जानें आंवला नवमी व्रत विधि और इससे मिलने वाले शुभ फल

आंवला नवमी का त्यौहार भारत के कई क्षेत्रों में बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। आंवला नवमी को अक्षय नवमी भी कहा जाता है और ऐसा माना जाता है कि इस दिन भगवान कृष्ण अपनी बाल लीलाओं का त्याग कर वृंदावन की गलियों छोड़कर मथुरा चले गये थे। इसके साथ ही माना जाता है कि आंवला भगवान विष्णु का सबसे प्रिय फल है और आंवले के वृक्ष में सभी देवी देवताओं का निवास होता है इसलिये आंवला नवमी के दिन आंवले के वृक्ष की पूजा करने से देवी देवताओं का आशीर्वाद प्राप्त होता है। इस दिन व्रत रखने से संतान की प्राप्ति भी होती है।

कब मनाया जाता है आंवला नवमी का त्यौहार

आंवला नवमी का त्यौहार दीपावली के बाद मनाया जाता है। हिंदू पंचांग के अनुसार कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को यह त्यौहार मनाया जाता है। साल 2019 में आंवला नवमी या अक्षय नवमी का त्यौहार 5 नवंबर को मनाया जायेगा। आंवला नवमी के दिन पूजा मुहूर्त सुबह 06:45 से 11:54 मिनट तक है।

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आंवला नवमी व्रत एवं पूजा विधि

  • इस दिन सुबह उठकर स्नान ध्यान करना चाहिये।
  • स्वच्छ मन से आंवले के वृक्ष के नीचे पूर्व दिशा की ओर मुंह करके बैठना चाहिये।
  • इसके बाद धूप-दीप इत्यादि जलाना चाहिये।
  • आंवले के वृक्ष की जड़ों को दूध से सींचना चाहिये और उसके बाद तने पर सूत का धागा लपेटना चाहिये।
  • इसके बाद वृक्ष की पूजा करनी चाहिये।
  • सारे दिन भर व्रत रखने के बाद, आंवले के वृक्ष की सात परिक्रमाएं करने के बाद ही भोजन ग्रहण करना चाहिये।   

आंवला नवमी से जुड़ी पौराणिक कथा

आंवला नवमी से जुड़ी कथा के अनुसार एक व्यापारी अपनी पत्नी के साथ काशी नगर में रहता था। बहुत साल गुजर जाने के बाद भी व्यापारी के कोई संतान न हुई, जिसके कारण उसकी पत्नी बहुत परेशान रहने लगी। संतान की प्राप्ति के लिये उसने कई प्रयास किये लेकिन वह सफल नहीं हुई। एक दिन किसी बाबा ने व्यापारी की पत्नी को बताया कि भैरव बाबा के मंदिर में किसी बच्चे की बलि देने से उसे संतान की प्राप्ति हो सकती है। पत्नी ने यह बात जब अपने पति को बताई तो वह बहुत क्रोधित हुआ और पत्नी से कहा कि इस बारे में सोचे भी न। हालांकि पत्नी ने अपने पति से छुपकर एक बच्चे की बलि दे दी। इसके बाद व्यापारी की पत्नी के शरीर पर कई रोग हो गये। व्यापारी यह देखकर बहुत चिंतित हो गया। एक दिन पत्नी ने अपने पति को बता दिया कि उसने एक बच्चे की बलि दी है जिसके बाद पति को बहुत क्रोध आया और उसने अपने पत्नी को बहुत बुरा भला कहा। कुछ समय बाद जब पति का गुस्सा शांत हुआ तो उसने पत्नी को गंगा में स्नान करने की सलाह दी।

व्यापारी की पत्नी रोजाना गंगा जी की पूजा औऱ गंगा स्नान करने लगी। उसकी श्रद्धा को देखकर एक दिन माता गंगा ने एक बुढ़िया का रुप धारण करके उसे बताया कि वो वृंदावन जाकर कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को व्रत रखे और आंवले की पूजा करे तो उसके सारे रोग दूर हो जाएंगे। व्यापारी की पत्नी ने ऐसा ही किया और विधि-विधान से पूजा कि जिसके बाद उसके शरीर के सारे रोग दूर हो गये औऱ उसे संतान की प्राप्ति भी हुई। उस समय से ही महिलाएं संतान प्राप्ति और आरोग्य के लिये आंवला नवमी का व्रत रखती हैं।  

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