शारदीय नवरात्रि 2025: साल भर में कई पर्व व त्योहार आते हैं, लेकिन शारदीय नवरात्रि का महत्व अपने आप में अनूठा है। यह केवल एक धार्मिक उत्सव नहीं, बल्कि शक्ति, भक्ति और सकारात्मक ऊर्जा का अद्भुत संगम है।

घटस्थापना का यह पावन अवसर न केवल आध्यात्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि ज्योतिषीय दृष्टि से भी असाधारण है। इस वर्ष नवरात्रि की शुरुआत एक ऐसे दुर्लभ योग में हो रही है, जिसका इंतजार भक्त वर्षों से करते हैं। ज्योतिषाचार्यों के अनुसार, इस शुभ मुहूर्त में की गई पूजा और साधना से मनोकामनाएं शीघ्र पूर्ण होती है और जीवन में सफलता के नए द्वार खुलते हैं।
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नवरात्रि के नौ दिनों में मां दुर्गा के नौ रूपों की आराधना की जाती है, जिनसे जीवन में शक्ति, ज्ञान, धन, स्वास्थ्य और समृद्धि का आशीर्वाद मिलता है। लेकिन घटस्थापना का दिन पूरे पर्व का आधार माना जाता है।
इस दिन सही समय और विधि से कलश स्थापना करने पर पूरे नौ दिन की पूजा का फल कई गुना बढ़ जाता है। इस साल यह अवसर और भी खास है क्योंकि ग्रह-नक्षत्रों का अद्भुत मेल साधकों और भक्तों को मनचाहा फल देने वाला है।
आज के अपने इस खास ब्लॉग में हम शारदीय नवरात्रि के बारे में जानकारी हासिल करेंगे। साथ ही जानेंगे कि इस वर्ष शारदीय नवरात्रि किस दिन से प्रारंभ हो रही है, इस दिन घटस्थापना का मुहूर्त क्या रहेगा, इस दिन कौन-कौन से शुभ और दुर्लभ योग बन रहे हैं, साथ ही जानेंगे मां इस वर्ष कौन से वाहन पर बैठकर आगमन करने वाली हैं और उसका क्या अर्थ होता है।
शारदीय नवरात्रि 2025: तिथि व मुहूर्त
सबसे पहले बात करें नवरात्रि प्रारंभ कब हो रही है तो दरअसल वर्ष 2025 में अश्विन मास की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि 22 सितंबर सोमवार की रात 01 बजकर 25 मिनट पर होगी। वहीं, इस तिथि का समापन अगले दिन यानी 23 सितंबर मंगलवार की सुबह 02 बजकर 57 मिनट पर होगी। उदया तिथि के अनुसार, शारदीय नवरात्रि 22 सितंबर सोमवार को मनाई जाएगी।
शारदीय नवरात्रि 2025: घटस्थापना का शुभ मुहूर्त
शारदीय नवरात्र में घटस्थापना का शुभ मुहूर्त सुबह 06 बजकर 09 मिनट से लेकर सुबह 08 बजकर 06 मिनट तक है। इसकी अवधि 1 घंटे 56 मिनट तक होगी।
अभिजीत मुहूर्त सुबह 11 बजकर 49 मिनट से लेकर दोपहर 12 बजकर 38 मिनट तक है। इन दोनों ही मुहूर्त में घटस्थापना कर मां दुर्गा की पूजा-अर्चना कर सकते हैं।
शारदीय नवरात्रि 2025 में बन रहे हैं कई शुभ योग
इस बार शारदीय नवरात्रि 2025 की घटस्थापना के दिन शुक्ल योग, ब्रह्म योग और श्रीवत्स योग जैसे अत्यंत मंगलकारी योग भी बन रहे हैं। शुक्ल योग को शांति, पवित्रता और समृद्धि का प्रतीक माना जाता है।
इस योग में किए गए धार्मिक कार्य विशेष रूप से सफल होते हैं और जीवन में सकारात्मकता लाते हैं। ब्रह्म योग की बात करें तो यह योग ज्ञान, बुद्धि और धर्म-कर्म में प्रगाढ़ता लाते हैं। इस समय पूजा पाठ, मंत्र-जाप करने से अद्भुत लाभ मिलता है।
श्रीवत्स योग को ऐश्वर्य और लक्ष्मी प्राप्ति का योग कहा जाता है। इस योग में की गई आराधना से न केवल धन-समृद्धि में वृद्धि होती है। यानी घटस्थापना के लिए दिन का हर पल मंगलमय रहेगा, जिससे भक्त बिना समय की चिंता किए पूरे दिन पूजा अर्चना कर सकते हैं।
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क्या रहेगा मां का वाहन?
शारदीय नवरात्रि 2025 का एक और विशेष संयोग यह है कि इस वर्ष मां दुर्गा हाथी पर सवार होकर पधारेंगी। धार्मिक मान्यताओं और पंचांग गणना के अनुसार, नवरात्रि के पहले दिन देवी दुर्गा जिस वाहन पर आती हैं, उसका सीधा संबंध आने वाले समय के शुभ-अशुभ संकेतों से होता है।
मां का हाथी पर आगमन बेहद शुभ माना जाता है, क्योंकि यह सवारी शांति, स्थिरता, समृद्धि और खुशहाली का प्रतीक है। पौराणिक मान्यता है कि जब मां दुर्गा हाथी की सवारी करके आती हैं, तो वर्ष भर धरती पर सुख-समृद्धि बनी रहती है।
हाथी ज्ञान, शक्ति और वैभव का प्रतीक है और इसका आगमन इस बात का संकेत है कि देश-प्रदेश में बारिश, अन्न-धान्य की प्रचुरता और आर्थिक प्रगति होगी। यह भी कहा जाता है कि हाथी पर सवार मां दुर्गा का आगमन सामाजिक सौहार्द बढ़ाता है और लोगों के जीवन में स्थिरता लाता है।
ज्योतिषाचार्यों के अनुसार, यह सवारी न केवल प्राकृतिक संतुलन के अच्छे संकेत देती है, बल्कि परिवारों में प्रेम और एकता को भी मजबूत करती है। ऐसे समय में किए गए धार्मिक अनुष्ठान और दान-पुण्य का फल कई गुना बढ़ जाता है।
भक्तों का विश्वास है कि हाथी पर आने वाली मां दुर्गा विशेष रूप से अपने भक्तों की आर्थिक उन्नति, मानसिक शांति और पारिवारिक सुख की कामनाएं पूरी करती हैं।
शारदीय नवरात्र 2025 घटस्थापना के नियम
- घटस्थापना हमेशा सुबह के शुभ मुहूर्त में करनी चाहिए। अभिजीत मुहूर्त या विजय मुहूर्त भी उपयुक्त होते हैं, लेकिन अमावस्या या सूर्यास्त के बाद घटस्थापना नहीं करनी चाहिए।
- पूजा का स्थान साफ, पवित्र और शांत होना चाहिए। स्थान पर गंगाजल छिड़ककर शुद्धि करें।
- घटस्थापना से पहले स्नान करके शुद्ध वस्त्र पहनें। सफेद, पीले या लाल रंग के वस्त्र शुभ माने जाते हैं।
- मिट्टी के पात्र में सात या नौ प्रकार के अनाज (जौ, गेहूं आदि) बोएं। पात्र में जल भरें, उसमें रोली, अक्षत, सुपारी, सिक्का और आम के पत्ते डालें। कलश के ऊपर नारियल रखकर लाल चुनरी से ढकें।
- कलश के पास या उसके ऊपर देवी दुर्गा की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें। देवी की ओर मुख पूर्व या उत्तर दिशा की ओर होना शुभ है।
- घटस्थापना के बाद अखंड ज्योत जलाएं, जो पूरे नवरात्रि जलती रहे। घी का दीपक सर्वोत्तम माना जाता है।
- बोए गए जौ या गेहूं के अंकुर देवी की कृपा का प्रतीक माने जाते हैं। नवरात्रि के अंत में इन अंकुरों को नदी या पवित्र स्थान पर विसर्जित करें।
- घटस्थापना के समय दुर्गा सप्तशती, देवी कवच या अन्य मंत्रों का पाठ करें। व्रत का संकल्प लें और नौ दिनों तक मां के नियमों के अनुसार पूजा करें।
- नवरात्रि में सात्विक भोजन करें, प्याज-लहसुन से परहेज रखें। ब्रह्मचर्य और पवित्र आचरण बनाए रखें।
- प्रतिदिन मां दुर्गा के अलग-अलग रूप की पूजा करें। नवमी के दिन कन्या पूजन और प्रसाद वितरण अवश्य करें।
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शारदीय नवरात्र 2025 में घटस्थापना करते समय न करें ये गलतियां
- शुभ मुहूर्त से पहले या बाद में कलश स्थापना करने से पूजा का फल कम हो जाता है।
- अमावस्या, राहुकाल या अष्टमी के समय घटस्थापना नहीं करनी चाहिए।
- गंदे या अव्यवस्थित स्थान पर कलश स्थापित करना अशुभ माना जाता है। पूजा स्थल की शुद्धि के बिना घटस्थापना न करें।
- बिना आम के पत्ते, बिना नारियल या बिना रोली अक्षत के कलश अधूरा माना जाता है। साथ ही, टूटा हुआ या दरार वाला कलश भी इस्तेमाल न करें।
- नवरात्रि में अंखड दीपक जलाना शुभ माना जाता है, लेकिन अगर दीपक के बीच में बुझ जाए तो इसे अशुभ संकेत माना जाता है। इसलिए दीपक की देखभाल लगातार करें।
- नवरात्रि में मांसाहार, मदिरा, प्याज और लहसुन का सेवन वर्जित है। क्रोध, झूठ और अपशब्दों से भी बचना चाहिए।
- जौ या गेहूं के बीज सही ढंग से न बोना या उन्हें समय पर जल न देना अशुभ माना जाता है।
- घटस्थापना के बाद कलश को हिलाना या उसका स्थान बदलना वर्जित है।
- नवमी के दिन कन्या पूजन और प्रसाद वितरण अवश्य करें, इसे टालना अशुभ माना जाता है।
शारदीय नवरात्र 2025 पर घटस्थापना की विधि
- शारदीय नवरात्रि के पहले दिन सबसे पहले पूजा स्थान को शुद्ध कर लें और माता दुर्गा की चौकी घर के उत्तर-पूर्व कोने यानी ईशान कोण में स्थापित करें।
- इसके बाद चौकी पर लाल रंग का स्वच्छ वस्त्र बिछाएं और उस पर मां दुर्गा की प्रतिमा को प्रतिष्ठित करें।
- फिर सबसे पहले भगवान गणेश का पूजन करें ताकि सभी कार्य अच्छे से पूरे हों। घटस्थापना की प्रक्रिया शुरू करें। इसके बाद शुद्ध मिट्टी लें और उसमें जौ के दाने मिलाकर एक पवित्र आधार तैयार करें। इस मिट्टी को चौकी के पास रखें और इसके ऊपर जल से भरा हुआ मिट्टी का कलश रखें।
- कलश के जल में लौंग, हल्दी की गांठ, सुपारी, दूर्वा और एक रुपए का सिक्का डालें। अब कलश के मुख पर आम के पत्ते लगाएं और उसे मिट्टी के ढक्कन से ढक दें। ढक्कन के ऊपर साफ चावल या गेहूं भरें।
- घटस्थापना के बाद पूरे नवरात्रि के दौरान मां दुर्गा के साथ-साथ इस कलश की भी नियमित पूजा और व्रत नियमपूर्वक करें। माना जाता है कि इस प्रकार की गई घटस्थापना से मां दुर्गा की विशेष कृपा प्राप्त होती है और जीवन में सुख-समृद्धि का वास होता है।
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शारदीय नवरात्र 2025 के पहले दिन मां शैलपुत्री की पूजा
शारदीय नवरात्रि के पहले दिन मां शैलपुत्री की पूजा की जाती है। यह देवी दुर्गा का प्रथम स्वरूप हैं और पर्वतराज हिमालय की पुत्री होने के कारण इन्हें शैलपुत्री कहा जाता है। मां शैलपुत्री को शक्ति, दृढ़ संकल्प और पवित्रता का प्रतीक माना जाता है।
ज्योतिष मान्यता है कि मां शैलपुत्री को नियंत्रित करती हैं, जो मन और भावनाओं के कारक हैं। पहले दिन उनकी उनकी उपासना करने से मानसिक शांति, स्थिरता और सकारात्मक सोच का विकास होता है। यह पूजा जीवन में नए आरंभ, आत्मविश्वास और दृढ़ इच्छाशक्ति का संचार करती है।
पहले दिन मां शैलपुत्री की पूजा से व्यक्ति के जीवन से आलस्य, भय और नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है। साथ ही, साधक को आध्यात्मिक शक्ति प्राप्त होती है, जो पूरे नवरात्रि और आने वाले समय में उसका मार्गदर्शन करती है।
कहा जाता है कि जो भक्त श्रद्धा से पहले दिन मां शैलपुत्री का स्मरण करता है, उसके जीवन में सौभाग्य और समृद्धि के द्वार खुलते हैं।
शारदीय नवरात्र 2025: मां शैलपुत्री की कथा
मां शैलपुत्री, देवी दुर्गा का प्रथम स्वरूप हैं और पर्वतराज हिमालय की पुत्री होने के कारण इन्हें यह नाम प्राप्त हुआ है। लेकिन इनका जन्म एक दिव्य कथा से जुड़ा है, जो इनके पूर्वजन्म से आरंभ होती है।
सती, जो भगवान शिव प्रथम पत्नी थीं, राजा दक्ष प्रजापति की पुत्री थीं। राजा दक्ष, भगवान शिव के प्रति आदर भाव नहीं रखते थे और एक बार उन्होंने एक विशाल यज्ञ का आयोजन किया, जिसमें सभी देवताओं और ऋषियों को आमंत्रित किया गया, लेकिन भगवान शिव को आमंत्रण नहीं भेजा।
सती ने जब यह सुना, तो उन्होंने बिना निमंत्रण के यज्ञ में जाने का निश्चय किया, क्योंकि वे अपने मायके का उत्सव देखना चाहती थीं। यज्ञ स्थल पर पहुंचकर सती ने देखा कि वहां भगवान शिव का अपमान हो रहा है और राजा दक्ष खुले शब्दों में उनका तिरस्कार कर रहे हैं।
पति का यह अपमान सती से सहन नहीं हुआ और उन्होंने क्रोधित होकर यज्ञ की अग्नि में आत्माहुति दे दी। इस घटना के बाद भगवान शिव ने क्रोध में आकर दक्ष के यज्ञ को विध्वंस कर दिया और सती के शरीर को अपने कंधों पर लेकर तांडव करने लगे।
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तब भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से सती के शरीर के टुकड़े किए, जो धरती के विभिन्न स्थानों पर गिरे और ये स्थान बाद में शक्तिपीठ कहलाए। पुनर्जन्म में सती, पर्वतराज हिमालय के घर जन्मीं और शैलपुत्री नाम से प्रसिद्ध हुई। इस जन्म में उन्हे फिर भगवान शिव को अपने पति के रूप में प्राप्त किया।
मां शैलपुत्री वृषभ यानी बैल पर सवार रहती हैं, उनके दाहिने हाथ में त्रिशूल और बाएं हाथ में कमल होता है। वे सरलता, साहस और अडिग भक्ति की प्रतीक हैं। नवरात्रि के पहले दिन इनकी पूजा करने से व्यक्ति के जीवन में स्थिरता, शांति और दृढ़ता का संचार होता है।
मां शैलपुत्री को प्रसन्न करने के लिए इन मंत्रों का करें जाप
पूजा शुरू करने से पहले मां शैलपुत्री का ध्यान इस मंत्र से करें-
“वन्दे वाञ्छितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम्।
वृषारूढां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्॥”
मां शैलपुत्री की पूजा के समय इस मंत्र का जाप करें-
“ॐ देवी शैलपुत्र्यै नमः॥”
मां की स्तुति में यह मंत्र बोलें –
“शैलपुत्री महामाये चन्द्रार्धकृतशेखरे।
वृषारूढे शूलहस्ते मां पाही परमेश्वरी॥”
साधना में अधिक शक्ति के लिए बीज मंत्र का जाप करें-
“ॐ ह्रीं शैलपुत्र्यै नमः॥”
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अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न
इस साल शारदीय नवरात्रि 22 सितंबर सोमवार से शुरू होंगे।
इनका वाहन वृषभ (बैल) है, जो परिश्रम, धैर्य और दृढ़ता का प्रतीक है।
मां शैलपुत्री चंद्रमा का नियंत्रण करती हैं, जो मन, भावनाओं और मानसिक संतुलन का कारक है।