताया जाता है कि जब भगवान श्रीराम ने जनकपुर में आयोजित सीता माता के स्वयंवर में शिव जी का धनुष तोड़ा तो वहां पहुंचे भगवान परशुराम इस बात से काफी क्रोधित हो गए.  जिसके बाद लक्ष्मण से उनकी काफी लंबी बहस चली लेकिन इसी बीच परशुराम को ये पता चला कि भगवान श्रीराम स्वयं ही नारायण हैं तो उन्हें बड़ी शर्मिंदगी महसूस होने लग गयी।

शर्म से उन्होंने वो सभा छोड़ दी और आत्म-ग्लानि का भाव लिए हुए वो घने जंगलों के बीच एक पर्वत श्रृंखला पर आ पहुंचे। यहाँ पर उन्होंने भगवान शिव की स्थापना की और उनकी आराधना में जुट गए।  यहीं पर उन्होंने अपना परशु ज़मीन में गाड़ दिया था।

इसी मंदिर से जुड़ी एक और कहानी है जिसके अनुसार कहा जाता है कि भगवान शिव इस क्षेत्र के पुरातन जातियों से संबंधित थे. एक बार शनि देव के किसी अपराध के लिए भगवान शिव ने उनपर त्रिशूल फेंक कर वार किया तो वह त्रिशूल इस पहाड़ी की चोटी पर धंस गया। उस समय त्रिशूल का आगे का भाग जमीन के ऊपर ही रह गया और बाकी का भाग जमीन के अंदर चला गया। आजतक कोई इस बात को नहीं जानता कि त्रिशूल जमीन के कितना नीचे तक गड़ा है।

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