जब भगवान महादेव ने भगवान विष्णु के पुत्रों का वध कर दिया था, जानिए कथा

सनातन धर्म में भगवान शिव को संहारक और भगवान विष्णु को पालनकर्ता करता कहा गया है। दोनों ही देवता इस सृष्टि के संचालनकर्ता हैं और दोनों ही देवताओं ने इस सृष्टि में पाप व पापियों के नाश के लिए अलग-अलग समय पर अलग-अलग अवतार लिए हैं। जहां सनातन धर्म में भगवान विष्णु के चौबीस अवतार का जिक्र होता है वहीं दूसरी तरफ भगवान शंकर ने 19 अवतार का भी वर्णन मिलता है। इन दोनों ही देवताओं ने सृष्टि पर बढ़ रहे पाप को खत्म करने के लिए अवतार लिया था लेकिन क्या आपको पता है कि भगवान शिव ने एक अवतार इसलिए भी लिया था ताकि वे भगवान विष्णु के संतानों का वध कर सकें? 

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अगर नहीं पता है तो कोई बात नहीं। आज हम इस लेख में आपको भगवान शिव के द्वारा भगवान विष्णु के संतानों के वध की कथा बताएँगे।

जब भगवान महादेव ने भगवान विष्णु की संतानों का वध किया

पौराणिक कथाओं के अनुसार जब समुद्र मंथन हुआ और उसमें से अमृत कलश बाहर निकला तब राक्षसों और देवताओं के बीच उसे पाने की होड़ लग गयी। दोनों ही पक्षों के बीच भयानक युद्ध शुरू हो गया। कहा जाता है कि इस दौरान भगवान विष्णु ने असुरों का ध्यान भटकाने के लिए कई अप्सराओं का निर्माण किया। इन अप्सराओं को देख कर असुर इन पर मोहित हो गए और इन्हें उठाकर पाताल लोक ले कर चले गए। इन अप्सराओं को असुरों ने वहाँ बंदी बना लिया।

बाद में जब असुर वापस आए तब तक देवता अमृत पीकर अमर हो चुके थे। असुरों को जब इस बात का पता चला तो वे गुस्से से आगबबूला हो उठे और उन्होंने देवताओं पर हमला कर दिया लेकिन असुर अजर अमर  देवताओं के सामने भला कहाँ टिकने वाले थे। फलस्वरूप असुरों की हार हुई और उन्हें अपनी जान बचाने के लिए वापस पाताल लोक भागना पड़ा।

ऐसे में भगवान विष्णु असुरों का नाश करने के लिए उनके पीछे-पीछे पाताल लोक पहुंच गए और वहां असुरों से युद्ध कर उनका समूल नाश किया। असुरों के खत्म होते ही वे अप्सराएं भी आजाद हो गईं जिन्हें असुरों ने जबरन बंदी बनाकर रखा था। इन अप्सराओं ने जब भगवान विष्णु को देखा तो वे उनके रूप पर मोहित हो गईं और उन्होंने भगवान विष्णु को अपने पति के रूप में पाने की भगवान शंकर से प्रार्थना की।

अप्सराओं की प्रार्थना सुनकर भगवान शंकर ने माया रचकर भगवान विष्णु से अपने सारे कर्म और कर्तव्य भूलकर पाताल लोक में उन अप्सराओं का स्वामी बनकर रहने को कहा। भगवान शिव की इस माया की वजह से भगवान विष्णु अपना बोध खो बैठे और उन अप्सराओं को ही अपनी पत्नी मान लिया। इन्हीं अप्सराओं से बाद में भगवान विष्णु को पुत्र हुए जो कि पाताल लोक में रहने की वजह राक्षसी अवगुण के साथ पैदा हुए थे। भगवान विष्णु के इन पुत्रों ने बड़े होकर पूरी सृष्टि पर कहर बरपाना शुरू कर दिया। जिसकी वजह से देवताओं को भगवान शिव के पास जाकर उनसे भगवान विष्णु के इन पुत्रों का वध करने का अनुरोध करना पड़ा।

देवताओं की पुकार सुनकर भगवान शिव ने वृषभ यानी कि बैल का अवतार लिया और पाताल लोक जाकर भगवान विष्णु के सभी पुत्रों का वध कर दिया। भगवान विष्णु ने जब अपने वंश को खत्म होते देखा तो वे क्रोधित हो उठे और वे भगवान शिव से युद्ध करने लगे। चूंकि दोनों ही देवता अति शक्तिशाली, तेजस्वी और अमर थे, इस वजह से युद्ध में किसी का नुकसान तो नहीं हुआ लेकिन नतीजा न निकलने की वजह से यह युद्ध काफी लंबा चलता चला गया। युद्ध को खींचते देख अप्सराओं ने भगवान शिव से भगवान विष्णु का बोध वापस करने का अनुरोध किया।

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अप्सराओं की प्रार्थना सुनकर भगवान शंकर ने अपनी रची हुई माया खत्म कर दी। भगवान विष्णु को जब इस घटना का बोध हुआ तब उन्होंने भगवान शंकर की स्तुति की और उनसे वापस विष्णु लोक जाने की आज्ञा मांगी। भगवान विष्णु ने अपना सुदर्शन चक्र भी पाताल लोक में ही छोड़ दिया। बाद में भगवान शिव ने उन्हें नया सुदर्शन चक्र वरदान के रूप में दिया था।

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