कुंडली के इन संकेतों से जानें आप पर भगवान की कृपा है या नहीं।

सनातन धर्म की मानें तो हममे से बहुत से लोग अपनी श्रद्धा-भक्ति और क्षमता के अनुसार भगवान का पूजन करते हैं। यही पूजा अथवा पूजन भगवान के किसी भी स्वरूप को प्रसन्न करने हेतु मनुष्य द्वारा किया गया भगवान का पवित्र अभिवादन होता है। भगवान की पूजा न केवल मनुष्य के जीवन का शांतिपूर्ण तथा महत्वपूर्ण कार्य है बल्कि अपने निरार्थक जीवन में मार्गदर्शक पाने का जरिया भी है इसलिए ये देखा जाता है कि जिन भी लोगों पर भगवान की कृपा हो जाती हैं, उनमें अपने जीवन में बड़ी से बड़ी बाधाओं को दूर करने का साहस आ जाता है।

जबकि इसके विपरीत कई मनुष्य भगवान की कृपा के अभाव में लगातार जीवनभर कठिन परीक्षा से गुजरते रहते हैं। ऐसे में अक्सर हमारे मन में भी ये प्रश्न उठता है कि क्या हमारे ऊपर भगवान की कृपा है या नहीं? या हम पर भगवान अपनी कृपा कब करेंगे? या कब भगवान हम पर कृपा करते हुए हमारे जीवन से दुखों का अंत करेंगे?

आपके इन सभी सवालों को ध्यान में रखकर एस्ट्रोसेज अपने ज्योतिषियों की मदद से आपको आज अपने इस लेख में ये समझाने का प्रयास करेगा कि आखिर कैसे जन्मकुंडली को देखकर भगवान की कृपा के बारे में जाना जा सकता है। तो चलिए अब बिना देर किये आपकी कुंडली के आधार पर जानते है कि आप पर भगवान की कृपा है या नहीं:-

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भगवान की कृपा को लेकर जन्मकुंडली में मिलते हैं संकेत 

  • यदि किसी जातक की जन्मकुंडली में दशमेश बुध हो और उस पर किसी अन्य शुभ ग्रहों की दृष्टि पड़ रही हो तो, ये स्थिति बताती है कि उस जातक पर भगवान की कृपा दृष्टि रहेगी। 
  • इसके अलावा किसी कुंडली का नवमेश यदि उच्चस्थ हो और उस पर चंद्र, बुध, गुरु, शुक्र में से किसी भी शुभ ग्रह की पूर्ण दृष्टि पड़ रही हो तो वो जातक भी देवी-देवताओं की कृपा प्राप्त करने में सफल रहता है। 
  • यदि कुंडली का नवमेश पूर्ण बली हो और उस पर गुरु बृहस्पति की दृष्टि पड़े, ये स्थिति उस जातक पर भगवान की पूर्ण कृपा-दृष्टि बनाए रखने में मददगार सिद्ध होती है।  

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  • किसी कुंडली के लग्न के स्वामी अथवा लग्न पर नवमेश की दृष्टि होने पर भी, उस जातक पर भगवान अपनी कृपा बनाए रखते हैं। 
  • कुंडली में यदि नवमेश गुरु बृहस्पति के साथ युति करें और वो षड्वर्ग में बली हो अथवा लग्नेश पर गुरु बृहस्पति की पूर्ण दृष्टि होने पर भी, जातक भगवान की कृपा-दृष्टि पाने में सक्षम रहता है। 
  • कुंडली का दशमेश केंद्रस्थ हो, जबकि नवमेश चतुर्थ भाव में हो तो ये स्थिति भी जातक पर भगवान की कृपा बनाए रखने का कार्य करती है। 

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कुंडली से जानें भगवान के प्रति जातक का श्रद्धा-भाव  

ज्योतिष विज्ञान के नियमनुसार किसी कुंडली के पंचम भाव से जहाँ हम भगवान के प्रति जातक के प्रेमभाव व भक्ति का पता लगाते हैं, वहीं कुंडली के नवम भाव से धर्म का विचार किया जाता है। ऐसे में इन दोनों ही भावों यानी नवम और पंचम (9-5) भाव का अध्ययन कर जातक की भगवान के प्रति भक्ति व उसके प्रेमभाव का पूर्ण रूप से विचार किया जाता है इसलिए ये देखा गया हैं कि निम्नलिखित परिस्थितियों का आकलन कर विशेषज्ञ ये जानकारी देते हैं कि जातक का भगवान के प्रति कैसा भाव रहेगा। 

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  • यदि किसी कुंडली के पंचम भाव में सूर्य, मंगल और गुरु में से कोई भी पुरुष ग्रह उपस्थित हो या पंचम भाव में इन ग्रहों में से किसी भी ग्रह की दृष्टि पड़ रही हो तो, इस स्थिति में उस जातक का हमेशा भगवान के प्रति झुकाव रहेगा।  
  • यदि पंचम भाव समराशि का हो और उसमें चंद्र या शुक्र बैठे हो अथवा उस पर चंद्र या शुक्र ग्रह में से किसी की भी दृष्टि पड़ रही हो तो उस जातक पर धन की देवी मां लक्ष्मी की विशेष कृपा रहती है। 
  • जन्म कुंडली के किसी भी भाव या स्थान पर एक साथ यदि चार या पांच ग्रह उपस्थित हों तो उस जातक पर भगवान की विशेष कृपा होती है, जिससे वे हर प्रकार के सांसारिक मोह से मुक्त हो जाता है। 
  • यदि किसी कुंडली के दशम भाव में मीन राशि हो और उसमें बुध या मंगल में से कोई भी एक ग्रह उपस्थित हो तो ये स्थिति जातक को आध्यात्मिक जीवन व्यतीत करने की ओर इशारा करती है। ऐसे लोग ज्यादातर समय धार्मिक कार्यों में व्यतीत करना पसंद करते हैं।  

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  • यदि किसी कुंडली में दशमाधिपति नवम में बैठा हो और बली नवमेश गुरु बृहस्पति व शुक्र से दृष्ट या युत हो, इस स्थिति में जातक हमेशा अपने जीवन में केवल और केवल धर्म की राह पर चलना पसंद करता है।  
  • यदि कुंडली का नवमाधिपति बली और शुभ ग्रह हो, साथ ही उस पर गुरु या शुक्र की पूर्ण दृष्टि हो तो ये योग जातक को भगवान का कृपा पात्र बनाता है। 

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