विपरीत राजयोग (Vipreet Rajyoga): जानें कुंडली में कैसे बनता है यह योग और इसकी विशेषता

विपरीत राजयोग प्रकार और फल

विपरीत राजयोग (Vipreet Rajyoga), ज्योतिषशास्त्र में मौजूद एक विशेष प्रकार का योग है। इस राजयोग का निर्माण व्यक्ति को रातों-रात सफलता दिलाने वाला होता है। विपरीत राजयोग क्या है और कुंडली में इसके होने से व्यक्ति को कैसे फल की प्राप्ति होती है इसके बारे में हम आपको अपने इस लेख में जानकारी देंगे। 

क्या है विपरीत राजयोग?

कुंडली में ग्रहों की अलग-अलग स्थितियों से कई तरह के योग बनते हैं। विपरीत राजयोग भी इसी तरह का एक संयोजन है। इसमें कुंडली के छठे, आठवें और द्वादश भाव के स्वामी आपस में मिलकर विपरीत राजयोग का निर्माण करते हैं। हालांकि इन तीनों भावों को कुंडली में दुष्टस्थान कहा जाता है लेकिन ज्योतिष के जानकारों की मानें तो इन दुष्ट घरों के स्वामी कई बार इस तरह योग बनाते हैं कि अनुकूल परिणाम व्यक्ति को प्राप्त होते हैं। कुछ ज्योतिष जानकारों की मानें तो विपरीत राजयोग त्रिक भावों के स्वामियों की अंतर्दशा के कारण बनता है और यह व्यक्ति को अच्छे लाभ देता है। इस योग का फल बहुत लंबे समय तक व्यक्ति को प्राप्त नहीं होता। इससे अचानक से व्यक्ति को लाभ मिलता है। 

कुंडली के त्रिक भावों के स्वामियों के बीच जब संबंध बनता है जैसे- षष्ठम भाव का स्वामी द्वादश भाव या अष्टम भाव में विराजमान हो। या द्वादश भाव का स्वामी छठे या अष्टम भाव में हो। ऐसे में बनने वाला विपरीत राजयोग व्यक्ति को सफलता दिलाता है। हालांकि इसका फल 6, 8 और 12वें भाव के स्वामी की अंतर्दशा के दौरान प्राप्त होता है। 

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विपरीत राजयोग की खासियत

यह राजयोग व्यक्ति को संघर्षों के बाद सफलता दिलाता है। कई बार इस राजयोग से व्यक्ति को ऐसे फल मिलते हैं कि जिनकी कल्पना करना भी मुश्किल होता है। कई जानी-मानी हस्तियों की कुंडली में यह राजयोग बना है, जैसे- अमिताभ बच्चन, सचिन तेंदुलकर, रजनीकांत, लता मंगेशकर आदि। इस योग की एक खास बात यह भी है कि यह आपकी मेहनत के अनुसार ही आपको फल प्राप्त करता है। जितनी दिल से आप मेहनत करेंगे उतना ही अनुकूल परिणाम आपको विपरीत राजयोग के निर्माण के दौरान प्राप्त होगा। 

विपरीत राजयोग में विपरीत परिस्थितियों क्यों बनती हैं

इस योग में त्रिक भावों और उनके स्वामियों का महत्वपूर्ण योगदान होता है। त्रिक भावों को ज्योतिषशास्त्र में शुभ नहीं माना जाता लेकिन कुछ विशेष परिस्थियों के कारण यह शुभ फल देने लगते हैं, इन परिस्थितियों के बारे में इस लेख में जानकारी दी गई। मुख्यत: त्रिक भावों में से किसी भाव का स्वामी (जैसे षष्ठम भाव का द्वादश में) किसी अन्य त्रिक भाव में विराजमान हो तो इस योग का निर्माण होता है। आइए विस्तार से जानते हैं कि यह योग क्या है और यह कितने प्रकार का होता है। 

विपरीत राजयोग (Vipreet Rajyog) के प्रकार

ज्योतिषशास्त्र के अनुसार तीन प्रकार के विपरीत राजयोग बताए गए है। 

  • कठिन विपरीत राजयोग
  • सरल विपरीत राजयोग
  • विमल विपरीत राजयोग

यह तीनों राजयोग कुंडली में कैसे बनते हैं आइए अब विस्तार से जानते हैं। 

कठिन विपरीत राजयोग

इस राजयोग को हर्ष विपरीत राजयोग के नाम से भी जाना जाता है। इसका निर्माण कुंडली में तब होता है जब षष्ठम भाव में कोई पाप ग्रह विराजमान हो या इस भाव का स्वामी षष्ठम, अष्टम या द्वादश भाव में हो। यह तीन प्रकार के विपरीत राजयोग में से सबसे पहला है और बहुत शुभ भी। 

कठिन विपरीत राजयोग फल

इस योग का कुंडली में निर्माण व्यक्ति को साहस प्रदान करता है। ऐसा व्यक्ति अपने प्रतिद्वंदियों पर विजय प्राप्त करता है। इस योग के कारण व्यक्ति को समाज में मान-सम्मान की प्राप्ति होती है। पारिवारिक और निजी जीवन की अनुकूलता के कारण व्यक्ति खुशहाल जीवन बिताता है। इसके साथ ही स्वास्थ्य जीवन में भी ऐसे व्यक्ति को परेशानियों का सामना नहीं करता पड़ता, शारीरिक मजबूती ऐसे लोगों में देखी जाती है। 

सरल विपरीत राजयोग

इस योग का निर्माण तब होता है जब षष्ठम या द्वादश भाव का स्वामी अष्टम भाव में विराजमान हो या अष्टम या षष्ठम भाव का स्वामी द्वादश भाव में विराजमान हो। यह राजयोग व्यक्ति को आर्थिक लाभ दिलाता है। 

सरल विपरीत राजयोग फल

ऐसे लोगों को धनलाभ होता है। इनके पास बहुत संपत्ति हो सकती है। इसके साथ ही यह विद्वान भी होते हैं और अपनी मेहनत से ही धन अर्जित करते हैं। इसके साथ ही सरल विपरीत राजयोग के कारण व्यक्ति अपने सिद्धांतों पर अडिग रहता है और अपने फैसले सोच समझकर लेने में भी सक्षम होता है। इस योग के कारण व्यक्ति अपने शत्रुओं को हर बार मात देता है और अपने आदर्शों पर चलता है। 

विमल विपरीत राजयोग

यह राजयोग तब बनता है जब षष्ठम, अष्टम या द्वादश भाव का स्वामी ग्रह द्वादश भाव में विराजमान हो या द्वादश भाव का स्वामी ग्रह षष्ठम या अष्टम भाव में स्थित हो। ज्योतिष शास्त्र में द्वादश भाव को हानि या व्यय का भाव कहा जाता है, इस भाव का संबंध जब षष्ठम या अष्टम भाव से हो जाता है तो विपरीत प्रभाव मिलते हैं। इसलिए इसे विपरीत राजयोग की श्रेणी में डाला गया है। 

विमल विपरीत राजयोग फल

इस योग के निर्माण से व्यक्ति को धन अर्जित करने में कोई परेशानी नहीं होती। ऐसा व्यक्ति नियम से हर काम करना पसंद करता है। इन लोगों को अपनी स्वतंत्रता सबसे अधिक पसंद होती है। समाज में सकारात्मक परिवर्तन लाने के लिए ऐसे लोग प्रयास करते हैं। इन लोगों की आत्मा स्वतंत्रता पसंद करती है। यह लोग दूसरों का भला करना पसंद करते हैं। 

अब आप जान गए होंगे कि विपरीत राजयोग क्या है और इसका निर्माण कैसे होता है। इसके साथ ही इसके निर्माण से कैसे फल मिलते हैं इसकी जानकारी भी हम आपको दे चुके हैं। अपनी कुंडली का अवलोकन करके अब आप भी जान सकते हैं कि आपकी कुंडली में यह योग है या नहीं। 

निष्कर्ष 

ज्योतिषशास्त्र में मौजूद कई योग में से एक विपरीत राजयोग बहुत अलग माना जाता है। क्योंकि इसका निर्माण दुष्ट स्थानों के स्वामियों के संबंधों से होता है। यह राजयोग व्यक्ति की कड़ी मेहनत का फल प्रदान करता है। हालांकि यह लंबे समय तक के लिए नहीं होता लेकिन कम समय में ही यह व्यक्ति को वह सबकुछ दे सकता है जिसकी तलाश व्यक्ति को होती है। 


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