विश्वकर्मा जयंती 2022: इन 5 शुभ योगों में विश्वकर्मा पूजन से बरसेगी कृपा

विश्वकर्मा जयंती 2022 के हमारे इस विशेष ब्लॉग में हम आपको इस दिन से जुड़ी हुई सारी महत्वपूर्ण जानकारी जैसे विश्वकर्मा जयंती का महत्व, पूजा विधि और इस दिन बन रहे 5 विशेष संयोगों से अवगत करवाएंगे। साथ ही विश्वकर्मा जयंती के हमारे इस विशेष लेख के माध्यम से आप  भगवान विश्वकर्मा से जुड़ें 7 रोचक तथ्यों के बारे में जानेंगे जो आपको हैरान कर देंगे।

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विश्वकर्मा जयंती को संसार के प्रथम वास्तुकार भगवान विश्वकर्मा के जन्मदिन के रूप में मनाया जाता है। हिन्दू धर्म शास्त्रों के अनुसार, सृष्टि की रचना ब्रह्मा जी ने की थी लेकिन इसको सजाने-संवारने का काम उन्होंने भगवान विश्वकर्मा को सौंपा था। इस वजह से ही इन्हें सृष्टि रचयिता के नाम से भी जाना जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, विश्वकर्मा जी का जन्म भगवान ब्रह्मा की सातवीं संतान के रूप में हुआ था। इस दिन लोग अपने वाहन और अस्त्र-शस्त्र की पूजा करते हुए भगवान विश्वकर्मा को स्मरण करते हैं। 

विश्वकर्मा पूजा: तिथि और समय 

सनातन धर्म में वर्णित मान्यताओं के अनुसार, भगवान विश्वकर्मा जी का जन्म कन्या संक्रांति के दिन हुआ था जो इस वर्ष 17 सितंबर को पड़ रही है।     

विश्वकर्मा पूजा शुभ मुहूर्त

प्रथम शुभ मुहूर्त: प्रातःकाल 07:11 से रात 9:10 बजे तक 

दूसरा शुभ मुहूर्त: दोपहर 01:45 से 03:20 बजे तक

तीसरा शुभ मुहूर्त: दोपहर 03:20 से 04:53 बजे तक 

देशभर में विश्वकर्मा जयंती को विभिन्न धर्मों द्वारा अलग-अलग समय पर मनाया जाता है। अधिकतर लोग इसे कन्या संक्रांति के दिन मनाते हैं जो 7 फरवरी के दिन गुजरात और राजस्थान के कई हिस्सों में मनाई जाती है। इसके अलावा, बिहार समेत देश के उत्तरी हिस्सों में विश्वकर्मा जयंती को दिवाली के अगले दिन मनाने का विधान है।  

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भगवान विश्वकर्मा से जुड़े 7 रोचक तथ्य  

  • मान्यता है कि विश्वकर्मा जी की चार भुजाएं हैं जिनमें वह पुस्तक, कमंडल, फंदा और औजार धारण करते हैं और इनके मस्तक पर सुशोभित मुकुट और शरीर पर सोने के आभूषण भगवान विश्वकर्मा के सौंदर्य को बढ़ाते हैं।
  • भगवान विश्वकर्मा को सोनार, बढ़ई और शिल्प आदि रचनात्मक कार्य करने वाले लोगों का  प्रमुख देवता माना जाता है। वास्तव में, विश्वकर्मा जी के बहुमुख और भुजाएं सर्वोच्च शक्ति और रचनात्मकता का प्रतिनिधित्व करती है। 
  • ऐसी मान्यता है कि भगवान विश्वकर्मा ने ही इंद्रदेव के परम शक्तिशाली अस्त्र वज्र का निर्माण किया था।   
  • जगत पालनहार भगवान विष्णु का सुदर्शन चक्र भी विश्वकर्मा जी की ही रचना है। 
  • हिंदू धर्म में वर्णित कई सुंदर महलों और उड़ने वाले रथों के सृजन का श्रेय भी भगवान विश्वकर्मा को ही जाता है।    
  • विद्वानों के अनुसार, भगवान शंकर ने लंकापति रावण को सोने की लंका वरदान रूप में दी थी जिसकी रचना देव शिल्पी विश्वकर्मा द्वारा की गयी थी। 
  • भगवान कृष्ण की राजधानी द्वारका से लेकर पांडवों के इंद्रप्रस्थ का निर्माण भी महान वास्तुकार विश्वकर्मा ने ही किया था। 

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विश्वकर्मा जयंती 2022 का महत्व 

विश्वकर्मा जयंती का मजदूर और श्रमिक वर्ग के लिए विशेष महत्व है। इस दिन सभी भक्तजन अपने क्षेत्र में सफलता पाने के लिए विश्वकर्मा जी का पूजन करते हैं। प्रथम वास्तुकार और शिल्पकार की पूजा कारखानों या ऑफिस में श्रद्धाभाव से की जाती है। साथ ही, इस पूजा के संबंध में  धार्मिक मान्यता है कि औजारों और मशीनों के पूजन से वर्षभर मशीनें सुचारु रूप से चलती है और उनमें  कोई समस्या नहीं आती है। इस दिन को कारपेंटर, मैकेनिक, मज़दूर और शिल्पकला से जुड़े लोग बेहद ही उत्साह एवं धूमधाम से मनाते हैं।        

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विश्वकर्मा पूजा विधि

  • विश्वकर्मा जयंती के दिन सुबह-सवेरे जल्दी उठकर स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र पहनें। 
  • अब चौकी पर पीला कपड़ा बिछाएं और उस पर भगवान विश्वकर्मा की मूर्ति या चित्र स्थापित करें। 
  • उसके पश्चात, वाहन, मशीन, औजार और अस्त्र-शस्त्र आदि की पूजा करें। 
  • इन सभी अनुष्ठानों को करते समय भगवान विश्वकर्मा के मंत्रों का जाप करते रहें।  
  • विश्वकर्मा जी को अक्षत (चावल), फूल, हल्दी आदि अर्पित करें, तथा अगरबत्ती दिखाएं।  
  • अब भगवान को प्रसाद के रूप में मिठाई और फलों का भोग लगाएं।  
  • अंत में, भगवान विश्वकर्मा की आरती के साथ पूजा का समापन करें।
  • सभी कर्मचारियों को विश्वकर्मा पूजा का प्रसाद दें। 

विश्वकर्मा जयंती 2022 पर बनने वाले 5 शुभ योग

इस साल विश्वकर्मा जयंती पर 5 शुभ योगों का निर्माण हो रहा है। हिंदू कैलेंडर के अनुसार, इस दिन यानी 17 सितंबर की सुबह से लेकर रात तक वृद्धि योग रहेगा जिसे बहुत शुभ माना जाता है और वृद्धि योग में किये जाने वाले हर काम में व्यक्ति को शुभ परिणामों की प्राप्ति होती है।

इसके अलावा, इस दिन सुबह से दोपहर तक अमृत सिद्धि योग, रवि योग और सर्वार्थ सिद्धि योग आदि तीन शुभ योग बनेंगे। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, अमृत सिद्धि योग मनुष्य को बुद्धि, रवि योग पद-प्रतिष्ठा और अधिकारी, और सर्वार्थ सिद्धि योग सफलता प्रदान करता है। 

इन तीन योगों के बाद द्विपुष्कर योग बनेगा जो बेहद शुभ माना जाता है। मान्यता है कि द्विपुष्कर योग के दौरान किये जाने वाले किसी भी कार्य से दोगुने फल की प्राप्ति होती है। 

ज्योतिष शास्त्र में इन सभी योगों को बहुत ही शुभ और फलदायी माना जाता है। इन शुभ योगों के दौरान विश्वकर्मा जयंती की पूजा करने से जातक को प्राप्त होने वाले लाभ में कई गुना वृद्धि होगी। 

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